Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ११० )
- यतना विशिष्ट एवा कर्ममां वचनथी लिङ लकारना रूप एवी विधेयता सिद्ध थाय बे ने जे बुद्धिकृत विशेष रूप विधेयता बे ते जले जागने विषेरहे तेथी कांइ हानिनथी कारण ते प्रत्येक जनमां विचित्रपणे रहेली बे एम स्यादूवाद रत्नाकरमां कहेलुं बे. एवी रीते यतना ने क्रिया नागवडे मिश्रपणं होयतो तेने प्रतिपादन करनारु जैनवचन ने सर्व क्रिया नयनो विधि ते मिश्रथाय आप्रमाणे धर्मपद पण बने जागवडे मिश्र थाय एटले बे मिश्रा थाय. ते बे मिश्रा दमय एवातारा मतनो केम न लोपकर अर्थात् लोप करेज. ०६
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विशेषार्थ पूर्ण अर्थ एटले यतना विशिष्ट एवा कर्ममां वचन श्री लिंङ लकारना अर्थ स्वरूपी एवी विधेयता सिद्ध रहेली कारणके, श्रुति मात्रवडे प्रवर्त्तना तेने अर्थेज बे ने जे बुविकृत विशेष रूप विधेयता बे. ते जले जागने विषे रहे तेथी कां हानिनथी कारणके, ते प्रत्येक जनमां विचित्रपणे रहेली बे. प्रमाणे स्याद्वाद रत्नाकरमां कहेतुं ने, अर्थात् ते स्थले " स्वपरव्यवसायिज्ञानं प्रमाणं " स्वछाने परनो निश्चय करनार जे ज्ञान ते प्रमाण, बे एम कहेलुं बे. जो एम न होय अने यतना छाने क्रिया नागवडे मिश्रपणुं होयतो तेने प्रतिपादन करना जैनवचन ने सर्व क्रियानयनो विधि ते मिश्र थाय. श्रप्रमाणे धर्मनी पक्षपण तेबने नागवडे मिश्रथाय, एटले बे मिश्राथाय. बीजा बेनो लोपथइ ते एकज अवशेष रहे बे. वली ते बने मिश्रा तारामतनो केम न लोपकरे कारणके तेमत भेदमयाने त्र पहने प्रतिपादन करनारो बे अर्थात् पोतानुं