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राजस्थान-भारती-प्रकाशन
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पीरदान लालस-ग्रन्थावली
सम्पादक
अगरचन्द नाहटा
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पर
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प्रकाशक
सादूळ राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट
बीकानेर
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* समर्पण
चारण जाति के दो उज्ज्वल रत्न(१) लीवडी के राजकवि, सौजन्य मूर्ति श्री शंकरदान जेठी भाई
और (२) राजस्थानी भाषा के अनन्य प्रेमी
कविवर उदयराजजी उज्ज्वल
के कर कमलो मे
सादर समर्पित
-अगरचन्द नाहटा
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प्रकाशकीय
श्री सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट वीकानेर की स्थापना सन् १९४४ में वोकानेर राज्य के तत्कालीन प्रवान मंत्री श्री के० एम० पणिक्कर महोदय की प्रेरणा से, साहित्यानुरागी बीकानेर- नरेश स्वर्गीय महाराजा श्री सादूलसिंहजी बहादुर द्वारा संस्कृत, हिन्दी एवं विशेषतः राजस्थानी साहित्य की सेवा तथा राजस्थानी भाषा के सर्वाङ्गीण विकास के लिये की गई थी ।
भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध विद्वानो एवं भापाशास्त्रियो का सहयोग प्राप्त करने का सौभाग्य हमें प्रारभ से ही मिलता रहा है ।
सस्था द्वारा विगत १६ वर्षो से वीकानेर मे विभिन्न साहित्यिक प्रवृत्तिया चलाई जा रही हैं, जिनमें से निम्न प्रमुख है
१. विशाल राजस्थानी - हिन्दी शब्दकोश
"
इस संबंध में विभिन्न स्रोतों से सस्था लगभग दो लाख से अधिक शब्दो का संकलन कर चुकी है । इसका सम्पादन ग्राधुनिक कोशों के ढंग पर, लवे समय से प्रारभ कर दिया गया है और अब तक लगभग तीस हजार शब्द सम्पादित हो चुके है । कोश मे शब्द, व्याकरण, व्युत्पत्ति, उसके ग्रथं श्रौर उदाहरण आदि अनेक महत्वपूर्ण सूचनाए दी गई हैं। यह एक अत्यत विशाल योजना है, जिसकी मतोषजनक क्रियान्विति के लिये प्रचुर द्रव्य और श्रम की आवश्यकता है । आशा है राजस्थान सरकार की ओर से, प्रार्थित द्रव्य - साहाय्य उपलब्ध होते ही निकट भविष्य मे इसका प्रकाशन प्रारंभ करना सभव हो सकेगा ।
1
२. विशाल राजस्थानी मुहावरा कोश
M
राजस्थानी भाषा अपने विशाल शब्द भंडार के साथ मुहावरो से भी समृद्ध है । अनुमानत पचास हजार से भी अधिक मुहावरे दैनिक प्रयोग मे लाये जाते है । हमने लगभग दस हजार मुहावरों का, हिन्दी मे अर्थ और राजस्थानी मे उदाहरणों सहित प्रयोग देकर सपादन करवा लिया है और शीघ्र ही इसे प्रकाशित करने का प्रवच किया जा रहा है । यह भी प्रचुर द्रव्य और श्रम-साध्य कार्य है ।
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[ २ ]
यदि हम यह विशाल संग्रह साहित्य - जगत को दे सके तो यह सस्था के लिये ही नहीं किन्तु राजस्थानी और हिन्दी जगत के लिए भी एक गौरव की बात होगी । ३. आधुनिकराजस्थानीकाशन रचनओ काप्र
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं१. कळायरण, ऋतु काव्य । ले० श्री नानूराम संस्कर्ता
२. आभै पटकी, प्रथम सामाजिक उपन्यास | ले० श्री श्रीलाल जोशी । ३ वरस गांठ, मौलिक कहानी संग्रह । ले० श्री मुरलीधर व्यास ।
'राजस्थान-भारती' मे भो आधुनिक राजस्थानी रचनाओ का एक अलग स्तम्भ है, जिसमे भी राजस्थानी कवितायें, कहानिया और रेखाचित्र आदि छपते रहते हैं ।
४ ' राजस्थान - भारती' का प्रकाशन
इस विरुपात शोधपत्रिका का प्रकाशन संस्था के लिये गौरव की वस्तु है । गत १४ वर्षों से प्रकाशित इस पत्रिका की विद्वानो ने मुक्त कठ से प्रशमा की है । बहुत चाहते हुए भी द्रव्याभाव, प्रेम की एव अन्य कठिनाइयो के कारण, त्रैमासिक रूप से इसका प्रकाशन सम्भव नहीं हो सका है । इसका भाग ५ अङ्क ३-४ 'डा० लुइजि पि तैस्सितोरी विशेषाक' बहुत ही महत्वपूर्ण एव उपयोगी सामग्री से परिपूर्ण है । यह अत एक विदेशी विद्वान को राजस्थानी साहित्य सेवा का एक बहुमूल्य सचित्र कोश है । पत्रिका का अगला ७वा भाग शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है । इसका अ १-२ राजस्थानी के सर्वश्रेष्ठ महाकवि पृथ्वीराज राठोड़ का सचित्र और वृहत् विशेपाक है । अपने ढंग का यह एक ही प्रयत्न है ।
पत्रिका की उपयोगिता और महत्व के सम्वन्ध मे इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इसके परिवर्तन में भारत एवं विदेशो से लगभग ५० पत्र-पत्रिकाए हमे प्राप्त होती हैं । भारत के अतिरिक्त पाश्चात्य देशो मे भी इसकी माग है व इसके ग्राहक हैं । शोधकर्त्ताओ के लिये 'राजस्थान भारती' अनिवार्यत' संग्रहणीय शोधपत्रिका है । इसमे राजस्थानी भाषा, साहित्य, पुरातत्व, इतिहास, कला आदि पर लेखो के प्रतिरिक्त सस्या के तीन विशिष्ट सदस्य डा० दशरथ शर्मा, श्रीनरोत्तमदास स्वामी और श्री श्रगरचन्द नाहटा को वृहत् लेख सूची भी प्रकाशित की गई है ।
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[ ३ ] ५. राजस्थानी साहित्य के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रन्थों का अनुसधान, सम्पादन एवं प्रकाशन
हमारी साहित्य-निधि को प्राचीन, महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियो को सुरक्षित रखने एव सर्वसुलभ कराने के लिये सुमम्पादित एव शुद्ध रूप मे मुद्रित करवा कर उचित मूल्य में वितरित करने की हमारी एक विशाल योजना है। सस्कृत, हिंदी और राजस्थानी के महत्वपूर्ण यो का अनुसघान और प्रकाशन सस्वा के सदस्यो की ओर से निरतर होता रहा है जिसका सक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है६. पृथ्वीराज रासो
पृथ्वीराज रासो के कई मस्करण प्रकाश मे लाये गये हैं और उनमे से लघुतम संस्करण का सम्पादन करवा कर उसका कुछ अश 'राजस्थान भारती' मे प्रकाशित किया गया है । रासो के विविध सस्करण और उसके ऐतिहासिक महत्व पर कई लेख राजस्थान-भारती में प्रकाशित हुए हैं। ७. राजस्थान के अज्ञात कवि जान (न्यामतखा) की ७५ रचनामो की खोज की गई। जिसकी सर्वप्रथम जानकारी राजस्थान-भारती' के प्रथम अंक मे प्रकाशित हुई हैं। उसका महत्वपूर्ण ऐतिहासिक काव्य 'क्यामरासा' तो प्रकाशित भी करवाया जा चुका है। ८. राजस्थान के जैन संस्कृत साहित्य का परिचय नामक एक निवघ राजस्थान भारती मे प्रकाशित किया जा चुका है।
६. मारवाड क्षेत्र के ५०० लोकगीतो का संग्रह किया जा चुका है। बीकानेर एव ॐ जैसलमेर क्षेत्र के सैकड़ो लोकगीत, घूमर के लोकगीत, वाल लोकगीत, लोरियां
और लगभग ७०० लोक कथाएँ सग्रहीत की गई हैं। राजस्थानी कहावतों के दो भाग प्रकाशित किये जा चुके हैं । जीणमाता के गीत, पावूजी के पवाडे और राजा भरथरी आदि लोक काव्य सर्वप्रथम राजस्थान-भारती' मे प्रकाशित किए गए हैं। १० वीकानेर राज्य के और जैसलमेर के अप्रकाशित अभिलेखो का विशाल सग्रह 'बीकानेर जैन लेख संग्रह' नामक वृहत् पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुका है।
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[ ४ ] ११ जसंक्त उद्योत, मुहता नैणसी री त्यात और अनोखी पान जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्र थो का सम्पादन एव प्रकाशन हो चुका है। १२ जोधपुर के महाराजा मानसिंहजी के सचिव कविवर उदयचद भडारी की ४० रचनामो का अनुसवान किया गया है और महाराजा मानसिंहजी की काव्य-माधना के सबध मे भी सबसे प्रथम 'राजस्थान-भारती' मे लेख प्रकाशित हुआ है। १३. जैसलमेर के अप्रकाशित १०० शिलालेखो और भट्रि वश प्रशस्ति' आदि अनेक अप्राप्य और अप्रकाशित ग्रथ खोज-याना करके प्राप्त किये गये है । १४. बीकानेर के मस्तयोगी कवि ज्ञानसारजी के ग्रथो का अनुसघान किया गया और ज्ञानसार ग्रथावली के नाम से एक अथ भी प्रकाशित हो चुका है । इमी प्रकार राजस्थान के महान विद्वान महोपाध्याय समयसुन्दर की ५६३ लघु रचनायो का संग्रह प्रकाशित किया गया है । १५. इसके अतिरिक्त संस्था द्वारा
(१) डा० लुइजि पियो तस्सितोरी, समयमुन्दर, पृथ्वीराज, और लोकमान्य तिलक आदि साहित्य-से विवो के निर्वाण-दिवस और जयन्तिया मनाई जाती हैं ।
(२) साप्ताहिक साहित्यिक गोष्ठियो का आयोजन बहुत समय से किया जा रहा है, इसमे अनेको महत्वपूर्ण निवघ, लेख, कविताएँ और कहानिया आदि पढी जाती हैं, जिससे अनेक विघ नवीन साहित्य का निर्माण होता रहता है । विचार विमर्श के लिये गोप्ठियो तथा भापणमालाग्रो आदि का भी समय-समय पर आयोजन किया जाता रहा है । १६ वाहर से त्यातिप्राप्त विद्वानो को बुलाकर उनके भाषण करवाने का आयोजन भी किया जाता है । डा० वासुदेवशरण अग्रवाल, डा० कैलाशनाथ काटजू, राय श्री कृष्णदास, डा० जी० रामचन्द्रन्, डा० सत्यप्रकाश, डा० डन्ल० एलेन, डा० सुनीतिकुमार चाटुा, डा० तिवेरियो-तिबेरी आदि अनेक अन्तर्राष्ट्रीय त्याति प्राप्त विद्वानो के इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भापण हो चुके है ।।
गत दो वर्षों से महाकवि पृथ्वीराज राठोड आमन की स्थापना की गई है। दोनो वर्षों के अासन-अधिवेशनो के अभिभाषक क्रमशः राजस्थानी भापा के प्रकाण्ड
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[ ५ ] विद्वान् श्री मनोहर शर्मा एम० ए०, बिसाऊ और प० श्रीलालजी मिश्र एम० ए०, हूंडलोद, थे।
इस प्रकार सस्या अपने १६ वर्षों के जीवन-काल में, सस्कृत, हिन्दी और राजस्थानी साहित्य की निरतर सेवा करती रही है। आर्थिक सकट से ग्रस्त इस संस्था के लिये यह सभव नही हो सका कि यह अपने कार्यक्रम को नियमित रूप से पूरा कर सकती, फिर भी यदा कदा लडखडा कर गिरते पडते इसके कार्यकर्तामो ने 'राजस्थान-भारती' का सम्पादन एव प्रकाशन जारी रखा और यह प्रयास किया कि नाना प्रकार की वाघानो के वावजूद भी साहित्य सेवा का कार्य निरतर चलता रहे। यह ठीक है कि मस्या के पास अपना निजी भवन नही है, न अच्छा सदर्भ पुस्तकालय है, और न कार्य को सुचारु रूप से सम्पादित करने के समुचित साधन ही हैं, परन्तु साधनो के अभाव मे भी सस्था के कार्यकर्ताओ ने साहित्य की जो मोन और एकान्त साधना की है वह प्रकाश में आने पर सस्था के गौरव को निश्चय ही वढा सकने वाली होगी ।
राजस्थानी साहित्य-भंडार अत्यन्त विशाल है । अब तक इसका अत्यल्प अश ही प्रकाश में आया है । प्राचीन भारतीय वाड मय के अलभ्य एव अनर्घ रलो को प्रकाशित करके विद्वज्जनो और साहित्यिको के समक्ष प्रस्तुत करना एवं उन्हे सुगमता से प्राप्त कराना सस्था का लक्ष्य रहा है। हम अपनी इस लक्ष्य पूत्ति की ओर धीरे-धीरे किन्तु दृढता के साथ अग्रसर हो रहे हैं।
यद्यपि अब तक पत्रिका तथा कतिपय पुस्तको के अतिरिक्त अन्वेषण द्वारा प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण सामग्री का प्रकाशन करा देना मी अभीष्ट था, परन्तु अर्थामाव के कारण ऐमा किया जाना संभव नहीं हो सका । हर्प की बात है कि भारत सरकार के वैज्ञानिक सशोध एव सास्कृतिक कार्यक्रम मत्रालय (AIinistry of scientific Research and Cultural Affairs) ने अपनी आधुनिक भारतीय भाषानो के विकास की योजना के अतर्गत हमारे कार्यक्रम को स्वीकृत कर प्रकाशन के लिये रु० १५०००) इस मद में राजस्थान सरकार को दिये तथा राजस्थान सरकार द्वारा उतनी ही राशि अपनी ओर से मिलाकर कुल रु० ३००००) तीस हजार की सहायता, राजस्थानी साहित्य के सम्पादन-प्रकाशन
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हेतु इस मस्या को इस वित्तीय वर्ष में प्रदान की गई है, जिससे इस वर्ष निम्नोक्त ३१ पुस्तको का प्रकाशन किया जा रहा है । १ राजस्थानी व्याकरण
श्री नरोत्तमदास स्वामी २. राजस्थानी गद्य का विकास (शोध प्रवव) डा० शिवस्वरूप शर्मा अचल ३ अचलदास खीची री वचनिका
श्री नरोत्तमदास स्वामी ४ हमीराय -
श्री भवरलाल नाहटा ५. पद्मिनी चरित्र चौपई६. दलपत विलास
श्री रावत सारस्वत ७. डिंगल गीत८. पवार वश दर्पण
डा० दशरथ शर्मा ६. पृथ्वीराज राठोड ग्रंथावली
श्री नरोत्तमदास स्वामी और
श्री बद्रीप्रसाद साकरिया १०. हरिरस
श्री बद्रीप्रसाद साकरिया ११. पीरदान लालस अधावली
श्री अगरचन्द नाहटा १२. महादेव पार्वती वेलि
श्री रावत सारस्वत १३. सीताराम चौपई
श्री अगरचन्द नाहटा १४. जन रासादि संग्रह
श्री अगरचन्द नाहटा और
डा० हरिवल्लभ भायाणी १५. सदयवत्स वीर प्रवन्ध
प्रो० मजुलाल मजूमदार १६. जिनराजसूरि कृतिकुसुमाजलि
श्री भवरलाल नाहटा १७. विनयचन्द कृतिकुसुमाजलि
" " " १८. कविवर धर्मवदन ग्रथावली
श्री अगरचन्द नाहटा १६. राजस्थान रा दूहा
श्री नरोत्तमदास स्वामी २०. वीर रस रा दहा--
" " " २१. राजस्थान के नीति दोहा--
श्री मोहनलाल पुरोहित २२. राजस्थान व्रत कथाएं
" " " २३. राजस्थानी प्रेम कथाए
" " " २४. चदायन--
श्रो रावत सारस्वत
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२५ मडली--
श्री अगरचन्द नादा
म.विनय मागर २६, जिनहा गयापली
श्री अगरचन्द नाहटा २७. राजस्थानी हस्तलिमित प्रयो मा विवरण २८. दम्पति विनोद २६. हीयाली-गजस्थान पा वृद्धिवर्धक साहित्य । " " ३०. समयसुन्दर राममय
श्री भंवरलाल नाहटा ३१. दुरसा पाढा ग्रंपारनी
घी चदरीप्रसाद साकरिया जैसलमेर ऐतिहानिक सायन संग्रह (संपा० टा० दशरय शर्मा), ईशरदास प्रयावली (संपा० पदरीप्रमाद सामरिया), रामरासो (प्रो० गोवर्दन शर्मा ), राजस्थानी जन साहित्य (ले० श्री पगरचन्द नाहटा), नागदमा (सपा० बदरीप्रसाद साकरिया), मुहावरा फोश (मुरलीधर व्याम) प्रादि ग्रयों का संपादन हो चुका है परन्तु मर्याभाव के कारण इनफा प्रकाशन इस वर्ष नहीं हो रहा है ।
हम आशा करते हैं कि कार्य की महत्ता एव गुरता को लक्ष्य में रपते हुए अगले वर्ष इससे भी अधिक सहायता हमे अवश्य प्राप्त हो सकेगी जिससे उपरोक्त संपादित तथा अन्य महत्वपूर्ण प्रयो का प्रकाशन सम्भव हो सकेगा।
इस सहायता के लिये हम भारत सरकार के शिक्षा विकास सचिवालय के आभारी हैं, जिन्होंने कृपा करके हमारी योजना को स्वीकृत किया और ग्रान्ट-इनएड की रकम मंजूर की।
राजस्थान के मुल्य मन्त्री माननीय मोहनलालजी सुखाड़िया, जो सौभाग्य से शिक्षा मन्त्री भी हैं और जो साहित्य की प्रगति एव पुनरुद्धार के लिये पूर्ण सचेष्ट हैं, का भी इस महायता के प्राप्त कराने में पूरा-पूरा योगदान रहा है। अतः हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता सादर प्रगट करते हैं।
राजस्थान के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षाध्यक्ष महोदय श्री जगन्नाथसिंहजी मेहता का भी हम आभार प्रगट करते हैं, जिन्होंने अपनी ओर से पूरी-पूरी दिलचस्पी लेकर हमारा उत्साहवर्दन किया, जिससे हम इस वृहद् कार्य को सम्पन्न करने में समर्थ हो सके । सस्था उनकी मदैव ऋणी रहेगी।
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इतने थोडे समय में इतने महत्वपूर्ण ग्रन्थो का सपादन करके संस्था के प्रकाशन-कार्य मे जो सराहनीय सहयोग दिया है, इसके लिये हम सभी ग्रन्थ सम्पादको व लेखको के अत्यत आभारी हैं।
अनूप सस्कृत लाइब्रेरी और अभय जैन ग्रन्यालय बीकानेर, स्व० पूर्णचन्द्र नाहर सग्रहालय कलकत्ता, जैन भवन सग्रह कलकत्ता, महावीर तीर्थक्षेत्र अनुसंधान समिति जयपुर, ओरियटल इन्स्टीट्य ट बडोदा, भाडारकर रिसर्च इन्स्टीट्य ट पूना, श्वरतरगच्छ वृहद् ज्ञान-भडार बीकानेर, मोतीचद खजाची ग्रंथालय वीकानेर, खरतर प्राचार्य ज्ञान भण्डार बीकानेर, एशियाटिक सोसाइटी ववई, आत्माराम जैन ज्ञानभंडार बडोदा, मुनि पुण्यविजयजी, मुनि रमणिक विजयजी, श्री सीताराम लालस, श्री रविशकर देराश्री, प० हरदत्तजी गोविंद व्यास जैसलमेर आदि अनेक सस्थानो और क्तियो से हस्तलिखित प्रतिया प्राप्त होने से ही उपरोक्त ग्रन्यो का मपादन समव हो सका है । अतएव हम इन सबके प्रति आभार प्रदर्शन करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं।
ऐसे प्राचीन ग्रन्थो का सम्पादन श्रमसाध्य है एवं पर्याप्त समय की अपेक्षा रखता है। हमने अल्प समय मे ही इतने अन्य प्रकाशित करने का प्रयत्न किया इसलिये अटियो का रह जाना स्वाभाविक है । गच्छतः स्खलनक्वपि भवय्येच प्रमाहतः, हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति साधवः ।
आशा हैं विद्वद्वृन्द हमारे इन प्रकाशनो का अवलोकन करके साहित्य का रसास्वादन करेंगे और अपने सुझावो द्वारा हमें लाभान्वित करेंगे जिससे हम अपने प्रयास को सफल मानकर कृतार्थ हो सकेंगे और पुन. मां भारती के चरण कमलो मे विनम्रतापूर्वक अपनी पुप्पाजलि समर्पित करने के हेतु पुन उपस्थित होने का बाह्न वटोर सकेंगे।
निवेदक बीकानेर,
लालचन्द कोठारी मार्गगोर्प शुक्ला १५
प्रधान-मग्री सं० २०१७
सादुल राजस्थानी-इन्स्टीट्य ट, दिसम्बर ३,१९६०
बीकानेर
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भूमिका
राजस्थानी साहित्य के निर्माण मे सबसे अधिक और उल्लेखनीय योग जैन विद्वानो और चारणो का रहा है । जैन विद्वानो की रचनाएँ राजस्थानी साहित्य के विकास के समय से ही प्रचुर प्ररिमाण मे प्राप्त होने लगती है, पर चारण कवियो की १५ वीं शताब्दी से पहले की केवल फुटकर कविताएँ ही मिलती है, कोई स्वतन्त्र उल्लेखनीय ग्रन्थ नही मिलता | जैन प्रवन्ध ग्रन्थो मे चारणों के कहे हुए कुछ फुटकर दोहादि उद्धृत हैं जिनको संग्रहीत करके मैंने 'परम्परा' ( मा० १२ ) में प्रकाशित अपने लेख मे दे दिया है । चारणों की सर्व प्रथम उल्लेखनीय स्वतन्त्र रचना ‘अचलदास खीची री वचनिका' है जो सादूळ राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट से प्रकाशित होने जा रही है। इसे शिवदास चारण ने संवत् १४८५ के लगभग बनाई थी ।
१६ वी शताब्दी से अनेक चारण कवियो की रचनाएँ मिलने लगती है और १७ वी मे तो कई बहुत ही प्रसिद्ध चारण कवि हो गये हैं | भक्त चारण कवियो मे 'ईसरदास' सबसे अधिक उल्लेखनीय है । इनका जन्म संवत् १५६५ में जोधपुर राज्य के भादरेस गाँव मे हुआ था । ये रोहडिया शाखा के चारण थे और इनका स्वर्गवास संवत्१६७५ के लगभग हुआ था । 'हरिरस', 'हालाँ झालाँ रा कुंडलिया', 'देवीयारण' इनके प्रसिद्ध और प्रकाशित ग्रन्थ है। वैसे इनके और भी कई ग्रन्थ और बहुत से डिंगल गीत प्राप्त है जिन्हे 'ईसरदास ग्रन्थावली' के रूप मे प्रकाशित करने के लिए संग्रहीत करवा लिया गया है और इनकी सव रचनाएं सादूळ रा०रि० इन्स्टीट्यूट से प्रकाशित करने की योजना है ।
१८ वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध मे पीरदान लालस नामक एक भक्त चारण कवि हो गये है जिन्होंने अपने ग्रन्थो मे ईसरदास को गुरु के
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[ २ ]
रूप में स्मरण व उल्लिखित किया है। 'ईसाणद गुरू चित मा प्राणा ( गुण नारायण नेह), "ब्रह्म सतगुरु हुँता वडो, ईसरदास अनूप," "ईसाणद पाराधियो" (गुरण अजपा जाप)। 'पातगिपहार' मे भी उनका स्मरण किया है
"ओथिए साहिब उपना, भोमि निमो भाद्रेस ।
पीरदास लागे पगे, इसाणद आदेस ॥" कवि पीरदान की सभी रचनाएँ सवत् १७६१-६२ मे लिखी गई दो प्रतियो मे मिली है और उनमे से कई तो उनकी स्वय की लिखित भी है इसलिये पीरदान का समय स० १७६० से १७६३ तक का निश्चित होता है । इस समय ईसरदान को स्वर्गवासी हुए एक सौ से अधिक वर्ष बीत चुके थे इसलिये पीरदान का उनका प्रत्यक्ष गुरु-शिष्य का सम्बन्ध रहना तो सम्भव नही लगता। अत. यही संभव है कि भक्ति की प्रेरणा उन्हे ईसरदास की रचनायो से ही मिली है और इसी कारण उन्होने ईसरदास को गुरु के रूप मे उल्लिखित कर दिया होगा। ईसरदास की रचनाओ से पीरदान लालस इतने अधिक प्रभावित थे कि अपनी रचनायो के सग्रह गुटके मे ईसरदास की रचनायो को उन्होने स्वय लिखकर सग्रहीत किया है। इनमे से कई रचनाएँ तो ऐसी है, जिनकी अन्य कोई भी हस्तलिखित प्रति कही भी प्राप्त नहीं हुई अर्थात् यदि पीरदान उन्हे अपनी रचनाओ के सग्रह वाले इस गुटके मे सग्रहीत नही करते तो उनका आज प्राप्त होना भी कठिन हो जाता। - पोरदान के सम्बन्ध मे विशेप जानकारी प्रयत्न करने पर भी प्राप्त नहीं हो सकी । उनकी रचनाओ के दो सग्रह-गुटके प्राप्त हुए है उनसे केवल इतना ही पता चलता है कि वे जुढीया गाँव ( मारवाड ) के निवासी थे। उनके पुत्र का नाम हरिदास था। हरिदास रचित "गुण छमा पर्व" और "डिंगल-गीत" इसी गुटके मे है। कई रचनाओ की लेखन प्रगस्ति मे हरिदास नाम आता है और उनके खुद की लिखी हुई कई रचनाएँ भी इस गुटके मे है जिनसे संवत १८०७ तक उनकी
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[
३ )
विद्यमानता का पता चलता है। पीरदान और हरिदास · इन दोनों पिता-पुत्रो के लिए खरतरगच्छ के जैन यति शिवचन्द्र, देवचन्द्र, लालचन्द, उदयचन्द ने कई ग्रन्थ इन गुटको मे लिखे है, इससे उन यतियो के साथ इन पिता-पुत्रो का विशेष साहित्यिक सम्बन्ध रहा मालूम देता है।
श्री सीतारामजी लालस के पत्रानुसार तो ये दोनो गुटके उन्हीं के संग्रह मे थे । जिनमे से एक को राजस्थानी रिसर्च सोसाइटी, कलकत्ता के लिए श्री भगवतीसिंह वीसेन उनसे ले गये थे और अव वह उक्त सोसाइटी के सग्रह (जालान-स्मृति-मन्दिर ) मे है । हमे इसका विवरण सोसाइटी के मुख-पत्र "राजस्थान" के वर्ष २ अंक २ मे पढने को मिला था। श्री सीतारामजी लालस से उनके संग्रह का दूसरा गुटका कई वर्ष पूर्व मुझे प्राप्त हुअातो मैंने उसमे प्राप्त पीरदान की रचनायो की प्रतिलिपि करवा ली थी पर उस गुटके मे कई पत्र कम थे, इसलिए "ज्ञान चरित" नामक ग्रन्थ के प्रारम्भ के ४० पद्य और वीच के भी कुछ पद्य नही मिल सके थे । अतएव सोसाइटी के संग्रह वाले गुटके को प्राप्त किये विना "पीरदान ग्रन्थावली" का प्रकाशन सम्भव नहीं था। इस बार कलकत्ते जाने पर विशेष प्रयत्नपूर्वक श्री रामकृष्णजी सरावगी की कृपा से वह गुटका प्राप्त किया गया। उसमे सीतारामजी के सग्रह के गुटके के अतिरिक्त "हिंगलाज रासो", "पातगि पहार" और बहुत से से डिंगल गीत प्राप्त हुये और उसीसे ज्ञानचरित का त्रुटित अंश भी पूरा किया जा सका, इसलिए श्रीरामकृष्णजी सरावगी का मैं विशेष आभारी हूँ। कलकत्ते की आवहवा हस्तलिखित प्रतियो के लिए बहुत ही घातक है । अतएव इस गुटके के कई पत्र तो जंतुओ द्वारा भक्षित होकर जाली जैसे सछिद्र हो गये है। कुछ पत्रो के ऊपर का अंश कट गया है इसलिए कई डिंगल गीतो का पाठ-त्रुटित रह गया है, फिर भी यह अच्छा हुआ कि अधिक नाश होने से पूर्व ही इसका उपयोग कर लिया जा सका। इस तरह पीरदान की प्राय समस्त रचनाएँ इस ग्रन्थावली मे प्रकाशित कर सकने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हो सका है।
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[
४
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श्री सीतारामजी लालस ने अपने संग्रह का गुटका वड़े उदार भाव से मुझे उपयोग करने के लिए भेजा, इसलिए उनका मैं विशेष रूप से आभारी हूँ। इस ग्रन्थावली के शब्द कोप मे शब्दो का अर्थ लिखकर उन्होंने मुझे और भी अधिक आभारी बना दिया है । प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन, प्रूफ सशोधन तथा शव्द कोप के लिए शब्द चयन करने
और अर्थ लिखने में श्री वदरीप्रसादजी साकरिया का पूर्ण सहयोग मिला है इसलिए उनका मै बहुत बहुत आभारी हूँ। मेरे भ्रातृ पुत्र भवरलाल का तो मेरे साहित्यिक कार्यो मे सहयोग मिलता ही रहा है।
श्री पीरदान लालस की जीवनी के सम्बन्ध मे कुछ भी विवरण प्राप्त न हो सका और न उनका कोई चित्रं ही मिलता है। अत उनके हस्ताक्षरो का प्रत्यक्ष-दर्शन कराने के लिए एक पृष्ठ का ब्लाक बनवाकर प्रस्तुत ग्रन्थ में दिया जा रहा है।
श्री सीतारामजी लालस के गुटके मे पीरदान के हाथ का लिखा हुआ "साइया झूला" रचित एक डिंगल गीत है जिसकी लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है-"लिखतु लालस पीरदान वांचे जिगिनु राम राम, संवत् १७९२ भादवा वद १२ ।"
राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, कलकत्ता वाले गुटके मे जो पीरदान के लिखे हुए कई ग्रन्थ है उनकी लेखन प्रगस्ति इस प्रकार है१--गीत झूले साइया रो एव गीत मीसण हरिदास रो, के अन्त में
लिखा है-"लिखतंलालस पीरदान" २-गुण हिंगलाज रासो के अन्त मे "लिखतु लालस पीरदान, वांचे
जिरणनु राम राम", संवत् १७९२ काति वद १४ वार थावर छै।" ____३-स्वय रचित डिंगल गीत के अन्त मे "लिखतु लालस पीरदान"
४-ईसरदास कृत 'भगवत हस' के अन्त मे "लिखतु लालस पीरदान" ५--ईसरदास कृत "गुरड पुराण' के अन्त में "लिखतं लालस पीरदान
मंमत् १७६२ मती मगसरि सुदि ५ वार थावर ।" ६-ईसरदास कृत "गुण आगिमि" के अन्त मे "लिखतं लालस पीरदान,
वाचे जिरणनु राम राम छ । संवत् १७९२ पोप बद ५"
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[ ५ ]
७- ईसरदास कृत “देवीयारण" के अन्त मे "लिखतं लालस पीरदान" ८-बार आसोजी कृत "निरंजन प्राण" के अन्त मे "लिखतं लालस पीरदान "
इनके अतिरिक्त इस गुटके मे इनकी एवं ईसरदास की कई और रचनाएं भी यद्यपि इनके हाथ की लिखी हुई है पर उनके ग्रन्त मे लेखक का नाम नही दिया गया है । साइया झूले का रुकमरिण हरण, माधवदास का रामरासो, गज माख नीमाणी, और छभा पर्व (स्वयं रचित) पीरदान के पुत्र हरिदास के हाथ का लिखा हुआ है । "गुण राम कीला" को हरिदास के वाचनार्थ जोधपुर मे खरतर गच्छके भावहर्षीय जिनचन्द्रसूरि के शिष्य पं० शिवचन्द ने लिखा है ।
प्रस्तुत ग्रन्थावली मे ( १ ) " नारायण नेह" (२) "परमेसर पुराण" (३) "हिंगलाज रामो " ( ४ ) अलख ग्राराध, " (५) "अजंपा जाप" (६) "ज्ञान चरित", और ( ७ ) "पातिक पहार" इन सात ग्रन्थो, और ३० डिंगल गीतो को प्रकाशित किया जा रहा है । ये सभी रचनाएं प्राय भक्ति सवधी है । राम, कृष्ण, हिंगलाज देवी, आदि की स्तुति इनमे प्रधान रूप से है ही पर "परमेसर पुराण" मे अनेक भक्तो का भी उल्लेख है जिससे राजस्थान के उल्लेखनीय भक्त जनो की अच्छी जानकारी मिल जाती है । इनमे से कई तो प्रसिद्ध है पर कईयो के सवध मे अभी विशेप जानकारी प्राप्त करना अपेक्षित है । विद्वानो का ध्यान मैं इस ओर आकर्षित करता हूँ ।
इन रचनाओ मे दूहा, चौपई, गाहा, चौसर, मोतीदाम, कवित्त, भुजगी, पद्धरी, झम्पाताली और डिंगल गीतो के श्रट्टताको, साणोर आदि कई छन्दो का प्रयोग हुआ है । 'परमेसर पुराण' केवल दोहो मे है । सवसे वडी रचना 'ज्ञान चरित' मे 'कवित्त' छद की प्रधानता है ।
अभी पीरदान लालस जैसे और भी अनेक चारण कवियो की रचनाओ का संग्रह एव प्रकाशन करना अपेक्षित है । उनमे से श्री दुरसाजी
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आढा की प्राप्त रचनाओ का भी मैने सग्रह करवाया है। इसका सम्पादन श्री वदरीप्रसाद साकरिया कर रहे हैं। आशा है वह सग्रहग्रन्थ भी शीघ्र ही प्रकाशित होगा। भक्त कवियों में पीरदान लालस अव तक अप्रसिद्ध से थे । आशा है इस ग्रन्थावली के प्रकाशन से इनकी ओर विद्वानो का ध्यान आकर्षित होगा। ____ भारत सरकार एव राजस्थान सरकार ने इन्स्टीट्यूट को आर्थिक सहायता देकर ऐसे अनेक ग्रन्थो के प्रकाशन का सुयोग दिया इसके लिए दोनो सरकारो का भी मैं आभारी हू।
-अगरचन्द नाहटा
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प्रस्तावना (श्री पीरदान लालस की गिरा-गरिमा)
प्राध्यात्मिक चेतना और धार्मिक विश्वास भारत भूमि की एक प्रमुख विशेषता रही है । विश्व के अन्य भागो में जवे मानव श्वापदजीवन व्यतीत कर रहा था तव भारतीय ऋपि की रहस्यमय और पावन वाणी गगन मे गुजरित होकर आकाश की ऊँचाइयो को नाप रही थी। ईश्वरीय विश्वास की यह परम्परा हमारे समाज के सत्ययुग से प्रारम्भ होकर कभी पीन और कभी क्षीण धारा के रूप मे आधुनिक वैज्ञानिक युग तक निरन्तर दृष्टिगोचर होती है। श्री पीरदान लालस इसी प्रकाशलोक के एक आलोकित नक्षत्र हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल-क्रम की दृष्टि से श्री पीरदान रीतिकाल के कवि है पर विपय प्रतिपादन की दृष्टि से वे भक्तिकाल के कवियो मे स्थान पाने योग्य है । उनका प्रधान विषय है-अध्यात्म । ऐसा अनुमान होता है कि इस ओर उन्मुख करने मे उन्हे अपने भावगुरु श्री ईसरदासजी की रचनाओ से प्रेरणा मिली है जिनकी भाव-भक्ति देखकर 'ईसरा सो परमेसरा' उक्ति प्रचलित होगयी। पीरदान ने अपनी रचनायो में कई स्थानों पर ईसरदासजी को गुरु के रूप मे स्मरण किया है - "इसाणंद गुरु चित मा आणा, वेद व्यास ना पछै वखाणा।
-नारायण नेह पृ०१ १ वरदा, वर्ष ५ अक ३ मे श्री वदरीप्रसाद साकरिया का 'महाकवि ईसरदास और उनका साहित्य' शीर्षक अभिभाषण
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[ २ ] कवि ने अपनी रचनाओं मे ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनो ही रूपों का वर्णन किया है। कभी तो वह कबीर के "दसरथ सुत तिहूँ लोक वखाना, राम नाम का मरम है आना।" को दोहराता है'जगत कह सहि दशरय जायी, अविगत धारौ नाम अजायो।' और कभी वह प्रभु के साकार रूप का गुणगान करता है। डिंगल गीतों में वह विभिन्न अवतारों की महिमा बताता है । अवतार वाद का कारण वह भी गीता की भांति अधर्म का नाश मानता है। जव जव धर्म की हानि और अधर्म का अभ्युत्थान होने लगता है तव तव साधुओं की रक्षा और दुष्टों का दमन करने हेतु भगवान् अवतार लेते हैं। पीरदान के शब्दों मे -
प्रावं तू आप लियौ अवतार, भड़ांभड भोमि उतारण भार ।
यद्यपि कवि ने अपनी रचनाओं का नामकरण करते हुए ईश्वर के निराकार रूप की ओर भी सकेत किया है यथा “अलख आराध", "अजंपा जाय" आदि। पर इसमे कोई सन्देह नही कि उसकी दृष्टि . प्रधानतः सगुण पर ही रही है । सगुण का उसने विस्तार से जो वर्णन किया है उसका कारण भी है । उस काल मे सगुणोपासना की भावना वलवती थी अत. कवि की रचनाओ मे भी प्रधानता उसी की रही। कवि के काव्य का सूक्ष्म अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसकी भक्ति दास्यभाव की है। उसने अपने लिए 'पीरदास', 'पीर', 'पीरीय' आदि नामो का प्रयोग क्रिया है । 'पीरदास' नाम तो बार-बार आया है___ "पीरदास करजै प्रथम, पुरुपोत्तम सूप्रीत ।"
पीरदान के काव्य की एक बहुत बड़ी विशेषता है कवि की उदार दृष्टि । उसने यथास्थान सभी देवताओ को नमस्कार किया है क्योकि उसका विश्वास है "सर्वदेव नमस्कार. केशव प्रति गच्छति" । कभी. वह मगलाचरण मे सरस्वती-वन्दना करता है, कभी गणेश की स्तुति करता है। शाक्त परिवार में जन्म होने के कारण वह दुर्गा को भी
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विस्मृत नही कर सकता। "हिंगलाज रासो' में देवी के विभिन्न रूपों की वह भोजमयी भाषा मे आरती उतारता है। 'ज्ञान-चरित' में भगवान के विभिन्न अवतारों का उल्लेख करते हुए वह जैनियो के 'अरिहंत' और 'रिषभ' को भी नमस्कार करता है। इतना ही नहीं उसने मुसलमानो के 'अला' को तो अपने काव्य मे पचासों बार स्मरण किया है । वास्तव मे कवि के लिए तो ये सब उसके प्रभु के ही अलगअलग नाम हैं। इसीलिए वह यम-पाश से मुक्ति के लिए 'अला' की ही आशा रखता है
अला तुम्हारी आसरौ, अला तुम्हारी आस । परमेसरजी पालिज, पीर तणा जम पास ।।
-परमेसर पुराण, दूहा सख्या २० इसी प्रकार कवि ने 'परमेसर पुराण' मे अनेक भक्तो का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है। यद्यपि ये सभी भक्त किसी एक ही सम्प्रदाय या विचारधारा के नही है पर अध्यात्म और धर्म के प्रति उन सव की श्रद्धा है। सभवत. इसी कारण पीरदान ने भी अपने भावो की सुमनांजलि उन्हे अर्पित की है। इन भक्तो मे कई ऐसे भी हैं जिनके बारे मे विद्वानो को ज्ञान नही है। कवि ने अपनी रचना में उनके नामों को सुरक्षित रखकर हमारे सास्कृतिक और साहित्यिक जीवन की विभूतियो को लुम होने से बचाया है ।
पीरदान के काव्य मे यद्यपि ज्ञान और योग की चर्चा है पर उसका हृदय मूलतः एक भक्त का हृदय है। इसीलिए वह उसके सगुण और साकार रूप पर ही अधिक मुग्ध है । अन्य अवतारो की तुलना मे उसने राम और कृष्ण का अधिक विस्तार से वर्णन किया है । शासकों द्वारा अपने युग के समाज पर अत्याचार होते देख तथा गौ-ब्राह्मण की दुर्दशा देख उसका भक्त हृदय अपने प्रभु से निवेदन करता है कि वह शीघ्र ही अवतार लेकर घरती का वोझ दूर करे। अपनी करुण
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पुकार करते समय वह अपने भगवान् को पूर्व भक्तो की 'पाण' दिलाता है ताकि धर्म की रक्षार्थ वह शीघ्र अवतरित हो जाय
चडि बेगौ चक्र धरि, करै काई ढील करता । गळी बढ गाय रौ वजे ब्राह्मण विरता ॥ अनंत जरणा री प्रारण, धणी कर खवर धरम रो। वेद व्यास री आरण, प्राण वारट ईसर री॥ मेघ रिष अन मामै घडी, घरणी वाट जोवै धरणी । तू हमै जेज राखै त्रिगुण, तनै आँण भगता तणी ॥
-ज्ञान चरित, कवित्त १३५ कवि का मुख्य विषय अध्यात्म होने के कारण उसकी रचनायो मे शान्त रस की ही प्रधानता है पर वह अपने जातिगत प्रभाव से पूर्णत. मुक्त नहीं हो सका है। यही कारण है कि भक्ति के क्षेत्र मे भी वह ओजपूर्ण वर्णन करता है
केई ढोल कसाळ, धरा ब्रह्मड धडक्कै । सुरणाय सालुले, राग सीधूनौं रहक्क ।। वीर हाक तिण वार, देव दारणव जूटा दल । वाजै घाउ निहाउ, हेक हथवाह कर हल ।। हीसुए विढे भड हसरा, कुन्त कुहाड जुध करें। त्रिधारा खड्ग वाहै त्रिगुण, त्रिगुण हाथि दाणव तरै ।।
-ज्ञान चरित, पद्य १४३ अपने प्रभु की वीर झाकी उतारते हुए कवि ने वीररस के सहायक वीभत्स आदि का भी वर्णन किया है
असुर अमर आहुड , असख भड़ गुडं भिड अत । रुण्ड मुण्ड रडबड, विमळ नदीआ वहिस रत ॥ कध संध कडिडिस, हाड मुडिस हेकारा । आविटिसै असराँण धमक ले सै धीकारा ॥
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कवन्ध-युद्ध वर्णन डिंगल काव्य की विशेपता है। कवि पीरदान ने भी उसका वर्णन किया है। सत्य तो यह है कि डिगल के चारणी काव्य मे वीररस का जो अनुपम चित्रण है वह पीरदान की कविता मे भी अपनी समस्त विशेषतानो को लिए हुए है। भगवान् के शील, शक्ति और सौन्दर्य वाले रूप मे से कवि प्रधानत उसके शौर्य का गायक है। वह तो अपने प्रभु को ससार के कर्मक्षेत्र मे सघर्ष-रत दिखाकर उसकी वीरता की पूजा करता है। तत्कालीन वातावरण में जब कि मुस्लिम शासको के अत्याचार प्रति की सीमा पार कर रहे थे, उस समय तेज पुज और शक्ति का अन्यतम रूप भगवान् ही भक्तो को विश्वास दिला सकता था । कवि ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जन-जीवन के मानस का स्पर्श करते हुए उनकी सुप्त चेतना को जागृत किया है तथा अपनी वीर वाणी से हमारी जडता दूर करने का प्रयत्न किया है।
पीरदान का भाव-पक्ष जितना प्रौढ है, उनका कला-पक्ष भी उतना ही श्रेष्ठ है। उसने उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारो के अतिरिक्त अनुप्रास का काफी प्रयोग किया है। अनुप्रास की छटा तो स्थान-स्थान पर दर्शनीय है
मोख खमो खम कंद, निगुण निरपख नरेसुर ।
निरालंव निरलेप, अभ्रम अछेप सुरेसुर ॥ छन्दों मे उसने दूहा, चौपाई, कवित्त, पद्धरी आदि का ही अधिक प्रयोग किया है। साथ ही डिंगल गीतो की भी रचना की है । चाहे पीरदान ने किसी काव्य-गुरु से शिक्षा ग्रहण की हो या न की हो, पर इसमे कोई सन्देह नही कि उसका काव्यशास्त्र का ज्ञान काफी है। भापा पर उसका सहज अधिकार है और वह कवि के भावो को उसके इगित अनुसार ही व्यक्त करती है।
आज के मानव में पीरदान जैसी आस्था और विश्वास नही । विज्ञान ने उसके समक्ष जिन नई मान्यताओं को प्रस्तुत किया है उनको वह पूर्ण रूपेण ग्रहण नही कर सका है। इस प्रकार आज का
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[
६
]
मानव एक ओर जीवन के पुराने मूल्यो से दूर होकर अपनी अध्यात्म भावना खो चुका है, दूसरी ओर जीवन के नये मूल्यो को पूर्णतया ग्रहण करने मे वह अपने को असमर्थ पाता है। इसी का परिणाम है कि उसके जीवन मे न सुख है और न शान्ति । आज जो चारों ओर ईर्ष्या-द्वेष, मार-काट, हिंसा और घृरणा दिखायी पड़ रही है उसका कारण मनुष्य का मनुष्य के प्रति अविश्वास और वैर-भाव ही है। पीरदान का काव्य यद्यपि सवा दो सौ वर्ष पहले लिखा गया था पर वह आज भी हमे अपने आध्यात्मिक प्रकाश से मार्ग दिखा रहा है। वह ज्योतिस्तम्भ की भांति हमे बताता है कि सामने चट्टान है, विनाश है, मृत्यु है । यदि हम वास्तविक सुख-शान्ति चाहते हैं तो हमे सारे ऊपरी और मिथ्या भेदभाव भुलाकर जीवन मे सामजस्य स्थापित करना होगा। कवि का यह सन्देश आज भी-नया है और उस दिन भी नया ही रहेगा जब मानव दूसरे ग्रहो मे पहुँच जायेगा।
चन्द्रदान चारण एम० ए०, साहित्य-रत्न
प्रिंसिपल, भारतीय विद्या-मन्दिर, बीकानेर
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क्रम सं०
ग्रंथ
भूमिका.
