Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 78
________________ सन १९१२ ई० को स्थान गोदों की नशियों में समय रात्रि ८ बजेसे मभा होगी। उममें स्थाद्वाद वारिधि वादिगज के मरी पं. गोपालदासजी बरैया न्यायाचार्य पं. माणिकचन्द्रजी कंबर दिग्विजयसिंहजी पं० युत्तलालजी प्रादिके जैनधर्मपर उत्तमोत्तम व्याख्यान और भजन होंगे । अतः आप सर्वसजनन अवश्यमेव पधार कर धर्मलाभ उठाइये। विशेष्वलम् । ... प्रार्थीः-फूनचन्द पांड्या, मन्त्री जैमसभा अजमेर। ___गोदोंकी नशियामें ठीक समयपर सभाका प्रारम्भ हुआ। भजन होने के पश्चाद् श्रीमान् स्याद्वादवारिधि वादिगजकेसरी पण्डित गोपालदासजी वरैस्पाने मंगलाचरण करते हुये ईश्वर के स्वरूपके विषयमें एक छोटीसी सारग. मित वक्तता देकर सभापतिका पासन ग्रहण किया। इटावह निवामी श्रीमान पण्डित पुत्तू लालजीने जीवके सच्चे सुखका निर्णय करते हुये उसके प्राप्तिका उपाय अभिधेय, सम्बन्य, शक्यानुष्ठान इष्ट प्रयोजन और पूर्वापर विरोध रहित लक्षण वाले शास्त्र से प्राप्त होना बतलाकर इन लक्षणों की अव्याप्ति वेदादि शास्त्रों में बतलाते हुये जैनशास्त्रों को ही कल्याणकारी सिद्ध किया। न्यायाचार्य पण्डित माणिकचन्द जीने जैनधर्मके पेटे में ही अपेक्षाओंसे सव धर्मों का प्राजाना सिद्ध किया। कंवर दिग्विजयसिंहजीने सर्वजीवोंके हितार्थ प्रत्येक जनभाईको निज ज्ञान और चरित्रकी वृद्धि करके जैनधर्मका प्रकाश और उसकी सच्ची प्रभावना कर स्वपर कल्याण करनेका उपदेश दिया। फूलचन्द पावड्याने श्रीजै नतत्त्वप्रकाशिनी सभाकी बड़ी प्रशंसा कर उसको अनेकशः धन्यवाद दिया और अन्त में मुबारिकवादी आदिके कई भजन होकर जय जयकार ध्वनिसे बड़े भानन्द और वत्साहके साथ सभा समाप्त हुयी। शक्रवार १२ जलाई ११२ ईस्वी। चौदह दिवश के पश्चाद् प्राज सन्ध्याको पांच बजेकी एक्स प्रेस ट्रेनसे श्री जैन तव प्रकाशिनी सभा अजमेरसे बड़े धूमधाम और उत्साहके साथ विदा हुयी । स्टेशन पर जैन भाइयों का प्रेम और मत्कार देखने ही योग्य था। अजमेर में बारह तेरह दिवशों तक जैन धर्म के विषय में भजन, व्याख्यान, शङ्का ममाधान और शास्त्रार्थों को खूब धूम रही जिनके कारण सर्व साधारण का उसके विषय में मिरपा ज्ञान का बहुत कुछ नाश होकर यथार्थ स्वरुपका बोध हमा।

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