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महेश्वरी महाजनों को पुरोहिताईइसी प्रकार कई जाति के राजपूतों के एकत्र मिलने से 'महेश्वरी नामक महाजनों की एक जाति बनी है। उनमें के कई एक राजपूतों के पुरोहित पुष्करणे हो ब्राह्मण थे अतः उन रा. जपूतों की सन्तान महाजन महेश्वरियोंने भी अपने वंशवालों के लिये पुष्करणे ही ब्राह्मणों को पुरोहित माने थे सो आज तक उनके वंशवाले भी वैसे ही मानते चले आये हैं। जैसे:___'डाहरु' जाति के राजपूत से 'हुरकट' नाम की जाति बनी है जिस को हुरकट, भोलाणी, कयाळ और चौधरी नामक ४ शाखाएं हो गई । वे सब वटु जातिके पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानते हैं।
निर्वाण' जाति के राजपूत से 'वाहेती' नामकी जाति बनी है जिसकी खडलोया और वाहेती नामक शाखावाले तो छाँगाणियों को, मल्लडं नामक १ शाखाबाले विशों को और मुसाण्या नामक ? शाखाबाले चोहटिया जोशो जाति के पुष्करणे ब्रा. ह्मणों को पुरोहित मानते हैं। __'पचार' जाति के राजपूत से 'राठी' नाम को जाति बनी है जिसको मालाणी, खटमल, कल्लाणी महोता, सालाणो आदि १६२ शाखाओं हो गई वे सब छाँगाणी* जाति के पुष्करणे ब्राह्मणों को पुरोहित मानते है ।
'पँवार ' जाति के राजपूत से विदुहला (वडला ) नाम
* छाँगाणियों की जातिमें चार स्थंभा हैं १ छाँगाणी, २ कोलाणी, ३ गंढडिया, और ४ देराशरी । इन चारों ही स्थम्भोंवालों की पुरोहिताईका एकसा अधिकार है।
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