Book Title: Prashamrati
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 40
________________ प्रशमरति ३९ अर्थ : आचारांग के अध्ययनों में जो अर्थ कहे गये हैं उनका अभ्यासपूर्वक आचरण करने से जिसका हृदय सुरक्षित है, वहाँ काल का ऐसा एक भी छिद्र नहीं है, जहाँ कभी भी पराभव हो ॥११९॥ पैशाचिकमाख्यानं श्रुत्वा गोपायनं च कुलवध्वाः । संयमयोगैरात्मा निरन्तरं व्यावृतः कार्यः ॥१२०॥ अर्थ : पिशाच की कथा और कुलवधू के रक्षण को सुनकर, संयमयोगों से निरन्तर आत्मा को व्यापृत रखना चाहिए ॥१२०॥ क्षणविपरिणामधर्मा मर्त्यानामृद्धिसमुदयाः सर्वे । सर्वे च शोकजनकाः संयोगा विप्रयोगान्ताः ॥१२१॥ अर्थ : मनुष्य के सभी ऋद्धि-समूह पलभर में बदल जाने के धर्म वाले हैं। सभी संयोग वियोग के अन्तवाले हैं और शोकजनक हैं ॥१२१॥ भोगसुखैः किमनित्यैर्भयबहुलैः कांक्षितैः परायत्तै: ? । नित्यमभयमात्मस्थं प्रशमसुखं तत्र यतितव्यम् ॥१२२॥ अर्थ : अनित्य, भय से परिपूर्ण और पराधीन भोगसुखों से क्या ? नित्य, भयरहित और स्वाधीन प्रशमसुख में प्रयत्न करना चाहिए ॥१२२॥

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