१. गुरण नाराइरण नेह
२.
परमेसर पुराण ३. गुण हीगळाज रासो
५. गुरण अजपा जाप ६. गुरण ज्ञान चरित्र
८.
पोरदान लालस- ग्रन्थावली अनुक्रमणिका
गुरण अलख प्राराध
गुण पातगि पहार
डिंगळ गीत
!
(१) गीत - मेघडी परणीजरण रो ने ग्रागम भाखण रो ( कायम आवस एक कळह करिस )
(२) गीत - वळ मेघड़ी परणीजण रो (देव दाणवे वडवडी दावी)
9000
(३) गीत - न्याउ कररणनै आवरण रो
(सत घरम तर कजि श्राव वढा छत्त)
(४) गीत रामचद्रजी रो
( राघव देखिह राजा, भरत सत्रघरण )
(५) गीत परमेसरजी रो
( वर रे वर ध्यान धरणी धरणीवर )
(६) गीत पहलाद रो
( पहलाद समरियो प्रायो जगपति)
(७) गीत वाराहजी रो ( वाराह नर नर )
पद्य
१४
४
६
४
४
४
पृष्ठ
१-६
१
ह
१६
२३
३४
३८
७४
८६ - १०८
&&
६१
६२
२
૨૪
६४
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कवि पीरदान लालस के हस्ताक्षर
HTोरियामागमा
+MAPawanRRAIMommaanbr
DASTAsterawing
चलतकलामा बजनिक-सामानक दुल लतादादकौन रहातातला वरदारीमति अतुतिमा
दिदि इलाकताना पदयातनाशीनाशामिल
करती भानालदायोजित समान धावतानवकुलम
मातिमोर वाचमायोडिग साबरमतारमा नामानिलिनानीची रोहित समानारतिर आतनधारतमा मानदिलारामा सरोज
AmarATTA adium margetin
साहिबान जानवर
ratw
MAMANACine
लजाल सवार टीना लेता HIRRपवार यावर
1.
ईसरदास रचित 'गरुड पुराण' का अन्तिम पृष्ठ (संवत् १७६२,
मिती मिगसर सुदी ५)
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पीरदान लालस ग्रन्थावली
॥ श्रीरामजी सत छै जी॥ ॥अथ गुण नाराइण नेह लिख्यते ॥
॥ गाहा चौसर । ब्रह्माणी ब्रह्म माहि विगति, सही एक तू तीन सकति । कि हकि करै केसव कीरति, सु प्रसन हुइ माता सरसति । सरसति पाखर समपीजे, देवी वयण अमोलक दीजै । किहि मति सारै कीरति कीजै, राधा वर इहड़ी विधि रीजै ।
॥चौपाई॥ इसाणंद गुरु चित मां पारणा, वेद व्यास नां पछै वखारणा । समरा प्रथिमि प्रथिमी सारद नां, निमिस्कार ब्रह्मा नारद नां। लील विलास सुरां मा लाइकि निमो पुलदर देव विनाइकि । संकर नां पिरिण करा सलामा, गोविंद रा आदेस गुलामां। 'पीरदास पढि रे पाराइणि, निमो निमो निरगुण नाराइर्ण । नाराइण नरहर बहुनांमी, सतगुरु सांमि सकळ रौ सांमी। भगत वछळ भगवत भुजाळी, देवां सिर हर दीनदयालो । माहव मुकुद मुरारि महमहण, तेजवत राजा दशरथ तरण । कान्हड़ किसन नाथरणी काळी वडी धरणी वीठुल वनमाळी । वड़ी धिरणी नां रखे विसार, श्राप तरणी जे प्रांगण उधारै। प्रेम भगति रौ आखर पीजै, करणाकर सों नेह करीजे। करणाकर कररणाकर कहता, प्राण तिके वैकुण्ठ मे पहुँता। मधुसूदन नू जुदा म मेले, ठाकुर नां मत अळगो ठेले । पूज पूज परमेसर प्राणी, वेद कहै अ अमृत वाणी । वेद किसन यूँ घणौ वरवाणे, जनजीवन री महिमा जाणे ।
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[
२ ]
बकुठ सू सखरा लिखमीवर, पाव प्रवीत घणी परमेसर । पगा सरिस सनकादिक पूज, धरणीधर सू पातक धूज धरणीधर नूं जिके ध्यावइ, सरग तणे विचि तिके समाय। उर ऊपर लिखमी पग आरण, पारब्रह्म रा चरण पछाणे । राकस रोळ नमो रावण रा, ब्रह्मा पग वादै बामरण रा। अहिल्या रे ऊपर पग आयौ, पगा तणौ रस गगा पायौ। नारद ही देखें पग नमियो, गेम घणां भगता री गमियो। प्राण मारणे पाव महेसर, पगा तणी दे सेव प्रमेसर। अविगत नाथ पूरिज पासा, त्रिविधि तणाम दिखाळ तमासा । लिखमीवर इहडा विद लीघा, के पहिळाद पुलिंदर कीधा । कितराइ सत वैकुण्ठ कहिया, राघव कहि कहि सरणे रहिया ।। अइयौ मौज जकानु पाप, साधा नै कविलास समाप । अनत भगत तू सा उधरिया, तुझ तणे ऊपरि सांतरिया । भूधर तू भाइयौ भगतां रौ, तूं दातार नही डिगता रौ। ब्रिज रै देस बजाड़ी वासी, बड़े भगत कजि वावि विधासी । साचा तू नै साध सुहावै, तू इ बरीक उधारण पावै । तूं ब्रह्मा रौ वाप वडाळी, वडो तमासी वसदे बाळौ । तू कालपत करै कितराई, तू जलनिधि रै अक जमाई । तू करतार अकिरता कहीजै, लखण तुहारा किम करि लहिजे । जगत कहै सहि दशरथ जायौ, अविगत धारौ नाम अजायो। जगपति तू सिगळा री जामी, भगत वछळ सहजा ना भांमी। भगति समापि समापि भलेरी, जाड़ अविद्या घात जलेरी। भगति नहीं तोड मन माँ भीजी, राघव पीर तणं सिर रीजौ । माव कठण तुहारी मिलणी, भूधर सा किम प्रावै मिळरणी। त्रीकम हूँ अभ्यागत तोतो, गिरधर लाल म घाते गोती। झुरण दिऊ मां झालौ झालो, केसवराइ हुवी हूँ कालौ। केसव कीरति कहडी कीजै, दान हुवै सौ दीजे दीजै ।
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॥ दूहा ।। दान वभीषण नू दीयौ, प्रभु तुलछी रो पान । तोन ओळखियो त्रिगुरण, औ थारी उनमान ॥१॥ भजि भजि तोनै भेटियो, अरथ वात रौ अह । प्रथळ कर रे प्राणिया, नारायण , सू नेह ॥२॥ हेत घणे सू पूज हरि, नारायण न विसारि । आठ पोहर अति प्रातमा, चत्रभुज नै चीतारि ॥३॥ आफे तरिसे आतमो, गाइयै हरि रा गीत । पीरदास करजे प्रथम, पुरुषोत्तम सू प्रीत ॥४॥ ध्यायौ तोनै ध्यान धरि, आराह्यो जग ईस । त्यां पायो वैकुण्ठ पुर, से जीता जगदीस ॥५॥ आप सरीखा औळगू, ते कीधा करतार । तू समरथ वसदेव तरण, निमष न लागी वार ।।६।। गोपी कहे माहीजे गौ, ग्वाळे कहै उ ग्वाळ ! भगते कहियो औ भली, कस कहै औ काळ ॥ ७ ॥ वैकुण्ठ रौ वासी ब्रह्म, जीवा रो पति जीव । त्रिगुण नाथ सरिखी तरह, दशरथ तणे दईव ।।८।। कहि के नेहो को करा, राम कमळ' री रारि । कर पुकारा पीर कवि, ओ वाराह उधारि ।।६।। फरसराम तू फावियो, सखरी कियो सग्राम । हंस राम अवतार हरि, तू वामण विसराम ।। १०॥ कूरम मछ रिखव कपिल, खाधी अमृत खाड । भगतवछळ ते भांजिया, हरणाकुस रा हाड ॥ ११ ॥ नाराइण हैग्रीव नां, पढे अहो निस पीर । धानतर दत पिथ धरणी, वडो किसन रौ वीर ॥ १२॥ प्रतिमा मै पैठो प्रभु, अईयो बुध अलाह । निकळक कद देखा निजर, पतिसाहां पतिसाह ।। १३ ।।
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[
४ ]
तू अलेप प्रछेप श्रज, नाग कहे
पारब्रह्म
रो
नरे सुरे पायो नही, तू नान्हो मोटो त्रिगुण, तूं प्रति बुरी तू सरगुरण निरगुरण सही, अइयों रूप सगळा इ भगता सिर, निगम करें आदेस नित, श्रइयो देव
परमेसर
रं
निरकार ।
पार ॥ १४ ॥
अनूप । अरूप ॥ १५ ॥
प्रम्म ।
अगम्म ॥ १६ ॥
॥ छन्द मोती दाम ॥
अइयो परमेसर देव अगम, भले तैं कीधी जाड भरम | कीया सहि थोक निमो करतार, परमेसर तुझ तो कोई पार । अइयो गरढौरा ग्यांन अनत, हुआ प्रति दीह भले अरिहंत । भले भगवंत भले भगवान, पुरातम पूरण नाथ प्रधान । प्रमेसर तुझ वखारणा पेट, जायो तै वाळ भलो सुर जेठ । नमो महाराज तुहारी निद्र, उपाया भूत. उपाया इन्द्र । की चितमन ने दुध च्यार, उपायो एक वकै अहकार । दीना रा नाथ कियो धंघ दीघ, कीया तत पाँच महा तत कीघ । सवति गध कीयो, सपरस, दसोदस देव इन्द्री दस दस | वभेसर वाप तुहारा वध, कहे कुरण जीव तुरंगम कघ । जीवांरा नाथ अमोलक जीव, दरसण दीजें देव दईव । वड़ो ठग घृत अहो रुघवीर, सही तू ऐकलमल सधीर । अइयो गुरडेस तरणा असवार, महा मधु कीटक रामण मार । सदा रा दास व्रजां रा सत, अगासुर फाड़ बगासुर अन्त । ग्वाला विच ऊभी कभी गाज, सही संगठासुर बैठी साझि । तृणावत त्रोड़ि बंछासुर वाहि, अहो अविगत तुहारी आहि । गिले लख देत गयासुर गोड़, छोड़ावरण सत भली रिरणछोड़ । जयो जगनाथ तुहारी जोर, किसौ नख ऊपर भार किसोर । चड़ा भड़ माघा राधा वंद, नमे पगि लागी इद नरिद । asो कोई ख्याल हुवो नंद वास, प्रमेसर श्राय साचा पास ।
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[
५
]
लहै कुरण लील निमो वर लाछ, छौगाळी कानड़ ढोळण छाछ। दमोदर हूँत सुरै सहि दैत, नाराइण नंद तरणो नखतंत । भले महियार जसौदा भाग, निमो नंद नदण नाथरण नाग । किया ते काम भले कलियाण, दीया ते ध्रम लीया ते दारण । अइयो अभियागत आतम अस, कमाइण मांगण आयो कंस । रमै मथुरा विच केसवराय, भले कुब्ज्या सां माधव भाय । भले यो कासू जादव भांग, अइयौ उग्रसेन तुहारी आंग। उधारण त्रिघ अरिजण पास, पुरावण गोविंद टाळण प्रास । समापण वांभण नां रिध सिध, दमोदर दांन बड़ी ते दीध । दहावण नंद जसोदा दाहि, मिळे कुरखेत तिणी घर मांहि । कराव राम जुगे जुग क्रीत, साधा रा पूत कर सर जीत । साधा रौ वाल्ही लागे साथ, प्रभु रै प्रीतम पाडव पाथ। पंचाळी तुझ सरीखो प्राण, आँधै रा आँधा पूत अजाण ।
आवै तू पाप लियो अवतार, भडांभड़ भोमि उतारण भार । सोहै तू डाहुल दैत सिंघार, निमो नरकासुर खोसरण नारि । छीयावर पौढरण पाडळ छाँह, वारणासुर दैत विधासण वाह । अईयो राजीव सरीखा अख, उधारण मारण देत असख । दामोदर तुझ निमो बिज देस, प्रवाड़ा तुझ निमो परमेस । निरजण नाथ जिसौ निरकार, इसौ वुध सांमि तिसौ अवतार । देखा कह हाथ विहूँगो डील, खपांवरण खाफर रौ खोड़ील । इये इळ वीचि कलकी आउ, दईता हूँत परौ करि दाउ। प्रभु करि ऊंची नीची पाति, भुजाडो भोमि पछाडी भ्राति । निवाजी साध असाधा नास, श्रावी चन्द्रमा री पूरण आस । आवौ असि सेत तणा असवार, निमो निकळकी साह निजार । दमोदर देव किलग दुकाल, करौ हक न्याउ किसन कृपाल । हरि हैग्रीव हरे हरि हंस, वखाणे जादव जादव वस। बड़ी ध्रम ऐह भुजैतो वाह, वखाणे वामण नै वाराह ।
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बखाणे जाणे एक विसन, कहे मति' कूरम मच्छ किसन । कहै दत देव कपिल कल्याण, तवे दसरथ तणे तूडिताण । पढे नरसिंध दिसो करि प्रेम, जोए रे जीव हुये सुख जेम । निमो नरसिंघ तुहारी नाम, कियो पहिलाद तणो सिध काम । कियौ ते राघव रूप करूर, चत्रभुज देत हुवी चकचूर । दईव निमो पिथ रिखबदेव, समापि समापि तुहारी सेव । देवा रा देव अनूप दरस, फरसीय झालणहार फरस । निमो दसरथ तणा रुघनाथ, सिरजण हार घणी ससमाथ । निमो रुघनन्दरण राम नरेस, सत्रघरण साच लखमण सेस । भिळे तू एक इनेक भरथ, कोसल्या मात निमो हरि कथ । निमो नित नित अजोध्या नेस, प्रभु ओ वार भली परमेस । उवारण रिख तणी जिग एक, इसा ते कीधा काम अनेक । माता मारीछ तणी ते मारि, आयो इहिला ना आज उधार । वळाक्रम तुझ निमो श्रव बाप, चत्रभुज आप चढावै चाप । विणे परमेस तणो वीमाह, अजोध्या माहि हवी उछाह । हुवौ वनवासी राम हठाळ, दळेवा देता दीनदयाळ । देस प्रभ सुपनखा नां दुख, समापण इद सरीखा सुख । जोए खर दूखर रौ घर जाय, जारण गति प्रामी आज जटाय। जयो रिख राव सुधारण ज्याग, भले सवरी रौ भाग सुभाग । इयं पिंड माहि नही अपराध, सही सुगरीव वडी कोइ साध । नमो हणमत तरणी कहि नाम, वडो भड सत तरणी विसराम । प्रभु दधि ऊपरि वाधरण पाज, आयो लक ऊपरि राघव प्राज। आयौ असुरां री भांजण पास, प्रमेसर छोड़ि ग्रहा रौ प्रास । प्रभु रौ सत लीये लंक पाट, दियौ दहकध तरण सिर दाट । विधासइ रेसइ राकस वंस, कीयो दहकध कीयो ते कस । घड मुरलोक तरणो सहि घाट, वडी कोइ डील नमो वैराट । वड़ी कोई ख्याल नमो ब्रजराज, गयौं सुरिण साद नमो गजराज।
१नित
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७
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अलेख सलाम सलाम अलेख, सतगुर सेज बलिभद्र सेख। देवापति सांमळ देव दुगम, अईयो अनरज सकज अगम । अहो पदवन वुधा अवतार, वडा पतिसाह हुो असवार। वडी तू नान्ही एकोजि ब्रह्म, पढां जस कासूकासू प्रम। रीभावां तुझ किसी विधि राम, पूजीजे कीजै केम प्रणाम । अरणकळ सबळ देव अभग, जीपं कुरण माधव तोसा जग। बराबरि तूझ करै कुरण वाप, अविगत नाथ बडेरा पापा वडी सहि थोका हुँति विसंन, प्रमेसर मूझ समापो पुन । प्रमेसर पार अपार अपार, नारायण नेह निमो निरकार । नाराइण नेह निरगुण नाथ, सरगुण सामि घिरणी ससमाथ । अइयो अणभंग असगीय अज, लीळा नह लीला लज अलज । अइयो अवरन वरन अलाह, प्रभु पतिसाह सिरै पतिसाह । बडेरा हुँति वडेरौ ब्रम, पोढेरा हुँति पोढेरौ प्रम । जूनौ तू जूनी देव जुरारि, महा गरढेरौ ग्यान मुरारि । देवा नै दईतां रौ दीवांरण, प्रभु आप तू पछी प्रांण । क्रमा रो क्रम ध्रमा रौ भ्रम, जीवा रौ जीव जमां री जम । सवां रौ बाप सिधां रौ सिध, बडौ तू नान्ही बाळक वृद्ध । तंतां रौ तंत तना रौ तन, वेदा री वेद वनां री वंन । कामां रौ काम काळां रो काळ, वंभा रो वाप निमो विरदाळ । रुद्रां रो रुद्र हणमत राम, नाराइण तुझ तणो नह नाम । नारायण तूझ निमो निरकार, इसी तू अातम प्राण अधार। नाराइण तूझ लिवार नाम, गदाधर तो बह बैकुठ ग्राम । नाराइण नारौ नरां सुर नाथ, हिमै अति वाल्हा थारा हाथ । नाराइण आपो पोरण निवास, अम्हारी तूझ तरणी छै आस । नाराइण नाग नरा सुरनाथ, हिमै अति वाल्हा थारा हाथ । नाराइण तूझ दरगहि नाखि, अम्हांनां वाल्ही थारी प्राख । नाराइण नाम नाराइण नेह, नाराइण दास नाराइण देह । नाराइण निध नाराइण नूर, नाराइण हंस नाराइण हूर.।
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नाराइण साच नारायण सील, नारायण देव नाराइण डील नाराइण जिग नारायण जाग, नाराइण आतिम रूप अताग। नाराइण धूप नारायण ध्यान, नाराइण गाळि नाराइण ग्यांन । नाराइण वाघ नाराइण वाह, नारायण वांमरण नै वाराह । परा करि आडा खोलि कपाट, नाराइण तू सै देव निराट । हरे हरि राम उपावरण हार, तू सै दसरथ तणा करतार ।' प्रमेसर टाळि परा जम-पास दमोदर पीर तुहारौ दास रीझ किहडी विधि जादव राउ दमोदर मूझ वताड़ो दाउ । प्रमेसर मुझ समापो प्रेम, गावां गुण तूझ गमाडां गेम । भगति समापि हिम बड भूप, सांई हूँ देखां तुझ सरूप
॥ कवित्त ।। सांई तुझ सुविहाण, बड़ी दीवाण विगतौ । तू सबलौ सुरताण, काम सहि तूहीज करतौ ।। के नह करतो किसन, किसन दीपा निन कहियो । कहियो कासू कहो, राम एक तू हीज रहिौ । भगवत भिरणे भगवत भिरणी, त्रीकम-त्रीकम प्रारण तवि। नाराइण किहिक तूं सां नरिंद, कर पुकारा पीर कवि ।
इति श्रीनाराइणनेह सपूर्ण लिखत ॥ संवत् १७६२ रा कार्तिक वदी १ दिने रविवारे विद्वान देवचन्द लिखतं श्री कोढणा मध्ये घर्षिता॥ श्री॥
( राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, गुटका न० २०)
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परमेसरपुराण
॥ अथ दूहा, आराध रा॥ प्रथम विनायक पूजिय, प्रघळ हुयै कोई पन । रिधि सिधि समप राजियो, गुणपति देव गहन ॥१॥ काइमि काइमि केसवा, राम तुम्हारौ राज । हूँ थारौ बारट हुनौ, सधर धणी सुभराज ॥२॥ ढील मती करिजो घणी, वैगा सांवळियाह। बारट बाहुड़ियो वहत, साहुलि सांभळ्यिाह ॥ ३ ॥ में घोड़ा अ आदमी, कहौ नी आया काह । कोइ मोटी पारभ कियौ, प्रारभ निमो अलाह ॥ ४ ॥ तू तीकम रहमाँरण रव, तू काइम करतार। तू करीम वसदेव तण, आप लियौ अवतार ।।५।। घण दाता जीवै घरणी, वैकठ तया वरीस । पीरदान बारट पुणे, आलम नां आसीस ॥ ६ ॥ कद साभळसौ काइमा', पीपल गाइ पुकार। हंस राजा कद हीसस, कद मिळिस करतार ।। ७ ॥ कळस थपावै कोड करि, निरखि चलावै नाउ । समद तरी जै साधुग्रां, समरौ आलम साह ।।८।। बीज तण दिन वोलिया, वचन धरम२ रा वाह । साचव हरि जो साधुग्रां, आया आलम साह ।।६।। उरिण दिसड़ी सू आविस, वाह पछिम री वाट । जे चाहै जगदीस ना, पूजि पछिम रौ पाट ॥ १० ॥
१ केसवा । २ अमोलिक ।
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[ १० ] घोडिलैइ चढ घणैरिड, माडी जुध मीराह । खेत उजेणी मां खसी, पछिम रा पीराह ॥ ११ ॥ धरणीधर मोटो धिणी, मोटा सा मोटोह । तू नान्हा सा नान्हडी, दे दईता दोटोह ।। १२ ।। कूड़ा ना कूटाडिस, हुइस हेककार। भोमि किलंगरी भेळिस, पालम रा असवार ।। १३ ।। नारद मा कीधी निपट, हरीचद मांही हेल। पीर कहै परमेसरा, खरौ तुम्हारौ खेल ॥ १४ ॥ तिलोई न जाणे ताहरा, ब्रह्मा जिसा विमेख । काइम तू सबखौ करै, अवखौ मारग एक ॥ १५ ॥ साई तू सिरदारडी, सखरौ थारौ साथ । तू देवां रौ दीवलौ, नव नाथा रौ नाथ ॥ १६ ॥ खबर करै नै खोजिये, दीसै एक दईव । किम करि सिरिज केसवा, जग पुड इतरा जीव ॥ १७ ॥ परमेसर थारी पहुँच, निमो निमो निरवाण। सिहि जीवा नां साहिबा, रिजिक दीय रहमांग ॥ १८ ॥ अला अला आवै अला, भला भला सिगि भूप। 'परमेसर वाधौ पला, एकलमला अनूप ॥ १६ ॥ अला तुम्हारी आसरौ, अला तुहारी आस । परमेसरजी पालिज, पीर तणा जम पास ॥२०॥ हिमै किहिकं सुप्रसन हुए, निकलक साह निजार। सामी राजा साभळे, पीरीय तणी पुकार ॥ २१॥ हसा राखि हजूर मा, सखरी वास सुवास । सोरभ आवै सामिरी, दाखै बारट दास ॥ २२ ॥ हसा राखि हजूर मा, हसा राखि हजूर । चौक घणेरा चक्रधर, प्रिथमी ऊपरि पूर ॥ २३ ॥
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[ ११ ।
घण तेजालू घोडलो, -तुरी करै वह तांन । हीरे जडित पिलारिणयी, दे वारट नां दान ।। २४ ॥ काइमि तू सां पीर कवि, अरज करै छ अाज । किहिकि अमोलक केसवा, मौज दियौ महाराज ॥ २५ ॥ चौरी वैठे चक्रवर, वळि सुहिद्रा री वीर । बावै ना सवळा विरिद, पुणे कवेसर पीर ॥ २६ ॥ वड़ हथ ते दीन्ही वचन, मनड़ी वारि महेस । माता दाख मेघडी, वलिरिण करौ दरवेस ॥ २७ ॥ किसौ भरोसौ काइमा, यावी वीज अनेक । ' तू के जारण त्रीकमा, हूँ जाणा छां हेक ।। २८ ।। मरण कुपारी मेघडी, भली भली भरतार । माहरो दुख सुख माहवा, हीअडौ जागण हार ॥ २६ ॥ कद करिसी दुनीयान मां, खू दालमजी खैर। चुड़लो कद पहिराड़सी, वक कुपारी वैर ॥ ३० ॥ राणी सीता रुखमणी, गोपी चोख ग्यान । निविली नां दीजै निही, मेघड़ की ना मान ॥३१॥ कीज दीजै काइमा, वाँझरिणया नां पूत । पीपळियां रै फूलड़ा, हाथिणीयां रै दूध ॥३२॥ गाइयाँ रौ तु गोविंदा, माहरोइ दाळिद मारि। औ चन्द्रमा ऊभी चव, इरिगरौ कलंक उतारि ॥३३॥ प्राखिड़िया पूछाडिस, पिंडता निहिं पिछाण। साहिब चढिसै सेतले, हुइस निगुरा हारिण ॥३४॥ नीलांशी धरती निपट, ऊगा रूख अनेक । काइम तै भेला किया, हिन्दू मुसिला हेक ॥३॥ आवौ नी आलम उरा, अलख कर एकाति । फेसि दीयो कालीग फल, भाजि दीयौ नी भ्राति ॥३६॥ - १ ठारि । २ धरवेस।
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[ १२
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काइम करौ कटकड़ी, आरणी जोध अडूर । वरतावीज वीठला, निबळां माही नूर ॥३७॥ कोड़े बारह काइमा, सात करोई साध । निपट भलेरा पांच नव, यो घटियो अपराध ॥३८॥ मुकुन्द वधायौ मोतीये, साहिव कसंन सरीख । श्रो अलिमसा आईयो, औ लायौ लाखोक ॥३९।। सतरि हजार हुसेनिया, पांडव सरिखा पाथ । मूसा ईसा मुहमदा, सतगुरुजी रौ साथ ॥४०॥ साहिवजी थे साहजी, आलमजी आदेस । काइमजी कल्याणजी, पूरणजी परमेस ।।४।। सतगुरु साह निझारजी, राघवजी रहमारण। त्रीकमजी चड़िजो तुरत, साहिवजी सुभिप्राण ॥४२।। जीवा रौ पति जीमिसै२, करिजौ वेग कंसार । मेघ तरणी घर माल्हिस, निरखौ साह निजार ॥४३॥ नाराइण तूनां निमो, असि अईयो असवार । भ्रांति खलक री भाजिस, अलख तणी अवतार ||४४|| वावी तरगस वांघिस, धुणिस खड़ग त्रिधार। खेत उजेणी खेलिस, करिस जै जैकार ॥४॥ चौसठ जोगिरिण चाखिसै', असरा मांस अपार । आलमसाह उतारिस, भोमि तरणो सहि भार ।।४६. वडा वडा संख वाजिया , घणा कटक घमसारण । कालिंगौ नै केसवो, जूटा जोध जुारण ॥४७॥ आलम सहि उधेडिस, पाप तुहारी पेढ । आज मडाणी आकरी, विसन किलग रै वेढ ॥४८॥ खालिकि ऊभी खेत मां, सवळा दईत संघार। सतगुरु कीधौ साथरो, मोटा दारणव मार ॥४॥ १ मिटियो । २ प्राविस । ३ चेतिस । ४ वाजिस ।
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तातै प्रति लोही तणां, वहिस वाहिळ्यिा । तिमि काळीगा त्रोड़िया, जिमि दळिया' डाहुळिया ॥५॥ देव कहै सिगळा दियौ, ईसाणद आसीस । किलग न जीती कापिरिस, जुध जीती जगदीस ॥५१॥ जख कीदर पीतर जणे, इमिया प्राखि अलाह। ब्रह्मा सकर वखारिणयो, पछिम तरणौ पतिसाह ॥५२॥ गावतरी जमणा गंगा, सावतरी नै सीत। पारवती पदमावती, गाय अलख रा गीत ॥५३।। कान फाड़ नै कापडी, सहि साधां रौ साथ । पिंडत वखाणे पीरना, नाग वखाणे नाथ ॥५४॥ चारण सहि कीरति चवै, अमर करै प्रादेस । ग्यान करीमो हइ गियो, विसिनि कियो कोइ वेस ।।५।। संमरा मंडप सझावियो, न्याउ करण निरधार । जाजम जांबूदीप मां, वावै रौ दरवार ॥५६॥ वारट ईसर बोलिया, निकळक साहिब नाम । किलग दईत ना कूटतां, कीधी सखरौ काम ॥५७|| हरि मिळिया बह हेत सा, सतगुरु नामै सीस । उरा पधारौ एथीय, आवै बारट ईस ॥५८|| ब्रह्मा सिव मिळिया वळे, जोइ हसिया जगदीस । मुकदि वघाया मोतियां, पाया वारट ईस ॥५६॥ वालिमीकि कीधो वळे, व्यास कियौ जस वास । भव भव रौ म्हारो भगत, देखी ईसरदास ॥६॥ सूरिजि चन्द्रमा सारिखा, बैठा छै विरदाळ । खेतपाळ हणमत खरा, कोटवाळ किरपाळ ॥६॥ सहस अठ्यासी रिखेसर, अणवर ब्रह्मा ईस । मिळिया मेळे सामिरे, सुर कोड़े तीस ॥ ६२ ।। १जीता।
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१४ ।
अनत पीर फकीर अति, अनत भगत अपार । बळिराजा पाडव बहत, हरीचद सतरि हजार ।। ६३ ॥ सेस गुरणेस पताळ सहि, सात सरग रै साथ । नारद नै नव नाथ ना, नूर उछाळी नाथ ॥ ६४ ॥ प्रभ मेघां रैपरणिया, रिमा तिणे सिरि रीस। वारट ईसर बोलिया, जमो करी जगदीस ।। ६५ ॥ वहनांमी तद वोलिया, हणमत किया हुकम । उरै तेडावे एथीय, घेना सत्त घरम ॥ ६६ ॥ हरिचन्द्र ना दीन्हा हुक्म, साचा तेड़ी साध । माडौ चीण-मचीरण मां, अलख तरणी आराध ॥ ६७॥ आवै कोडि अपछरा, पीडित साधख पख । पारवती सरिखै प्रघळ, आवै सतै 'असख ॥ ६८ ॥ असख वाव रिषि झाप रिषि, घोम रिषां धनधन । मेघ रिपां रै माडहै, विरिणयो वीद विसन ।। ६६ ।। साधा ऊपरि साहिवा, रीजी राघवड़ा । रेंवत चढ नै रामड़ा, आवै पालमड़ा ॥७०॥ काने कूडळ काइमा, विणियौ ऊजळ वेस । मिळ्यिौ साचा मुनिवरां, निकळंक नाथ नरेस ॥ ७१ ।। साध गरीव सुधारिस, रिमां तणे रिमि राह । पिंडतां पाट पधारिस, पछिम तरणो पतिसाह ॥७२॥ हिंदुवारणी ने तुरकरणी, विन्हइ तुहारै वैर । ऊभ वळे आवै अधिकि, वडौं इयारे वैर ॥ ७३ ।। हिंदुवारणी हाल हुक्म, ताहरै तुरकारणी । किसी सोहागिरणी केसवा, रूघनंदन राणी ॥ ७४ ।। खेध करै वेवइ खसा, राडा आधै राण । घट घट माँ वैठो घणो, दीस नी दइवाण ॥ ७ ॥
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[ १५ ] ग्यान ठगारौ गोडियो, संकर करिसे सेव । बीठुल मांहि विराजियौ, दरसण दोरौ देव ॥ ७६ ।। प्रघळा दईत पछाडिया, भिड़ि जीता भाराथ । ताहरौ दरसरण त्रीकमा, साध करै ससमाथ ॥ ७७॥ पूरी सूरै पाइयो, भुयरण तिहु चौ भूप । साधेई साराहियो, पालम साह अनूप ॥ ७८ ।। घण सोहागण मेघड़ी, भली तुहारौ भाग। बारट ईसर वोलिया, सथिरि रहै सोहाग ।। ७६ ।। काइमि री बारट कहै, ठकराणी श्रे ठीक। साहिब राघव सारिखा, तू सीता सारीख ।। ८०॥ आघी बैठौ ईसरी, जोत हुई जजमान । मात विराजी मेघडी, गादी बैठो ग्यान ।। ८१॥ राउत रिणिसी रामदे, वडिमि घिरणेरी वाह। सगळाई साधा सिरै, नेतळदे रौ नाह ॥२॥ रामइयो अजमाल रौ, आलमजी री यार । साभिळिस कलिमा सही, पीरिया तरणी पुकार ।।८।। साघ विजैसी सारखा, सेलारसी सरीख । पदवन रै लागा पगे, ऐ जोइ नइणे ईख ॥४॥ मलीनाथ राउळ मुदै, रूपादे राणी । जमले पायो जेसली, तोरल कठियांणी ॥ ८४॥ सोढी लालो नै समस, साहसधर रसधीर । मोटी दाराव मारियौ, भगवति कीधी भीर ।। ८६ ॥ किसने खीची रै किन्ही, लालै नै हरिदास । कर जोड त्रैवइ कर, आलम ना अरदास ।। ८७ ॥ पदमा . देवाइचि प्रघल, ब्रह्म वखाणे वाह ।। पूजळदे रे प्रेम सा, पायौ जमै अलाह ॥८॥
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१६ ]
