Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 102
________________ ( १०० ) जिसके पास कुछ न हो उसे वीतराग कहते हैं । जिसके पास कुछ हो ही नहीं, उसे ईश्वर कैसे कह सकते हैं ? । फ़क़ीरको ईश्वर बतलाना बुद्धिमत्ता नहीं प परमात्मा वाचक जितने शब्द हैं उनके अर्थों से वीतरागका मेल कभी नहीं हो सकता विष्णु शब्द का अर्थ है कि जो सबमें व्यापक हो, एक देशी न हो परन्तु जेभियाँका जीव मुक्तावस्था में शरीर से निकलकर ऊर्द्ध गमन करता हुआ। शिला से जाकर लग जाता है जिससे उसका एक देशी होना स्पष्ट है। जब एकदेशी हुआ तो विष्णु कैसे ? इसी प्रकार महेश और ब्रह्मा आदिकके शब्दार्थ करने से बीतरागके लक्षण नहीं मिलते । यदि बीतराग जीव ब्रह्मा विष्णु महेश परमात्मा वाध्य ईश्वर बन जाता है तो शब्दार्थ कर लक्षणा बतलाओ । कहने मात्र से काम नहीं चलता । वादि गज केसरी जी - यद्यपि आपका यह पूछना कि जीव ईश्वर कैसे हो जाता है ? उसका ईश्वरश्व किनपर है ? और उसके ब्रह्मा विष्णु महेशादि नाम कैसे सम्भव हो सकते हैं ? विषयान्तर है और हमारा प्रश्न आपपर वैसा ही खड़ा है परन्तु आपने जो पूंछा है तो हम उसका भी उत्तर देते हैं । इसकी व्याख्या के अर्थ एक घन्टेकी ज़रूरत है परन्तु पांच मिनिटमें ही जो कुछ हो सकता है यथा साध्य कहते हैं । द्रव्यका लक्षण “गुण समुदायो द्रव्यम्, है और वह जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इस प्रकार छः हैं । धर्म, अधर्म आकाश और काल इन चार द्रव्यों में स्वाभाविक हो परि मन होता है और शेषके दो जीव और पुद्गलमें स्वाभाविक और वैभावि क दोनों ही । जीव और पुद्गलका परस्पर बन्ध होने से जीव में अशुद्धता होती है। जीवका लक्षण "चेतना लक्षणो जीवः,, चेतना और पुद्गल का “स्पर्शरस गन्धवर्णवत्वं पुद्गलत्वम्, स्पर्श रस गन्ध और वर्ण है । पुद्गल के तेईम विभाग ( Classifications ) हैं जिनमें कि केवल आहार, भाषा, मन, तैजस और कार्माण इन पांच वर्गणाओंका जीव से सम्बन्ध होता है शेष अठारह का नहीं । जिस प्रकार अग्निसे सन्तप्त गर्म लोहे का गोला जलको अपने में खींचकर वाष्परूप कर देता है उसी प्रकार अनादि कर्म के बन्धसे विकारी आत्मा अपने चारित्र गुणकी विभाव रूप परिणति रागद्वेष से मन, बचन, काय द्वारा तीनों लोक में व्याप्त सूक्ष्म कार्माण वर्गणाओं को अपनी ओर आकर्षित कर कर्मरूप परिणमाता है और वह कर्म आत्माके गुणों को आच्छादन और 可 विभावरूप किया करते हैं। जिस प्रकार बोजसे वृक्ष और वृक्षसे बीज हुआ

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