Book Title: Pirdan Lalas Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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५४
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पूतना (५८, ८३)-अघासुर तथा । पौरिसि (५२)-पौरुष
वकासुर की वहन, एक । प्रगट्टे (५३)-प्रकट हुए। राक्षसी जिसे कस ने
प्रघट (६०)-प्रकट श्रीकृष्ण का वध करने
| प्रघळ (९, १४, १५, ३८, २०, २२, को गोकुल मे भेजा था।
२५, ३१, ४७, ५३, ५५, ६२, पूरि (३७)—पूर्ण करिए।
६५, ६७, ७०, ७१, ७२, ८४, पूरिया (६२)-पूर्ण किये।
८६, ६२)-पुष्कल, अपार, पूरिज (२)-पूर्ण कीजिये ।
काफी, बहुत, प्रसीम। पूरौ (३२)—पूर्ण करना, भरना । पेल (८८)-देखकर
प्रघळा (१५, १६, १०२)—पुष्कल, पेखि (५५) देखकर
बहुत, अपार, प्रवल, समर्थ । पेखियो (२)-देखा
प्रघळि (८७)-बहुत पेखियो (६०)-देखा
प्रणमंति (३६)-प्रणाम करते हैं । पेखीयो (८२)-देखा
प्रतिपाळ (१०२)-रक्षा पेट (४)-मृजन गक्ति, पेट ।
प्रथमी (३०)-पृथ्वी पेड़ (१२)-जड
प्रथळ (३ स० पृथु-पथु+रा० प्र० ल
बहुत, अधिक, चारो ओर पैकंवरा (२५)-ईश्वर दूत, अवतार फैला हुआ, विस्तृत, प्रयु, पृथु पैठिन (२१)-प्रतिष्ठा करेगी। पैठो (९४)-प्रविष्ठ हुआ।
प्रथिमि (१)-प्रथम, पहले । पहलाद (४४, १०३)-प्रह्लाद
प्रथिमी (१, १२)-प्रथम पोखिया (९२)-पोषण किये ।
प्रवोव (४४)-शिक्षा पोखीया (५७)-पोपण किया, भोजन प्रभ (१४, २४, ३२, ४१, ४७, ६३, खिलाया ।
७५)-प्रभु, ईश्वर । पोढेरा (७)-बहुन, ज्ञानवृद्ध ।
प्रभु (३३)-प्रभू, ईश्वर । पोरस (६८)-पौरुप
प्रभूत (४६)-उद्गत, निकला हुआ, पोहचाडिया (६३)-पहुँचा दिये।
उत्पन्न, विशाल, महान, पोरने (३०)-पौरुष
अधिष्ठाता। - पोरिम (३८, ५५)-पौत्प, शक्ति। । प्रभूरो (८३)--श्रीकृष्ण

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