बांभण डेलू बोलिया, काइम राजा केथि । 'धिणी तुहारो धारुपा, श्री जोइ वैठे अथि ॥१६॥ भाटी ऊगमसी भली, साधां री सिरणागार । बाहड आसा वारहट, जमले माहि जुहार ।। ६० ।। राणी कू भी राइमल, मेही हरिभम पीर । सिगळणं नां सुभराज छ, पावू गोगा पीर ॥६१ 11 कमध अनोपै करण रो, आईदान अवदाल । काइमि सां वाता करे, अमरसिंघ अजमाल || ६२॥ अकल जघा आइया, विमळ वहिथिया वाज। , जळ-मारणसिया जोइया, सूप कना सुभराज ॥६३ ॥ "कवि किम करि लेखो कर, पांडव प्रघळा पाय । पार न जाणे पीरियौ, साध घरणां ससमाथ ॥ १४ ॥ मलिकि मुलाणां मोकळा, खासौ रूप खुदाइ। दीसै दरगहि देवर, गोदड कविली गाइ ॥ ५ ॥ काइम रौ दरसण कर, पीपै सरखा पीर । गोसाई रे गोठ मा, के नामदे कबीर ॥६६॥ मधकर मीसग मानियौ, परमेसर र पासि । मेला सखरा माडिया, सूरतिगिर सावासि ॥ १७ ॥ प्रौप साह ऊहड अभग, कमधज करिणाळा । हाथ जोड हरजी हंस, साहिब बिरसाळा ॥१८॥ 'पापी घारणी पील्हिजे, दीन तरणे दरवार । “कूड़ा कावड़ कूटिज, औपा करिओ नियारि ।। ६६ ॥
हरिचद राठी पीर हु, धन राठी धनराज । 'नाहरखान नरेस ना, सुकवि करै सुभराज ।। १०० ॥ देखो वीको देवली, पांच रिखियौ पात्र । 'भाई बलूडा भागचद, वीठुल सा करि वात ॥ १०१॥
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१७ ]
तुलछी गिरि तारण तरण, दळ मिळिया अवदाळ । सूरिजमल सिरिदारसी, दुरजसिंघ दुझाळ ॥१०१॥ भइयौ सीतळ भारथी, साची साध ससार । सुदर 'जेठी सारिखे, मिळिसै जमै मझार ॥१०२॥ पूरी साध पिचारिणयो, नाका(रा) रो नेम ।' वारट ना प्यारा बहत, हाथीड़ी नै हेम ॥१०३॥ हरिजन सहि भेला हुआ, हुई किलग रै हार। वाल्हो तुमां वीठला, गोविदि लाखौ गुबार ॥१०४॥ मुंहतो रतन महेसरी, तिलो कुअर तुडिताण । ' केसरि नांखे तू करे, पालमजी री आरण ||१०५॥ नागा नवखंड रा नरा, गोविंद चकर गदा । गोडवाड़ गिरनार रा, साधा सुवा सुदा ॥१०६॥ फतियौ फिरिस फौज मा, मुंडा रै उरि भाहि । डोहा करिसै दोनियौ, मुसे रै घर 'माहि ॥१०७॥ वारट झरोखे बैसिसै, काइम हदै कोटि । रेखी बैठी राज मां, राणी करिस रोट ॥१०॥ 'गिरगुण दाखै नारिणा, फौज किलग री फौत । ते सखिर चारै सही, गाईया नां गुहिलोत ॥१०६।। विमळ मजीरा वाजिया, के तांती झरणकार । भजन कियौ मिळि भाइयाँ, :ौं तूठी अवतार ॥११०॥ घणी नूर अनरै घरे, अति निपजसै अंन । साधा ना तूठौ सही, काइम राउ किसन ॥१११।। तू तू हीज हिंदू तुरक, भेळी हू भगवान । एकिरिण थाळि आरोगिज, पेड़ा ने पकवान ॥११२॥ के फेरा जीतो किलग, हुश्री कपिल दत्त हस । रांमण कितरा रेसिया, कितरा जीता कंस ॥११३।। केई प्रवाड़ा तें किया, आखा कितरा एक । बळि छळियी फेरा वहत, हरण सरीखा हेक ॥११४॥
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१८
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मथियो के फेरा महंण, भगते भरिया भूक। तें दीन्ही वसदेव तरण, फेरा कितरा फूक ॥११॥ वावा तू वाण विरिदि, अइऔ पुरिखि अलाह। . सहसावाहु सारिखा, गिळिया कितरा ग्राह ॥११॥ रिखवदेव हैग्रीव हरि, नाराइण नरसिंघ . पारि उतारै पीर नां, तू परमेस त्रिसिधि ॥११७॥ वळिभद्र वुध तू नां विरिद, सबळा चंडिस सेस । परौ उधार प्रांणीयौ, पीर कहै परमेस ॥११८।। , इति श्री परमेसर पुराण संपूरण लिखियो छ ।
संवत् १७६१ जेठ सुदी ७।
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अथ गुण हींगळाज रासो
मुर भुयरणा उपरि महमाया, माता जगत तरणी महामाया । मुनी भगति दियो महमाया, ग्राई नाथ तें धरम उपाया । तु सां ब्रह्म विसनही तरिया, ते उर ऊपरि माणस घरिया । तै पावई बड़ा विदि पाया, ते जगदीस जिसा नर जाया । इमिया खिमिया मांस ग्रहारिणि, चारिणि निमो सैगलाचारिणि । खळ धारा सिगळाई खुटा, तु सां वाद कियो से त्रुटा । करनळ, मात निमो किनियाणी, तू जोरावर दइता जारणी । मोटे असुर तरणा मद मोडे, तु मैंपासुर झालि मरोड । सुरां तरणी दिकि ठरी सवाई, मैंषासुर लीवो मुख मांही । मैपासुर सरिखा महमाया, असुर खपाया तेही ज उपाया । तें पतरे मैंपासुर पीधा, केसव ब्रह्म निचिता कीधा । दईतां रे ऊपरि थारौ दड, चड मुड कद चीना चामड | सभ निरंभ सरिखा छळिया, त्रिभुयरगनाथ तरणा भी टळिया । देत वारिवा दळियो देवी, कमरण करें जुध तुसा केवी । असंख पवाड़ा तुझ तरणा प्रति, तु जमघटी सकति सदोमति । रगत ववाळि निमो रुद्रराया, मुंसां कृपा करे महमाया । तु मद पीये तु मदमती, तु छू छती तु हीज प्रछती । रवराया किहडी परि रीज, कतीआारणी आदेश करीजे । देवो देवी रिधि सिधि दीजो, किहि कि अम्हां सिरि मया करीजो | देवी तणो भुजंन दाखीजे, भलो भवानी मात भिरणीजे । भिळे भवानी भिळे भवानी, जगजीवन ब्रह्मा सा मुनी । वीस भुजाली वडा बडेरी, तु मोढेरी परां परेरी । तु गरढेरी निसिदिन गाजे, असरं ऊपरि आग्राजै । तु जड़घार तरणी वळ जागें, तु महराज तो घर मा ।
तु कुंडणी मात क्रहारणी, विरणीयां री तुम्ही ज धरियाणी ।
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[ २० ] अमरां नरा पन्नगां आई, कोड़ि ब्रहम नां खबरि न काई। काळ रूप तु कहिजे काळी, चामड मात निभो चरिताळी।
अथ दूहा तु चरिताळी चामंडा, बहु गरढेरी वाळ । आदि विहरणी ईसरी, काळ तणे तु काळ ॥ १ ॥ धिरणीयाणी तु हिज धिणी, दईन तुहारा दूत । अहि नर अमर उपाइया, भिळे निपाया भूत ॥२॥ आदि सकति , तु ईसरी, दूजां नावै दाइ। . पीर तणे सिर पावई, महर करे महामाइ ।। ३ ।। महमाया माया निमो, परम न जाणे पार । ते हीज निपाया तीन गुण, के जाया करतार ॥४॥ दानव सहि तु सा डरै, अमर करै आदेश। - नाग शेष तुनां नमै, मोटो देव महेश ।। ५॥ समद सां न तु सांसही, निमरिण कर नवनाथ । इदि उतारै भारती, सकति हुई ससमाथ ॥ ६ ॥ हर विरंच चाकर हुआ, अमर करे सहि पास । करणाकर निसदिन करै, देवी नां अरदास ॥ ७॥ हाथ नमो तु वीस हथि, जुधि जुधि कीधी जैत । गिळिया लोही रा गटक, देवी दळिया दैत ॥८॥ वापडा कंटक डिस, आइए पारि उतारि । ताहरा सेवग तारिया, तिमि मुनाई तारि ।। ६॥ काळी माता काहली, भगता ऊपरि भाइ। जिमि तुठी सुर जेठ नां, इमि तूसे महमाइ ।। १० ।।
___ ॥छद त्रिभंगी। तो रवराया राणी सकति सप्राणी भगता भाणी मिनि भाणी। धन असुरा घारगी जुध मां जारणी जवने जारणी सहि जागी॥ जड़ धारि न जाणी प्रघळ पुरांणी अधिकि हुई किमि करि इतरी। पारवती निमोहेमरी पुतरी सीतामाता सावतरीजीसीतामाता सावतरी।।
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[२१]
गुरण गाया । आया ॥ दत री ।
सतरी । तरी ॥
रिमि रूप रमाया खळ सहि खाया गेम गमाया विरणीयाणी घाया विलंब न लाया आराधां नां सुरिण नर नाग निपाया अमर उपाया देवी माता तु पारवती निमो हेम पुतरी सीतामाता सावतरी देवी सीतामाता सावतरी ॥ आराधी ईसरि मंदं महेसरि पैठिसे कीरति परमेसर 1 - जंपर्स जोगेसर सुकर सैनीछर सप्त रुसेसर ने ससिहर ॥ होगोल सकतिहर निमो नरेसर कोइ कि जाणें तु कितरी । पारबती निमो हेम पुतरी सीतामाता सावतरी देवी सीतामाता सावतरी ॥ तु मात जगत री तु हिज घरतरी सकति सकति री तु तु भोमि भरथरी भीर भगत री श्रासु तरी तु वप ब्रहम विघत री सरव वुसुतरी तु गंगा तु गावतरी । पारवती निमो हेमरी पुतरी सीतामाता सावतरी जी सीतामाता सावतरी ॥ साधां गिरि राया जं महमाया सातां दीपां मां छाया । कोइळा गिरि काया धंध धंमाया मघ कीटग तें माराया ॥ जग धंधे लाया जुग सहि जाया तु गरढेरी महततरी । पारवती निमो हेमरी री पुतरी सीतामाता सावतरीजी सीतामाता सावतरी निसचर निरदकिया दुसमरण दळिया कंटग कळिया तें तकिया । मैंषासुर मळिया गुद्रस गळिया संभ निसंभा तें छळिया || प्रम शकर पळिया वखत जवळिया भाति तुहारी इरग भत री । पारवती निमो हेमरी पुतरी सीतामाता सावतरीजी सीतामाता सावतरी ॥ कहे जिनिपि किसोरी सकति सजोरी चरिति निमो ईता है चोरी । चिति सभु चोरी चित सहि चोरी गोरि सरीखी तु गोरी ॥ मिनि ब्रहमा मौरी फते फरसरी रंग मुखी तु पारवती निमो हेमरी पुतरी सीतामाता सावतरी जी सीतामाता शिवि शकर सरण सुर सहि सरणं सुरां वडेरो तु सरणें । धख पखयिरिंग धरणं धरम सधरणं घिरियां माथै सहि धरणं ॥ चिति लागे चरणे ब्रहमा वरणे गेमरा माडे सिहि गतिरी । पारवती निमो हेमरी पुतरी सीतामाता सावतरी जी सीतामाता सावतरी ॥
रतरी । सावतरी ॥
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[ २२
]
कवित्ति पारवती परमेस सरब पारबती सती । कहि हो कहि त्रिसकति जोग तु गोरख जती॥ सीता श्री सारिखी श्रीया सारंगधर सरिखी। सावतरी सुभराज प्रघळ ब्रह्मा जी परखी ॥ तु पच्छिमि पाट पतिसाह तु भेस सरव भगवत भू ।
पीरीये कहै परमेसरी हीगलाज सुप्रसत्र हू || ॥ इति श्रीहीगळाजरासौ सपूर्णम् लिखतु लालस पीरदान वाच जिण नु राम-राम स० १७९२ काती बदि १४ वार थावर छ ।
सकति हुए
सुभराज करे तना सुर सामिणी ताहर नाम साम्हेई तरा। जयो निमो तु ना जग जामिणी कतियारणी आदेश करां ॥१॥ कालिका तु हिज कुवारी काया मनछा पारबती महमाई। सावतरी सीता सुर सामरिण साधूडा रो हुवे सिहाई ॥२॥ सकति हुए भगता रै साथे घाणीया मा असुरानां घाति । धरम तणे तु हिज धणीयाणी पाप पछाडि परौ परभाति ॥शा प्राव हे आराधे आई भाई हे दाखे भहरी। पीरीय तणे उतारै पातिग साचा रे वसिजो सहरि ॥४॥
पीरदानु कहै ॥ श्री सारदाइ निमा । श्री गुरुभ्यो नमा ।।
हिज धरणीयाणा
हे दाख
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अंथ गुण अलख अाराध लिख्यते
॥हा॥ वघवारणी तू ऐक ब्रम, प्रोऊ कार अपार । 'किमि करि कीधौ काळिका, विसव ती विस्तार ॥१॥ विसव कियौ ते बीस हथ, कियो विमेख विचार। . इम्यां विदि लीधी इसौ, कोधी ले करतार ॥२॥ निमो निमो लिखमी निमो, मात तुहारी मति । निरगुरण ना ते निर्मिधयो, सरगुरण कीयो सकति ।। ३ ।। सकर ना सुरजेठ ना, आस तुहारी आस । सावतरी थारी सघर, वडो सुन्न घर वास ॥ ४ ॥ जग जिगणी तूनां जयो, कु डनिरिण त्रिसकति । हरता करता तू हुई, माया नाम मुगति ॥ ५॥ ध्यान करै थारौ घरम, अलख अपपर आप। . महादेव सरिखा मरद, जपे तुहारी जाप ।। ६॥ । -तू सिवि काया सरसती, विसन सरीखी वेस । ब्रह्मा इणिपरि वदै, आदि सकति आदेस ॥ ७॥ मध कीटग तै मारिया, तू सबळी सुर राइ। मारकड ना मानियो, पिंडति लगायो पाइः॥ ८ ॥ -सदा सदा हुँती सदा, आदि बिना तूं आप। सांमि नही को सकति है, वाप तणे तू वाप || ६|| वडा वडेरी तू वडी, खिमिया तू खिडि खिडि । अधकि देव तू साउरा, परा परा तू पिंड ॥ १०॥ विदिया समपौ बीस हथि, सरसति दियो समति । दिनो उकति आखर दियो, सु प्रसन्न हो सकति ॥११॥ घट हुँता अकरम घटे, अधिक घटे अपराध । कृपा करौ तौ हूँ करौ, अलख तणो आराध ॥ १२ ॥
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[ २४
]
अलख अंक इनेक अति, लखियो अलख न जाइ। अलख अपपर ईश्वर, अलख खुदाइ खुदाइ ॥ १३ ॥ परि किमि करि लागा पगे, पाउ पताळ प्रमाण । श्रमण दिस वैकुठ छत, राज निमो रहमाण ॥ १७ ॥ चख सूरिज ने चन्द्रमा, घणनामी घट घाट । पिडि मोटो मोटो प्रभु, वप छोटी वैराट ॥ १५ ॥ हंस निमो वाराह हरि, पाणी रूप पवन । पिथिराजा प्रादेस प्रभ, वामन निमो विसन ।। १६ ।। जीव निमो पहलाद जण, वाघ निमो वड़ पार। निमो निमो नरसिंघ नर, कोपि निमो करतार ॥ १७ ॥ नाभ सुतन रिखव निमो, निराकार निरधार । कपिलि मछ हैग्रीव कहि, जोगी दत्त जुहार ॥ १८ ॥ नंद निमो वसदेव नर, पति निमो प्रदुमन्न । अनिरुध नै बळिभद्र अनत, कूरम निमो किसन ॥१६॥ राम फरस राघव भरथ, सत्रघण लखमरण सामि । असुर सघारण आइयो, गोविंद गोकळ गामि ॥ २०॥ धन गोकळ नंद ग्वाळ धन, धन जसोदा धन । विंदावन धन सरव वन, वाह वाह मधवन ॥ २१॥ तारि तारि मुना त्रिगुरण, परमेसर पतिसाह । बुध अवतार महावळी, पालम अलख अलाह ।। २२।। नरहर गुरु निकळक निजि, साह निजारी साह । गयो मुरति ग्यांन री, अको अक अलाह ॥ २३॥॥ पीरदास जंग परसि रे, दीनानाथ दरस । जोति निमो जगदीस री, काइम निमो कळस ॥ २४ ।।
॥ अथ छंद भुजगी ।। निमो कळसरा धिणी काइमि किस्तूं।
निमो पखाळे तूझ पाणी पवनू। निमो प्रभु परमेस अरणंपार पारू,
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[
२५
]
निमो जगतरा बाप तूनां जुहारू । नमो नर सुरां नाथ निरगुण नरेसु,
नमो सेझ थारै हुऔ नाग सेसु । नमो बिसन विसथार अधिको वरणायौ,
निमो जोनि ब्रह्मा जिसी पुरुष जायो। निमो तीन गुण राव पति पांच तत्तं । निमो सीळ रा डील तू साच सत्तं ॥ निमो ब्रह्म तू ब्रह्म वैराट वपं । निमो प्रोण पाताळ तू वीज अपं ।। निमो ताहरौ सीस श्रगलोक सरिखु।
निमो पुळदर जिसा नह प. पुरुखं । निमो वेद ही पार जाणे न ब्रह्म,
निमौ पार पामै नही तूझ प्रम । निमो प्रघळ पैकंबरा प्रघळ पीरा,
नमौ माई या करै आदेस मीरां । निमो हस हसा तरणी जोति हरता,
निमो काळ ही वीह राखै करंता । निमो धरम ही तूझ निस दीह ध्यावे,
निमौ वडी जण वीण तुबर वजावे। निमौ माहवै सरिस यह तत्त माने,
निमो सदासिव भजे मनमांहि छाने । निमो मुकुद मुजरो कर 'देह मेनं,
निमो धणी ध्यावै सदा कामधेनं । निमो प्रभु ना सदा सुर-जेठ पूज,
निमो दईव री श्रेव नह हुवै दूजे । नमो दईव री क्रीत जमराव दाखै,
नमो अलख रौ अरक आराध आखै । निमो हस पडियौ हिम ईयै हेवे,
निमो सीत सावत्री गौर श्रे।
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[ २६.]
निमो पगा 'नमो अलख
आणी न जाणे ।
निमो पगां रौ ध्यान राखे पवनु,
नमो अलख रौ करै आराध अनु। निमी अलख रौ जिको आराध आरण,
निमो नारगी तणे. कुडे न जाण। निमी कटक पतिसाह पतिसाह काचौ,
निमो अलख जाण- जिको रांक पाछौ । निमो अलख री अलख सोभा उचार,.
निमो आप हीज अलख आपरिण उधार । निमो अलख री- करै समरण अनेक,
नमी अलख औ जीव मिळ हुदै.एक । हुकम निमो बाप थारी हुलाहौ,
आराधै तिनां एक जघा अलाहौ। वडा देव नरसिंघ तौवह विसन,
कहै सुपकना किसनं किसनं । सपत दीप रिख सात सातइ समंदु,
नवइ नीय ही हाथ जोडै नरिंदुः।, गणे तारहा नाम सुर कोड़ि गने,
अला माहरी एक पाराध मंन । अट्यासी सहस रिखी तू नां पाराहै,
धरणी ताहरौ नाम सह कोई ध्याये । धरणी थाहरै नाम नां जिके घाख,
नरां ताहना झालि स्रगलोक नांखे । बडे धरणी रौ विमळ कोमळ वदनु,
घिणी रो करै ध्यान तां दाख धर्नु । वडे, साधुने तूझ गायो वचने,
अलाह माहरौ अक आराध मने। प्रभु तूझ प्रताप सकर पिछारण,
जिकी ताहरौ सुख सुरजेठ जाण ।
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[ २७ . ] पुरख डोकरा विरिध गरढा पुरांणु, ।
- वडे सांमि रा वेद वाचे वखाएं। वडा सामि ते विसव किमि करि वरणायो,
सरग सात पाताळ मुख मां समायो। वडी ताहरौ मुख उरळी विसाळू ,
किसन तूझ नां निमो तुझ काळ काळ्। अधिक तुझ आदेस कान्हड अकिरिता,
किसन ताहरी कोप आदेस करता। अलख नान्हीग्री निपट मोटी अपारू,
अलख रूप अणरूप भगतां उधारू । अलख काज अकाज जायौ अजायो,
प्रभु ताहरौ पार किण ही न पायो। प्रभु ताहरै पिंड नह कोय प्राणी,
जोगी ताहरी वात किरणही न जांगी। जोगी तुझ ना जयौ जूना जुवारी,
महादेव माहेस अणकल मुरारी। महावीर वीराधि अंकल - मलं,
अधिक आप उदार दाता अदलं । प्रथीनाथ ससमाथ तू पातसाह,
अग्राह अवाह अलाहं अथाहं । निगुरण नाम नह नाम निसवाद नाथू,
हुने मुगति देता सरिस तूझ हाथू। निमो वरन अवरन प्रधान पुरुष,
सामी कोई सूझ नही तुझ सरखं । सामी श्रब तू श्रब तूं श्रव सासं,
अखिल भूत तू अंक तूं अविरणासं। गरुड़ ऊपरा चढ वैकुण्ठ ग्रामी,
निमस्कार तोनं निमो सहस - नांमी।
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[ २८
]
चरण तूझ चाहा निमो चत्रवाहं,
अइयो ताहरा पाव उत्तिम अलाहं । भजे ताहरा नाम से साध भला,
अइयो जमराजम निरदोप अला । हुो हस रौ रूप श्री राम हु,
वडो कछ अवतार दरिया विलो। दिवे दांन रतनां तणो सरिसि देवा,
जरू दुख दै दागवा राह जेवा । महिरिवारण तू मछ माधव मुकंदु,
निमो वाहरू वेद प्रिथमादि विदु । अनंत राम हैग्रीव अवतार अंसा,
जिकै मारिया देत मध कोट जैसा। कपिल देव करतार रिखव कहीजे,
भली भांति सा सामि मन मा भजीजै । देवां ऊपरा देव तू दत्त देवा,
सही साध करिसै कोकि तूझ श्रवा। प्रभु पिथि अवतार अपार पारू,
जख किंदरे जास राखं जुहारं । परै उखिणे खिणे हरिणाख पाढा,
दईव वाह हो वाह वाराह दाढां। दाखां तुझ नां निमो नरसिंघ देह,
निमो ताहरौ कोप लिखमी सिनेहं ।। किसन तूझना साद पहिलाद कीधौ,
- दीनानाथ ते सांमही साद दीधी। घणी ग्राहनां मारिवा भलौ धायौ,
हरी तूझ अवतार वेदै हुलायो। निमो वांमरणा राम वैराट ब्रह्म,
अधिक रीजियो इदि ऊपरि अग्रंमु।
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[ २६ ] 'फरसिराम पाउघ ग्रहियो फरसु ,
अधिक रेसीया खत्री लागो अरसुं। निमो रामचंद राघव रूघनाथु,
भाई लखमण अनै सत्रघरण भरथु। भगत वछल दसरथ वो भगवानं,
गयो जिनक सां मिलण केवल-गियानं । लियौ पछै वनवास लक हूँत लड़ियो,
अभग नाथ असुरा सरिस आवि अड़ियो। सती. सीत रा कंत असुरा सघार,
विसन ताहरा कमरण, लाभ विचारं । असुर मार ने अजोध्या ग्रामि आयौ,
वडे हेत सा उठि भगते वधायो। विसभ तूझ ना निमो लीला विलास,
केहर तूझ वाल्ही घणी कविलासं। निगुण नाथ आदेस वलिराम नागु,
त्रिगुण किसन रा वीर तू सख त्यागु । किसन तूझ ना हिमैं कासू : कहीज,
रहै कोप नह कोप रीज न रीजै । किसन किसन दीपान आदेस कीधी,
राजा राम तू अजे रीधो न रीधी। लखण लहै कुण लछिवर तूझ लीला,
किसन ताहरी निमो करतार कीला। निमो ब्रिजरा वाळ स्रग लोक वासी,
आया नद रै आगणे अविणासी । अला नंद रै आगणे माहि नाचे,
अला राम रा सहज अ साचि राचे । अला वाप चरिताळ हाथे बंधावे,
अला हेत सा जसौदा हुलरावै । अला वन मां जाइ मुरली वजावै,
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[ ३० ]
राजा राम नां पोथि राधा रमावे । अंला पौरसे हुओ दईता पछाई,
अनड गोरधन हाथि एकिरिण उपाई। अला मथुरा मां जाइ नै कस मार,
अला आपरा भगत प्रोथी उधारै।। अला उग्रसेना सरिसि राज आये,
अला कुरिदि बाभरण तणी तुरत कापै ॥ अला रुखमणी राज रै पटराणी,
'असुर मार न पाहचे भली प्रांगणी।। अला अनरज तू हीज भरतार अोखा,
अला सहज पदवन रा तूही सरीखा। अला जुध री बात अखियात जाणे,
- माली तारि नै कूबड़ी नारि मारणे ।। 'अला जुध नै दैत गिरिराया न जाये,
अला खड डडूळ नां तूंहीझ खायै । अला बुध अवतार तू वाप बाबा,
निमो धरम नां कीध निरबळ नियावा । जुध घिरणी जगत केरिण भाति जीतो,
विळे खाफर जिसो दइत वीतो। अला साहु ले सिधि वाळे सुणीज,
अला कलकी तणी अवतार कीजै । अला अंक हूँ राज नां अरज आखा,
दुजां ऊपरी भाउ करि देव दाखा । अंला घरम नां निवाजी विलै धेनां,
मला सघारौ दुसटियां किलग सेना। अला प्रथमी प्रवीति कीजे, प्रमेस,
अला नाम नां निमो निकलक नरे। अला साथ हुसेनियां तणौ. सामी,
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[ ३१ ]
अला भलाई पधारै भुजा भामी। अला अथरवरण वेद मां साच आगो,
अला पीरिय तरणे अरजां पिछांगी । अला विडगां तिर्ण फौजां वरणावी,
अला आदमां दळ मुसां अणावी । अला चंचळा ऊपरां मीर चाढी,
अला दाणवा दिसे वागां उपाडौ ।। अला माहि महमद साथै मुलाणा,
अला पास दरवेस दीसै पीराणा। अला साथ सेखा तणो मिलक साथै,
__ अला मोकळा कटक करि कलिंग माथै । अला हाथियां तणे फौजा हलावी,
अला प्रघळ ब्रह्म कीच ना रगत पावो । अला पीपळे फूल अति वेल फूल,
अला चढ हस्तरण तणो दूध चूलै । मला वाभरणी पुत्र मागे विचार,
अला तूझनी निमो वाता तुहार । अला पतिगह चदमां तणो पालो,
___ अला झाझ नामी इसा विरद झालौ।' मला वास सोवन मा करौ वैगी,
अला भलाई पधारे भ्राति भागी। मला ग्यान सौरी कर हि मैं गाई,
अला साढ़ियां दूध करि प्रवीति सांई। 'मला वसुधा माहि अबा वरणाव,
अला कालरां माहि हीरा करावै। अला जोध जुजिठिकि हरीचद जांनी,
अला माहरै जीवि अ वात मांनी ।। 'मला वारहु कोड़ि वळि तणा बेली,
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[ ३२ ]
अला राज काइ प्रिथिमादि रेली। अला कन्या वाट जोवै कुपारी,
अला पिरणीजे हिम करिज पियारी। अला वाप मेघा घरे मोड वांधी,
___ अला परी कालीग सां वेढ प्रांधौ । अला लादिवर पहिलड़ी साच लीधौ,
अला किसी मेघा सिरै कोप कीधौ । अला अहै चद्रावळी बीज श्रावी,
अला ठाकुरा मेघडी पिरिण ठावो । अला थाविरे थाविरे कळस थाप,
अला प्रापरै साचूनां सरग यापै । अला सेत घौडे चढी धरम साही,
अला चक्रधर सूरिज्या मिळण चाही । अला जादवां तुहारी अकल जांगी,
__अला घणा पासुरां तणी करौ घारगी। अला पहुवीरे ऊपर चौक पूरी,
अला चीरणमण चीरण रा महल चूरी। अला महा सैतान तोफान मोडे,
अला त्रिधार खड़ग सा दईत तोड़े। अला खेत ‘उजीण मा झूझ खेलौ,
अला चवै ईसर तणी पीर चेलौ । अला वधाई प्राज कुता वधायौ,
अला गावित्री गौरिज्या गीत गायौ । अला सावित्री सूरज्या सती सीता,
अला ग्यांन आदेश उणिहारि गीत ।। 'पणे पीरियो दास प्रम पतिसाहो,
अला हो, अला हो, अला हो, अला हो ।
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[ ३३ ]
|| कवित्त ।।
अला तूझ उवारण जयो जगदीश जुरारी।
नरहर गुरु हरनाथ निमो निकळक निजारी. कन्हैया कान्हुआ निमो निकलक नरेसर ।
ग्वाळ निमो ग्वाळिया, साच साथै सारगधर । राजि ना किसीपरि रीझवा, राज वडा राधारमण,
पीरियौ तूझ दाख प्रमु, मूझ निवाजे महमहंण ।। 'पाचा सा पहिळादा, पाट हरिचद पधारो,
नवां कोड़ियां तूर, सात कोडिमां सुधारौं । बारा सा बळि राउ जोति सा मिळिया जाए,
चढिया छ चच्ळे, अलख गुर ईसर आये, आरती इसी अरिहत री मोटा पातिग मारती,
आरती अलख-आराधना ईसरजी ना भारती।
॥ इतिश्री अलख-आराध सपूर्ण ।
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॥६०॥ श्री गणेशायनमः श्री गुरुभ्यो नमः अथ गुण अजंपा जाप
॥ दूहा ॥ हैं मांगां देवी हुयो, अयिरल वांरिग उकत्ति। वळे 'विनाइक वीन, सिद्ध बुद्ध द्यो सुमत्ति ॥ १॥ वाह विनाइक देवता, नमो विनाइक नाथ । तू सिद्धदायक रूप सुभ, तू सत्गुर ससिमाथ ॥ २॥ सूडाळो लाइक-सुरां, राम सरीखो रूप । ब्रह्म सतगुर हूँता वडौ, ईसरदास अनूप ॥ ३ ॥ ईसारणंदि राधियो, आठइ पहर अलेख । दीठो दरसण देव रौ, अोळखीयो प्रभु एक ॥ ४ ॥ एक नमो तू' ईसवर, समपि तुहारी सेव । ब्रिज वाळा चरिताळ ब्रह्म, दीन दयाळा देव ॥५॥ भगत तुहारा सहि भला, भिले अरिजरण भीम । भगति दीगै जो भूधरा, तो तोनू तसलीम ॥६॥ तनां कहा छा कमा, दुरवळ ना करि दास । कनि करिहो केसवा, परमेसर जम-पास ॥ ७ ॥ तू जगनाइक जगत गुर, तू अविगत जग ईस । जगति घड़े भांजे जगत, जयौ जयो जगदीस ।। ८ ।। महादेव तू महारुद्र, तू भगवत भगवान । भगतवछळ तू भूधरा, तूं गोरख वम ग्यान ॥ ६ ॥ सास सासि समरौ सदा, सरव सास औ प्राप। साच संवाही साधुवा, जपो अजपा जाप ।। १० ।
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. [
३५
]
॥ छंद पधरी।। अजपा जाप प्रोकार एक, मोलखै कमण' विरणयौ अनेक । अजपा जाप आतम उद्यास, मुर भुवरण माहि सब भूत सास । प्रजपा जाप मूरति महेस, पिंड पिंड मांहि थारो प्रवेस । अजपा जाप अणकल अतीत, प्रकाज राक अइनी अजीत । अजपा अगम नावै प्ररथ, कोई नही काम कोई नही कथ । अनेक रसग सान हुवै आप, जयो जयो अजपा कठण जाप । नमो नमो अजपा नमस्कार, प्रोउ ओउमा प्रगपार पार । आदेस अजपा हो अलेख, तू भव सबंध ससार भेख । मन मांहि अजंपा तरणी मड, आज ही अगै राखी अखंड । अजंपा जाप सू' मोह आंरिण, विश्व रौ मोह न्यारौ वखांण । अजपा जाप री अविल आस, जाड भ्रम अविद्या टळे जास । 'अजपा जाप दातार आज, सरूप मुगति दै सिरताज । अजंपा जाप रे नहीं प्रादि, सब जीव करण पडीयो सवाद । अजपा जाप परमेस प्राप, बभ' रै हुऔ करतार बाप । अजपा जाप भगता उवार, ससार घड़ण पालण सघार। अजपा जाप सीता सरूप, 'भगवत नमो भगवत भूप। अजपा जाप उरणहार अह, दातार नमो अरणरूप देह । जीव हो अजंपा जाप जांण, असटग जोग सू हेत आण । सोइ जांरिण जाप कहिजे सपूत, काइ पर्ड कूप माही कपूत । सामि सा कांई छोर्ड सनेह, नारगी हूँति कांइ करै नेह । अलखनां विसारै उपराध, समंद्र मा डूब काई बड़ा साथ । अहकार छोड गति माहि प्राव, परसि हो परसि परमेस पाव । देखि हो देखि घर मां दईव, जिम हुवे तूझ कल्याण जीव । परखि हो परिख प्रीतम पाथ, निरखि हो निरखि घट माहि नाथ । रामचन्द नमो हो नमो रूप, पिंड पिंड माहि जोति सरूप ।
