Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविशेषण छउमत्थो मोत्तु ओहिसंपुण्णं । तत्थवि जो परमावहिणाणी तत्तोऽवि किं नूणो ? ॥२२३॥ ते दोवि विससेउं अण्णो छउमस्थकेवली |११.४५ को सो । जो पासइ परमाणु गहणमिदं जस्स होज्जाहि ॥ २२४ ॥ तेसि चिय छउमत्थाइयाण मग्गिज्जए जहिं सुत्ते । केवल-1 विशपाः संजमसंवरबंभाईएहि निव्वाणं ॥ २२५ । तिण्णिवि पडिसेहेउं तीसुवि कालेसु केवली तत्थ । सिभिंसु सिज्झई या सिज्झिस्सइ यावि | भान ॥ १९॥ है णिहिट्ठा ॥ २२६ ॥ एवं विससियम्मिवि परमयमेगन्तरोवओगोत्ति । ण पुण जुगवोवओगे परवत्तव्यत्ति का बुद्धी ? ॥ २२७ ॥ दशेन तदु अण्णं च इमा गाहा समए सिद्धाहिगारपरिपढिया । फुडविअडत्थं साहइ जिणस्स एगंतवओगं ॥२२॥णाणम्मि दंसणंमि य एत्तो विशेषः ६ एगतरयम्मि उवउत्ता । सव्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नत्थि उबओगा ॥ २२९ ॥ सिद्धाणवि एगयरोवोगवत्तित्तणंति तईए से । पुव्वद्धणं सिद्धं अत्थउ पच्छद्धमिह ताव ॥ २३० ॥ परवत्तव्वमिणति य भणिज्ज एवंपि कोइ तं ण भवे । पण्णत्तीऍ विसेसिय| मेयं जम्हा णियंठेसु ।। २३१ ॥ उबओगो एगयरो पणुवीसइमे सए सिणायस्स । भणिो विअडत्थोऽवि य छठ्ठद्देसे विसेसेउ | ॥ २३२ ॥ पण्णवणाचरिमपए भणिओ सिद्धोवि सुद्धनाणीहिं । सागारे उवउत्तो सिज्झइ जह तत्थ गंतूणं ॥२३३ ॥ अह भणसी सव्वं चिय सागारं से अओ अदोसोत्ति । तो सिद्धलक्खणं कह भणियं सागारणागारं ? ॥ २३४ ॥ एवं फुडविअडम्मिवि सुत्ते सवण्णुभासिए सिद्धे । कह तीरइ परतित्थियवत्तव्यमिणंति वोत्तुं जे? ॥२३५।। सव्वत्थ सुत्तमत्थि य फुडमेगयरोवउत्तसत्ताणं । उभओवउत्तसत्ता सुत्ते वुत्ता ण कत्थइवि ॥ २३६ ॥ कस्सइवि णाम कत्थइ कालं जइ होज्ज दोऽवि उवओगा । उभओवउत्तसुत्ताण १ वरमय.२ एई.३०मेवं.४ समए, R- % 4 CA For Private and Personal Use Only

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