Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उनकी परछाई नहीं गिरती- उनक गले का पुष्पहार नहीं मुरझाता- व जमीन से कुछ ऊपर खड़े रहते हैं और पल के कभी नहीं झपकात । रोहिणेय को देवों का लक्षण याद आ गया । लक्षण क अनुसार एक भी बात उन कथित अप्सराओं में मौजूद नहीं थी । __वह समझ गया कि मेरे मुँह से अपराध कबूल करवाने के लिए ही यह सब नाटक किया जा रहा है । वह संभल गया । बोला :- “मैंने सब पुण्य के ही कार्य किये हैं और यह स्वर्ग पाया है । पाप तो एक भी नहीं किया । परिणामत: वह छूट गया । घर पर आकर उसने विचार किया कि दो मिनिट प्रभुवाणी सुनने से यदि मेरी जान बच सकी तो पूरा प्रवचन सुनने के कितना लाभ होगा ? उसका जीवन परिवर्तित हो गया और वह आत्मकल्याण करने में सफल हुआ । हम क्यों नहीं समझते कि हमारे कान एसी पवित्र वाणी सनने क लिए ही हैं ? हम जो कछ सनते हैं, वह हमारे अवचेतन मन में भर जाता है और प्रसंग आनेपर प्रकट होता है। उससे हमारा भविष्य बनता-बिगड़ता है । ऐसा जान लेने पर भी क्यों हम श्रुतज्ञान की और ध्यान न देकर निन्दा सुनने में या कामनावर्धक संगीत सनने में रस लते हैं ? देश क रक्षक प्रताप को भामाशाह ने अपनी समस्त सम्पत्ति दे दी ! क्षणिक सम्पत्ति से जितनी भलाई हो संक करनी चाहिये : परोपकाराय सता विभूतयः । (सजनों की सम्पत्तियाँ परोपकारक ही लिए होती हैं) यह जानकर भी हम क्यों परिग्रह के पीछे पड़े रहते हैं ? क्या उसंक लिए दौड़-धूप करके अशान्ति मोल लेते हैं ? क्या जीवनपुष्प को मुरझा जाने देते हैं ? आनार्यदेश में धर्मोपदेश के लिए जाने को तैयार साधु क्षमंकर से गुरुजी ने कहा :- "वहाँ का मार्ग ऊबड़-खाबड़ है, भोजन और जल भी समय पर और पर्याप्त नहीं मिल संकगा, वहाँ के लोग भी बड़े क्रूर हैं । व गालियाँ देंगे, अपमान करेंगे और मारपीट तक करंगे !" इस पर क्षेमंकर ने सारे परिषह एक फल की तरह हँसते हए सहने और हर हालत में अपने कर्तव्य का पालन करने का सदृढ संकल्प प्रकट किया । फल स्वरुप गुरुदेव के आदेश से वे अपने उद्देश्य की पूर्ति में लग गये और सफल रहे । For Private And Personal Use Only

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