१ कवरण वरणीयौ । २ सा।
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कान्हा नमो अरि नमो कंस, हग्रीव नमो वाराह हंस। अवतार नमो हरि गज उधार, परमेस नमो पातिक पहार। परधान नमो पर जोति प्रम्म, वे काम नमो लग लोक ब्रह्म। मछ कोम नमो महाराज मति, उसास सास किम लियो अति । नाभि सुत नमो रिषभ नरेस, वरीयाम बाघ नरसिंघ वेस । वाह हो वाह वामरण वडाळ, दुज राम नमो दीनांदयाळ । कूटिया दैत उधरै कीर, धनुषधर नमो लखमरण सवीर। जादवा नमो ताहरा जुध, बहसांमि नमो अवतार बुध । किरण ठार्ड रहै प्रावास काह, प्रादेस तुने गरढ़ा अलाह। आदेस देव अहि नरां ईस, जगदीस जयो नगलोक सीस। चत्रभुज वाप पाउघ च्यार, साधुया तणा पातिग संघार । अई अई गुरड रा असवार, भामरणां लिया लिखमी भ्रतार। सेझ नां नमो नागेंद्र सेष, उपारणा लिया थारा अलेख । पंगरण प्रीत वसदेव पूत, समिल काहि मैं जणस्य सपूत । कमळरा नैरण कमळा-कत, सुर जेठ आप सारीख सत। निरकार नमो निरजण निनांम, ग्यानरी देह वैकुंठ ग्राम । जगदीस तरणी डर कर जम, गम लहै कवरण थारी अगम । लहै कुरण वाप ताहरी लील, नमो हो नमो अनील नील । प्रापरा चलण महिमा अथाह, पगारै कोन्ही गगा प्रवाह । विदया' भद्रा गोपिया विद२, आरती करै ऊपरा इंद। पाराधे देव चारण अलख, जुहारै तनौं किनरह जख । अठयासी सहस रिख करे पास, वखाणे सको वैकु ठवास । पाच तत महा तत रहे पास, संभार तनां प्रभु सास सास । गुण तीन दास पतिसाह गाइ, वेचिया प्रभु थारा विकाइ। राजीया केई दीवारण राक, सुर कोडि तीस मुर करै साक। प्रणमति नाग अनेक पीर, साहिवी नमो सामळ सरीर। डर कर देत तूसां दईव, जोनीयां दिय इनेक जीव । १ वंदिया, २ वाद)
MAHA
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३७ ]
परमेस विख जूना पुराण, वेद ही बाप वाचे वखाण । पावक अन पाणी पवन, वड वडा थोक चाकर विसन । मन बुद्धि चित्त अहकार मति, समरति तना वइ सकति । रहमाण तुहारी अटल राज, वीठला हिम सिणगार वाज। आणि हो आणि जानी अडूर, निरबळा मॉहि विरताव' नूर । परणि हो पिरिणि परमेस पात्र, जीव सहि करै सैदहे जात्र। प्रावि हो आवि चंद्रमा आस, पूरि हो पूरि टाळिही प्रास । थापि हो थापि पूनं कळस थापि, आपि हो आपि कल्याण प्रापि। राखि हो राखि मूसरण राखि, दाखि हो काहिक चाकरी दाख। जोइही जोइ साम्ही जोइ, दातार अक कुरण कहै दोइ । साच ने सीळ तूना सलाम, गोविंदा कर थारा. गुलाम । बीनव श्रेम लीला विलास, देवाधिदेव पीरियौ दास । पीरियो प्रेम दाखै परम, वडेरा निमो ताहरौ ब्रह्म ।
॥ कवित्त ।। ब्रह्म नमो छुब ब्रह्म ब्रह्म कहिजे ब्रह्मचारी । ब्रह्म नान्ही वैराट क्रम अक्रम कूड़ा री । भवसागर सा भ्रम भ्रम माया मा भूलो। माया छै मोहणी डाक चड़ियो चित डूली। महाराज हिर्म कीजे मया, भाजि अविद्या जाड भ्रम ।
पतीगह पाळि मोटा प्रभु, पीरदास दाख परम ॥१॥ ॥१॥ इतिश्री अजपा जाप सपूर्ण लिखतु जती लालचद गाँव जूढिया मधे।
सवत् १७६१ रा जेठ सुदी ८ कथित लालस पीरदानजी। ॥ इतिश्री अजंपा जाप सम्पूर्णम् । कोविद देवचद लिखतं।
कोढरणा मध्ये शीघ्र धषिता ।।
१ वरताडि ।
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अथ गुण ज्ञान चरित्र लिख्यते
कवित्त ॥ देवी दे वरदान ग्यान रीजे गुण गावा। भाखा सहि भागिवंत विहद हथ अरथ वणावा । तू मोटी महमाइ धरम धरि परि धरणी । वघ वाणी दै वैरण, कृपा करि हे कुडकरणी। करि सरस जोड़ रूपक कहा, त्रिविध जेम दुत्तर तरां । ऊधरां आप इनि, ऊधर, अनत तणो जस उचरा ॥११॥ अनंत अनत सहि अनत, अनत पौरिस पराक्रम । अनंत एक अनेक, अनत बह भांति बळाक्रम । अछती छतो अनंत नाम विरण अनत निरुगुन । गुण समपी गौरिजा गौरि तु विना नुहै गुण । अहि अमर रुखेसर नर असुर पहचि तुझ दाखं प्रघल । हु महिरिवण माया हिमै वइण मुझ दीजै विमल ।।२।। विमल कवेसर विले साधु सुखदेव सरीखा । वालमीक जैदेव नाम नरहर कवि नीका । विले दास वाणार सुकवि गोदड गुर मेरा। ग्यान चरित गाइनी एक एका अधिकेरा। ताह माहि ले अधिका उतिमि ग्यान रूप गाहैडि गडा। वारहट अन रिषि बरावरि वेद व्यास ईसर बडा ॥३॥ ईसर इमि आखीयो मुकद मोटी अति मोटी। अनत पार अपार त्रिविध त्रोटो नह त्रोटो। तोवह बार हजार करै सहि नाम अकिरिता । अलख तूझ आदेस कोडि आदेस करता।
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[ ३६] जाइऔ सरब ससार जे विसन कहीजे सीलवत जम तरणो अंत कंत ज्यानखी अनंत नमो फेरा अनंत। अनत तरणो नहिं अत नाम लालच पिरिण नाही। रूप रेख निही रग कही हब का हिज काई। सास आस निहिवास वारिण नह खाण न वेदु । अनत नाम अकाज भ्रांति नह जाति न भेदूं। केई थोक निही नन पार कोइ सरब वात साची सिही। किमि करि प्रणाम कोजे सुकवि नरहर रे इतरी निही ॥५॥ निहो केम घणनाम हेक हैग्रीव विले हस । विले सेत वाराह आप विरिण रूप तपो अस.। मछ कोम नरसीघ वाह वामरण कहि वामण । रिष वदत पिथराव भरथ रुवनाथ सत्रघरण। पढि फरसराम लखमण कपिलि रिदै मुझ वलि राम रहि। नारीयण विषभ अवतार निजि क्रिसन बुधि निकलंक कहि ॥६॥
कहिर्ज कासु सुकवि धौड गुण नावै धाता। आप अगम जग ईस वेद नह जारण वाताँ। तत पाँच गुण तीन कोम डिगपाल कमाली। सोम राह छिनि सूर क्रेत विसपति कोलाली। सीत नै गौरि सावतरी तिलोइ न जाणे तुझनां। सकति री नही इतरी सकति मुरिखि कहिसी मुझनां ।। ७ ॥
मुझ तणी मतिमन्द चन्द अधिकौ चतुराई । अकल घरणी ईद मे किसन गम न लहै काई । उण दिनि जायौ अनन्त हरो तिणि दीह न हुँतौ । इम कोई न कहै अवर कहै नह मरतौ करती। हुँतौ जि आप केई जुग हुमा केई वार कलपंत हुआ। त्रेमुगण भाजि हुये एक तन हरी तुझ तोवह होआ॥८॥
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[ ४० । हीय जीव जीव मा देव देव मा वस हरि । वसे खारिग वाणि मां पार प्रांमिजे किसी परि। सकति माहि सिव माहि रहै वभ माहि धरणेरौ। जबक माहि जु मांहि अनन्त तिलि हेक ओछेरौ । परमेस श्राप पारणी पवन कलक माहि निकलंक किरि। ससार माहि बाहरि सदा थाहरीयो थल माहि थिरि॥६॥
॥ दूहा ॥ 'थल मा जल मां थूब मा, जगम सा जगदीस। थावर मा, अनमा अधिक, आप सरव को ईस ॥१०॥ सरब' सरब तु सांइयाँ, रांम किसन मां राम । नांग 'नरा मां निरजरा, नाम माहि नह नाम ॥१॥ बुरा माहि बेकारमा, छोति छोति मा छोति । धरम मांहि अघरम मा, जीव जीव मा जोति ॥१२॥
॥कवित्तिः॥ जोति निमो जगदीस जीव जीव मा जडाणौ । किसन अनन्त कोडिरौ कांइ अवतार कहाणो । दुख काइ देखें देव सुख कांइ इतरौ सहियो। करि हो कर करतार कुरणे तुनां इम कहियो । घणी तोइ एक एकोइ घणी गोविंद तुचुहु गमा। देख सवाद सुख दुखरौ तु निसवादी त्रीकमा ॥१३॥ निसवादी नरसिघ नमो तुना निसवादी । कहि हुँ कासु कहाँ सरब प्राणद सवाही । विसन वेद अणवेद भेद अभेद भुगीजे । अंलखरूप प्रणरूप जाच प्रजाच जपीजै । अनाथ नाथ अवररण वरण केई थोक नकरण करण । गुरगरूप ग्यान निरुगुण नरिदि समरि जीव असरण सरण॥१ना
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समरि जीव अण जीव करम केई करम अकरमी। सुख दुख जग सामि धरम केई धरम अधरमी । निराकार साकार अनन्त बनह तु अवरन । सामि सरीखौ सुकवि तुहीज आप जिसौ तन । तु आप आप इनेक तवि प्रथिमि एक ससार पति । कूड नै साच करतार रा साधा सुरिणजो एह सति ।।१शा सत सील सन्तोष विले अति साच दयावत । खिमावत अखिलिना सवल मन मा थारा सत । विले इग्यारस बरत भगति ऊपरि प्रभ भीजै । पिप्पल तुलछी पान राम या परि रीज। गाइ नै डाभी गोपीचन्दरण निति थारा नन्द नन्दना। ब्राह्मण निपट वाला विले ए गरीब गोविंदना ॥१६॥ गोविदि रै कोइ ग्राम कना कोइ नाम कहिजे । सामि कुणे रो सामि राम के ऊपरि रीजै । आप आप सहि आप निको काइ नारि निको नर। पेट पूठि नही पाऊ काह काया वाहा कर । नइणि नै समग वेवइ निही कठे तात माता कठे। निगुण ना किरणही जायोनही उठे आप आतिमि अठ॥१०॥
उठे आप स्रव आप विसन वैकु ठि विराजै । तीन भुयण मा त्रिगुण निगुरण नागौ नह लाजै । सब भूत स्रव सास नाम ग्रामह स्रव नीरह । स्रव आप स्रव वाप स्रव आचार सरीरह । स्रव वेद भेद आतिम सदा किसन न हुतो कही कब । स्रव वीज खीज वलि रीज स्रव अवली सवलो आप सब ॥१८॥ सव लहै कुण सुकवि स्रव स्रव हुँता न्यारी । व्रमचारी गोविदि परम लिखमी ना प्यारौ ।
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श्री लिखमी अवतार सरव लिखमी सारीखी। जे जायी जगत नां अनन्त इहडी विधि ईखी। मोहणी रूप तुनां निमो विसन नमो तु लच्छिवर। ताहरै सीत चला तणी सेव विलगी संखघर ||१६|| सख बड़ी तु संख सख पाउघ सवाह । गदा पदम चक्र ग्यान विस्रव ऊपरि ले वाहैं। आप आप सा इसो आप आप ना उडाड । आप आप ना ध्रव आप आप ना खवाड़े। आप री आप रीख्या करे खरा देव तुना खमा। आप ना आप कोप अनन्त आप निमो तु आतिमा ॥२०॥
आप आप ना दुख दिय, आप आप सुख आप । ग्यान तुहारी एह गति, बंभ सम रा वाप ||२|| रमं आप तु आप मा, नमै श्राप नां प्राप। आप खवारे पाप ना, साहिब निमो संताप ॥२२॥ तू करता तु भोगता, रहै अकिरिता राम । विसव घडे भाजे विसव, विसव तणी विसराम ||२३||
॥ कवित्ति ॥ विसव तणी विधि वाव विसव इणि भांति वरणाव। जगत रजोगुण जनम हुनौ सतगुण हुलरावे । भाखि सतोगुण भलो खरो कोई कहिले खोटो। त्रिविध तरणी विच तीन त्रिविध तामस गुण त्रोटो। रजोगुण ब्रह्मगुण सातसी तिको ग्यान पतिसाह गिरिण। तामसी रूप सकर तरणी पति गुणा मा राम पिरिण ॥२१॥ रामपति जगपति सति रुघनाथ कहै सति । विद्या अविद्या बुरी एक अहिकार बुरो अति ।
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[ ४३ ] एक बुरौ अहिकार भरम निरसी भारतीजे।' क्रोध कलह कुछि निही दान अविगत दाखीजे। ग्यान ना एक अजरौ गरव ग्यान नाम गोविंद री। भगवत ज्ञान भगता सरसि राज समापी इद रौ ॥२५॥ इंद अनंत अपार विसिनि ले रोम वसाया। रोमि रोमि ब्रहमंड असख ब्रहमंड उपाया। रोम रोम ऊपरी रहै सायर जल सारा । एकरिण रोम अनंत वस कविलास विचारा। इंदि ने अरक रहै रोम मा किसन नमो तुकाम नां । आदेस ए आदेस अति राम तुहारे रोम नां ॥२६॥ रोम तणौ रुघनाथ पार सिव सकति न प्राम। नरहर रै नाभ में जोनि ब्रहमा विप जामै । रुद्र इग्यारह राम तुहीज जगि ज्याग महाजप.। महा तप तु मूल जोग अष्टंग अन अप। आकास तेज प्रिथिमी इनिलि पांच तत निसिदिन पर्ण । महा तत घडे भाजै मुकद महातत तुनां मणे ॥२७॥ मरणं महा तत मद पाच तत चाकर पास। गग नदी गोवदि नाथ निति चलण निवास । सक कोड़ि तेतीस चरण राखे उर उपरि । लिखिमी चाहै चरण परम रीजै इहिडी परि । उपजै प्रेम मन उलस वाला लागै लछिवर । माहरै रिदै विचि मिडिया चरण तुहारा चक्रवर ॥२॥ चक्र सामि सख सामि पदम पति अनां गदापति । प्रीतवर पगरण भला फाविति' इसी भति । महि कट मेखल कहै कानि मकराइ कि कु डल । उरि वैजती माल रिदै कुसटामिरिण कमल ।
प्रीतवर पाल कहै कानि मसटामिरिण के
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४४
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निकलंक नाथ जिरिण नाम निजि सूरितिपाख सुहामणा। भालीअल सदा देख भगत भाग तरणा ल्या भामणा ॥२६॥ भाग तणां भामणा ल्यां भूधर दुख भंजण । विहला ना वीठला मुगिति सारूप समपण । साधा नां साजोति रांक सालोक लिये रस । सामी मुगिति- समीपि मुझ समपी जोडा जस । कोडि हेक जिगन दस कोडि तप सरव धरम तीरथ सिंही। कलि मांहि हेक पीरदान कवि नाम सरीखौ के नही ॥३०॥ नाम लियंतां नाम सामि सूझै सहि सूझ। राम तणे रस माहि सेस वूझे सिवि बुझे। परम तणो रस पीय, सदा सिनिकादिक सारा । ब्रम तणो रस ब्रहम ल्यै के ब्रह्म विचारा । नाम नै चरण छोडै नही गग गौरि गावतरी। अहिल्या अने तारा तवै सीत मात सावंतरी ॥३१॥ . सावतरी सामि रा करै वाखाण किताई। रुखमागद इविरीक साव नारद सवाई। पारासुर पहलाद सेस गगेव महेसुर । अरिजरण नै अकरूर व्यास रिषि वारट ईसर । वभीखण लिये ऊवव बकै अति उवारणा अनतरा । जगदीस किया आपह जिसा भगत एह भगवतरा ॥३२॥
॥दोहा॥ भगत हुये भगवंत निज, भगवत करै भगति। निमो निमो हूँ न लहा, ग्यान तुहारा गति ॥३३॥ ग्यान चरित ग्यानह समंद, ग्यान तत त्री नाम । ग्यान प्रबोध सवोज गुरण, रोज करै बह राम ॥३४॥ ऊए प्राणी नां उयै अनत, वैकठि लिये वधाई। ग्यान चरित गुण गाइरे, ग्यान समद गुण गाई ॥३॥
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४५
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| कवित्त ।। ग्यान समद गुण गाइ च्यार मुगित हू चेडे । ग्यान तत गुण गाइ सात सरगा फल झेडे । ग्यान चरित गुण गाइ पाइ लागै परमेसर। ग्यानं बोध सुरगाइ मोख पामै नर अमर। पीरदान ग्यान पतिसाहना करि प्ररणाम लहडा सुकवि। ब्रह्मज्ञान ग्यान दरिसण वड़ी मालहीय हरि नाम मवि ॥३६॥ मवे नाम हरि नाम अध एक मध उचारे। उतिमि एक अति उतिमि सदा चत्रभुजन सभारे। अध सुरणे सहि कोइ अघ मन माहि मिणीज। उत्तिमि भुजन छै उतिमि रिदै विचि राखि रहीजे । अति उतिम भुज न अई औ अई, रोम रोम ऊपरि रहै। जीवतो मुगिति देखे जिकी, साधु सुख अजपा सहै ॥३७॥ अई श्री अजपा जाप अई घण सामि तरणा घरै ।
अई ओ सुख सरग अई निकळक बड़ा नर । । अत्री रुखेसर अइ, हरिखि करी मन मां हस ।
अई ओ इदि भगत वसुह ऊपरा वरिस । नद तरणा वाल अईयो निगुण, धन धन अइयो चक्रधर । महा भगति अई महादेवरा, अईयो दता ईसवर ॥३८॥ अईयो ईस अनत नाम कल्याण निरंजण । देव किसन दीपान ग्यान दईतां व गजण । अलख नील इनील विसव विमोह विज्ञानु । जाणै सहि जीतूआ माल मेरो धन धानु। ससार एह असगौ सगौ दईवि आप वासो दियो । कलिमाहि दुख सिनेह क्या कूड कूड साचो-कियो ॥३॥ कीयो कूड़ सा साच इसो संसार उपायो । जायो सरव जगत अलख रहीयो अरगजायो ।
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अलख नाम कुरण लहै अनंत कहिर्ज केतो एक । जुनी जुनी नह जीव आप वैराट इतो एक । महाराज ग्यान एकोजमन मरैन तिल जितरौ मिटै। एतोज आप प्रो एतली, घणो हुये नह के घटे ॥ ४० ॥ घट केम घण सामि आप एतौ एतोईज । किसनि सिरौ काढियौ तव तेती तेतीईज । नरा नाह नीपनी पार पाडियो पुरुषोत्तम । भगै आदि भी आज अमर अमरा मां प्रोपम । काळरौ काळ जग पळ कहि नद नद अरणमोल नग। जग(प्र)भूत जग बधू जगत जगत मार आधार जग ।। ४१ पाप जगत आधार त्रिगुण राजा जग तारै। जगत सुख जग दुख जगत करतार जुहारै । जगवासी जग वीर, गे मनि पाप जगत गुर। जग रूप राम मारण जगत, जग जीवन जग ईसवर। जगत रै मोह जगदीस ना जगतनाथ जग माहि नर ॥४२॥ " नरा नाह जगदाह अलख अथाह अपपर । वाह वाह लीला विलास,विमल पाणद लिखमीवर । जगत ठाम जग सामि, जगत रोपण जग रजण। जग वदण जग जेठ, जगत भेदरण जग भजरण । जगदीस जयो तू मूळ जग, जगन धिणी तू जोरवर। जग माहि मरै जीव जगत, निमो देव अरिहत नर ॥४३॥ निमो देव अरिहत, पुरुष परधान पुरातम। परमारथ परतत, · परम अणपार पराक्रम । तूं परमिति परतत, तू हीज पर देव पणीजे । पर उपगारी परम, ग्यान पर रूप गिरणीजे । सुर जेठ अने सकर सिको, अहि अमर मानव उरा। परमेस निमो थारी-पहचि, 'पसे परा सिगळ्यं परा ||
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४७
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| दूहा।। परा परा सिगळां परा, तु गरढो गोपाळ । नद महर रे बाळ तू चौद लोक रख पाळ ॥४५॥ ज्ञान सचर सज्ञान है, बड़ी ग्यान पतिसाह । शान चरित मां कहि गुणी, ग्यान जड़ाउ जडाउ ॥ ४६॥ ग्यान गभीर गभीर सौ, उरळी कोड़ि अनेक । पावक साँ ऊन्हो प्रघळ कोडि थोक प्रभ एक ॥४७॥
कवित्ति कोड़ि थोक करतार हेम हुँता ठाढौं हरि । कोडि जम है किसन किसन वाखाण इसो करि। कोडि थोक करतार सव तीरथ पग भारी । अनाथ नाथ अनाथ ना करतो नर सौ नि कीयो। आपमा जोर सरसो अनत कोडि कोड़ि अधिको कियो।। ४८।। कोड़ि थोक करतार पवन हूँता बळ प्रघळ । कोड़ि वधती कोडि गगजळ हुँति निरमळ । अधिको कोड़ि अनत धरणि हुँता खिम्या,धर । ऊँचौ कोड़ि असख वहत नीची कहि अवर । सरसती हुँति विद्या सिरै विमळ अकळ कहिज विसन । सूर सां तेज विणियो सरस कोडि कोड़ि वधतो किसन ॥४६।। किसन नाम कल्पत करै कल्पित किताई । च्यारि खारिंग चकचूरि कर मन हूँत कमाई । सहि वाजी सामटे अमर नर नाग उधेडे । हुये आप हेकली फूक सां अवर फोडे । महि गिल मेह पाणी पवन, सूरिजि ससि भाजे सरै।
भुयण नाथ विद्या तरणी, धरणीधर मनछा धरी ।। ५० ।। 'धरै एह गिर धरण मोह छोडे माया सा । दया विहूँग दई, काम एकिरिण काया सां।
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[ ४८ ] साद कर जम सरिसि महाप्रभ निवळा मारे। करै जम कूकूउवा आज कोई मुझ उवारी । जम-रा जम तूना जयो वडा धिणी तू वाह वाह । कोइ वियो जीव राखै कना महा प्रळे मा माहवा ।। १ ।। माहब - एक मरद देव कोई और न दीसै । लाख चौरासी जीव परम दाढा विचि पीसै । नीइ तुहारी नमो जुग अरण लेखे जरिया । हो दुजा देवतां किसन वेसास म करिया । आपना आप मारै अनत इसी ज्ञान महाराज रौ। माहरौ कत प्यारी मनां श्रीय सुहावै बुरी छौ ।। ५२ ॥ वुरो भळी नह विसन नाम नासति वहनामी। गुरुड सेस गिळि गियौ सेझ वि ग सूनो सामी। जिसी अगै जागती किसन ते निहिडी कीधी। भाजि दीया मुर भूयण एक लिखमी सग लीवी । इनि मरे एक तू उवरै साध न दीसे कोई संत । ताहरी देव वसदेव तरण उ मर ना तोबह अगत ।। ५३ ।। उमर ‘रा उवारणा हेक तु हुतो इ हुतौ । परिष नारि सहि पछ नाग कोई देव न ह तो। नेह ग्रेह पिण निही मोह ममता नह माया। वारिण खाणि वापार काम नह क्रोध न काया । ताहरा चरिति कासिपि तणा हेक न जारणा मुंढ हु। नाम नै ग्राम जइ आनिहीं तई आ प्रातिमि एक तु ॥५४॥ एक अखिलि तूं एक किसन तु अखिलि कहीजे । नीर खीर जद निही दान लीजें नह दीजै। जडाधार सुर जेठ निको कोइ दीह निका निसि । निका भोमि नह निहंग देस विदेस निका दिसि । नवकुळी नाग अठकुळ अनड सरव जीव नासति सिंही। उरिण दोह एक हुतो अनत नरिदि इ दि जिरिण दिन निहीं ॥५शा
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[ ४६
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इदि निहि. नह आदि सीळ असीळति को सुख। दुडिदि चद नही डील भोग सजोगनि का भुखं । साच वाच सवाद वाद इहिकार निही वळि। भुयण तीन ग्या भाजि गोम ब्रहमड ग्या मळिं। ताहरी खवरि न पड़े त्रिगुण तिरिण वेळा किहड़ो इ तंत। ऊ घ मा काइ जागे अलख ऊभी काइ वैठो अनंत ॥५६॥
॥हा॥ ऊभो कांइ बैठो अनंत, निराकार निरधार । पार नि को परमेसरी, वेद कही सो वार ॥ ५७॥ वेद न भेद न पर ब्रह्म, सहज न सील सतोष । मेप नै माप ने महमहण, तु निगुरो निरदोष ॥ ५॥ करम अने अकरम किसन, प्रिनि नै चिति नै ध्रोख । वाप जिनेता बाहिरी, मोख नही तु मोख ॥५॥ ॥कविति ॥
. मोख खमो खम कद निगुण निरपख नरेसुर । निरालव निरलेप अध्रम अछेप सुरेसुर। चिदागद वह चतुर आप विरिण पार अमूल । सास पास विरिण सदा एक एकु असतूल । अण मरण ग्यान अण कसट अश अति उद्यास अनाथ अति । अखंडित रूप अवरण अलख सरव भूति आधार सति ॥६॥ सरव भूरति साधार विसव मूरति निसवादी। आदि पुरुष अविरणास प्रादि वाहिरी अनादी। आदि अगादि अनत आदि हुतो औ आतिम । तु अरेळ अपरेत प्रभु अचेत पुरातम । विगन्यान ग्यान तु हिज विपति तु अछेद अभेद तन । अविगत नाथ केवल अलख, पाप निही तु कोइ पन ॥६॥
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[ ५० ] पन प्रकास अविरणास अलख उद्यास अपपर; सरब वास बसास आस पूरण अति अमर दास दास लीला विलास निगुण ग्रभवास निवारण, ग्रब प्रास निसचरां नास इळा अघ जास उतारण किरिण ठोडि रहै जायो कठ घणी पहचि दातार घण विरिण रूप रेख किरिण दिसि वस निमो निमो तुनारीयरण;॥६॥ नमो नमो नारीयरण इना किम जीव उपाया, अकळ बुद्धि अहंकार नमो नर नारि निपाया, कीयो पाप पुनि कीयो च्यारि खाणे वारण चत्र कीया सुख दुख कीया अनिलि कीधी कीघौ अत्र; भुयण कीया किम करि त्रिगुण जवन देवि सरि जाईया; आदेश नमो तोबह अनत इतरा भूत उपाईया; ॥६२॥ इतरा भूति उपाय एक नवि इंद्री उपाया, दस इद्री दस देव परम करि घणी पठाया; देवा इंद्री दुमेळ कीया भेळा करणा करि, तू सबळी ताहरै सरख वसता एकरण सरि, निगम ही क्रीत माणो नही किसी पार अपार किरि; ताहरै डील सबळी त्रिगुरण पग पाताळ स्रगलोक सिरि, ॥३॥
॥ छंद हणूफाळ ॥ स्रगलोक सीस सुचग श्रादेस तोबह अंग, परमेस पाव पताळ, कहि किसन घर टीकाळ, ससि सूर लोचन साचि, चत्र वेद वायक वाचि । बुद्धि ब्रह्म निसवावीस, अतकरण कहिजे ईस । नदि अधिक नवसै नाडि, धन धन अंतर धाडि । दधि कूख है जम दाढि गिरिग सरब दांणव गाढ़ि। है हंस माया हास, सहि पवन केसव सास। हिदी धरम विगियो रूप, प्रलोक छात्र अनूप ।
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[ ५१ ] जस भगति जादव जारिण, वरणराय रोम वखारिण। वपु वरण वीरज वारि, नह वर रामा नारि। करतार इंद्री क्रम, पळ में न दीह परंम । प्रभु तरणे हाड पहाड़ि जपि अगन मुहडौ जाड़ि। अति लाभ कहिये लोभ, सोय अहर साहवि सोम । महा तत्त चेत मंडारण, परमेस डील प्रमाण । पर मुख पाप पछारिण, बळि गयरण बांह वखांगि। करतार मेह करति, व्रम चिहुँ रसा वरसंति । परमेस पार अपार, वैराट घट विसथार ॥ ६४॥
॥ कवित्त ॥ वडी देह वैराट, घाट तोवह घरण नामी। हूँ पापी हेकलौ, सुजस नह जाणा सामी। भगत भलो नंद भाग भगत ग्वाळ्यिा भरपीजे । वडा भगत भगवान रा, राम रीछा सिर रीजै । भौल ही भगत थारै भला, कैये ना मौजां करें। हमां सत कूकि विरता हुये यैरै काजि अवतरै ।। ६५ ।। येरै काज अलेख, अनत फेरा अवतरिौ । भगतां कजि भूधरा, कव हैमर रौ करियो। हस अने वाराह, त्रिगुण अवतार तुहारा । तू ना दीठौ तिका, जिका जीता जमवारा । नव खंड दीप सिगळा अनड़, बह पांगी सांबोडिया। केई वार किसन कलिपत करि प्रयाग तणे वड़ि पौढिया ॥६६॥ प्रयाग तरणी वड़ि पौढियौ, पूरण ब्रह्म परमेस । आवी दाइ अतीत ना, सेझ कीयो ले सेस ॥६७॥ साहिव सूता सेससिरि, करम न दरसे कोइ । कान तणे मल सां किसिनि देत उपाया दोड ।। ६८ ॥
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[ ५२ ] आतमि देत उपाइया, पौरिसि बळ अरणपार। मेध कीटग जीप कमरण, मध कीटग मैवार ॥ ६६॥
॥ कवित्त ॥ मघ कीटग दे मार हार देवता हुई हरि । त्राहि त्राहि सुर तवै, किसन वैहिलो ऊपर करि । वहमि जगायो विसिन, परम कोपियो ईसर परि। महा कोप मन माहि, कध केकारण जिसो करि । बह सामि अने दारणव बिन्हइ,घरण जोर जूटा घरणी। हेकला विढं के जुग हुआ, जळ मथीयो जळनिधि तणौ ॥७०॥ जळ माहै जगदीस विढे मघ कीट विभाडे । वतलावें वेसा सि, पछै दाणवा पछार्ड' । मध कीटग रौ मास करै धरती करणा कर। देवां नै तिरण दीह, वडो सुख दिये विसभर । सहि जाव ग्यान सनकादिखा जण२ सरिसौ जू जूनी। सुर जेठ भीड पडती समो, हस रूप ठाकुर हुऔ ।। ७१ ।। हुऔ देत हरणाख, ब्रह्म नै सोच हुनौ वळि । समद सात साकीया, रैण ले गयो रसातळि । इद्र वरण औद्रके, बहत देवी घटियौ बळ । हुऔ राम वाराह, जमी कारण मथियौ जळ । आधारि दाढ़ ऊपरि इळा, धरणी धरि तारी धरा । हरणाख मारि जीती हरी, प्रघळ जोर परमेसरा ॥७२।। हैके परमेसर कछ हुो, अवतार नमी हरिः। इंद निवाजण अरक, अमर तेडिया अपपरि । वाम तणे वासत, राम मथीयौ रेणायर । दईतां रा तिरण दिवस, वहत मन मोहै बायर। विलौने वार बळिराव वहि सुरां जैत सीता वरै। रुघनाथ तिकै दिन राह रो, धडसां सिर अळगी धर॥७३॥
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[ ५३ ].
