Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 441
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAMACHABAR भणियं आउयकम्म, छटुं कम्मं तु भण्णए नामं । तं चित्तगरसमाणं, जह होइ तहा निसामेह ॥६६॥ जह चित्तयरो निउणो, अणेगरुवाइँ कुणइ रूवाई। सोहणमसोहणाई, चुक्खाचुक्खेहि वण्णेहि ॥ ६७ ॥ तह नाम पि य कम्मं, अणेगरूवाइँ कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाई, इटाणिहाइँ लोयस्स ॥ ६८॥ गइयाइएसें जीवं, नामइ भेएसु जं तओ नामं । तस्स उ बायालीसं, भेया अहवावि सत्तट्ठी ॥ ६९ ॥ अहवावि हु तेणउई, भेया पयडीण हुंति नामस्स । अहवा तिउत्तरसयं, सवेवि जहक्कम भणिमो ॥ ७० ॥ पढमा बायालीसा, गइ जाइ सरीर अंगुवंगे य । बंधण संघायण संघयण संठाणनामं च ॥ ७१॥ तह वण्ण गंध रस फासनाम अगुरुलहुयं च बोधवं । उवधाय पराघायाणुपुधि उस्सासनामं च ॥७२॥ आयावुज्जोय विहायगई तसथावरामिहाणं च । बायर सुहुमं पजत्तापजत्तं च नायवं ॥७३॥ पत्तेयं साहारण, थिरमथिरसुभासुमं च नायचं । सूभगदूभगनामं, सूसर तह दूसरं चेव ॥ ७४ ॥ आइजमणाइज, जसकित्तीनाममजसकित्ती य । निम्माणं तित्थयरं, भेयाणवि हुँतिमे भेया ॥ ७५ ॥ गइ होइ चउन्भेया, जाईवि य पंचहा मुणेयवा । पंच य हुंति सरीरा, अंगोवंगाइँ तिन्नेव ॥ ७६ ॥ १ "" १२ "अणेगरूवं जिय कुणइ" इति । ३ "भेयाइ" । " "चुक्खमचोक्खेहि" । ५ "-सु य जिय" इति । ६ “उ तेणउइ वि" इति । ७ “जाईविह" इत्यपि ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476