Book Title: Prakrit Gadya Sopan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 186
________________ पाठ २३ : दमयन्ती का स्वयंवर इसी भरतक्षेत्र में कौशल नगरी है। वहाँ इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न, अनुपम न्याय, त्याग और पराक्रम से युक्त निषध नाम का राजा है। उसके सुन्दरी नामक रानी की कूख से उत्पन्न जन-मन को आनन्द देने वाले नल और कूबर नामक दो पुत्र हैं। ___ और इधर विदर्भ देश के मंडल में कुडिन नगर है। वहाँ शत्रुरूपी हाथी-समूह को सिंह की तरह भीमरथ राजा है। उसके समस्त अन्तःपुररूपी वृक्ष के पुष्प की तरह पुष्पदन्ती रानी है। विषय-सुख का अनुभव करते हुए उनके समस्त त्रिलोक के अलंकार-स्वरूप एक पुत्री उत्पन्न हुई । गाथा-1. उस पुत्री के भाल पर सूर्य के प्रतिबिम्ब की तरह एक सहज तिलक उत्पन्न हुआ, जो मानों सज्जन पुरुष के वक्षस्थल पर श्रीवत्सरूपी सुन्दर रत्न हो । 'माता के गर्भ में इस पुत्री के आने से मेरे सभी बैरी दमित (शान्त) हो गये हैं।' ऐसा सोचकर पिता ने उसका नाम 'दमयन्ती' रखा । शुक्लपक्ष के चन्द्रमा की रेखा की तरह सब लोगों की आँखों को आन्नद देने वाली वह वृद्धि को प्राप्त हुई। समय पर उसे कलाचार्य के पास भेजा गया। 2 बुद्धि से युक्त उस दमयन्ती में उपाध्याय के सिखाते ही समस्त कलाए पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह तुरन्त ही प्राप्त हो गयीं। वह दमयन्ती यौवन को प्राप्त हुई। उसे देख कर माता-पिता ने सोचा- 'यह अनुपम सुन्दरी है और सयोग से विज्ञान में प्रवीण भी । अत: इसके उपयुक्त वर प्राप्त नहीं है । और यदि हो भी तो उसे कैसे जाना जाय ? अतः स्वयंवर करना उचित है ।' ___ तब दूत भेजकर राजाओं और राजपुत्रों को बुलाया गया। हाथी, घोड़े, रथ. एव पैदल सैनकों के साथ में (राजा लोग) आ गये । वहाँ अनुपम पराक्रम वाला प्राकृत गद्य-सोपान 177 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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