अळगा वेद अनूप, राम ब्रह्मा सू रहिया । हूँ वेदा वाहरू किसन ने इण पर कहिया । सोच घणो अति सबळ, प्रघळ देवा तू पड़ियो। हुवी ब्रह्म बुध हीण, इसौ दाणव प्रा भिडियो । असुर ने कीयौ तीरथ अविल, समुद डोह अति कीध सर । फुक सू सखासुर फाड़ियौ हुवो मछ अवतार हरि ।। ७४॥ हरि नै प्यारी हेत प्रथम पहिलाद पियारो। पुणे अम पहिलाद मुकदहु वेली म्हारौ ।
तिण वेळा तुरत प्रभु थभ माहि प्रगट्ट । इधकि हुई आवाज वडो कोई ब्रहमंड फट्ट। तेत्रीस कोडि लिखमी तवै हुनौ कोडि जमराव हरि। प्राजरी घणु अध्रीयामरणी नारसिंघ थारी निजरि॥७५॥ निजर नमो नरसघ कोप दारणव सिर कीधौ। लाधा थारा लखरण, राम भगता सिरि रीधौ । ग्यान आप गाजियो, हाथि हरिणाकस हिंगियो । चू नाळि जिम चाबियो खरी ते काळि जि खिरिणयौ । करि कोप मुख रातो कियो तू नरसघन लाजियो। पहलाद हुवी वाली प्रभु, सगे भाई ना साझियो । ७६ ॥ सगी, तुहारै साच, कूड ऊपरि नित को। कूड साच ते किया इसा विदि तूना प्रोपै ।
वामरण ब्राह्मण महा अविगत महाराजा। आव आव आहचे, कर रावा इदराजा । बलि राउ जिग न कीधा बहत इद्रासरण डूलं अही। वामणो राम आयो वहै छलिस वलि राजा सही ।। ७७॥ बलि राजा वाधिवा हुयो खाटरौ वडो हरि । आयो प्रोळि अनत, किसन इहडी तोफो करि।
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[
५४
]
वाचा ले वाधियो बडी ब्रहमड विलागौ। चलण हेक हरि चापियो भलो भूगोळ सभागो। हरि चलिणि हँति गगा हुई, साचा सां हिति साधतो। तू आप आप वाघौ त्रिगुण, वलिराजा नां बांधती ।। ७९ ॥
वलि राजा ना वाघियो, रहै इद को राज । कंटक गुर कारणो कीयो, सो वैराट सकाज ॥७६|| धन धन गगा तूझ धन, निमो भगति तूनाउ । प्रेम धणे सां परसिया, परमेसर रा पाउ |८०॥ तूंना के कीधौ त्रिगुरण, कहि तू आयो काह। नाग सेस जाणे नही, रिषवदेव रा राह ||८||
॥ कवित्त ।। रिषव नाभ सुत निमो अलख अरणजीत अरणकल । ब्रह्मा सेस महेस दत जोगी थारा दळ । इसी आप अविधूत जिको अनसोईया जायो। वीठुल सा वादतै, गरव गोरखि गमायो । कमळी भगत जीतौ कम्ह त्रिपुरासुर जिसतांन तन । इमिरित वावि सोसी अलखि,विषभ रूप वरिणयौ विसंन||२|| विषंभ प्रमेसर वाह, भीड़ सकर री भागी। प्रिथी दुहत प्रथु निमिष इक बार न लागी । वासिटि इ दि वाछड़ा दईत देवा गमियो दुख । राजि वडा पिथराउ, सरब जीवा दीन्हो सुख । सगर र घणौ प्रौळादि सिर, कपिलि महाप्रभ कोपियो । इद रौ कीयो ऊपर अधिक इया ग्यांन दे ओपियो ।।३।। इयां ग्यांन पापियो, महा ब्रह्मग्यांन कपिलि मुनि । कपिलि मात धन करम, पूत पायो अगले पुनि ।
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[ ५५ ]
नर नाराइण निमो, ध्यांन धरियो धरणीवरि । पेखि रूप परम रो, प्रघळ कापियो पुलिंदर । करतार भीर भगतां करे साधां रे साचो थश्रो । ग्राह ना मारि समपी सरग हाथी रौ साथी हुआ ||४|| हुप्र रांम दुजरांम ब्रह्म र मन मां वेघौ । फरसी साही फरसि, खरी खत्रियां सिर खेघो । श्री अलाह प्रणवाह निमो जम रेणां जायो । -देजां सरिसि वर दियरण, प्रसख जिगि करवा श्रयी । पिता री वेल करिवा प्रभु गह पौरिस मां गाजियो । वाह हो वाह फरसा ब्रह्म, सहसवाह नां साझियो ||८५|| साभि देत सांमळा, भीर समंपी भगतां नां । रामचंदर राघवा, दियो दरसण दसरथ नां । रुघनंदरण रुघनाथ, निमो रुघपति नरेसर | रुघराजा रुघराउ भूतभव भेख विसभर । किसन रो सुरे दरसण कियौ कर जोड़े कीरति कहै । करतार काजि दसरथ कन्ही, विसवामिति आया वहै ॥ ८६ ॥ विसवामित्रि कारणे, प्रभु चडियो जिगि पालण । जां मारं तां मुगति, आज ताडका उधारण । श्री अहिला उधरी, किसिनि पनि पावन कीधी । कीर गियो कविलास दान लेवे कठ दीघी । जगदीस जनक र ज्याग मा आयो वहे उतामळी | भाजियों धनख रुघनाथ भडि, सीत परणियो सामळी ॥८७॥ सीत पररिगयो सांम, गरब दुजरांमि गमायी । हुन अयोध्या हरख विळे कोसल्या वधायो । अमर करें आलोभ मोहरि मंथरा नां मेली । के गहि मंथरा कहै, हिमैं हरि ना वन हेली । के गई अरजां करण, वडी राउ दसरथ नां ।
वनां हि वनवास दे, भोमि समापि भरथ नां ॥८॥
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[
५६
]
भरथ पिता दुख भाळि ही वीवुळ वनवासी। सरगि गियो दसरथ, अनत कीधी अविणासी। सीता लखमण साथ, परम श्रे पदवी पाई। गोह भील गोविंद, रहे रन मा रुधराई। भाद्रवी गोठि कीधी भली, विसन थियो भोजन वडे । सिर जटा राखि दसरथ सुतन, चित्रकोट ऊपर चढे II चित्रकोट सा चले व्याधि दारणव विधांसरण ।. अगथि धनष प्रापियो, मारि इद रो रिपि रामण । सूपनखा रो स्रमण, नाक वाढियो निभै नरि । निमो अकलि रुघनाथ अनत पचवटी ऊपरि । खर सघर दैत दूखरण तिसर, दही वेल दहसीस री। चउदह हजार खळ चूरिया, जैत जैत जगदीसरी।
॥दोहा॥ जैत हुई जगदीस री, रावण रै मनि रीस। तूं मारे मारीच नो, सीत हरै दहसीस ॥ ६१ ।। लिखमी ना हर कुरण लिये, कुरण जीप करतार । कटक मारण कारणे, वीठळ कीयो विचार ॥१२॥ किसन अने लखमण कहै, करा महा जुध काम । सीता वाहर सामळो, रोस घणे मां राम ।। ६३॥
॥ कवित्त॥ रामचद रिम राहि, आइ जटाइ उधारै । कमध छेदि कर कापि, तुरत सवरी ना तार । धन सवरी रौ धरम प्रभु महाराज पधारै । बाळि बाण सावहै साध सुग्रीव सुधारै । सुग्रीव दुख टळियौ सही, कहर वाळि सिर कोपियो। हरि मिळे आवि हणमत सूअधक पराक्रम अोपियो ॥१४॥
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[ ५७ ]
हणमंति किया हमल, सहल दारणव संघारे । कंघी नाखि असोक, पछ हरि चलरिण पधारे। मधसूदन मछरियो, पाज बांधै दधि ऊपरि । साथि रीछ कपि साथि, किसन आयो पारभ करि। लाछिवर सहल भेळी लका,पळचर खेचर पोखीया। तेत्रीस कोडि सुर तारीया, मारि देत ग्रह मोखीया ॥५॥ असुर मारि इंदजीत मेघ महि रावण मारे । निसचर नीचा नाखि, सत्र इ दतणा सवारे । रावण कु भकरण, मार कीधा मळ-माटी । दीयो वभीषण दान, खरी ते कीरति खाटी। सीता सहित कपि साथि सहि वैकु ठनाथ बधाइया । चउदमै बरस वे चक्रधर, आप अजोध्या आइया ॥६६॥ आप निमो अवतार आज ऊधरी अजोध्या । जिगि कीधा जगदीश जीपि लवणसुर जोधा । च्यारि वीर चत्रभुत्र, लाछिवर जिसी लखमरण । भरथ आप भगवत, समर परमेस सत्रघरण । संखासुर गया सुर सारिखाँ, दान महा उत्तम दीया । करतार इसी पीरदान कहि कई देत तीरथ कीया ॥१७॥ निमो राम बलिराम भले सकरखण भाई । निमो सेस सारीख, हाथि प्रावध ग्रहीया हळ । वडा देत ग्या वहै, निमो बळभद्र महावळ । रेवती-रमण सुत रोहणी, निराळव निगरब नर । काळ घण पूत बधव किसन, मयण रूप मदमारणगर ॥९॥ मयण बाप महाराज, गदा सख पदम सवाहे । चकर झालि चत्रभुत्र, ओपि कु डळ पति आए। आठ सिधि नव निधि, सु पिरण लीधे साथै सही। साथै सात सरग, विसन आया वसदे वहि ।
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[
५८
]
वसदेव घरे पाया वहे, तु होज रजोगुरण सत तमो। देवकी वाळ धन देवकी, निमसकार तुना निमो ||१६|| निमो निमो नान्हिया, किसन कनहिया काळा । प्राण जसोदा प्रभु, विसन नंद आगरण बाळा। सकटासुर साझीयौ तैईज मारीयौ तिगवत । 'पळ गमीयो पूतना, वडो मांडीयौ सदाव्रत ।
रोज रा रोज गाजै असुर त्रीकिमि मारै से तरै। पालणे माहि हीडै प्रभु, घण नामी भगतां घरं ।।१००। भगते भी भाजियो, नद उपनंद निचीता । हसै जसोदा हीयौ, सरव प्राणी ग्रिह सूता । माटी खायै मुकन, देव नर नाग दिखाळे । मुंह मोटो महाराज, वसुह आकाश विचाळे । ओळमा किसन लावै इधक, छीका छोडण झालि है। विज रे त्रिया आवै विढण, पूत जसोदा पालि है ॥१०॥ पूत जसोदा पालि, करें चोरै घी चाटे । माखरण लूट महर, अधकि बाकळा उभाटै । किसन धवै कूकड़ा, वाट बांधै विगताळो । दही तरणी ले दारण छाछि ढोळे छोगाळी । गुयाळिया साथि भूखौ गयो धेन साथि घेना धरणी। वांभणा जिगन बोया बहत उधारी वाभणी ॥१०२॥
॥हा॥ वहन उधार वाभरणे, जोइ जीमै जगदीस । साच पियारो साइया, कूड़ करी की रीस ॥१०॥ भगतां रा घट भांजिवा, आयौ ईद अजाण । औ गोरधन उपाडियो, कर सखरौ कलियांग ॥१०॥ चरण नद ना ले गयौ, ब्रहम ले गयौ वाछ । वरिणि बहिमि ही वाचियो, मिनिखि नही तूं माछ॥१०॥
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[ ५६ ]
॥ कवित्त ॥ माछ सरीखो महर, तुहीज वाराह जिसौ तन । जादव रिमियो जेठ वाह मधवन विदावन । विज वैरां रा विसन, चीर झडप व्रख वसियो। ऊं नां तूठी अनत, हुग्रो मन मांही हंसियो। वन माहि वजाड़ी वासळी, महीयार तु सा मिळे । आजरै घणे हुइ ऊलट, व्रम मूरति साम वळे ॥१०॥ व्रम मूरति व्रजराज, निरति खेलियो निरतरि । राम वधारी रात, हुई जुग लाख तणी हरि । रास निमो रहमाण, मुगति दीन्ही महिलां नां । गोकळ मां गोविंदो, वळे मिळियो विहला नां । तोवह वखत ऊखळ तणे, सवळी राढू साधियो । जसोदा जोइ पीरदान जण, बहनांमी नां वाधियौ ।।१०७॥ बहनामी वाधियो सु तन कमेर सुधरिया । हरि सारीखा हुआ पाप अगिला परिहरिया। दड़े काज जळ डोहि, नाग नाथियौ निभै नरि । पुठे चढियो प्रभु, तुरत तिखराव गयो तरि। ब्रिजराज जुओ ब्रिजवासियां, मोहण रा निरखौ मता। कमाळी ब्रह्म डडवत करै, देखरण प्राया देवता ॥१०८।। देव नंद रै दुवारि, करै औठा कितराई। वैकुठ आवी वहै, कमी न दीस काई । गावै तु वर गीत वेद उचरै ब्रहमां। निमो नद रा नेस आज ऊतरै अक्रमां। किसन सिर फूल विरखा कर, अमर तमास पाइया । निहग धरि वीच मावे नही, सुरे विवरण सवाहिया ॥१०॥ सुरा तणे सिरदारि, असुर फाड़ियो अघासुर । पछे वगासुर पाड़ि वळे मारीयो वछासुर ।
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[ ६० ]
रासि जसहि रहिचीया पलंव वुसट सापडियो | मधुवन मा माहवा, लाख देता सू लड़ियौ । वोम सखचूड सरीखा वहे, घेनक सरिखा दाहिया । निसचरा घरणां मोहिए नरद गोकल बैठे गाहिया ॥ ११० ॥ गोकल मे गोविंदी कंस मथुरा मा कोपै । महा देत मन मोट अधिक बळ ग्रहिया श्रोपै । कंस ने नारद कहे दळे कान्हड देता ना । उरा तेड थीय, मारि वळिभद्र माहव ना । उपनंद नद कान्हड कुंवर सहि दास ग्रहीरिया । कंसासुर कोप करि नै कहे, किसनल्याव कुरिया ॥ १११ ॥ कहे प्रेम अक्रूर, मरण माणो श्री देता री अत, सभा देसै
घर
माँही । सिगळा ही ।
- किस जवाने करें प्रघट दाखियो पहिलो ।
.
" देत भरणे अकरूर विसन ना ल्याव वहिली ।
ऊपरा
अक्रूर चढे रथ ऊपरा, खडि ग्रायो गोकुळ खरी । पेखियो गाय दुहती प्रभु, ग्रई भाग करूर री ॥ ११२ ॥ अई भाग करूर, किसन मिळियो स्रव कारण । वहनामी वोलियो, मदन - मोहरण कस ऊग्रसेन री आरण, वसह मात पिता ही मिळा चर्वे चत्रभुज नद साथै चढे, चढै ग्वाल दीनदयाळ मथुरा दिसो, खेध धरणे रथह खडे ॥११३॥ रथ ठाभो रहमाण, मुरणे अकरूर मुरारी । करो सिनान किसन, भली ऊजळ जळभारी । जमरणा मा जगदीस, सेस हि ऊपरि सूता । इमि दीठा प्रकरूरि किसन श्रादेस करता । अठयासी सहस रिपि ओळगे सरब कोडि तेत्रीस सुर । सलामा करे ब्रह्मा सिभू, मिनिख देव श्रहि लोक मुर ॥११४॥
।
मारण ॥ वरते ।
वैरण चडते ।
वळभद चढे ।
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[
६१ ]
मुर भुयणां रा महत तोब दरबार तमारा । कहै मेर किमेर, हमें गिमि पाप हमारा । उदधि सात सिधि प्राठ अधिकि लोटे इंद्रादिखि । सहि नाचे सुर त्रीश्रां, राग ऊचरे द्वादस रिखि । छडकाउ करें वारह सघरण, वेद च्यार नव व्याकरण | किसन रा पाउ गंगा कन्ही, प्राच जोडि ऊभै रण ॥११५॥ अरण गुरड़ ओळगे, दिये परिकरमा दिरगीअर । सिनिकादिखि समरा, विरिद दे बारट ईसर । किसन सामि रे कन्ही, सपत रिषि करें सलामा । जपै तिथकर जाप, तोब ताहरा गुलांमा । नाग सुरनाय माणस नही, साचा ना दरिसरग सहल | अकरुर भगत आदेसियो, महराजा भामी महळ ॥ ११६ ॥ ॥ दूहा ॥
महाराजा भामी महळ, नर सुर नागा तूर । कुशळ नही कंस केसरे या दाखै प्रकरूर ॥११७॥ चडि अकरूरि चलावीया मथुरा दिसा मुरारि । मिळीया परिगट राह मा, हुई धीक मन्हहारि ॥ ११८ ॥ प्रभु झड़िपिया पगरण कहो कस रइ काह । नरहरि ग्वाळ निवाजीया सहिस मये सिर पात्र ॥ ११६ ॥ आए मथुरा मे अनंत, तोब पराक्रम तार । हरि लुटाई हाटडा, बहनामी बाजार ॥१२०॥ माळी फूल समापीया, कुविज्या निमो कपाळ । भगता सु भूवर भलो, किसन दईतां काळ ॥१२१॥ ॥ कवित्ति ॥
किसन दईता काळ, साम कुविज्या रो साथी । पाच मल पाडीया हेक ते हरणीयो हाथी । बाथा आयो वाळ प्रभु चाणोरय के 1 ग्वाळ अने गोविंदे घनख भाजीयो घर्केहाँ ।
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[ ६२ ] अंकुर वरण साचो अवल हरि रौ मामी हारीयो । किसन नां देखि कंस कांपीयो महल तणे विचि मारीयौ ।।१२२ महल तणे विचि मारि घणो धोसीयो बडी घर । सहस आठ संघरै असुर सहि कीधा अमर । ऊधा देखि अलाह इळा उगरै नां आपै । वंभ संभ दे विरिदि सहस दस घेन समापे । अकरूर घरे आया अनंत विकै मात पिति विळकळे । कूबड़ी हुँति कीधी क्रिपा माहव भगता सा मिळे ॥१२३॥ मिळे संण माहवा दहे वसदेव तणो दुख । मुमा पुत्र मेळिया सरस मां ना दोन्हो सुख । गुर रा बेटा गया प्रभु तू लायो पाछा । ब्रह्म सुतन दस वळे अनत ने अरिजण आछा। मछकंद सरिस दीन्ही मुगति, काळ तणौ सिरि क्रोधियो। जुरासघ इसौ सवळो जवन, लिखमी वर ना लोधियो॥१२॥ लिखमी वर लोधियो, लखरण देवतां न लाधा। पांडव वाल्हा पाँच, मया तो ना वह माधा । प्रघळ चीर पूरिया, परम पेखियो पंचाळी । पांडव दाखै प्रभु, वेगि पाया वनमाळी । जुजिठिळ भीम अरिजण जिसा, जण जीता अरि जेरिया। भीषम द्रोण दुरजोध भ्रिगि, खोहिण अठारह खेरिया ॥१२॥ खोहिण खोहिरिण खळा, सामि सांमठा संघारै। दिये सदा, दान, त्रिगुण विधु राजा तारे। तरि तरि जमणा तणे, कर कीळा करणाकर । छाया पाडळ सेझ, विसन तीवह राधावर । विज तणो देस तजियो ब्रहमि, अग वाद तो इद सा। कुरखेत माहि मिळियो किसन, निगुरण जसोदा नद सा ॥१२६।।
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[
६३ ]
नंद तणो नर नाह, रीछ सां भिडियो राघव । राम तर कजि रांमि, निगुरिण नाथिया बळव नव । इळा तरणी अवतार, सामि श्रारणो सतभांमा । घर सिसपाळ सिंघार, रुखमणी पिरणी रांगा । कालिंद्री विदा भद्रा कु अंरि, कहि लखमरणा क्रिपाळ ₹ । रीछड़ी नाग जीती निमो, पटराण प्रतिपाळ रे ॥१२७॥ पटरांण प्रतिपाळ, सील सहिजे सारीखे । मुद रुखमणी मात, श्राठ प्रभ सांमें ईखे । नरकासुर दीकरी, महरि बूसट सां मारै । सोळ सहस कसौ, साम गोपियां सुघारे । जदरथ सलव बुलबुल जिसा, दईत किता ही दोटिया । कोपियै किसन झाझा करग, बाणासुर रा बोटियो ॥ १२८ ॥ वारणासुर वोटियो, साघ चेतियौ दळे देत त्रकदत, खळा ऊपरां कासीपति कापियो, तास सुत दहे देत दीकरी, अगिन क्रितीया ऊथापै । (ते) कीया काम वहिया कटग, करता कितरा क कहाँ । ताहरा विसव रूपी त्रिगुरण, नाथ प्रवाडा ना लहां ॥ १२६॥
सदा सिवि । हिमैं खिवि ।
सहर समापै ।
नाथ प्रवाड़ा नमो, विसन ताहरी वहै वस । अखिल रूप श्रतमा, श्रेक वारण सा गयो अस । कलिजुग लागो किसन, वचन कहियो नद वाळे । जुजिठळ म करे राज, हाल जाया हीमाळ । पाडवां सरग पोहचाडिया, पाच पदारथ पाइया । जगनाथराय जगनाथजी, श्रनत उडीसे ग्राइया ॥१३०॥
॥ दूहा ॥
अनत उडी आइयो, श्री वहनांमी बुध । जै जीतो खापर जवन, जग जीतो विरण जुध ॥ १३१ ॥
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[
६६
]
वाजा अति वाजसी, भेर मादळ नै भूगळ । काळ सख अनेक, ताम धूजसै रसातळ ।। नीसारण रुह कापै निहथ, सहि जारिग गाजे सघरग। वरघू दमाम करनाकि वह, धुरै ढोल कसाळ घण ॥१४॥ केई ढोल कसाळ, घरा वहमड धडक । सुरणाय सालुळे, राग सीधूयो रहक्क । वीर हाक तिण वार, देव दारणव जूटा दळ। वाजै घाउ निहाउ, हेक थवाह करै छ । हीसुए विढ भड हस रा कुत कुहाड जुध करै। त्रिधारा खडग वाहै त्रिगुरण, त्रिगुण हाथि दारणव तरै ।।१४।। त्रिगुण किलग रिणिताळ विन्हइ भिडिस अतटीवळ। तरुमार त्रिगडा, विळ विढिसै नर विमळ । कई ढळा काकरा, लाठी लोढा सा लडिस । सहिसे घाव सूरमा पुरिखि पडिस गज गुडिस । किलग सा कव्ह करिस कहर, फोजां निकटक फाविस । पहाडा हति लडिसै प्रभु, असुर अमांडै आविसै ॥१४४|| असुर अमर पाहुड़े, असख भड गुड भिड प्रत। रुड मुड रडवड, विमळ नदीपा वहिस रत । कंध सघ कडिडिसै, हाड मुडिस हेकारा । प्राविटिसै असराण घमक लेसै घोकारा । चत्रभुत्र तणा वहिरी चक्र, पडसादा पडिस पका । मलेछा तरणा मुडिसै मरट, घडा तरणा अति घूबका ।।१४। घडा तणा धूवका, जवन दळ पडिसै जाडा। अइयो निकळक अलख मुरिडि नाखे खळ माडा । केई गिले व्रम कीच, हुवै दस कोड़ि पजाहर । जवन दळां जग जेठ, विसन मारै बवाहर । विळग रौ नास करिसै. किसन, असरा नाद उतारिस । पचास कोड़ि दाणव-प्रचंड, सत गुरु पाप सिंघारिस ॥१४॥
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[ ६७ ] सतगुरु तणा हुसेन, भला दइता सां भिडिौ । हणमत करिसे हाक, प्रघळ पापी नर पडिसै ॥ असरां रै ऊपरा, दइव आपरा फिर दव । कूडा ना कापिस, प्रभु जण लडिस पाडव । हरि साथि साध सवळा हुया, जगजीवन तारण जगत । किलग ने कस भेळा किया, भूधर रा जीता भगत ।।१४७॥ भूवरजी नी भूप, तना पूर्ज दशरथ-तण । गुण गध्रप विरिण ग्यान, जख कोदर पित्तर जण । केई देव रिषि कोडि, प्रघळ चारण सुख पाये। माहव नां मोतीये, ब्रह्म माहैस वधाय । कळि जुग तणि जड काढिवा, यावी भलो अचकरी। फर वरी पहवि ऊपरि फिरै, निमो फौज निकळक री॥१४८।। इगि निकळक नरेसि, भ्राति सिगळो ही भागी। हुया हरखि पोछाह, जोति अति घरि घरि जागी। इळि नोळो अति अव, केई ऊगा कळिपतर । अन्न नीपिजस अधिक, प्रैज पालिसै परमेसर । ससि नणी कलक जाइसै सही, गोतिम त्री अहिला लजा। वधायौ प्रम पदमावती वळो सतवती सुरज्या ॥१४६॥
॥ दूहा ॥ ग्रे सतवती सुरज्या, नरिद किलग री नार॥ इण निकळक रै ऊपरा, अति प्रारती उतार ॥१५०॥ इम्या लेसै उवारण, तू आतिम आधार । सावत्री साराहीयो, श्री निकलक अवतार ॥१५१। नीको जगरौ नाम निज, परिणजे निकळक पात्र । सहि छात्रा ऊपरि सर, श्रिया कत री छात्र ॥१५२||! रीत भली की रामचन्द्र, अधिक अमोलक ग्रह । वसु हुँ तणे सिर वरससै मागै तारा मेह ।।१५३||
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[ ६४ ] माया सहि उतिम मधिम, प्रभु सरीखी पांति । आ अजरी लागे अधिक, भगतवछल नां भ्रांति ॥१३२॥ खरतर लू कां तप रिखां, माहो माहि दुमेल । जैन धरम कीधी जयो, गेम कपट रै गेल ॥१३॥
॥ कवित्त ।। गेम कपट र गैल, धरम थमीयौ धरणीधर । अई बुद्ध अवतार, आव आलम ले अमर । इळा हुई अप्रवीत, दुजा धेनां वधियो दुख । घरम सत धूजीयो, सरस पापियां ही सुख । वधियो व्याज, सच साक्रीयो खुरासारण हुतां खडी। तेत्रीस कोड चाडी तुरै, चचळ सेत ऊपर चडी ॥१३॥ चडि वेगी चक्र धरि, कर काई ढील करता। गळी वढं गाय रौ, वळे ब्राह्मण विरत्ता। अनत जणांरी आण धरणी कर खवर धरम री। वेद व्यास री आरण, प्राण वारट ईसर री। मेघ रिप अन मार्म घड़ी, घरणी वाट जोर्व घरगी। तूं हम जेज राख त्रिगुण, तन प्राण भगता तरणी ॥१३॥ भगतां कजि भूधरी, कटक करिस करणाकरि। तीन भुवन तेइस्यै, नाग देवता अन नर । वळण करी वाराह, वाह राज री वडाई। अणवर ब्रह्मा ईस, साथ पाडव सगाई । मेघ रिष सीस करस मया परमेसर गुर परणसै । विसंभर वास वैकुठरी, वळि राजा नां वगससे ॥१३६।। वळिराजा नै बगसि कोड़ि इद्रासरण काइम । करिसौ फौजा कई, देव कद चडसी दाइम । सतरि हजारहु सैन साम कदि लेसौ साथै । खड़ग त्रिधारी खरी, हमै कद ग्रहिसो हाथ ।
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[ ६५ ]
करतार कोप करिसौ कना, वळे साध कसिस विसन ? काळीगी देत राजस करै, क दोयाड लडसौ किसन १३७॥ किसन साथि सुर कोड कोड़ राजा के राणा। कोड सेख कापड़ी, कोडि मुहम्मद मुल्लारणा। मूसा कोडि मरह, पीर पेकबर प्रघळ । कोडि रीछ कपि कोडि, दईव ताहरा निमो दळ । सुर जेठ कोडि गिरवर समद, इद्र कोडि रुद्र कोडि अहि। लेखता अत लाभ नही, काइमि दळ अगसार कहि ॥१३८।। काइमि कळक रिस कम्ह, साथ वलिभद्र वभीषण । भरथ साथि भीषम, साथि सुग्रीव सत्रघण। हरि साथै हणमत, वहत जोधार महाबल । सात सरग हिज साथि त्रिविधि ससार तळातळ ।। नवनिधि नवैइ ग्रह नाथ नव, जोगी अति गोरख जिसा । पछिमि सा प्रभु खडिस पवग, दळ चलिसै पूरब दिसा ।।१३।। पछिमि तणी पतिसाह सेन मेळ्यिा सप्रारणा । परमेसर परठिसे, पूरब सामहा पियारणा ॥ सान वास सूवास, फल अहि वेल तणे फळ । पीपळ तरण पहप, सुजळ जलनिध तरणो जळ । हाथरणी तणे पय होयसी, धरि सिणगार सु धारस । निकलक तरणे ऊपरि निपट, इमिया लूण उतारस ॥१४०॥ इमिया लूण उतारि, ईय निकळक रै ऊपरि। सत घरम सतोष, किसन ऊपरा चमर करि । प्रो अवतरियौ अलख, किसन रे काने कुडळ ॥ कलिंग सोस करतार, अनत चढियो अतळीवळि । ब्रहम कीच सरिस ध्रवस विसन, ठावा राखस ठेलसै । पळचर अनेक भ्रख प्रामस, खेत उजेपी लेखसै ।।१४१॥ किसन उजेणी कलिंग, आम सामहा पाहुडिया। नारद हसियौ निपट, जवन नै निकळंक जुडिया।
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[ ६८ ] तू अकल मल आतमा, तू सबली ससमाथ । तीन भुवन श्रवै तना, नाग नरा सुर नाथ ॥१५४॥ ग्वाळा साथै गोविंदौ, गोविंद साथै ग्वाल । तूं स्याळां ना सूर करै, सूरां करें ले स्याळ ॥१५॥ मरद झाल महिला करे, महिला करै मरद । तू प्रागै दसरथ तरणां, राकस थाये रद्द ॥१५६।। असुर मार तू आतमा, निमो तुहारा नाम । मारै ता समपै मुगति, राकस तारै राम ॥१५७|| अघ्रम करै अन्याय अति, नाख नही नरिग। साध रहै ससार मा, राकस रहै सरिग ॥१५८।।
कवित्त ॥ राकस रहै सरिंग, घणो गरढी घणनामी। तू सील साहिबा, जून रिणि अन्तरजामी। तु न्यायी नारियण, अंक तू नहीं अत्याई। गरव पहारी ग्यांन, भरत सत्रघण रौ भाई। सुहिद्रां वीर सरवरो सदा, भद्रा तणी भरतार भड़। सिव तरणी मित्रसुर जेठ रो, विसन करा कुरण तूझ वड़ ॥१५॥ विसन तूझ सिव ब्रह्म, श्रेव करता पड सूका। दैत तणे पहलाद, नाम 'ताहरा न मूका। अरिजण बळ आखियो, सामि तूना नह छोडां। तुझ तरण तुडतांरण, हम कुण करिस होडां । सत नै घरम सतोष सहि, सीळ साच सगळा सधर । तत पाच तीन गुण महा तत, श्रेवे तोना सखवर |१६०॥ सख तुहार मुकरि, वळ चक्र पदम विराजै । हरि-गाकस ना हण, ग्यांन पोरस करि गाजे । हुरी सीह हैरान, देव सहि तोहा डरिया । दारणव सहि दाटिया, अंक पहिळाद उधरिया। .
