Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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शां मिथ्यादृशामीदृशां, बद्दोऽहं धुरि तावदेव चरितैस्तन्मे हहा का गतिः ॥७॥
शब्दार्थः-अंतःकरणमां केषवाला, बहारथी शांतिवाला, बांनां पाप करवाथ पापात्मा, नदीना जलथा करी शुद्धि जेणे एवो मद्यान करनार वाणी या जेवो, पुष्ट वासनानो बहारथी नाश करनारा, बगलाना जेवी दृष्टो राखो कम्टो व्रतधारी थई फरता मिथ्याष्टीरूप आवा प्रकारना श्रमे बीए एटर्बुज नहीं पण (खराब) याचरण मां अग्रेसर थई हुं बंधाएलो बुं, ते मारअरेरे हे देव ! शो गति थशे ? ॥७॥ .. ॥ गाथा (ए मीना बुटा शब्दोना अर्थ ॥ येषां जेमना । प्रशंसादिना प्रशंसा । निशा रात्री दर्शन-दर्शन विगेरेथी । इव-पेठे वन्दन-नमस्कार मुच्यन्ते मुकाय जे सिते=शुक्ल, अजवाप्रणमन-प्रणाम तमसा-अहानरूपी लीया समर्श अ ते अंधकारवडे .. । पके पखवाडीआमां
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