Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(०६) माणरूप . ते विषे शिष्टपुरुषोना वचन विरुष्प कुमतियोनी कपोलकल्पित कल्पनानी रचना न था. ६१ ।।
हवे पूजामां हिंसानो संलव ने एवी उक्तिने विकटपे दूषित करी कहे . धर्मार्थप्रतिमार्चनं यदि वधः स्यादर्थदंडस्तदा, तत्कि सूत्रकृते न तत्र पठितो नूताहियक्षार्थवत् । या हिंसा खलुजैनमार्गविहितासास्यानिषेध्या स्फुटं, नाधाकर्मिकवन्निहंतुमिह किं दोषं प्रसंगोनवं ॥६॥
अर्थ- जो जिनपूजामां हिंसा लागती होय तो ते हिंसा श्रनर्थ दंडरूप थाय के अर्थ दंडरूप थाय? प्रथमपक्षतो संनवतो नयी अने बीजो पद अर्थदंडनो सश्ए तो सूत्रकारे अर्थदंडना अधिकारमा जूतादि यदना अर्थनी जेम ते केम कह्यो नथी ? तेथी आधार्मिक दोषनी जेम प्रसंगे उत्पन्न थयेला दोषने हणवाने जैनमार्गविहित हिंसा केम प्रगट रीते निषेध करवा योग्य न थाय? अर्थात् थायज ६५
विशेषार्थ- जो कुमति पूजामां हिंसा थाय एम कहे तो, शुं ते हिंसा अनर्थदंडरूप ने के अर्थदंडरूप ने ? प्रथमपक्ष श्रनर्थदंडरूप तो कही शकायज नही. कारण के तेमां प्रयोजननी सिद्धि . बीजो पक्ष अर्थदंडरूप अर्थात् प्रतिमापूजनरूप धर्म अर्थदंडपणाथी व्यवहार करे एटले के तेने अर्थदंड कहेतो सूत्रकारे अर्थदंडना अधिकारमां नूताहियदना अर्थनी जेम ते केम जणान्यो नथी ? जो तेम होय तो निश्चयपूर्वक जै