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[ ६६ ]
गोविंदा नमो किम करि ग्रह, तीन भुयुरण रा राय नां । तू करें बेल ईसर तरणी, तूं मुरडे
महमाय नां ॥१६१॥
रखवाळें ।
तू मुरडे महमाय, रुद्र मरतो तरणी सुग्रीव तुरत, तू हीज सवळो दुख टाळे | सू पतिसाहा पतसाह, तू हीज राजा तू राणो । तू गोकळ री ग्वाळ, किसन नद रे कमारणौ । जगदीस ग्वाळ जीवाड़िया, दहन पियो भी डारियौ । पहिलाद सरिस चार्ट प्रभु, ते अवशेष उवारियो ॥ १६२ ॥
तू अवरीष उधार, जो न तजसे थारा जरण | तू हूँता त्रीकमां, बहत प्रांमीयो वभीषण | तू ब्रह्मा रौ तात, नमो नारीयरण तरणौ नभ । हुम्रो वडौ लहरिगयो, पांच पांडव सरिस प्रभ । गुर तरगा पुत्रजमपुर गया, सहल मात कीधा समा । जीवाडी त्रिया जैदेव री, तैहोज मुझोडी त्रीकमा ॥ १६३ ॥
तू त्रीकम दातार, अटळ घू कोधी अमर । दसरथ रा दीकरा, कीर्ये पहिलाद फुलिंदर । भलो कमाळी भगत, किसन सरिखो ले कीधौ । रुखमांगद ना राम, दान वैकंठ रो दीधौ । म्हाना मौज दोन्ही इसी दूजो कुरण हुइसे झलु । पीरदास सरिसि तूठो प्रभु, चौरासी कीधी चलू ॥१६४मा चौरासी चक्रधर, घरणो वाली रिजियो घर । मैं नह भजि निगुण, तना तजियो दसरथ तग । प्रति कीधो इनिग्राउ, कदे तीरथ नह कीधौ । हैं इहड़ो हरि हरे, दांन अन दान न दीधो । पापरं सगि वैठौ प्रभु, कहो मुझ प्रकरम किसी । मोकळा जीव मैं मारिया, हूँ यारण अरणवू इसी || १६५||
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[
७० ]
है अयाण अणवूझ, प्रघळ कपटी वड पापी। कामी क्रोधी कहर, विले पर निंदा विद्यापी। अति लोभी लालची, कूड अधिकी मन काळी । मुझ तणे महाराज, दई भ्रम रौ देवाळी । वुधहीण विळे सत वाहिरी, तु अजरो वाल्ही टकी । हेक तौ दया या नहीं, पीरदास सूरखि पकौ ॥१६६।। मुरिखि मन माहरो, चरण चाहै चत्रभुजरा। किम करि भेटिस किसन, कटक प्राडा अकरम रा। सिघ सरीख ससार, प्राण डाचा मा पडियो । नर किम कर निसरीस, जरू ले ताळो जडियो। नारगी भुगति करि नेह निज, इतौ पाप कीधी असन । नडे निराट देखे नही, कोडि कोस अळगो किसन १६७॥ किसन किसन कहि किसन, हस वड पाप हरसे । किसन किसन कहि किसन, किसन किल्याण करसे । किसन कहता किसन, देवळे दरसण देस । किसन क्रिपाल क्रिपाल, राम पातिग नै रेसे । करतार घणकासू कहा, वडा देव वांमण तपा। केसवा रखे कुमया कर, किसन हिमै करिजो क्रिपा ॥१६८।। क्रिपा करे सो किसन, हम रीझसौ घणी हरि। नरा नाह नरसिंघ, प्रभु पहलाद तणी परि॥ दरिसरग देसी दई, मया करिसी मो माथे। तिम मोनां तूठसौ, प्रभु जिम तूठा पाथ। हेक श्री सोच मोनै हुनौ, घरपो जोर वळवंत घरण । माहरै पाप छै माँकळी, तोसा किम झलिस त्रिगुरण ।। १६६ ।। तू वळिहीणो त्रिगुण, सही छ पातिग सवळी । तू अरगरूप अकाज, निगुण अभ्यागत निवळो। हाथ नही ताहर, पाव बाहिरी प्रमेसर । पेट पूठ नही पाव, नाक बाहिरौ किसी नर।
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७१
]
पीरदास तणे अक्रम प्रघळ, सिंचिौ घणी सुधारियो । आंगिमिरिण न आ अनतरै, हरि पातिगि साहारियो ॥१७०॥ हरि किम करि सारिस, प्रभु अपार पराक्रम । सरग समापै सहज, किसन कहता गिी अकरम ।
औ अतळीवळ, अनत, नाम वैराट कहाणी । पार अपार अपार, घाट अरणजीत घडाणौ। सुर जेठ करै सेवा सदा, श्रेवा निति राखे सभू । पीरदास नाम पावन परम, प्री पतीत पावन प्रभू ॥१७१॥
॥दूहा ।। औ पतीत पावन प्रभु, इरिगरौ करो उचार। इरिण रौ नाम कल्याण छै औ अरिजण रौ यार ॥१७२|| औ गोकुल मा खेलती, कहर खीजतो कस। ब्रह्मा इक औ वडी, हुप्रो अमोलिक हस ॥१७॥ हस हुरिखव हुनौ, हुऔ ो हीज हैग्रीव । हुनौ राम लखमण हुऔ, जारण छै सुग्रीव ॥१७४॥
॥ कवित्त ।। जारणी छै सुग्रीव, इयरा दरसरण पाछा। आलम रहियो अकळ, ब्रह्म जद लेगी वाछा । तू ना भुजिसै तिके, बस वैकुठ विचाळं। भगतवछळ भगवत, प्रभु भगतां पण पाळे । पीरदास वडो रस परम रौ, चारण इमरित चाखियो । निस दीह भजन जगनाथ रौ, ईसर बारठ पाखियौ ॥१७॥ ईसर बारट इसो, रमै बैकठ मा रामति । ईसर वारट इस, ग्यान गोविंद जिसी गति । ईसर वारट इस, अलख राखै सिरि ऊपरि । ईसर बारट इस, अधिक मानियो अ.परि ।
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तू हुश्री दास ईसर तणी, मनछा वाछा दोष दहि । किसन रा पाव भेटण करे, गुर ईसर रा ग्यान ग्रहि ।।१७६|| ग्यान चरित छै अगम, नाग देवता न जाणं । कितर वरसे किसन, जोड ब्रह्मा क्ये जाणे। कितरी छ करतार, कही हिव करिसे कासू। लाछ न जाणे लखण, नमो निरकार निरासू । पीरदास अम दाखै प्रभु, कूडै काल्है काँकनां । रिणछोड़ राय हो राघवा, रीझ समापे राकनां ।।१७७॥ रांक सरिस दे रीझ, अखिल काइ खीज करै अति । बडो विहळ हूँ दुरी, पीर सा रीस किसी पति । भगत वछळ दे भगति, भगति समपी हू मामी। रात दीह रहमारण, घरणी समरी घरानांमी । बैकुठ न मागा लछिवर राज न मांगा इ दरा। मांगीयो दान दे मूझ ना, भगति समापे भूवरा ॥१७८।। भूधर नमो भगति, करै सुर जेठ कमाळी। भूधर नमो भगति, प्रथम अति करै पचाळी। भूधर नमो भगति, भरथ सत्रघन री भारी। भूघर नमो भगति, प्रघळ पहिळाद पियारी। करतार कोयडो कियो, दईव निमो तू दाव ना। पीरदास नमो परमेस ना, वसुधा नमो वरणाव नां ॥१७॥ वसुधा नमो वणाव, नमो ब्रह्मांड तणो वप । सूरज ससिहर नमो, तूझ वासदे नमो तप । नमो वाण चत्र खांण, नमो बैकुठ वरणाणी। नागदेव दधि नमो, नमो परमेसर प्राणी। महाराज तूझ माया नमो, नमो नमो तु हीज नमो। करतार पार जारण कमण, नमो नमो नरहर नमो
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[ ७३ ]
निमो निमो जगनाथ, वडौ ठग हुऔ विसंभर। काठी झाली किसन, भगति नह समर्प भूधर । मनछा क्रम मूझ ना, वळे वाचा क्रम वसियो। क्रम ना अति कोपियो, क्रमे ले मूना कसियो। भगति रौ, सहो समॆ भाजियो, वभ सभ थारै वंदा । मोहरे अंदर माहे अतर, गरव किया मैं गोविंदा ॥१८शा गरव कियो ले ग्राम, पासि अभिमान रहै पिरिण। अक रहै अहंकार, गेम पातिग कन्हें गिरिग । पाखंड मा करौ पीर, सुमन राखौ भाखौ सति । किस वडाया करो, इती तोफान करी अति । विन भजन कहै तू विसनौ वडो थूल सरिखौ बछा। पीरदास कूड बोले प्रभु, दास नहीं कहैं दास छा ।।१८।।
॥ इति श्री ग्यान चरित सपूर्ण लिख्यौ छै सवत् १७६१ ॥
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पातगि पहार
॥ दूहा ॥
प्रति अनूप प्रखर प्रविलि, सरसति करौ पसाउ । हीगलाज मुप्रसन्न हु, पछिम तरणा पतिसाह ॥ १ ॥ समति समापे सारदा, देवि दिया रो दन । पुरिषोत्तम रौ जस परणां, सरसती सुप्रसन्न ॥२॥ प्रोथी साहिब उपना, भोमि निमो भाद्र ेस । पीरदास लागे पगे, ईसारणद
प्रादेस ॥ ३ ॥
गुण
1
धन धन जीवा राधिरणी, साहिबि तु मुंना तुं वाल्हो मुकर, ईसरजी तुना भजि भजि त्रीकमा, ऊत्ररिया अरणपार । भिरि रे भिरि भगवत भिरिण, पिण पातिग पहार ॥ ५ ॥ माहव मोहरण महमहरण, कहि केसव करतार | करणाकर केवल किसन, पातिग तरणी पहार ॥ ६ ॥ विसन देव पूरण ब्रहम, नरहर सरव निवास । अतरजामी प्रतिमो नाराइरिण अघ नास ॥ ७ ॥ पारि उतारे पाप ना, ग्यान वसारे ग्राम । हेकोड तारे हसना, नाम ॥ ८ ॥ प्रजामेल अमरापुरी, वसियो थारे वास | -सवरी गिनिका सारिख, पहिते गोविंद पासि ॥ ६ ॥ सिवि संकर ना सापियो, दीयो ब्रहम ना दान । नाम तुहारौ नारीयरण, भुजरण दीयौ भगवान ॥ १० ॥ साहिवि तोना समिदिसे, आठइ पोहर अलाह । ऊ उधारे प्रतिमा, श्री जोइ समद अथाह ॥ ११ ॥
नाराइण रो
सुभिवारण |
री आरण ॥ ४ ॥
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[
७५ ]
प्रभ आधारे प्राणीयो, नाम तुहारी नाऊ । बोढे मत खाट विरिदि, दुतर छै दरीयाऊ ।। १२ ।। तोरि तारि कासिप तणा, विसन तुहारी वार । प्रो किमि कर तरिज अनत, सागर कहर संसार ।। १३ ॥ तारण नाम तुहाइलो, अईयो केवळ आप। औ भवसागर आतिमा, तु वेडा डड वाप ॥ १४ ॥ अहि सारीखौ विसव ओ, रखवाले श्री रग । तना न भुजिसै त्रीकमा, भ्रखिसे तिका भुइगि ॥ १५ ।। पीरै सां पुरिसोतमा, हिम करीज हिति । भगति दिवारौ भूधरा, नाम लिवारी निति ।। १६ ।। कान्हइया थारा करम, वाह वाह जदवंस । इणि ससार हुँता अनत, हुँ वीहा हरि हस ॥ १७ ॥ देव हिम कीजै दया, वडा धरणी रिणि वाढि । औ ससार कोहर पावसि, कोहर हुँता काढि ।। १८ ।। 'भमती राखे भूवरा, जगजीवन घण जाण । धरणी तुना हुइसै घरम, तारै तो तुडिताण ॥ १९ ॥ तारिस तौँ मिळसै तुना, तू तारिस तो तारि। भगतवछळ दाखै भगत, वारै तौ जम वारि ॥२०॥ कितराई दोरा करे, दिये घणा नां दोस । भूत तुहारा भूधरा, साहिब राखै सीस ॥ २१ ॥ हरि दोरौ सोरौ हुये, लाछि तणा कर लाजि । तुसिगळा मा त्रीकमा, नरहर जीव निवाजि ॥२२॥ अरज करा छा आपना, घणनामी निरघोस । प्राणी प्राणी ना प्रभु, मुकद समापो मोख ॥ २३ ॥ जर तुहारो जांगीयो, हुये दईता हार । 'करै कहिये केसवा, तु लागे करतार ॥२४॥
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[
७६ ]
भिले ठगारा भूधरा, साध गरीव सुधार । मतिहीणा मुंठा मिनिखि, जुठा देव जुहार ॥२५॥ सिवि थारौ करिसै सुजस, पिरिणसं अरिजन पाथ। तोव तोब तुनां त्रिगुण, निमो निमो स्रवनाथ ॥ २६ ।। निमो निमो नाराइरणा, भगवत निमो विभूति । तुझ तणी वसदेव तण, कुण जारण करतूति ।। २७ ।। सिवि कि जारणे साकडौ, उरलौ छ अरणपार। बंभ कि जाणे वापडी, परमेसर रौ पार ।। २८ ।। इद न जाणे अोछडौ, समद न जाणे सुद्धि । लिखिमी ही लाभ नही, बहनामी री बुद्धि ।। २६ ।। निगमि वखारण न जाणीयो, बहनामी मा बाप । महाराज करजो मया, अलख बडा छौ आप ।। ३०
॥ अथ झंपाताली ॥ अलख बड़ा छौ आप स्रव बाप थे अकला । अधिकी गरढा घणो, तना तोवह अला । निगुण निराकार, निरभेद तु नामडा । कीया सहि काम, वे काम ते कामडा । एक एको जिए कोजि अइयों अलख । लीया अवतार किमि करि असी च्यारि लख । सरग रा धिणी सिवि सकर माछर समौ ।
आपना आप मारण करै आतिमौ । विसन अरण पार सहि आप आपरिण वरै । कान्हईयो श्राप सां आप कीळा करे । घणो थोडो तु हीज निमो भाजण घडण । करण अतह करण पांच तत उपाअण । माडिऔ ब्रहम जद महा तत मांडिओ । भूतरा जीक ना भूत सहि मांडियौ ।
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[ ७७ ]
प्रभू तु अकिरिया क नाकरता पुरिपि । सही अरण सही वासिष्ट तणें बडौ सिखि । नमो निरगुरण सगुण नारीयरण निर्भ नर । वीर सुहिद्रा तणा रुक्मणी तणा वर । रूप अगरूप बैकठ तणा राईया । भामणा लीया भगता तणा भाईया । धरणी थारी पहची वात थारी घरणी। त्रोडि नाखं असुर भीर भगतां तगी । अनत दावै विना वाळि ना पाहणौ । पूत्र भगता तणी भगत रै प्राहरणौ । जिनिखि राज माई भलो जिणियौ जगत । भगत पति ताहरै हुये सुसरौ भगत । नारीयण तण आदेश हो भरहरा । भगत रै ऊपरा हीज रै भूधरा । हेत भगतां सरिसि भगत देखै हो ।
खरौ करि खेद काइ भगत हुता खसे । भगत सा आवि वातां कर महाभड,
____ अकल रहियो सदा सही रहियो अघड़। घणी रामति करै प्रावि भगतां घरे,
कमल लोचन कृपा पीर ऊपरि करे। खरा थारा चलण पयाला मेक षट,
प्रभू पूरण ब्रह्म सरग मायौ प्रगट । किसिन दीपायरण इणि भाति कीरति कही,
सहस कर तुहारै चद लोचन सही। सपत दधि कूख नै दिसै थारा स्त्रमण,
नाडि नवस नदै तु हीज तारण तरण । विराजे भलो घर माहि बैठो विसन,
कोहिक जिण भेटिसै पाउ पारा किसन ।
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[ ७८ ]
आतिमा राम घट माहि दीसे इसौ,
जिकै हा गति हुये तिकै दरिसरण जिसी। इनौइति माहि परमेस परमेस अस,
हीये हीय वस हीयाली तणो हस। झाझडा तणे उरि झाझ नामो भिखै,
वडो जण निरखिसै दुलभ दरिसण विखे । सेव थारी दुलभ वरण नारद सरिसि,
एक त्रिपुरारि सुर जेठ स्रवै अविसि । सदा मद सेवस तना त्रावइ सकति,
भाग हुइस जिका जुडिस भगति । भागइ विरी करौ कना इ दरो भलो,
टळि गयौ परौ जमराउ वाळी टलो । वखत सवरी तरणो वखत गजरौ वळे,
बहत ध्रम जागियौ परौ पातिग बळे । अनत रै नाम सा भगत तरिया अनत,
सरगि साचा गिया सदामौ वडो सत । ते हिज ते ताहरा ताहरा तारिया,
माहवा चकर सो दिईत सहि मारिया। थूळ अथापिया साध नै धापिया,
इदरा राज इदि सरीखा आपिया । जडग नीचा गर्म ऊधरै भगत जण,
सामी पीरौ कहै निमो अशरण शरण । अइ अवरण वरण निमो निर दोष अज,
धिरणी सिगळा तणो प्रभु धख पख धज । नाथ अवाथ निराळ व तु नारीयण,
सदा सिवि तू हीज तु भगत कीधो सघण। चक्रघर निमो चक्रभुज तु हीज चिदानंद,
विमळ ब्रह्म ग्यान स्रब ज्ञान तु गोपि विदि ।।
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[
७६
]
पस सिगळा परापर ब्रह्म पारब्रम,
काहि नाउ पाया ते हीज अकरम करम । दोस काइ परमेसर इतौ जीवा दिये,
लाछि वर तुहीज तु खाचि पातिग दिये। माहरो आतिमो महा मूरिखि मयण,
तु हारै वातिडै तुहीज जाणे त्रिगुण । दईव रौ दईव तु सबळ दाणव दळे,
तना दीठी समौ तुरत पातिगि टळे । केई फेरा पिय तु हिज इमिरित कुत्रो,
हेक दइतां तणे साल तू हिज हो । घणी बळ तुझ माह कहा कासु घणौ,
तू हीज दशरथ तण दईत दईता तणो । दईव दईतां सरिसि धरिणि हेठा दिये,
लाछि वर दईत रौ मास झडपे लिये ।। समदरै ऊपरा पानि वडरै सू,
जोरावर दईत साभळी रिमियौ जुरै ।। खझिकियो रगत मध काट हुँता खिस,
वाह जी वाह ब्रह्मा तरणे उरि वस । पति रे झूझना निमो तो वह पणा,
गोन्विद पराकम पहिचि कितरी गणा । मुकद मघकीट नां मारि समर्प मुगिति,
बडा दातार कुण लहै थारी विगिति । नेठ सुर जेठ रौ सौच करिवा जुनो,
हेक दिनि बडो दातार हासो हो । नरिंदि चौथो प्रभु नारसीघ नाहरू,
विळे परमेस वेदा तणो वाहरू । अहमि पीधा निही वेद चत्र वाटिया,
अधिकि चारण तणा वचन अजूाळ्यिा ।
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[
८.
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काछिवा निमो वहरूप थारा किसन,
वाढिया राह सहिदेव जीता विसन । मोहणी रूप हुइ दईत मन मोहिया,
समद मथियो सही प्रमेसर सोहिया । वाह हो वाह वाराह थारी वडिमि,
कोई हरिणख सरिस वड़ो जुध कीयो किमि । दीह कितराइ लड़ियो निमो देवता,
सवळ हरिणख जिसा किस भव स्ने वता। भगत रा सामिये असुर कद रा भगत,
राकसा न मारत घणो तुना रगत । जवन दल सिरि सिरिरिण खेत रिमियो जठे,
अधिकी तीरथ हया अविलि पगिपति उठे।। प्रभु कुरण जारिगस साचरी पारसी,
निमौ थभि नीसरे गाजियो नारसी। निमो नरसीप नरसीघ थारी निजरि,
बुड वुस दईत ना वाक फाडै बजरि । भली हौ भलौ पहिलाद थारी भगति,
सामि तु साहस श्रीयाधूज सकति । भली हौ प्रभु हरिणाख नां भीडिया,
कीया आपह जिसा नरगराकीडीया । नाभ रै रिषभ नां घणी भुजि नारीयण,
मिनिखि जोमण टळे अनेनुहु अमरण । पियि अवतार अवतार दत परमरा,
धरा राधिरणी हरि ऊपायण धेरमरा । वाह अवतार कासिपि तणा वामगा,
भगत थारा लिये सदामिदि भामणा। घिरपी थारा लिया भामणा फरस घर,
कोई खत्री तणे सीसि धिखीयो कहर ।
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।
८१
सघारे सहस बाहु तणा दैत सहि,
मौज थारी निमो दुजा ना दोध महि । भगत थारा जिके तिका दरसण भयो,
जमदगन तणा जगदीस तुना जयो। विभाडी रेणका वड़ो कीघों विधन,
जमदतिरपी परमेस माडे जिगिन । सपूत्रां छात कुल वाच सुध,
जनिमिग्री राम दसरथ घरे करण युध । 'जनिमिया भरथ लखमण कुअर जाइया,
अहे परमेस दशरथ घरे आइया । रामचद अजोध्या माहि राघव रमै,
निमिरिण ब्रह्मा कर प्रावि नारद नमै । कहो किणि भांति रा धरम दसरथ किया,
हमै भगता तणा घणी ठरिया हिया । ताडिका तणा जोनी सगट टालीया,
पहिलड पवार्ड लिगन ना पालिया। गई अहिल्या सरगि कीर साथे गियो,
धनख भाजी धिणी लाछि पिरिणे लीयो । 'लिनी वनवास हव दईत मारे लिनी,
दुसटीया तणी वभीषण ना दोनो। पगारी रेण सा ऊवर पाहणा,
प्रभू भीला तणी सीम मा प्राहणा। ज्यानखी निमो लखमण तरगस जड,
. चक्रधर सही चित्रकोट परि चड़े। व्याधि दानव पड वन माही विसन,
किताई रिखा रै घरे रहीयौ किसन । निमो गोदाउरी नदी थारा निमध,
सांम ने तुहारै कही कदरौ समध ।
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हरे हरि पेखीयो वन पावन हो,
जवन खर त्रिसररी कीयो घर जूजूपी, हरि तणी सीत ता आवि रामिरिण हरी,
फौतरा क्रस तरणी अकलि तिगिरा दिन फिरी। घिणी घिखीयो कहर वतप हाथे धरै,
* मछिरियो में आज रामण मरे । हरि तणे साथि से, .. हूंआ,
' भगत सहिति रिखि इन्दजीत वाली भूया । बाँधिनोई समद घर असुर रौ वोढियौ,
रामचदि आवि राकस घणों रोदियो । पाडिया ईत सहि खाटियो प्रवाडी,
सुरा रा धिणी तु सुरा ना सवाडौ। पालटे लंक गढ घरे आयौ परम,
कोई इणि अजोध्या तणो घिरियो करम । धिरणी ब्रह्मा तणो धानंतर वैद धन,
मरै सहि सगर राऊ वरै कपिल मुनि । बडी अवतार बलिराम वसदेव रौ,
हले खलही वियाईये ई ज हेवरी। कंस उर कापियो गयो घर कस रौ,
देवकी तणे घरि जनिमीयौ दीकरौ। कारणा भूत नर नाह जायौ किसन,
वडा भगता घरे हालि आयौ विसन । वधाई हुई भगता घरे वधाई,
जसोदा जोइ हे समद रौ जमाई। नंद उपनद नवनद ही निरखियो, .
पछै परमेस ना ब्रिज मां परिखियो । श्रीयावर सामलो हुो गोकलि छतो,
मुकू द नां मारिसा कसि कीधौ मतौ ।
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[
८३
]
अलख करिवा प्रविति नदरो पागणी,
प्रभूरी जसोदा वधायौ पालणौ । वड़ो जस खाटियो सगठ दाणव वहै,
त्रिणावत त्रोडियो कंस आघी कहै। कन्हईये कन्हईयै कस कासू कीयौ,
पूतना तणी सहि रगत मुहडी पीयो। ग्वालीया साथि चारे प्रभू गाविड़,
___ मरै दुख माहि दईतां तणे मावर्ड। वांसले वजार्ड ब्रिज माहि विसन ।
रास कीला रमै कर कीला किसन । साप नां नाथि आयो घरे छोकरा,
दही रो दारण ले नंद रा दीकरा । ते हीज कंस राऊ रा दईत सहि त्रोडीया,
छाछि रै काजि छीका घणा छोडिया । ज्ञान माता कहै गौलिया गौलिया,
वेन नव लाख रा दूध कइ ढोलिया। वाधिया जसौदा ऊखळे वलि वधरण,
तुहारै वातर्ड' म्हेइ लाचे त्रिगुण । गरव ब्रह्मा तणी इन्द्र री गालियो,
चरण लागौ पगे नद ना वालियो । हेक दिन पलव तु आगली हारियों,
मुकद मामी भली मुथुर मा मारियो । ब्रिज तणो देस तजियो नमो वीठळा,
__ मिले दुबारामती महल भुजिया भला । मह महमहण निमोगोपै सकल मारणीया,
___ रुखमणी परिणिया आठ पटराणीयां । करवा ऊपरा कोप कीधो कहर,
पांडवा तरणो वेली हुयी प्रमेसर।
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[ ९४ ] निमो हो निमौ ते घणा कीधा निगुण,
पचाली सरिस तें पूरिया पगरण। पराकम निमो पद वंन वाळा पिता,
अनरज पोतरी अधिक जाया इता। थुळ थुळा घरे पाप प्राखड थुप्रो,
___अतरजामी विळ ऊडीस वुध हो। अधिक अभमान तोफान उठाडिया,
जगत जीयी परी ज्या ... . . ... । प्रवाडा तणी लेखौ किसी प्रमेसर,
नरिदि घोडै सेतिले निभै नर । काळीगे ऊपर कर काइमि कटक,
राकसां हुँति रहमाण लीजे रटक । विलव के ही करी हेमैं परमेसवर,
पालट परौ उपराध वाळी पहर । अथरवण वेद रौ करी ऊपर अलख,
खसी असराण सा ख्याल जोयै खलक । मुगला तणो करि आभरण मोहरणा,
पलक हेक हुनो मेघा घरे प्राहुरगा। त्रिधारौ खडग वाधा परौ त्रीकमा,
प्राव हो आव घोडे चडी पालमा । बडा पतिसाह करि किलग सा वेढडी,
महमहण हम पिरिणीजिजै मेघडी। आजि रै बाधियो कडी तरगस अभिगि,
प्रिथी र धिरणी ससमाथ चडियौ पविगि। पाच कोडै मिळे सात कोई प्रघळ,
वार नव कोडि मिळ्यिा कटक महावल । साउि दस हुसेनी सहस मिळ्यिा सही,
तेर कोडे हुआ तुरत हणामत- तही ।
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1
८५ ]
वापडै कोडि हेक पीर घोड' चडे,
वीर वह मीर के किताई वडवडे । पछिम पतिसाह खडिस कटक पाधरी,
खेचरां भूचरा तरणी मेळो खरो । खेतपाळां तणौ साथ साथै खिले,
हरि तणौ कटक काळीग ऊपरि हिल । भुलौ है भुलौ भगवान थारा भगत,
बभीपण जिसा वळिराम सरिखा वहत । मिळे दळ मोकळो कोडि अपछर मिळ,
भूत भगवान सा भूत साचा भिळे । निमो नरनाह निकळ क चडियौ नरिदि,
साथि सातइ सरग साथि सात समद । सहस कर कोडि सिव कोडि इ हि सामठा,
आज सहि किलग रै ऊपरा ऊलटा हेक हरिचद जिसा कोड़ि हरिचद हुआ,
__ दोटि सा असुर परमेसि दीन्हा दूना । मुहमदा अली मुसा मिले मोकळा,
___ डाकिणे प्रामिस मांस वाळा डळा । धू घड आज ब्रम कीच पिणि ध्रापस,
अधिकि सुख वाभरणा साधुयां आपसे । पाडवा सरिसि परमेसवर पूछिस,
__ मान गमान तोफान नां मू छिस । महा सेतान हुई सै परी माजन,
सुख कीऔ धेन रै मेघ रै साझने। दईत रे राज मा परै वरताहि दुख,
सील नै साच सत घरम रै हुये सुख । अहो दारणव किलग अलख पाया अही,
सुरज्या कही सो बात जाणे सही ।
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[ ८६ ]
आक नीबा तरगो धाख ग्रघ केरड़ा,
विरिरिण नीली हुइ धानरा ढेरडा । साहिव तर सत आठ सहिनारणीया,
1
फळी वह भाति हि वेलि फुलाणिया । चदमा तरणी सहि मेहणो चालियो, मेघ रिषि त घरि प्रमेसर माल्हि । प्राहणो हुआ साधां घरे पिताई, कालरा मांहि ऊगा कमळ किताई । हाथिरणी सादि रो दूध पालट हुग्रो,
कहै ससि लोक श्रौ समद इमिरित की । थले हीरा हुआ थले मोती थिया,
लाछिवर तरणी हव नांम मरदा लिया । वाभरणा तर घरि नूर वरते वहत,
जिसे कलगना आज चडिया भगत ।
"
आज उजेरणमां उभै दळ ग्राहुड़,
खरा भड़ रायरा सँग आया राग रहमाण सुरतागं पुरिषा रतन,
किलंग रे ऊपरा चालि आयो किसन । हरिखि हुड़ जोगरणी ताम नारद हसे,
कांइमे त्रिधारी खडग कडिया कसे । वाजिया घनख सुर संख वह वाजिया,
रिणि पुड घूजिया गयरण पुड गाजिया । धरणी रे हुकम सा वहत मादल धुर्वे,
हुआ वरघू सवद देव दाराव हुवे | सालले सीधूश्री राग सरणाईया,
भलाई आज भारथ करो भाईया |
मेह मेहा सरिसि आवि जूटा मोहरि,
वारण वारणा सरिसि वोटिया वहादरि ।
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[
८७ )
घरणी करि जोर असरारण जूटा घणी,
तो वहो त्रिधारो खडग निकलक तरणी। डहिकिया डमरू दात दांते डस, .
खाग खागा सरिसि खान खाना खस । बाथ बाथां पड़े वारण वारणा बरगण,
मिलिकि मिलिका मिळे असरां मरण । वाजिया भला रिणि खेत मा वीरवर,
गाजिया रामचद किलग करता गमर । झाल सा वालिया किलगना भाटिया,
काल रे कालि कालीगना काटिया । काइमा देव साधा सरिसि काहला,
वसुह मा चालिया रगत रा वाहला। प्रधळि रिरिण खेत मा जवन पाथा पड़े,
दईत सहि धरिण रै ऊपरा दड़दई । मरडकै कलायै हाडा डा मुड',
गिले बम कीच सहि कोड कोडे गुड़। । धरिणि रे ऊपरा धडा रा धूबका, .
घिणी कुरण झालिस हे मै थारा धका । घिरणी जीवा तिणं धीक साधी वीया,
हला सा तारणीया हीसु एही विया । आलमा निमो इलि भार उतारिया,
मारका दइत सहि किलग रा मारिया। 'पहाड़ां हेठि दीन्हा परा पापिया,
इन्दरा राज वलिराउ ना आपिया । थूल ऊयापिया साध ते थापिया,
किलग रा सेन तरूपारि सा कापिया। खली रै वासतै खाड सखरी खणी,
धोख रिखां कन्है आवि वैठा धणी।
किला
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[ 55 J
वेद च्यारइ नै ब्रह्म वाखाणीयो, जडाधर सरीखें प्रमेसर जागीयो । पदमावती,
उतारौ आरती ।
पेख पारबती अनै अनत रे ऊपरा गाईया गोत उतावला, प्रभुराग रीवा तर घर पावला । जमा गोरजा घणौ साराहियो,
अहिल्या
अलख ना भलाई भला आराहिया, पीरि रास घिरणी पाटि बैठा परम,
धरिरिण नीली हुई घरगौ वधियौ धरम । ॥ कविति ॥
वघे धरम सत वघे, साच सतोष सवाई,
जती सती जोगिया, भजन व तुठो भाई ।' भजन नमो भगवान, साध ब्रह्मा सिवि सकर,
समरड तीनइ सकति अलख आदेस अपपर ।' आदेश करे तुना अमर नाग करें आदेस नर,
पीरीयो दास कासु पर चतर नमो तु चक्रवर इति श्री पातिग पहार सपूर्णं समाप्त ॥ श्री ॥
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काया
डिगल गीत ॥ गीत अठताळो ।।
लालस पीरदान रो कह्यिो कायम आवसं एक कळह करिस, घरिण नीली रूप धरिस मचीणा रौ धणी मरिस, चोरिण ना चरिसै । सही पातिग विना सरिस, भूत भूडी डंड भरिस । तुरत बाभरण गाइ तरिस, मेघडी वरिस ॥१॥ बोडिस कालिंग टल्ला, हिमैं हुइस हळहला। महमहरण एकल मल्ला, सात्र वासला । आविसे रहमारण अल्ला, ढळिकिस अपार ढला। प्रमेसर वांधिसै पला, भूधरा भला ॥२॥ धातिस तोफान घांणी, पीलिसे काढिसै पाणी। प्राखियो सारंग प्राणी, सूरिज्या राणी । अगै काइ रीछडी आगी, भगत वछळ वात भारणी । जादिवै री अकलि जारणी, मेघडी मारणी ।। ३ ।। मस ईसा अली मू गळ, सेख साथ मीर सबळ । पीरजादा पडित प्रघळ, आदिमा उजळ । दईव करिसै एरसा दळ, विडग सेत इ नेक विमळ। चढे आलम पृथ्वी चळ चळ, किलग रो कमळ । ग्यांन साथै भगति गाजी, वडी वाउल पछै वाजी। भूधरा करि देत भाजी, राक सहि राजी। तू हिज़ रोटी दीये ताजी, वहत राखै अमा बाजी। पीर आगिम कहै प्राजी, साधुनां साजी।।
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[ ६० ] :
|| चोपई॥ काइम राजा प्रावहु राण, जांणां हूँकी तू घणजाण । परो चढे नी पुरुखि पुराण, रेवत रै ऊपर रहमारण ॥१॥ पहली वहिलो पवग पलारिण, ईसा मूसा मुहमंद प्राण । खूटविहो असुरा री खाँरिण, मेघां री कन्या ना मारिण ॥२॥ आवौ :उरा प्रमेसर एक, हिंदू तुरक हुवै नी हेक। नरहर गुरहर तुहिज अनेक, तू राखै गाइया री टेक ॥३॥ भाइया री वेगी करी भीर, वडा धणी सुहिद्रा रा वीर । मारि परा दइता ना मीर, पुणं चौपई बारट पीर ॥ ४॥
॥ हो । कीरति कही कुराण मां, मिरिणजे वरग मंजार । राजा किन्या रासि रै, देव तिको दातार ।
|| सोरठा ॥ मळिया मेछा मारण, पापी चौकस पीलिरा । आलम जी री आरण, आज हुई इळ ऊपरा ॥२॥ नरिंद किलग ने नाथ, खड़ि खडिस रिण खेत मे। मीग तू ससमाथ, सतगुर तू सबळो सही!! ३ ॥
॥ कवित्त ॥ एक एक इनेक, एक अविगत उद्यासी । मामी के मारियो, मुकद के मारी मासी । कुणबी के कूटियो, कुणे दहकंध नां दहियो । तू गरढो गोडियो, कुणे थारी जस कहियो । पीरदांन कहै प्रादेस प्रभु, भूधर थे तो भांड हौ। ताहर जानि तुरका तणी, मेघा रै घरि माडही ॥१॥
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. [ ६१ ]
॥ गाहा ॥ पछि तरणो पतिसाहो, साधा सरिसि तारिस साहिबि । नारिसिंघ नर नाही, रेवत सिरि चडिस रहमाण ।
श्री रामजी सती छै श्री
श्री रामजी ॥ गीत अठिताळो ॥
। लालस पीरदांन कहै । देव दांगवे वडवडो दावी, लाख को. कटक ल्यावी। धिरपी जीवा तरणा धावो, भगत्ता भावी । जुडरा जाबूदीपि जावो, बीक करिजौ कळह ठावी। आव प्रावी पाव प्रावो, पालमा प्रावो ॥१॥ चडौ वैगा सुरहि वेळा, साधुपा करिज सचेळा। लाछिवर. सं देह लीला, किसन करि कीळा । भला आया हुआँ भेळा, खत्री खेतल तरणा खेळा। महमहण रा असंख मेळा, मूमरणां मेळा ॥२॥ ईस अणवर ब्रह्म अत्ती, जान सार्थ कोड जत्ती । ग्यांन विरिणया कान्ह गत्ती, साध मिळि सत्ती । पररिणजे त्रिभुवनपत्ती, भगतवछळ एण भत्ती । मेघ किनिया रूपमत्ती, राम सां रत्ती ॥३॥ दईत पडिस घणा दडदड, रु डराकस तु ड रड़बड़। खाग खासा वहै खड़खड़, त्रिगडा बडबड । किलग ना कूटिस कड़कड, भूक हुइस किलगरा भड । जवन काढे जवन री जड़, आलमी अणघड ।। ४ ।।
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[ २ ]
लाछिवर हव लाख लसकर, घोडिला रो करो घूमर । घिणी नीली करीजं धर, पोखिया पळचर । फर्व फौजा चीध फरहर, साहिबा सिणगारसी घर । पणे पीरौ निमो नरहर, सामि तू सधर ॥ ५ ॥
|| गीत लालस पीरदान कहे ॥
सत धरम तर कजि ग्राव बडा छत्त, ग्यान रहौ गतिंवाळी ग्रामि । गिर भाखर वाळा गोसाई, सेतले चडि प्रिथिमीरा सामि ॥ १ ॥ करिहो कोप हिमैं कररणाकर, वाभरण वाभरण दोरा प्रतळवळ | कळस थपावि धरमरा केसव, प्रिथमी रै ऊपरि प्रघळ ॥ २ ॥ न्याउ करण नां आव वडा नर, गरढेरा दईता ना गोडि । घेन निवाजि हिमैं कांधो घर, छोगाळा व ळ बधरण छोडि ॥ ३ ॥
राजेसरा प्रथमी रा राजा, नरहर गुर लिखमी रा नाह । आव उरो काइ ढील करें प्रति, पीर कहे मोटा पतिसाह || ४ |
|| लिखतू लालस पीरदान ||
|| गीत लालस पीरदान रौ कह्यौ ॥
राघव देखि राजा, भरत सत्रघरण लक्षण भ्राजा । राज करसे राम राजा रामचद राजौ प्रमेसर वाधिस पाजा, लोपस दधि तरणी लाजा । साधुत्रां रा दीह साजा, वजाडो वाजा ॥ १ ॥ तुरत ही गुरु दोख टाळण, प्रभु चडियौ जगन पाळण । जयो दाग (व) वस जाळण, विदेही वाळण । गरव फरसे तरणी गाळण, ग्रापरी सुसरी उलाळण । क आयी वेच चाळण, असुरां उदाळण ॥ २ ॥
..
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[ ६३ ]
वनवासी विसन विरिणयो, जिके से संसार जरियाँ | गोहि अगिल जनमि गिरिणयो, भूधरौ भरियो । हे दारणव व्याधि हरिणयौ, खरां त्रिसरा मूळ खरिणयो । लाछि वर सिर सूप लुगियो, सात्रवे सुणियों ॥ ३ ॥ सवळि दांगवि हरी सीता, मुरह भुवरणा तरणी माता । जीव एक जटाइ जीत्या, प्रभू रा प्रीता । वरसि के वन माहि वीता, ग्यांन गोविंद रूप गीता । राकसा रा नेस रीता, श्रातम ग्रजीता ॥ ४ ॥ परम पद सुग्रीव पाया, कीच कटके वळि काया । लकारै कांगरे लाया, हरणमत गोविंद रामरण गुड़ाया, जीपिया दसरथ अयोध्या मे धरणी आया, ब्रह्मा ळाछवर रो नाम लीजे, कोई उत्तम काम दीजै, ग्रन्न
दुरवळा
ने
कमरण वीजे, प्ररणांम
पीरदास
..
