Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. "दास कबीर जतन से ओढी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया" | आत्मा ही वह चादर है, जिसे महात्मा कबीर सावधानी से ओढ़ते हैं और उस पर कम का दाग नहीं लगने देते Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आठ कर्मों में से एक है मोहनीय । इसके दो भेद हैं- दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । पहले के तीन प्रकार हैं- मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय और सम्यक्त्व माहनीय । दूसरे के दो भेद हैं- कषाय मोहनीय और नोकपाय मोहनीय | क्रोध, मान, माया, लोभ में से प्रत्येक के अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन- ये चार चार भेद होने से कषाय- चारित्रमोहनीय के कुल सोलह भेद हो जाते हैं । नोकपाय के नौ प्रकार हैं- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद । इस प्रकार चारित्र मोहनीयकर्म के कुल पच्चीस भेदों "भयं' हे । जब तक इस कर्म का उदय रहेगा, तब तक जीव डरता रहेगा । स्वय डरने और दूसरों को डराने से इस भय नामक नोकषाय चारित्र मोहनीय कर्म का बन्ध होता है । जिसमें साहस होता है, वीरता होती है, वह न तो डरता है और न किसी का कभी डराने का ही प्रयास करता है सं एक हम बीर के ही नहीं, महावीर के उपासक हैं, जो प्राणीमात्र को अभय देने वाले हैं। किसी भी संकट का हमें साहस के साथ मुकाबला करने को सदा तैयार रहना चाहिये । धीरज, शान्ति और साहस को स्थायी रूप से मन भय को भगा सकते हैं । -- For Private And Personal Use Only आइये, ऐसा ही करें अपनी मानसिक कमजोरी को मिटाकर हम भी प्रभु महावीर के समान निर्भय बने । बसा कर हम ७९

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