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....... इस सम्बन्ध में प्राचाराङ्गसूत्रवृत्ति के अन्तर्गत लोकसार अध्ययन के तृतीय उद्देश में कहा है कि - - "भावयुद् वाऽहं शरीरं लब्ध्वा कश्चित् तेनैव भवेन अशेष कर्मक्षयं विधत्ते, मरुदेवी स्वामिनीवत् कश्चित् सप्तभिरष्टभिर्वा भर्भरतवत्, कश्चित् अपार्द्ध पुद्गल परावर्तन, अपरो न सेत्स्यति एवेति ।
--भावयुक्त एवं योग्य शरीर को प्राप्त करके कोई ही उसी भव में मोक्ष जाता है, मरुदेवी स्वामिनी के समान कोई सात आठ भव में मोक्ष जाता है एवं भरत चक्रवर्ती के समान कोई अपार्ध पुदगल परावर्त काल में मोक्ष जाता है । सम्यक्त्व प्राप्त किये बिना तो कोई भी मोक्ष नहीं ज़ा सकता।
सम्यक्त्व प्राप्त करके जो कभी भी वमन नहीं करते हैं वे सात आठ भव तक संसार में रहने के बाद अवश्य मुक्ति को प्राप्त करते हैं।
जैसा कि सूत्र कृताङ्ग वृत्ति के चौदहवें अध्ययन में कहा है कि:
"अप्रतिपतित सम्यक्त्वो जीवः उत्कृष्टतः सप्ताष्टौ वा भवान् म्रियते नौ मिति ।"
(इसका अर्थ ऊपर दे दिया है।) प्रश्न--१४१ सूक्ष्म निगोद में से निकलकर कतिपय जीव
कालान्तर से पुनः सूक्ष्म निगोद में जाते हैं तो वहां उत्कर्ष से कितने काल तक रहते हैं ? तथा सूक्ष्म निगोद में से निकलकर कतिपय जीव बादर
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