भूधरी
हवे . रामचन्द्र
वेल नू कीजै,
हलाया । जाया ॥
वधाया ||५||
कीजै ।
G
भीजे ॥
•
री
"जै ।
जै ॥६॥
गीत | लालस पीरदान रो कह्यो ।
घर रे धर ध्यान धरणी धरणीधर, अति अवतिरची फिरियोस । परहरि रे परहरि रे प्राखंड, हरि हरि कहि रे हरि रा हस ||१|| किंहिक भजन करि किहिक दया करि, किंहिक धरम करि हुने कल्याण । किंहिक सरम करि जीव नरम करि, इतौ थूळ काइ हु जांण ॥२॥ राजा राम भजन साराजी, भजियां इज देखिस भगवान । ग्रार्इ पहर घरणी उळावे, कान्हईयो कान्हइयो कान्ह ||३| गोकळ माहि खेलियो गोविंद, आप सरीखा किया अहीर | कहती रहे तिकै ना कवियण, परमेसर परमेसर पीर ||४||
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________________
[
६४ ]
॥ गीत सारगोर ॥
लालस पीरदान रो कहियो । पहलाद समरियौ पायो जगपति, चत्रभुज निमो भगत रो चाड । बहनामी रै दाढ तणौ वळ, हरिणख तणो जारिस हाड ॥१॥ पडियो असुर ऊपरा पडिौ, कोपि ओपिनो निमो कंठीर। झाझे त्रिसले दैत झरिडियो, वडियो मास भरथ रै वीर ॥२॥ हरिणाकस निरदळ्यिौ हाथै, गिळियौ गुद्र नमो वम ग्यान । लिखमी धूजि निमे पाइ लागी, भले भले दरसण भगवान ||३|| वामण देव भयाणक विणयो, निमो निमो नरसिंघ नरेस । सुप्रसंन हुए जगतगुर सामी, पीरियो दास कहै परमेस ॥४॥
}} गीत ।। लालस पीरदान श्री परमेसरजी तू कही वाराह नर ना" . . , जि राजिया पराक्रम वाह । दात्रिडिाळ वडी तू डारण, तूं एकलमल भूत अथाह ॥१॥ ले गयौ देत रसातळि लखमी, ग्यौ म्रतलोक तणौ सहि ग्राम । रेण तणौ तू धिरणी राजियो, रेण उरी लै आतम राग ॥२॥ जळ मांही पैठौ जग जीवन, असुरा तणी भाजिवा आस । ताहरौ जारिगयौ हुौ त्रीकमा, प्रिथी मडागी कोड पचास ॥३॥ दीह किता लडियो दागव सू , हो । हरिणख रा मारणहार । पीरियो कहै नमो चक्रपाणी, कितरा युद्ध कीधा करतार ||४||
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[ ९५ ]
गीत लालस पीरदांन रो कहियो। साहिब नां जोड़ि घणं गुण सखरा, सारिव.री...:."साचि । बांभण देव तणौ तू वारट, वाम · · तणौ जस वाचि।। सूरति खूब वणी कासिपिसुत, वेद चियाएइ वाणी वाह। " इसी भाति सा आज आतिमी, आवै बैंळि रे द्वारि अलाह ॥२॥ बळि राजा छळ्यिो बहनामी, निबिळे से दोइ ब्रिख नाखि । एक कीये ते इ दरै ऊपर, एक सुकर री काढी आखि ॥३॥ अति रीझाइ अम्हारा आतमि, गाइ रे गाइ वामण रा गीत । वप वैराट सरीखो वांमण, पीरिया करि वांमण सा प्रीत ॥४ा
गीत पीरदान रो कहयो। बहनामी पाप निमो सिधि वाबा, सुकर नही चत्रभुत्र ससमाथा ॥ भगति दिवारि भरथरा भाई, नाम लिवारि हिमै जगनाथ ॥१॥ जगपति कुण थारी गति जारण, अकलि तुहारी एक अनेक । जुध बाहिरी जगत सहि जीती, तू राखे भगता री टेक ॥२॥ दळिदि कबीर तरणी ते दहियो वसियौ भगत सरग रै बीच । चौर कांइ भगता रै चडियो, खाधो काइ करमा रो खीच ॥३॥ सतजुग मां मिळियो सिगळा ना, कळिजुग माहि सुधारण काज । गोविंद तू तूठी गिनका ना, मीरा नामि लियो महाराज ॥४॥ समपण सरव उड़ीसा सामी, वाहर हो वाहर ब्रिजराज । बुध अवतार पीरियो बारट, सजिया सो कीजै सिरताज ||
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[ ६६ ]
।। गीत पीरदान रो कहियो । करौ कोप करणा करण, कट मोटौ करो,
कांही का थापि उथापि काँही । मेघड़ी पिररिग वसदेव रा माहवा,
__माहवा आ....... ... ......."ही ॥१॥ चचळे चडाव....... ... • • • • "चडी,
___टोघडे निवाजण . ...... .. • 'टापी । त्रिधारी खडग ना बाघि कासिपि तणा,
किलंग ₹ ऊपरा हिमैं कोपौ ॥ २ ॥ दान मागे प्रभु अत्रीरो दीकरी, वाज सिरिगगारिजै सेत वाराह । पुकार साध पीपळ हुी पुकार, पुकारा साभळी वडा पतिसाह ॥३॥ पछिमिसां भाव तू ल्याव पाडव प्रभू, महमहण ताहरा असख मेळा। वाधिया काइ वळिराउ रा वेलियां, भूधरा करौ पहिळाद भेला ||४॥ ग्यान गरुया धिणी गोविंद गोसाई, दारणवा ऊपरा दिौ नी डारण । क्रिपा करिज किसन पीर चाकर कहै, आलमा काइमा तुहारी आण ॥५॥
॥ गीत पीरदान रो कहियो॥ मिळे कोडि तेत्रीस सुर भीमरै माडहौ,
अधिकि प्राणद कना अधकि औछाह। जानि उग्रसेन बळिभद्र जिसा जानिया,
विद्रवा तणी धर हो वीमाह ॥१॥ सामिया देत साळे दिया सेहरा,
वाजिया गाजिया केई बाजा । वांधिया मौड ग्रहमा पला वाधिया,
रुखमणी पिरिरिगया राम राजा ॥२॥
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1. ६७ ],
निरखियो भीम सखे भड़े नारीयण, देवता देवतां तणी डाडौ। विसन नर रईरिग री वाह मूरति छि करतार लाडी ॥३॥ इदि अहल्यै उपारणा ऊरा, गौरिज्यिा लूग उग्रारें। छात्र त्रिहलोक रै छोडिया छेहड़ा, त्रीको पिरिरिगयो संत तार || हाटडै हाटडे लोक सहि हरिखिया, गोख. गौखडै गीत गाया। सामि पीरे तरणो ववावी हे सखी, लाछिना किसन पिरणीजि लाया॥शा
१२-गीत पीरदांन रो कहियो
दरसण देवरा रै भाव रो प्रोळिखिौ परौ तनां महेअविगत, गोकळ ग्राम तरणी तू ग्वाळ ! माहवा नाम तुहारौं मीठी, दीठी दीठी दीनदयाळ ॥१॥ अरिजण रा टळिया उपराधा, खळ खाधा पावक-भ्रखरण । बहनांमी मत राखो वाधा, लाधा म्हे थारा लखरण ॥२॥ छता हुआ किमि रहिसो छिपिया, घट मांही अजुमाळ घरणी । कोमळ पग कांना मां कुडळ, तोवह दरसण तुझ तरणौ ॥३॥ चरण तुहारा दीठा चत्रभुत्र, मुख दीठी दीठी कमळ । प्रीतवर दीठो परमेसर, दईतां ऊपर ' करो दळ ॥१॥ ईसाणंद वारट' आराधे, भल गुण थारी व्यास भणे । बालमीक तूंनां अति वाल्ही, पीरदास अरदास पणे ॥ ५॥
१३-गीत सपंखरी
अवतार स्तुति 'भले भीमरा जमाई निमो वाई सुहिद्रा रा भाई,
पुत्रेई कमाई पाई धूवकाई धीक । राजाई कहीजै किनां पातसाही थारी राम,
ठगाई तुम्हारी निमो ठकराई ठीक ॥१॥
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[ 8
]
दईवारण सुरताण दीवारण तू ही ज देवा,
माडिया मडारण केई समंद मथांरण । कुरवारण रहिमाण कुराण पुराण कहै,
प्रापरी कल्याण दारण उग्रसेन प्रांग. IRIT राखसा पथळ राम महल आकास रेण,
मचीणा रा सल सामी मांडि युध मल।। लिखमी टहल कर अहल न आवै लिगी,
पंचाळी अलज पळ भिळे थारौ मल ॥३॥ गोपाळ ब्रिजरा वाळ गोवाळ गोवाळ गति ।
छोगाळ छत्राळ साई प्रतिपाळ साच । जादवां उजाळ नमो विरुदा विसाल जूना,
डाँगथारी काळ माथै ससिपाळ डाच ॥४॥ जोईयों जवने विदे गुडिदा गुडिदे जूटे,
कंस रे नरदे कही हलां तरणी हीव । चीतारै दुडिदै वर्दै चरणारविंदे चाहै,
गोविंदे भगते गीदै तारीया गरीब ॥५॥ निरकार निरद्वार दईतां संघार निमो,
प्रादेस अपार पार अवतार अंस । साधुग्रां सुधार सामी आविस्यै निजारसाह,
__ काइमौ नंदकुमार, कस मार कंस ।। ६ ।। हैग्रीव वाराह हस ग्राहनां अथाह गति,
पातिसाहा पातिसाह अरण्थाह पीर । दईतां री हीय दाह आविस्यै अलाह देखो।
निलाह सलाह निमो नर नाह नीर ॥ ७ ॥ साधुआं सुधारौ सही पापिया विसार परा,
- संभार चीतारै तिका तारै सिरताज ।
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[
६६
].
जवनां उघारै मारै जुध मान हार जद,
पसारै समद माथे परवार पाज ॥ ८ ॥ सांमिरै रुखम साठा काळा काळा जिके कांन्ह,
सघार सिंघाळा भाई कसवाळा सेख । दीसता दीनदयाळा चिरिताळा निमो देव,
___ अकरूर आळा भिळे तमासा प्रलेख ॥६॥ नारसिंघ थारो नाम फरसराम निवाज,
देखतां दुवारिका घांम सदामै रै दाम । सत्य रांम रुघराम लिखमी वामे सहेत,
गोविंदा तुहारो भल बैंकुठ री ग्राम ॥१०॥ तू हीज अकाज काज भगतांरी लाज तनां।
विसारियो केम परौ विजराज वाज। आविस्यै अनत आज गजराज उधारिवा,
निध माथै गाज करै निपाइयौ नाज ॥११॥ सास सासि विखे थारो जस वास करा सामी,
तनांई न जाणं जास तिकां थारी तास । ग्रभवास टाळे परा जमवाळा प्रास ग्यान,
आपरा पगांरी राखे पीरदास मास ।। १२ ।।
१४-गीत पीरदांन रो कहियो । हैग्रीव, वाराह, धरणीधर नरसिंहा री स्तुति अविधूत अलेख अलाह अपंपर, सिगळाई देव तुहारा संत । अत्री तणे घर रा अजुआळा, अनसोईया वाळा अनत ।।१।। काइ हो कृपा करीस कद केसव, कूड म दाखविसाच कहि । प्रारणीया हिवै भगति करिय, 'तरणा गुरण दाखि रहि ॥२॥ समति करती रखै समास, कमति करतो ढील करि । कवीयण माथे किहक क्रिपा करि, हैग्रीवा वाराह हरि ॥३॥
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[ १०० ] ध्रम मूरति वाळा धरणीधर, नरहर तुझ तणो कोइ नाम । अनंत भगति जिरिणसां उधरिया, पीरिपोइ तिरिगना कर प्रणाम । ४॥
१५-नीत पीरदांन लालस रो कहियो साहिबा' सहि थारी सारी, वडा घिरणी जम प्रासै वारी।। खोटी वात ससारौइ खारी, आतिमा ‘मुना पारि उतारौ ॥१॥ विखै ससार तणो रस वाल्ही,' केसवराइ हुऔ हूँ काल्ही । परमेसर पातिगनां पाली, हरि रे गोढे झगडै हाली ॥२॥ केहिक होवे तो सुकिरिति करिया, जरणा रे वातां सहि जरिया। डाकरण छै ममता थी डरिया, श्रीकम साँ कितराई तरिया ॥३॥ त्रीकम अरज करां छां तूनां, मोटी अकलि समापे मूनां। जादवराव निमो जर जूनां, वैकंठ मां राखै वे खूना ॥४॥ अविगत नाथ परम पद मापे, साधा ना साज • • ........। प्रसरां एक इनेक उथाप, थर करि लंक वभीखण थापे ॥५॥ जपती रहि दसरथ रो जायो, थांभी फाडि भगत नां थायो । लाछि तणे वरि चलणे लायौ, पोरी ई परमेसर पायौ ॥६॥
१६-गीत पीरदांन लालस रो कहियो
असुरा नै सघारण रो मधकीटक मौत वडा जुध मांडण, गांजण असुर उधारण गोह। रांमण ने महिरांमरण रेसण, दईतां तणं मरण री डोह ॥१॥ खंड डंडूळ सरीखा खाफर, वळे अंगासुर कस वहि । कितरा दैत कूटिया केसव, कवियण दाखै. साच कहि ॥२॥ बळिराजा बांधण वहनामी, प्रांषण वेढि किलग सा पीर ।। समरासुर 'सगठासुर साझण, भारथः करण भगत री भीर ॥३॥ बाणासुर सरिखा' हटिया बळ, नरकासुर गिळिया निरकार। किमि करि पीर कर करणा कर, . कळ्हा रौ लेखौ करतार ॥ ४ ॥
करा देत
नामी, प्रा
. करण
निरका
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[ १०१ ] १७-गीत सांणोर पीरदांन रो कयौ
- थाहर देवरण रो .... ... .... . ." अतरजांमी, वहनांमी दे पाव .. .. बाज । गोविंद मेर सरग रा ग्रामी, भामी हो भांमी सुभराज ॥१॥ राजि रा पाउ पताळ तणी रुख, मसतक सरगा जिसी मडारण । राजरा छूमरण दिसै रुघराजा, मन ससिहर कूखा महिराण ॥२॥ असट कमळ विचि वास आपरी, वळिहारी हो वळिभद्र वाप। प्रारी भगत करै छ अरजां, आपरौ रूप दिखाळी आप ॥३॥ राजिरी पार न जांगां रावव, आपरै नाम तणो आधार। यांहरां वीच पोरना थाहर, दोर्जे हो दीजै दातार ॥४॥
१८-गीत पीरदांन रो कह्यो
अवगत री स्तुति महाराज तणे कहिले कस मामो, नरकासुर बेटौ निज नेह । सुसरी रीछ रुखमयो साळी, अविगत तणे गनाइति एह ॥ १॥ सुहिद्रा विहिन वाप तो वसदे, कोसिलि मात निमो करतार । भांमिरिण सीत द्रोपदी भगतिणि, जांमिणि कुरण हो साह निजारा रुखमरणो राजि तणे पटराणी, दईता हुँता सदा दुमेळ। प्रम परधान वात ना ब्रह्मा, मुहमद .. " • “मेळ ॥३॥ किरण रो मोत कुरण रो केसव, वहनांमी सिगळां रौ बाप । पीरियौ करि थारौ परमेसर, अविगत नाथ वडेरा आप ॥ ४॥
१९--गीत पीरदांन लालस रो कहियौ
मेह वरसावरण रो हुये परा हरीयाळ हरीयाळ करि मनोहर,
जाय पातिगि परा -धरम जागे । जीव नव खंडरा रिजकि मार्ग जुनो, ।
मेह करि गावडे घास मागे ॥१॥
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[ १०२ ]
वंस अजुयाळ प्रतिपाळ थे वीठला,
रांमचंद राजि मुर भुवरण राईमा । पुरांरगा डोकरा अरज सांभळि परी,
भांजिही भांजि भचक भाईया ॥२॥ केई सरवर भरौ नये सुभर करो,
क्रिपा करि क्रिपा करि किसन कलियाए । मेह री ढील राखी हिमैं महमहण,
__ पाप ना सरव भगतां तरणी प्राण ॥ ३ ॥ करौ जगि छळ हव छती हू केसवा,
नवे घातौ नदै निरमळा नीर। . धणी सुर जेठ.... ... ... ..."रण""ध्रवी,
प्रमेसर राज नां पयंपै पीर ॥ ४॥
२०-गीत पीरदांन लालस रो कहियो
___ इग्यारस रै व्रत रै महातम रो मुर दईत जागियो भुवरणां माही, देवां रै अपनी डर । । हर सुर जेठ करै सहि हेला, वहिली आर्व लाछिवर ॥१॥ देवां री तिण दीह डोकरे, परमेसर सांभाळ पुकार । निसचरना किमि करि निरदळ्यिौ , इग्यारसि अईयो अवतार ॥२॥ एकादसी उधारण प्रावी, जीवडां ध्रम असमेघ जिसौ । इग्यारसि करिस उधिरिसें, इग्यारसि रो वरत इसौ ॥ ३ ॥ राति नै दीह भजन मां रहिजे, दिनि वारिस रै देसे दान । इण जुगरी वेड़ी इग्यारसि, गोविंदा तिके प्रामिसै ग्यांन ।। ४॥ पख पख मांहि हुवै पुन प्रघळा, पीर पतग रै जोडे पाण । सिगळाई परमेसर सरिखा, इगीयारसि थारा अहिनाण ॥ ५॥
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[ १०३ ] २१-~गीत लालस पीरदांन रो कहियो (श्री गंगसांमजीरो) किम तरिय भव हव कासू करणौ, निज निसतरणौ थारै नाम । घरिणयां जेम उवारी धरणी, सरणी तूझ तरणो गंगसाम ॥१॥ संमरे ब्रहम"" "" • • • .". "न, धन मुरघर तणी घर। मा ............ • 'माह वडा, चलणी थारी चकघर ॥२॥ आलिम साह पारवती अोपे, रुखमणी रांणी पासि रहै। ओ गंगसांम विराजे आछो, देखें जिहांरा दळिद्र दहै ।। ३॥ भूलिज्यो मति कदेई भूघर, जोइ लेख राख विजराज । तूझ तणौ निसदीह त्रीकमा, मुजरो पीर कर महाराज ॥ ४॥
२२-गीत पीरदांन लालस रो कयौ
___भगवान री स्तुति रो नारी अहिला सरीर सिला, कीर ना तारियो थही। दातार अदला देव, चाव धारी चिति । हलाहला आया हालिम, हला स हल्या हुआ । महा प्रभु श्राप मला, भला भला मित ॥१॥ पहळाद गांन पला, अला अला कहो आप। राजिरां भगतां माथे राकसांरी रोस । ताहरां नां दिये टला, विशननु होमवला भुजाउंड वीस । अगासुरां बुगासुर कंसासुरा उडिया ॥२॥ निसाचरा प्रसासुरा अचासुरां नांखि।
त्रासुरा वारणांसुरा दीया वाहि । 'आपरा - भगता दिसी ऑखि ॥३॥ उपविजे अविणास अम्ह पास एह पार्छ । नितो निति रहाविजे नेम । वेद व्यास वालमीक सुखदेव दास वाला। प्रभु रे चितिमां वालो पोरदास प्रेम ॥४॥
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। १०४ ] .२३----गीत जाति अठतालो लालस पीरदांन रो-कहियो, भगतिदान देवरा रो जगपति नान्हीयौ वसदेवि जायों, बड़े भगते थाळ वायो। हरिस्त हरित हुलरायौ, बालोये गायो । प्रघळ देते दुख पायो, निसचरां ना सुख नायो। कंस मन भी हुयो कायो, पालमा प्रायो॥१॥ -मेघ इद रौ मद मुडियो, चक्रधर रै विरिद बड़ीयो । घणु सखरो घाट घड़ीयौ, विलोणा वड़ोयो ।। जवनं सां नित नित युडीयी, पलव ऐकरिण धीकि पड़ीयाँ । लाख देता हूँत लडीयों, कंसरी कड़ीयो ॥२॥ हालियो अकरूर हड़बड, विमळ बोरी हुँति बड़चड़। कस अपरि गर्यो कान्हड़, नंद रो नान्हड़ ।। भगतवछळ भूवरो भड़, जो औ कार्ड कसरी जड़ । पीटिया सहि दईत पड़ पड़, झोरीया झड़ झड़ ॥ ३ ॥ मात पित सां हुया मेन, बड़ी मा कीघ कीळा :लाछिवर री निरखि लीला, लाछिवर लीला॥ वक्क नायरा हार चीळा, किसन रमीया रास कीळा । निमो हो नीळ नीळा, पंगरण पीळा १४॥ मारि तारो तुरत मासी, पिता री काटेयी प्रासी । वामणी द्वारका वासी, .. ......... ....." किसन चड़िने गया .कासी, असुर का "णासी । खरी दीजै भगति खासी, दान कवि दासीना ५॥
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[.१०५ ]
२४-गीत सांणोर, लालस पीरदांन रौ कहियो
श्री नरसिंघजी री स्तुति रो पहिलाद समरियौ आयो जगति, चत्रभुज निमो भगतरी चाड । वहनामी.रै दाढ तणी वळ, हरिणख तंरणी जारिगस हाड ॥१॥ पड़ियो असुर ऊपरा पड़िो, कोपिनो योपिनी निमो कंठीर । माझे विसळे दैत झरिड़ियो, वड़ियो मांस भरथ रै वीर ॥२॥ हरिणाकस निरदळियो हाथे, गिलियौ गुद्र नसो ब्रम-ग्यान । लिखमी धूजि निमे पाय लागी भिळे भिळे दरसरण भगवान ॥ ३ ॥ वामणदेव भयाणक "विणयो, 'निमो नमो नरसिंघ नरेस । सुप्रसन हुए जगत ,गुर सांमी, पीरियो दास कहै ,परमेस ॥४॥
२५-गीत लालस पीरदांनजी रो कहियो ।
गंगा सिनान रो औ करा वदगी तुम्हारी बाप, आपी आप ध्यान करा. जोरपोपी अजपा जाप । न जागीयो जाप, अस्वरां उथाप आप महापाप परामेटो॥१ समद तरीजो केम जीवना संताप, राकसां नां रीठी पाठी। भीतरा प्रभु दीठोजी, घट मां दीठो दीठो दीठी देव ॥ २॥ माहरे .तू मात ताति, ताहरी भुजन मीठौ । सवाहो नही पीरदास सामळेरी छेव ॥३॥ गंगरो सिनान करै, औरणरो निवास ग्रहै । प्रागरै सिनॉन कियां पातग पहार प्राण नीड वड़ा छौं ॥४॥
--पीरदांन लालस
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[ १०६ ]
२६-गीत रुखमणी परण लाया तिण भाव रो गुरडि चड़ी नी ग्यांन, बलिभद्र रथ चढीया वहसि । जादव सगळा जांन, परणेवा आयौ ॥ १ ॥ हाये मिळिया हाथ, लवगे मांडहो छाईयो । सहि देवां रो साथ, लेवा आयौ लाछि नै ॥२॥ केसव राज कुमार, रांगी अई औ रूखमणी । अलख तणी अवतार, सखरौ लाडी सांवळी ॥ ३ ॥ गोविंद आयो ग्रह, भुजीनी आंगण भीम रौ । नर हर बाळी नेह, रांणी जाणे रुखमणी ॥ ४ ॥ नान्हड़ थारें नारि, सोळ्ह सहस नै एक सै। पीर न जाणे पार, तुझ तणी वसदेवतण ॥५॥
२७-गीत (प्रणाम) देवा दातारां झूझारा वेदा च्यारां अवतारां दसां, घारा हिरा वारागिरा रूप धांम। सतीयां जतीयां सारां सूरा-पूरां रूखेरा, पीरा पेकंबरां सिधा साधकां प्रणाम ।।१।।
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[ १०७ ] २८-गीत लालस पीरदानजी रो कहियो
स्तुति निमी ईस्वरी, अनत नाम हीगळाज निरंजणी, वड़ा देव मेकदत संभु नाथ वछ। अकल समापी आई देवी राजि कीज दया, कथरणी अनत करा कहा मछ कछ । विरोळिमो जळाकार वाळ्यिा प्रापरा वेद, साझियो फूक सासा.... .... .
.
.
.
.
.
.
२९-चौमासौ गुहिरो गुहिरी गरजोयो, रेणा करिस्य रूप । वसधा माहि वरसिस्यै, औ आसाढ़ अनूप ॥१॥ चद्राउळि रौ चूडिली, राधाजी रो रास । सहीयां नां प्यारी सही, माहवा श्रावण मास ॥ २ ॥ भूधर वरसै भाद्रवी, सेहिरे वीज सिळाउ । जेथी तेथी जादवी, कान्हड़ कर कळाउ ॥ ३ ॥ सांभळिजी वसुदेव सुत, आसु मास अरज्ज । कर जोड़े पीरौ कहै, गोविंद करो गरज्ज ॥ ४॥
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[ १०८ ]
३० - कवित्त
श्रालमजी रा
+
।
हरि पैडी हरिद्वारि, नीर सोरंम रं वाह्या । मकै मदीने मांहि, प्राग वड़ -दरसरण पाया ॥ गया कोड़ि गोमती, कोडि जिंग तीरथ कीजे । कोडि वार दस कोडि, दान गावतरी दीजै ॥ इंद्र दमण उड़ीसे बीच अति, गोविंद गोवद गाईया । हो पीर लाय इतरो हुये, ग्रालम चोरें ग्राईयां ॥ १ ॥
1
रहमांगी राघवी पारि पहिले क्रिपा करते कान्ह श्रतघ संसार आज भले वातडे, आज रविवारू आज हुऔ आणद पाप नाठी पंन सेतले तरणा दरसरण सही, पीर कवेसरि पाइया । घन घडी आज मुहरत घन, ग्रालम चोरे ग्राइया ॥ २ ॥
पूगी ॥
पहचाया ।
तराया ॥
ऊगो ।
मांहि वैठो महाराजा ।
-
भिले भिले भेगां, सरव ग्रह हुआ भिले भिले भगवत, अघळ ताहरां असर कमळ विचि एक, दिलि भीतरि देवता, प्रभ तो नांम रे पीरिया, जिकुस कलांग तग्गा चरणा कने, आलम चोरे प्राणिया ॥ ३ ॥
रहे
रामइयो राजा ॥
सखरी जाणिया ।
सवाडा ।
प्रवाड़ा ||
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[ १०६ ]
धाह, थाह खरसांग
उरेरो ।
घरोरो ।
प्रथिमि उडिस दोडे नी दोड़ि रे, घोड़ वडगड़े श्राव रथ ग्रहची, हाथ वाहिरा कहल | थारो दाखे भल । तू धानतर घरणी, भला कवि तरणी पुत्र साजो करे, कवि थारे रे काम छै । हरिदास ईए यारे हुग्रो, आलम आवे आहचे ॥ ४ ॥ वांग गंगा वहतेरा ।
सिधि सागर सारखा, "पंच तीरथी प्रिघळा, सेतवंदह सह तेरा /कासी सरखा किता, जमरण सरसती सिगळा जळ । परव तोया अरण पार, चित्रकोट उद्य/चळ । खरां 1 वदरी केदार सरीखा वहत, खॉरालंभ राखण उमरण करें तीरथ इता, श्रालंम चौरे ऊपरा ॥ ५ ॥
"
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परिशिष्ट १
३१ परमेसर पुराण के छूटे हुए पद्य पद्य सं० ६१ के बाद
साधा माही सोहियो, प्रासागिरि तू आज ।
वड हथ सोढा वैरिसी, जोई वारठ जसराज-६२ पद्य सं०१०१ की १ लाईन के बाद
पुरी दमोदर पीर नां, त्रीकम पारि उतारि-१०४ वीरौ - सचियो वीर वर, तमण हरै ना तारि।
सुदरि जेठी सारिखें, मलिस जमै मंझारि-१०५. पद्य सं० १०६ के बाद
भोळी गति रा भाईया, अलख पधारे आज । मिलका घर वे सामीया, सेसा ना सुभराज-११० गोसांई साई गहन, तखति वैसि तुड़िवाण ।
काइमि राजा न्याउ करि, राजि वहा रहमाण-१११ पद्य सं० १०६ के बाद
गति मा आपो गोविंदौ, दईतां रौ घरि दुक्ख ।
बांभण पीपळ ₹ वहत, सुरहि घेनरी सुख-११४ पद्य सं० ११३ के बाद
कितरी.................." या, कहि भुनां करतार । नर हर हुँ स... .. ... " नही, अइयो पिथ अवतार-११६ ते पहिळादौ तारियो, असख वार अपरंम । प्रथला दइत पछाड़िया, कान्हड़ तणा करंम-१२०
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[ १११ ] नंद महर रौ नाहीये, गोविदि चारी गाइ। निसचर वालो नेस मां, लखमण दीन्ही लाइ-१२१.. वैरीयांना हळ वाहिया, वळिभद्र बुध विरदाळ ।
के कीधौ कपट, ज्योन धरम जमजाळ-१२३. पद्य सं० ११५ । पद
कुरण थारी कीरति करें, निहचळ थारो नाम । तूझ तणे बारट तिणे, रावा सांभाळ रांम–१२८ गति मा राखै गोविंदा, जयो अजंपा जाप । पगे लगाड़ो पीरना, वारट छै मां वाप-१२६ (सा० रि० सो० कलकत्ते के सं० १७१२ वि० गुटके से)
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परिशिष्ट २
गुण छभा प्रव
गाहा सरसति सुमति संमपि सुर सामिरिण,
गौरि तरणी' हंसागांमिरिण । कोमळ काया कपारी कामिरिण,
ब्रहमाणी दे वरदाइरिग ॥१॥ ब्रहमाणी देवी वरदाता,
मौ वर देअर सरसती माता। ते वरदाया देव विरवीयाता,
तो वरणविर्य देवि विधाता ॥२॥ . वेद वदन तोरो वधवारणी, वघवारणी दे अविरल वाणी। रखण लाज पंडवा राणी, पणां सकत हूँ सारगप्राणी ॥३॥ पग पूजिया परम पंचाळी, पचाळी पति लज्याळी । कीध अकथा नथरण काळी, ताइ मति सारि वदां वनमाळी ॥४॥
छंद मोतीदाम तो वदा वनमाळी आदि विसन, पचाळीय पूजि किसन प्रसंन । पंचाळी पूजे पाउ परंम, धरम तणे घरि आदि धरम । आगे एक बार कहै जुग एम, जुजठिळ ज्याग किया बळि जेम। रायां संह रूप जुजठिळ राव, कियो द्रिगविज कथन कहाव । अंनोइनि राणी राउ इनेक, सुर नर आइ मिळे सबमेक । आया सहि सैरण दुजोवरण पाव, रायां-वळ रखरण पोखरण राव । दजोवरण सनधि दुसासन, कंणे-घु रखरण कोप करन । मूल प्रति में इस प्रकार है
१-नरनी, २-वदेश,
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[ ११३ ]
सारिखा डाहिली अ ससिपाळ, भेळा दोइ लाख मिळे भूपाळ । भगता हेत छुवै भगवान, करै झिकाळ चत्रभुज कान । गाय मुगधा मुखि मगळ गीत, गंमागमि ग्रवप ग्यान संगीत । वड़ा रिख वेद वद तिण वार, हुतासरण होमि इंमृति अहार । सहूँ इळ साजन सैरण समाज, विलोक विलोकति राज विराज । महामिण माणिक राजमहल, नवला चित्त चिरति नवल । इसा मय दारणव आइ उकत्ति, महल विणाया माया मत्रि । जळे थळ जाम थळे जळ जेम, उपाया माया मंदरि एम। महा कीय देखित भुलीय माहि, चक्रवति भूलि गयो सव चाहि। दुजोवरण भूलिवरणी सब देखि, विचखण भूलो लेख विसेखि । निरखे आगरिण आधा नीर, धरे पग पाछा ताम अधीर । वलेत भीत भरजि विचाळ, कटकेय पाथर बीच कपाळ । आयो दुरजोधन देखि असीघ, कौतुहळ हास पचाळीय कीध । दुन्है कर ताळीय ताळी दीध, सुखी सुजिपति हसत सवेम। हसी पंचाळीय भोळी होइ, कितु कळि होइण हारय कोइ। टहटह भीम खिले परि तांह, ऊपनी वस विरोध अथाह । मडागो मूळि कळेस मडाग, रीसारणो दूत दजेवण राण। वेसासो हासो एह विरणास,"..... • • .. ..............। खरी लोय लागौ वैरण खटक, हुए दिल खाटो जीव हटक । हुए ब्रिष वैरण हुए बह हांणि, जाळोवळ सांप लगो अंगि जाणि । चड़े मुखि क्रोध किया चखचोळ, वहादर दूखांणी जळबोळ । भुठठे डसरण काठा भीडि, सजोधन सोच सको जस भीड़ि। राया चीय पकति वैठौ राउ, निहाळय घोमक उर न्याउ । निहाळे आडी दीठ निभंत, वळि भरि कावळियो वळिवत । रवि तळि " समै भ्रमराव, पूजे परपोतम उत्तम पाव । कथरी कुकम केळ कपूर, पूजे परपोत्तम पाउ पऊर । पखाले जीह नमी जळ पाउ, चरचे चदरण कुकम - चाउ। ३-भिचाळ, ४-धरेप।
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[ ११४ ]
पहप परमळ श्रीफळ पान, भगत जगत वदे भगवांन । जुजठळि ज्याग तणे फळ जीत, प्रवति हुयो पग पूजि प्रवीत । समै तिण काळ चड़े ससिपाळ, वडो सुर बोले बोल विसाळ । जुजठिळ भीम अने अरिजन, करौ पग पूज" अहार किसन । राज सज्याग विष ध्रमराज, अहीरां पूज सपेखी आज । वदै विस वैरण इसा विस लोउ, सुणे सुजि राणा रांउ सकोइ। सुरण सुजि बैठा सामि सरीर, वचन-वचन हसै वळि वीर । अरिजन ताम लगे तन आगि, मरोड़े मूंछ न बोले मागि । कहै निज नाथ सुण सह कोइ, लहेसी लेखा पाखे लोइ । वर्दै विष वाणी वारोवारि, सिरजण हार गिण सुविचार । गणता सौ लग संख्या गाळि, पग पहलौ हरि वोल स पाळि । इस अोधारण थकै सु विमेक, अरिजन गाळि दई तव एक । अरजण गाळि सुरणे आवाज, रिदै वह रीस चढं ब्रिजराज । करे करि चकर कोफ कराळ, कियो ससिपाळ तणौ तद काळ । हयो पैपाति मिसो मिस हाथ, निमो वनमाळी काळोनाथ । निमो नरपति सहसर नाम, पथारीय सारी कीध प्रणाम । समै तिण राणा राव सकोइ, वर्दै गुरण नाथ तरणा विस लोइ। भलो दिन आज अमीरगो भाग, जोय परतकि पुरिख जियाग। सहुँ मिळ सीख कर सप्रसन, वळे पग पूजे आदि विसंन । विसनोई सोख करी तिरण वार, वळे धुज भूखरण कंस विडार। वळ्यो दुरजोधन लेह विरट्ट, मिटे घट हुँता मांग मरट्ट। कहै दरजोधन एम कथन, सुकनीय सिनध ... "दूसासन । करौ बुधवत इसी बुधि कोइ, पचाळीय लोपा लाज पळोई। इसी अम्ह एक कियो अपवाद, खरोखर डकै वैरण विक्षाद । वळे जद वैर पंचाळोय वैरण, निसा सुख नीद करा तद नेण । सुकनीय जप राउ सरिस, महा मतिवत करां मिजलिस। करां कळ कावळ कूड 'कपट्ट, वुलाव पांडव देशा पट्ट। ५-पू, ६- धा
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[
११५ ]
जुजठळ हारि विसा इम जोइ, विहाणे दूत रमै विस लोइ। जुजठिळ भोळी ठाकुर जारिंग, न जाणं दूत विद्या निरवारिण। रतन हर निज ता पद राज, विहांग लूटि लिया गज वाज । पचाळीय तागिलियां बुधपांरिण, विमालिनिघात सघात विहारिण। रमे छळ छेतरि सांध्रमराव, इसौ चिहुँये मिळ कीध उपाव । चियारै चौपडि खेलण चाव, रची मनि वात जुजठिळ राव । कहै दुरजोधन एह कयन्न, विनै विध पडव पेम वचन्न । अभै भड चोपडि खेलण पाव, रजे म ताम जुजठिळ राव। जुजठिळ कीध कुमति जिकोई, होवे सुजि हुवणहारी होई। विधाता लेख लिख्या चवरण, तिसौ जळजोग मिळे दिन तेरण। लिख्या क्रमि लेख तिसी बुध लेय, बइठा चोपडि खेलण वेय । रव तळि कैरव पाडव राव, भेळा मिळ दूत रंमै दोइ भाव । जुजठळि पासि नही अरिजन, सहदेव न भीम न कोइ सजन । सुकनी माथै पारिख साखि, रव तळि राउ विहुँ मिळ राखि । कहै दुरजोधन एम कथन, सुरणी भ्रम राजा ध्रम सुतन । जुजठिळ हारे खेल जिकोई, वहै वनवास वदै विमलोई। वरस दवादस श्रीवनवास, अकचन छोडि खवास अवास । जुजठळि नाहि न भाखै जीह, दुरमति प्रापति थी तिरण दीह । हू वाळ म. वे होड-होडि, किया मनरथ मनोरथ कोडि । दुजोवरण कूड़ रमै रस दाखि, सूकनी कूडी पूरै साख । जुजठिळ जीपै खेल जिकोई, तवं दुरजोधन जीता तोई । सुकनी वाद वदै वह सद, जुजठिळ हारविया जन पद। हुई जुजठिळा माथे हेळ, खिलै दुरजोधन जीता खेल । जुजठिळ राउ दजोवरण जीत, किया पंचाळीय चीर पुनीत । पथारी पायौ राव पळोयि, जुजठलि वैठा हेठी जोइ । गाढौ दरजोधन काढे गात, छत्रपति छाह वैराजा छात्र । दुजोवण रूप हुयौ ते दीह, जपैजिम आवे नावै जीह । ७-सदेव, ८-सूपनी, ६-मिमै ।
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[ ११६ ]
जुजठळि राउ राज थळ जोइ, धणी धरण खोइ खड़ा मुख धोइ। हरू नर तन जनपद हारि, बैठा क्या काह हिम दरबारित वजो निज पास भुजो वनवास, अकचन डूगर जास अवास । वही पथि लागे. वारो बार, बइठा कासु वधे बारहास रिम हाथो ताळी होइ, पंचाळी माथे मीट पळोइ। कहै दुरजोधन एम कथन, दुरग दुबाहा दूसासन,। जुजठळि राउ त घरि जाउ, अठे पचाळो पाकडि पाउ। हसी पंचालीय पूजवि हास, कुभाखति पूछाँ वरण विकास । दुसासन ऊठ ताम दुरति, करे तसलीम करेवा क्रित । मलप राज महला माहि, चले मुख चख पंचाळी चाहि । दुसासरण मुख पंचाळी देखि, विळकुळि उठी ताम विसेख । निरमळ लेकरि गंगा नीर, वध मुख वारिण वदती वीर। दुसासरण गाळि हियै चढ़ि दिद्ध, करगहि केस अक्रषण किद्ध । पचाळीय पेटि विरट पडेह, चद्राइण पाणि विवाण चड़ेह-! भई भभीत भयो चित भ्रम, किसी दिसीया कुण पाप करम । मोरी उपराध किसो इळ माहि, दइव तणं इम पायो दाइ। पंचाळी पाकड़ि१० वांह पगार, वळं उरिणहीज पगे उरिण वार । पंचाळीय केह कर विलपात, लगावत जात दुसासन लात । सत्तीतन-नाभ वैसे सास, विसासौ पडव पच विरणास । पंचाळी वात विचारि परोगि, अरजन भीम नही आरोगि । अरिजन साजो नाही आज, इसीपरि मो सिर होत अवाज । वदै पचाळीय दोन वचन, दुरातम देवर दुसासन । विना उपराध विरोव मि वोर, किसु करया तें वैण कंठीर । दुसासन वेण विषे वल देय, लिये जिमदूत चल्यो-जम लेय। दुळे दोड रांगीव "पाय धार, वेवटै डोरोय मझ बाजारि। सदा सुभवतीय सीत-सुरख, महा पनवंतीय पालर मुख । मुखे गळवती आदि महेस, पुळी परिहथि बजार प्रवेस । १०-पापाकड़ि।
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[ ११७ ।
बाजारीय लोक हजार विच्यारि, हुवा हेक कोगति देखरणहार। वर्दै नर एम सिको विसलोय, हरीहर असीय केण न होय । पंचाळीय लार लगै अणपार, करै नर नारीय हाहाकार। अखत्र अध्रम वडी उतपात, वडीयरिणचंत अछाजति वात। चद्रारिणरण पाकडीयां परि चोर, जुलमीय लेह चल्यो करि जोर। पंचाळी माथै हाथ पसारि, दुसासन ल्यायो राज दुयारि । पथारीय पायो वाह पळोइ हैरान पथारी सोरीय होइ। मोटा मडठीक पथारीय माहि, चवं मुख त्राहि इसीपरि चाहि । जुजटिळ भीम अने अरिजन, निहाळ नीचा ढाकि नयन । पितामहि भीपम ध्रोण पळोइ, खंढा खोणि खत्रीवट खोइ । करे मुख झखो ताम करन,........
