Book Title: Prakrit Gadya Sopan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 201
________________ बेट - मैं भी पहन लूगा। . साकार - तुम्हें सोने का पीढ़ा (आसन) बनवा दूगा। र - मैं (उस पर) बैठ जाऊँगा। शकार - तुम्हें सब बचा हुआ (जुठा) भोजन दूंगा। पेट - में भी उसे खा लूगा। शकार- (तुम्हें) सभी नोकरों में प्रधान बना दूंगा। बेट - हे स्वमी ! मैं (प्रधान) बन जाऊंगा। शकार- तो तुम मेरे (एक) आदेश का पालन कर दो। बेट - हे स्वामी ! अनुचित कार्य को छोड़कर सब (काम) कर दूंगा। शकार- अनुचित कार्य की तो (उसमें) गन्ध भी नहीं है। बेट - हे स्वामी ! तब कहिए। शकार- इस वमन्तसेना को मार दो। बेट - हे स्वामी ! प्रसन्न हों । मुझ अनार्य (नीच व्यक्ति) के द्वारा गाड़ी बदल जाने के कारण आर्या (वसन्तसेना) को पहले ही यहां ला दिया गया है। (अब मैं और अनर्थ नहीं कर सकता हूं)। सकार- भरे घेट ! क्या तुम्हारे ऊपर मेरा अधिकार नहीं है ? बेट - हे स्वामी ! (आपका) अधिकार है- (मेरे) शरीर पर, किन्तु (मेरे) : चरित्र पर नहीं। अतः हे स्वामी ! (मेरे ऊपर आप) कृपा करें, कृपा करें। (मुझे हत्या करने का आदेश न दें) क्योंकि मैं डरता हूँ। शकार- तुम मेरे नौकर होकर किससे डरते हो ? चेट - हे स्वामी ! परलोक (के भय) से। शकार- वह परलोक क्या है ? पेट - हे स्वामी ! अच्छे (पुण्य) और बुरे कर्मों (पाप) का फल (परलोक साकार - पुण्य का फल कैसा होता है ? 192 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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