Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 467
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बारसविहा अविरई, मणइंदियअनियमो छकायवहो । सोलस नव य कसाया, पणुवीसं पन्नरस जोगा ॥७६ ॥ पणपन्नपन्नतियछहिय, चत्तउणचत्त छ चउ दुगवीसा । सोलसदसनवनवसत्त हेउणो न उ अजोगिम्मि ॥ ७७ ॥ तो नाणदंसणावरणवेयणीयाणि मोहणिजं च । आऊय नाम गोयंतरायमिइ अट्ठ कम्माणि ॥ ७८ ॥ सत्तडछेगबंधा, संतुदया अट्ठसत्त चत्तारि । सत्तट्ठछपंचदुर्ग, उदीरणाठाणसंखेयं ॥ ७९ ॥ अपमत्तंता सत्तट्ट मीसअप्पुत्व बायरा सत्त । बंधति छ सुहुमो एगमुवरिमा बंधगोऽजोगी ॥८॥ जा सुहुमो ता अट्ट वि, उदए संते य होंति पयडीओ। सत्तटुवसंते खीणि सत्त चत्तारि सेसेसु ॥ ८१॥ सत्तट्टपमत्तंता, कम्मे उइरिति अट्ट मीसो उ । वेयणियाउ विणा छ उ, अपमत्तअपुवअनियट्टी ॥ ८२॥ सुहुमो छ पंच उइरेइ पंच उवसं तु पंच दो खीणो। जोगी उ नामगोए, अजोगि अणुदीरगो भयवं ॥ ८३॥ उवसंतजिणा थोवा, संखेजगुणा उ खीणमोहजिणा। सुहुमनियट्टिनियट्टी, तिन्नि वि तुल्ला विसेसहिया ॥८४॥ जोगिअपमत्तइयरे, संखगुणा देससासणा मिस्सा । अविरयअजोगिमिच्छा, असंख चउरो दुवेऽणंता ॥ ८५॥ जिणवलहोवणीयं, जिणवयणामयसमुद्दबिंदुमिमं । हियकंखिणो बुहजणा निसुणंतु गुणंतु जाणंतु ॥ ८६ ॥ ॥ समासोऽयं जिनवल्लभगणिप्रणीतः पडशीतिनामा चतुर्थः कर्मग्रन्थः॥ 20000mm For Private And Personal Use Only

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