Book Title: Prashnottar Ratna Chintamani
Author(s): Anupchand
Publisher: Jain Prasarak Gyanmandal
View full book text
________________
(२४३ ) वेपारमा पेदाश थाय छे तेनी पाछल महेनत करवी पडे छे, तेनुं दुःख मनमा आवतुं नथी. तेमज तमारा आत्माना सुखना रागी थशो, आम्सुखमां मम शो तो शरीर वेदना थशे ते वेदना मने थाय छे एम मनमा आवशे नहि. ज्यां सुधी शरीरना दुःखमा मन परोवाय छे, त्यां सुत्री तमारो भाव तमारा आत्मभाव उपर तमारी दशा थइ नथी तेथी प्रश्न थाय छे के, ज्यारे तमारी दशानी सन्मुख थशो त्यारे तो. तमारा मनमा आवशे जे में अज्ञानपणे जे जे कर्म बांध्यां छे, ते ते कर्म शरीरमां रहीने बांध्यां छे. ते शरीरे भोगव्या विना आत्मा निर्मल थवानो नथी, वली ए दुःखने दुःख मानीश तो पाछां नवां कर्म बंधाशे अने आत्मा मलीन थशे. शरीरना सुख दुखने मने सुख दुःख थाय छे एम मानवू ए महारा आत्मानो धर्म नथी. हुं सच्चिदानंद छु. अनंत सुखनो धणी छु, अरागी छ, अद्वेषो छु, अछेदी छु, अभेदी छु, अगम छु, अलख छु, अगोचर छु, पूर्णानंद छु, सहजानंदी छु, अचल छु, अमर छु, श्रमल छु, अति इंद्रिय छु, अशरीरी छु, अविनाशी छु-आ महारं स्वरूप छे तो महारो आ आत्मा विनाश थवानो नथी. मरणथी शरीरनो विनाश थशे तेथी महारे शुं करवा भय करवो ? शरीर तो सडण पडण विध्वंसण धर्मवालु छे ते विनाश थाय तेमां महारे शी चिंता करवी ? महारो आत्मा अमर छे, तेथी मरवानो नथी. माटे महारे भरणनो भय नथी. जेटलो जेटलो भय आवे, ते तो अज्ञानदशा छे ते महारे हवे अज्ञानदशाना विचार शुं करवा करवा ? महारे महारा आत्मधर्ममां रहे, तेज उत्तम छे. पूर्वभवोमां अज्ञानताए मरणनो भय कयों. अ ज्ञानताए मरण को अने जीव भवचक्रमां भम्यो, अनेक प्रकारनी नरकादिकनी वेदना भोगवी. उंधे मस्तके गर्भावासनी वेदना भोगवी. आ भवमा भाग्योदये वीतरागनो धर्म मल्यो जेथी में महारा आत्मानुं स्वरूप जाण्यु. हवे रोगादिकनी वेदनाथी हुँ बीतो नथी. रोगनां औषध अनेक प्रकारे करीश; पण जो कर्मनी स्थिति पाकी नथी, तो त्यां

Page Navigation
1 ... 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300