.......................! करे हाकार भला करतार, ... ... ... ... .. ..." "| सती दुसासन सगठ साहि, मरोड मूछ पथारीय मांहि । सजोधन राउ कहै दिन साइ, पधारोय पचाळी पन पाइ। घरण सुरही ताय सोचि घड़ीय, चद्रागिण खोळे गाइ चडीय । तुहार खोले मेलै ताळ, चड़ेसी भीम गदा चडाळ । दुजोवरण देवर खवरदार, गर्म तिम वोल न वोल गिमार । भणं जग तात वडेरो भ्रात, मंगजे भौजाई जिम मात । मोर नह पंच भ्रतारीय माइ, सती गधारीय जगि सराइ । पंचाळीय आज इसपर जाइ, पुजा वह प्रांमिस जीभ पसाइ। विमासण छोडि दुसासण वीर, चंद्रागिण काढ़ि कहा तम चीर। वडा रजपूत किसी हव वारिण, पंचाळीय पौढि इस अविसारण। वसत विसुति वेगा कर वाहि, मोरै फुरमारिण पथारीय माहि। हुयौ दुरजोधन एम हुकम, हजूरिज हुँता एह स हम । वर्दै दूसासण वारोवार, पचाळीय पलव छांडि पियार । सिर घट घूघट घट सरम, हम पट प्रोढत जोत महंम । अरिजन भीम तणे प्रासारि, न छूटिस नारिस अंखि निवारि। जुजठिळ सार लिगरि म जोइ, हिम करतार न आडो होइ।
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{ ११८ ]
कहां करतार सकूड़ म कथि, हिम इण ताळ चड़ी इण हथि ।' जप दुसासन होइ जिकोइ, सभालेय उपरि सापर सोइ ।। अंमीण ऊपरि छ धुरि आज, रवि तळि एक अछे ब्रिजराज । अछ विजराज भगत अधीस, विसव आधार विसवा वीस११ । उवारै तुझ इसौ कुरण आज, रामां थळ छोड़ि गियौ ब्रिजराज । दुनो सोहि देखे धोळेइ दीह, बीहावं प्रबल एह अबीह । पचाळीय पाकुळ व्याकुळ पांरिण, रूठी दुसमण दजोपण रांण । गमे पति वैठा धोरण गगेव, देखे सिर ऊपर सूरिज देव । हुवंता देखि सती परि होल, हुयो हथरगापुर हालकहोल। पचाळीय देखे एहा पार, विखो१२ आइ वणे इण वार । विणठो दाउ हम विसलोइ, हरी काइ प्रारण मुगति न होइ। प्रमु कीय पारथ भीम पचार, हथौहथि दीध जिन्हा हथियार । कहै पचाळीय काह करेस, दमोदर मदर ओखामडळ देस । हुरमति इजति रखणहार, विसंभर वेग लडो इण वार । अविसर हाजिर नाहीय आज, रुखावर वेग लडी विजराज । करै कुरण सार पखै करतार, विसन अधार जिसी तो वार । पंचाळीय जपै जीवन प्रांण, अहो प्रम तुझ तणा अविसारण । निसु ग रखे लज लोप नाथ, सुता सिर ऊभा सामि सनाथ । रावा त्रिभुवन छपना राउ, अम्हीरण ऊपरि सापरि पाउ ।' पथारीय देख देखे पथ, हुई हव कथ-अकथा हथ । धरै कहि केम पंचाळीय धीर, विलगौय चीर दुजोवरण वीर । पंचाळी खालीय पडव पाथ, अनाथ हुई हैं नाथ अनाथ । सुता सरणागति साम सरीर, विसभर वाहर धारय वीर । अम्हां अबळा बळ तोरौ आज, रहै निज लाज सोतो विजराज। निरवळ नारि पुकारै नाथ, सदुखा साद सुरणे ससमाथ । समै तिरण सूती सेझ संमारि, मुकंद मुरारि समद मझारि । गोमां उपकंठ समदा गांम, सुतौ श्रीय सु दरि मिंदरि सामि । ११-ईस, १२-विमो।
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[ ११६ ] 'विसन विसव तणो विसतार, नीरोतरी सूतो नीद्र निवार । पचाळीय लोचन लोचन लोई, हुई अति प्रातुरि अ परि होई। हुी अति आकुळ व्याकुळ हंस, वेसासो नायो कस विघंस। पड अति अंखीय असुय पात, विमासत जात अजोचत वात । वदै लोचतीय लोचन वाम, नाराइण निगण तिगुरग नाम । दमोदर सु दर दीन दयाळ, गदाधर गोधर नद गुवाळ । वईकंठ धाम विष जगवास, पिता महा नाम पदम प्रकास। हरी हरिणख विडारण हार, सखासुर मारण वेद सकार! विरौलण सायर आदि विसन, रांमा रभ लेवण लंभ रतन । नरसिंथ भारी वामरण नाम, किया पहिलाद किता सुभ काम । अहो दुजराज प्रताप असख, सहसारजण भजण सख । रवी रुघवस तणा रवि रांम, विधांसरण कुंभ जिसा वरियाम। विधांसंण रांमण लक वरीस, अजोध्या नाथ भगत याधीस । हिण्यो कपि वालि सुग्रीव हकारि, वडागिर तारण वधण वारि। जिन धुय वालण जीपण जग, नवे ग्रह छोड़वणा निवळग । निरगुरण अगरण खेलण नद, चिरति अंणकल गोकळ चद । सकोमळ कोमळ लज्ज सरोर, विनोदीय ब्रम कमोदीय वीर। वळिभद वीर महावळि वंत, अगासुर काळ वगासुर अंत । हरी सगठासुर भजणहार, पलंव पहारण ठीक पहार । वडा सुरसइ पछाड़ण वोमि, भुजां वळि पाडण ताड़ण भोमि । विडारण केसीय कंस विडार, भुजोनीय भोमि उतारण भार । विद्रावन पावन लील विलास, रितपति रंमण मडण रास । कळा निज नाथ क्रिपानिध कान, भला भगवत भला भगवान । मला भगवत भगतां भीर, गिनारगद मोखरण ग्यान गहीर। भला थिर थापण धुह भगत, पिता पदमन असख प्रवित । “भला गज मोखरण लछी भ्रतार, हरी पहलाज उधारण हार । उचारण हार अगै अंबरीख, सांई दुरसा [?] देवरण सीख । वळे अवतारी आदि वराह, मही दधि डोहण ग्री मुख माहि ।
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[ १२० ]
भला कळिपतर चुतरभुज, विच बरण रखरण लज्या विज.. अगै ते इंदर अब उतारि, एकरा गोकळ गाम उवारि। वळे छळ गोकळ वीजीय वार, हथौहथ पावक पीवरण हार। वळे नद नदनतं नंद वालि, देवा तनयां विह देव दिखाळि । वळे लछ वेळा लोला ब्रम, वळे १३ देवा तन दाखिस व्रम। बाणासर हंदो छेदै बाह, बईकम देव स दीठे ताह । दीठौ पच पडव देवातन, जु ते लाखा ग्रहि कीध जतन । देवातन देव सदामाव दाखि, सुरति संमति भरै ते साख । तुहारी देव स देवातन, जसौदा दीठो जग जीवन। देवकीनद तणे दरिवारि, मुरपुर दीठा मुख मझारि । किठीग्यो मोरी वार किसन, तुहारोइ देव स देवातन । वळे ले दळ देव तुहारीय वार, किसू सुखि सूतौइ नीद करार। निरंतर अतरजांमी नाथ, सरोतर वात नही समराथ । विसमीय वार अछे वळिवीर, चंडाळ विलगै चोटीय चोर । सुतो की जागि हमै घणसाम, करमि यकारां प्राविस काम । रटतांइ पचाळीय विजराज, इसो सुरिणयौ भरि नीद अवाज । समै तिण जगे कन छछोह, सतावीय उठे लज्ज समोह । सेझ'सरण हुँनाय सामि सनाथ, हुया हरि ठाइ नीछटि हाथ । कियौ हाकार विवार किसन, महा हुइ याकुळ व्याकुळ मंन । रामा कहितास खमा विजराज, भए अति आतुर चातुर भाज। पचाळोय भीड पडी पछारिण, पलंग तजे तद सारगप्रांरण । घरे मिन सौच तजे मन घाम, तजे कमळा कमळापति ताम । इसा हरि प्रातुरि प्रातुरि ऊति, पुळे पंखराउ विलगा पूठि । लिखमीय भुलि गई घस लोई, किठी गौ नाथ निरंतर कोई। निकदर वीरोय नाथ निरत, कलपति सांमा सौच करंति । चडे नन चद दुडदोइ चख, इसा हरि धाया आप अलख । की जां मगन पग न कोई, विमासणि गोपि करै विसलोई । १३-वगे।
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[ १२१ ]
हुई बह लछीय हारोहार, विमारणसण गोपि कर तिण बार। निकुगुरडासण बंठा नाथ, सुखासण रेवत रथ समाथ । पयादोइ नगै पाउ परम, वहै अति अातुर चातुर बम । विमाळ न कीध न ताळ विमाळ, चत्रभुज धायौ छूटी चाल । खगेसुर छेतरियो पग खेह, निरंतर धायो एम नरेह । वदा तांई वैरण किती एक वार, आयौ हथिणापुर पंथ अयारि। कुसमथळी हथणापुर केथि, तईकम आइ पोहतो तेथि । पीतंबर धारीय चकर पाण, सवे अटपटीय पाघ सुहाँण । महोरति अखि तण अध माहि, आपांणांय दीध दीदार स आइ । पचाळीय दीध दीदार प्रिथम, परै करि धीरज दीध परंम । दीदार स पच पडवा दीध, क्रिपा निज नाथ क्रिपा बह कीध । दजोवरण देखे नाहि दयाळ, छभा विच ऊभा कान्ह छोगाळ । निकु दुसासन देख नाथ, सम विच ऊभा सामि समाथ । वदै दरजोधन एम विसेख, दुसासन काह रह्यो हव देखि । पचाळोय पलवि छोडि पलीत, देखे पच पडव देव दईत । मोरै मुख प्रागळि देव मझारि, निरखे लोक नगी करि नारि। निरखे लोग लग नख चख महा सहि सूरति सुदरि मुख । अजाई ताई मुझ अछेह, न भागोइ नीधक छाती नेह । वदु ताइ वैरण किती एक वार, धरे सोइ चोर सरीरां धार । नवी ते माहि वळे नवलग, रुळ पग लग सपोत सुरंग । न दीसे चख न मुख न नख, सती मन माहि हुयो वह सुख । हुया हरि लज्या रखणहार, किसनइ मन प्रसंन करार। दुसासन हाथ पसारै दोई, वळं ते चीर लिया विसलोई । वळे वप ताईय होइ विभति, भलै रग पोति भलेरीय भंति । चद्रारिणणि नख सिखा लग चीर, सोहै हज पख सरीख सरीर। सोई दुसासन सगठ साह, बहादर खाचि लियो वळि बाह । वळ ते माहि पसाइ विसन, वरणे वप अंबर मेव वरन । वरी करि कढेइ वारोवार, हथोहथि पूरेय पूरणहार ।
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[ १२२ ]
निनारणंय सो लग चीर नरेह, लिया दुसासण दाव लहेह । अजाँ पचाळीय गूंघट प्रोट, करै हरि रखीय कपड़ कोट । कहै दुसासरण कारण कोइ, अजा ही नगीय नारि न होइ । तंणौ घणसाम वणे वप ताण, इसी निज नाथ तणी अवसांण । जंग जंग साजण दूजण जोई, हुयौ दलगीर सगा गुर होई। मिजालस मंडीय माहो मांहि, चत्रभुज आयो प्रोसर चाहि । भगता भीड़ पड़ी तब भीर, सदानो आयो साम सरीर । कहै इम राजभा सह कोई, हरी विरण में कुरण कारण होई । लोपै कुळ कुरण पचाळीय लाज, रहावरण सामरथी विजराज । पचालीय चीर परम पसाई, अखूट अतूट हुमा इळ माहि । हुया दुसासन थाकिय हाथ, न थाकी गंवीय गोकळनाथ । दजोवरण दूरि स झूर सदत, कहै इम भीखम काल कयत । हम घरिणयाइ हुईस हद, सहसबळी बहसै वह सद । तिसौ छ पै कर नाखिस तौड़ि, मरघड़ नाखिस हाड मरोडि । दुसासन दूरि हिम दुसमन, पितामहि भीखम ध्रोण प्रसन । भली जरणी कीय पारथ भेम, तवं तारीफ पितामह तेम । साचा सूसाचो सामि सुरत्त, विसंभर राखण संत वरत्त । सती चौ सत रहै रवि साखि, रहै जिम राखण हारै राखि । किसंनाइ जप वाप किसन, भली परि राखीय त्रेण भवन । किसन किसना स्याहित किव, दजोवण मुख न जोवरण दिध । भगता भीड पडी भगवान, किया नह अखीय आडा कान्ह । किया नह अखिय प्राडा क्रग, जसोदानदन जीवन जग । देवकीय नदण दीनदयाळ, छमा छळ रखरण कान्ह छोगाळ । पंचालीय राखिय लाज़ परम, सवाई राखै तेम सरम । , जपै हरिदास अजपाइ जाप, मोरी पति राखिय मां बाप ।
इति श्री छभा प्रव सपूर्णम्लिखत लालस हरिदास । वाचे तिनै राम राम वाचिजो जी।
1 श्री । समत् १७७"मिती फागण वदी १० । श्री।
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पीरदान-लाळस-ग्रन्थावली
अनुक्रमणिका
cont
शब्द-कोष
अकलर (६०, ६१, ६२)-देखो
'अरिया', अक्रूर, श्वफलक अंकुर (६२)-अक्रूर। अंत (३६)नाश।
और गोदिनी का पुत्र एक
यादव । अंवर ( ४७ )-पासमान । अंवरीप (६६)-राजा अम्बरीप। अकरूरि (६०)-देखो 'अरिया'। यह सूर्यवंशी राजा
अकल (७१)-व्याकुल ! इक्ष्वाकु की २८ वी
अकलि (१००)-अक्ल, बुद्धि । पीढी मे हुआ था।
अकाज ( ६६)-१ न किया जा सके यह परम वैष्णव
ऐसा महान् और कठिन कार्य, था अत इसकी
| २-विना कारण । रक्षार्थ विष्णु के | अकिरिता (२७, ३८, ४२ )-अकर्ता चक्र ने दुर्वासा | अक्रम ( ३७, ५६, ७१ )-अकर्म, ऋषि का पीछा
पाप, दुष्कृत्य। किया था। अरिया (६०)-अकूर । एक अंम्हाना (६६)- मुझको, हमे। । यादव का नाम, लोक प्रसिद्धि अई ( ३६, ४५, ६० )-अहो, अरे । के अनुसार यह श्रीकृष्ण के अईयो ( ३५, ४५, १०२) -अरे । पिता वसुदेव के भाई थे। अकरम ( २३, ४६, ६६)-अकर्म, कंस की सभा मे असम्मानित
पाप कर्म, दुष्कृत्य । होकर रहने वाले व्यक्तियो - अकरमी (४१)-प्रकर्मी ।
मे इनका भी नाम है । परन्तु
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[
२
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इनके पिता का नाम तो | अग्रंमु (२८)--अगम, ईश्वर ? श्वफलक था और इनकी | अघ ( ५०, ७४)-पाप । माता का नाम गोदिनी जव | अघड ( ७७ )-वह, जिसकी रचना कि वसुदेव के पिता का नाम
न हुई हो। देवमीढ और माता का नाम
अघासुर (५९)-अघ नामक असुर मारिपा था । संभव है दोनो
(राक्षस) निकट संबंधी और एक ही अचासुरा ( १०३ )-एक असुर। 2 कुल के हो जिस से अक्रूर, अछती ( १६)-गुप्त । कृष्ण के चाचा कहलाये।
अछतो ( ३८)-गुप्त, गायव । अखंड (३५)अटूट, अविच्छिन्न, ।
अछेद (४६)-अछेद्य ।
अछेप (४, ४६)-अस्पृश्य, स्पर्श पूरा।
रहित । अखियात (३०)-अद्भुत । अगथि ( ५६ )-अगस्त्य ।
| अजपा ( ३४, ३५) वह जाप जिस अगन (५१) अग्नि ।
के मूलमंत्र हस का उच्चारण अगम ( ३५, ३६ )-अगम्य, जहां
श्वास प्रति श्वास निरन्तर जहाँ पहुँचा न जा सके।
होता रहता हो, अजपा, हस
मत्र । अगल ( ५४ )-पूर्व के।
अजपा (४५)-उच्चारण न किया अगादि (४६)-पूर्व का।
जाने वाला तात्रिक मत्र । अगासुर (४, १००)-अघ नाम का अजमाल ( १६)-अजमाल नामएक दैत्य जो कस की खास
धारी। मंडली का असुर सेनापति था | अजरी (६४)-चचल, उत्पात करने तथा जिसे कृष्ण ने मारा था।
वाली। इसे बकासुर और पूतना का | अजरौ ( ४३, ७०) ब्रह्मा (प्रज) छोटा भाई भी बतलाया
का। जाता है।
प्रजाच (४०) अयाचक । अगासुरां (१०३ )-अघासुर नामक | अजामेल (७४) कन्नौज निवासी असुर।
एक ब्राह्मण जिन्होने आभग (३५)-अगाडी, भागे।
जीवन न तो कोई पुण्य कार्य
ज
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[
३ ]
किया था और न ईश्वरारा- | अगवाह (५५)अथाह, अपार । धना ही।
अरणपार (१४, २८, ३५, ५२)अजायो ( २)- अजातः, अजन्मा ।
अपार, असीम । अजीत ( ३५ )-वह, जिसे कोई । अणबूझ (६१)-अल्पज्ञ, अज्ञ, अनजान
विजय नही कर सके, अजयो। अरणभंग (७)-वह जो कभी नाग न हो अजीता ( ६३ )- अजयी। अरणमोल (४६)-अमूल्य । अजुमाळ ( ६७ )-उज्ज्वल (प्रकाश) | अणरूप (२७, ३५)-अरूप, विना (१०२)-उज्ज्वल करिए,
रूप का। वश को उज्ज्वल | अरणवर (१३, ६४)-विवाह के अवसर करने वाला।
पर दुलहा अथवा दुलहिन के साथ अजुमाळा (६६)-उज्ज्वल करने | रहने वाला सखा या सखी । वाला।
अरणवी (३१)--'लाना' का प्रेरणार्यक अजू आळिया (७६)--उज्ज्वल किये।
रूप । अजे (२६) अभी तक ।
अणसही (७७)-अनुचित । अटल (३७)-दृढ ।
अतरी (२१)-ज्ञानी। अठ (४१)--यहाँ।
अतळीवळ (६६)-अतुलित, बलशाली अडियो (२९)-अट गया, भिडा ।
अताग (८) त्याग रहित अयवा
अत्याज्य । अडूर (१२, ३७)-जवरदस्त,
अति (४२)-अत्यन्त । वलशाली।
अतीत (३५)-निर्लेप, विपम, पृयक । अरणकल (७, ५४)-समर्थ शक्तिशाली
अत्र (५०) यहाँ। वीर।
| अमीरी (दीकरौ) (६६)-अत्रि ऋषि का श्रण (अरणजीव ?) (४०)-नही।
पुत्र दत्तात्रेय ऋपि । (४९)-विना, रहित ।
अथरवरण (३१)-अथर्ववेद । अणकल (२७)-ममर्थ, शक्तिशाली ।।
अयाह (३६, ७४, १८)-अपार, अणघड (६१)-अनगढ ।
असीम । अरगजायो (४५)-अजन्मा । अदल (२७)-न्यायशील । अरणयाह (१८)-जिसकी कोई सीमा | अदला (१०३)-(अदलादेव)न हो, अपार ।
न्यायकर्ता।
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अद्यान (५०)-उदासीन । | अपंपर (२३, ४६, ८८, ६६)अव (४५, ८६)-नीचे।
___ अपरपार, असीम, महान् । अषक (५.६)-अधिक ।
अपपरि (७१)--ईश्वर । अबकि (२३)-अविक।
अपराव (२३)-गुनाह । अवरम (४०)-अवर्म, पाप । अपरेत (४६)-निर्मोही। अधिका (३८)-अविक ।
अपार (२३)-असीम । अविकि (२०)-अधिक ।
अप्रवीत (६४)-अपवित्र । अधिकेरा (३८)-विशेष, अधिक । अवखौ (१०)-कठिन, दुल्ह । अधिको (२५, ३६, ४७, ७०) अविक, अवदाळ (१६)-महान उदार । मुसअनम (४६)-अधर्म ।
लमानो द्वारा माने जाने वाले अनड (३०, ४८, ५१)--पर्वत ।। महान ईश्वर भक्त जिनकी अनमा (४० --अन्य मे।।
सख्या तीस मानी जाती हैअनरज (३०)-अनिरुद्ध, प्रद्युम्न के उसी तात्पर्य से उपमित यह
पुत्र और श्रीकृष्ण के पौत्र । गन्द वना है। अनगो या (88)-अत्रि ऋपि की अवाथ (७८)-विना वाहु ।
पत्नी अनसूया । अवाहं (२७)--विना भुजा का। अना (४३)-और।
अभिगि (८४)-अभग, वीर । मनिलि (५०)-अनिल, हवा । अभियागत (५)-( म० अभ्यागत ), अनीन (३६) (अलील)-लीला रहित,
नम्मुस प्राया हुआ । रंग?
अभेद (४६)-अभेद्य । अनु (०६)~-१. अग्न, २ अन्य । अभ्यागत (७०)-अतिथि, संन्यासी, प (३८ ५०, ७४)-अनुपम,
फकीर। अदमत। अमर (३८)-दवता । गले (४६)~ोर।
प्रमरण (८०)-अमरत्ल । ने (८०) बदन।
अमरां (२०)-देवतायो। " (६२, ३८, ४३, ४४, ४६, अमां (८६) हमारी।
५,६४) और। अमार्ट (६६) हमारे यहाँ । Ti(-}-चारत. आप, न् । प्रमूल (४६)-निमूल, आदि रहित ।
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[
५
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अम्य (१०३)-हमारी।
अळगौ (५२, ७०)- दूर, पृथक । अम्हा (१६) हमरे, मेरे । अलज (९८)-लज्जापहरण । अम्हाना (७)हमको। । अला (१०, १०३)-ईश्वर,अल्लाह। अम्हारा (६५)-मेरा, हमारा। | अलाह (३, ७, ७४, ९५, ६६)अम्हारै (७)-हमारे।
ईश्वर, परमात्मा, सुदा । अयाण (६६, ७०)-अज्ञानी, अल्पज्ञ, । अलेख (७, ३४, ३६, ६६)-अलक्ष्य, अज्ञ।
अपार । अयिरल (३४)-वारा-प्रवाह। अलोक (५०)-१ जो दिखाई न पडे, अरक (४३, ५२)-सूर्य, अर्क।
२. वह स्थान जहां कोई अरजां (३१)-पुकार प्रार्थनाएं।
आदमी न हो, ३. ऐसा जीव अरण (६१)-(स० अरण्य), जंगल,
जो मरने के वाद अन्य किसी सन्यासियो का एक भेद ।
लोक मे न जाय, ४. मनुष्यो अरथ (३५, ३८)-अर्थ ।
का प्रभाव । अरदास (१५, ८७)-प्रार्थना, अर्ज- अल्ला (८६)-ईश्वर । दाश्त ।
| अवतार (३६, ४२)-विष्णु का संसार अरसु (२६)-ढीला पडना या करना मे शरीर धारण करना अथवा देरी लगना।
पुराणानुसार किसी देव विशेष अरि (३६, ६२)-शत्रु।
का मनुष्य शरीर धारण अरिजण (५, ३४, ४४, ६२, ६८, करना।
७१, ६७ )-अर्जुन। अवतरियो (६३)-अवतार लिया। अरिहंत (४)-वीतराग, जिन । अवदाळ (१७)-देखो-'अवदाळ'
(३३)-ईश्वर, अरिघ्न, | अवर (३६)-अपर, अन्य ।
शत्रुविनाशक। अवरण (४९)-वर्ण या रग रहित ।
(४६) अर्हत् (भगवान जैन) अवरन (७, २७)—वह जिसका कोई अरेल (४६)-नही जीता जा सकने रग न हो, अवर्ण । वाला । अजित
अवल (६२) सर्वश्रेष्ठ, प्रधान, मुख्य, अलख (२३)-अलक्ष्य, ईश्वर ।
अव्वल । अळगा (५३)- दूर।
| अवलौ (४१)-वाकुरा।
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[
६
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अविगत (३४,४३,५३)--वह जिसकी | असराण (८४, ८७)-असुर, दैत्य ।
गति (लीला) का पार पाया | असर (१६)-असुर, राक्षस । न जा सके।
असीनि (४६)--अशीलता। अविणाम (२७) - वह जिसका नाश असोक (५७)--अशोक वृक्ष ।
न हो, अविनाशी। प्रहर (५१)-अधर, (नीचे का) हो । अविरणास (४६,५०, १०३)-अविनाश अहल (९८)-हिलना, कांपना, जोर
पडना । अविणासी (२६)-अविनासी। अविद्या (३५)-अज्ञान, मूर्खता।
| अहारिणि (१९)-पाहार करने वाली
अहि (२०,३६,३८, ४६, ६०, ७५)अविघूत (५४, ६६)-अवधूत, सन्यासी,
नाग, सर्प। मस्त फकीर ।
| अहिकार (४२, ४३)-- अहकार। अविसि (७८)-अवश्य ।
अहिनाण (१०२)-चिन्ह, निशान । अविल (३५, ५२)-प्रखड ।
अहिवेलि (८६)- नागवेल । अविलि (७४, ८०)-धारा प्रवाह ।
अहिला (५५, ६७, १०३)-गौतम अप्टंग (४३)-अष्टाग।
ऋषि की पत्नी अहिल्या। असख (१६)-असंख्य ।
अहिल्या (२, ४४, ८१, ८८)-गौतम असख (असंख) (४७)-असख्य ।
ऋपि की पत्नी अहिल्या । अमटंग (३५)-अष्टाङ्ग । ग्रही (५३)- शेषनाग । असट-कमल (१०१)-अष्ट कमल । अहीर (६३)-(सं० आमीर), वह
योग के पकमल तो हिन्दी मे जाति जो गाएं, भैसे रखती भी मिलते हैं परन्तु राजस्थानी
है तथा उनका दूध वेचने का मे पाठ हैं।
काम करती है, ग्वाला। असतूल (४६) स्थूल ।
अहीरिया (६०)-अहीर का तुच्छताअसन (७०)-भोजन करना, भोगना।
सूचक शब्द । असमेघ (१०२)--अश्वमेध यज्ञ। अहै (३२)-यह, है। असरण (४०)-जिसका कोई शरण | अहो-निस (३)-रातदिन, अहर्निश ।
नही। असरा (१२, ८७, १००)-असुर, पागणे (२६)-प्रागन, प्राङ्गन ।
आगळी (८६)-अगुली।
राक्षस।
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७
आरण (५) -प्राज्ञा, शपथ । पाछौ (२६, १०३)-अच्छा, उत्तम । (३५)-ला
आठइ (३४)-आठ ही। (६४, ६८, १०२)-शपथ, | आडा (८७ --पडा। प्राज्ञा ।
प्राण (७४)-शपथ । आणि (३५)-लाकर ।
आतिमा (४२, १००)-यात्मा । (३७)-लायो।
आतिमाराम (७८)-प्रआत्मा। ( आणी (३०)-लाया
आदमा (३१)-प्रादम । आणे (२६) लाता है। श्रादि सकति (२०)-प्राद्या शक्ति । आणी (१२, ३१)-लायो। आवार (४६)-सहारा, आश्रय । आसु (२१)-इनसे, इसलिए ।
आनिहिं (४८)-अन्य नहीं । आहचे (३०, ५३)-शीव्रता, त्वरा । आपना (४८)-आत्मन् , अपना । आईनाथ (१९) देवी दुर्गा ।
(७५)-आपको। आउच ( २६, ३६, ४२)-प्रायुध, श्रापमा (४७)-आप मे। अस्त्र-शस्त्र ।
आपरा (३६)-आपके । आकरी (१२)-- भयंकर, जबरदस्त ।।
(६६)-अपने ।
(१०३)- अपने । आखर (२३, ७४)- अक्षर, वर्ण । आखा (१७)-कहे
प्रापर (३२)- अपने, निज के । (३०)-कहता हूँ।
आपरी (१०१)-आपका। प्राखियो (६८, ७१)- कहा प्रापह (४४)-अपने। आखीयो (३८)-कहा।
आपि (३७) स्वय, दीजिए। आख (२५)-कहता है।
प्रापिया (७८)-दे दिये। आग्राज (१९)-गर्जना करती है।
आपियो (५६)-दिया। आघी (१५)-दूर, पृथक । आपै (२, ३२, १००)-अर्पित करता (८३)-सामने, आगे।
है, देता है। पाच (६१)-हाथ
आफे (३)-अपने आप, स्वयमेव । प्राचार (४१)-व्यवहार, चलन । श्राभरण (८४)-पालन-पोषण, परवआया (६२, ७१)-अच्छे, श्रेष्ठ ।
रिश। आछ (१०३)-(सं० अस्ति ) है। | आया (१०३)-पाये।
।
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[
८
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आराध (२३, २६ )-आराधना, । आहुडिया (६५)-भिड़े, युद्ध किया। प्रार्थना ।
पाहुडे (६६, ८६)-भिडते हैं । आराधा (२१)-प्रार्थनाएं। आराधियो (३४)-ग्राराधना की। इन्द (६, ३६, ४३)-इन्द्र। आराधी (२१) आराधना की। इन्दजीत (५७, ५२)-इन्द्र को जीतने आराध (६७)-पाराधना करता है। वाला रावणपुत्र महावली पाराहिया (८८)-पाराधना की।
मेघनाद, इन्द्रजीत । श्राराहै (२६)-आराधना करते हैं। इन्दतणा (५७)-इन्द्र के । धाराह्यो (३)—ाराधना की। इन्दरा (७२, ७८, ८७)-- इन्द्र का। पारोगिज (१७)-भोजन कीजिये। | इन्दर (६५)- इन्द्र । आलम (६, १०, ७१)-ससार, इन्दि (२८, ४३, ४६,७८)-इन्द्र ।
दुनिया, विश्व । | इन्द्र (८३)-देवराज, इन्द्र । ११, ८६, ६०)-ईश्वर, प्रभु।। इम्बरीक (२)-सूर्यवशी एक पौराणिक आलमडा (१४)-ईश्वर, आलम ।
राजा, अम्बरीप। पालमा ८४, ६१, ६६)-ईश्वर । इम्विरीक (४४) अयोध्या का एक सूर्य पालमौ (९१)--ईश्वर ।
वंशी राजा, अम्बरीप । आळा (९६) के
इ मिया (१६)-उमा। प्रालिमसाह (१०३)-शिव। इ हि (८५)-यही। श्रालेझि (५५)-विचार । इ (१००) ही, निश्चयार्थ सूचक आवास (३६)-निवास।
अव्यय, ही। आवि (५६)-पाकर।
इआर (१४)-इनके । आविस्य (१८)-पायेंगे। इग्यारसि (१०२)-एकादशी। आविस्य (१८, ६६)-आयेंगे। इण (५३, १०२)-इस । प्रावी (११)-आई।
इणि (४२, ६७, ७५, ७७, ८२)-इस । (१०२)-आई। इणि परि (२३)-इस पर। पास (२३, ३६, ३७, ६४)-आशा। इरिगरौ (११, ७१)-इसका । प्रासरौ (१०)--आश्रय, सहारा। इतरा (१०,५०)-इतने । आहरणो (७७)-मार डालता है, इतरी (२०, ३६)-इतरी । मारता है।
इतरौ (३६, ४०)-इतना।
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[
8
]
इता (८४)-इतने।
| इसी (४५, ४७, ४८, ५३, ५७, ६२, इतौ (४५, ७०, ७३, ७६, ६३)
३६, ७१, ७८, १०२)-ऐसा ।
इतना। इहडा (२)-ऐसे। इधक (५९)-अधिक ।
इहडी (४२)-ऐसी। इधकि (५३) - अधिक तेज । इहडौ (५३)-ऐसा। इना (५०)-इतने ?, इला, पृथ्वी। इहिकार (४६)—अहंकार। इनि (३८, ४८)-अन्य ।
इहिडी (४३)-ऐसी। इनिभाउ (६६)-अन्याय ।
इहिला (६)-गौतम ऋषि की पत्नी इनिलि (४३)-अनिल, हवा ।
का नाम, अहिल्या। इनील (४५)- अनिल । इनेक (३, २४, ३६, ४१, १००)-- ईद (३९)-इन्द्र। अनेक ।
ई (१००)-भी। इनौइति (७८)-इनोइनि = अन्योन्य। ईखै (६३)—देखती है। इम (४०)- इस प्रकार ।
ईखौ (४२)-देखिये, देखें। इमि (२०, ३८, ६०)-इस प्रकार ।
ईता (२१)---इतनी। इमिया (६५)- उमा, पार्वती।
ईये (६५)-इस। इमिया (१३)-उमा, पार्वती ।
ईस (६४)-महादेव, शिव । इमिरित (८६)-अमृत, सुधा ।
ईसर (३८, ४४, ६१, ७१, ७२)इम्यां (२३)-उमा, पार्वती।
हरिरस के रचयिता ईश्वरदास इम्या (६७)-उमा, पार्वती ।
वारहठ । इया (५४)-इनको।
ईसर (६४)-ईश्वर । इयै (५, ६)-इम । इयरा (७१)-इसके ।
ईसरजी (७४)-ईश्वर, परमात्मा । इळ (५, ६०)-इला पृथ्वी ।
ईसवर (४५)-ईश्वर। इळा (५०, ५२, ६२, ६३, ६४)- ईसा (६०)-ईसाई धर्म के प्रवर्तक पृथ्वी, इला।
एक प्रसिद्ध महात्मा ईसा। इळि (६७, ८७)-पृथ्वी इला। ईसारगद (७४, ६७)-वारहठ ईश्वरइसारणद (१) ईश्वरदास वारहठ । । दास ।
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[
१० ]
| उतिमि (३८, ४५)-उत्तम, श्रेष्ठ । उभारणा (३६, ६७ )--वलया, उत्तिम (२८)-उत्तम, अष्ट । न्योछावर ।
उयापि (६६) -उयापन करके, उन्मूउकति (२३)-उक्ति।
लन करने । उकत्ति (३४)-उक्ति।
उथापै (१००)-उन्मूलन करता है। उखिरण (२८) उठाकर ।
उदाळण (९२)-उन्मूलन करने को। उगर (६२)-उग्रमेन, कस का पिता। उद्याम (३५, ४६)-उदासीन, विरक्त उग्रसेन (५, ६६)-कस का पिता, | उद्यामी (६०)-विरक्त, उदामीन । मथुरा का राजा।
उचरिया (२, ६८, १००)-उद्धार उचरा (३८)-उच्चारण करें।
किया, मोक्ष दे दी। उचार (७१)- उच्चारण, जप। उधर ( ३६)-उद्धार किए, उद्धार उचारे (४५)-उच्चारण किया, उच्चा
करता है। रण करके।
उधार (३६)- उद्धार। उद्याळी (१४)-दो, वितरण करो। उधारण (१, ५, १००)-उद्धार करने उछाह (६)-उत्सव ।
को। उजाळ (१८)--उज्ज्वल ।
उधारी (५८)-उद्धार किया। उझाट (५८)-उछालते, वांटते। उधार (१८)-उद्धार कर देना। उठाडिया (८४)---उठाये, उत्पन्न किए (२६)-उद्धार करता है । उठ (४१)-वहाँ।
(५६, ६६)-उद्धार किया । उडार्ड (४२)-उडाड देता है। उधिरिस (१०२)-उद्धार होगा। . उरण (३६)--उस।
उडिया (१०३)-विदीर्ण कर डाले, उरणहार (३५)—सूरत ।
मार डाले। उणि (९, ४८)-उस।
उवेडिन (१२)-उन्मूलन करेगा, उगिहारि (३२)-समान ।
उखाड देगा। उतामळो (५५)-गीव्रता पूर्वक । उवेर्ड (४७)-उधेडता है। उतारिस (१२, ६६)-उतारेगा, मिटा उपज (४३) उत्पन्न होते हैं । देंगे।
उपना (७४)-उत्पन्न । उतार (२०)--आरती करता है।
उपराध (३५)-अपराध । (३२)-दूर करे।
अपराधा (९७)-अपराध, दोष ।
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[ ११ ] उपरि (४३)-ऊपर, पर। | उवारण (३३, ६७)-उलया। उपाअण (७६)-उत्पन्न करने को, उवारणा (४४,४८)-वलया, न्यौछावर
उत्पन्न करने वाला। | उसास (३६) उच्छ्वास । उपाइया (२०, ५२)-उत्पन्न किए । उपाईया (५०)-उत्पन्न किए।
| ऊंआ (५६)-उन । उपाडियौ (५८)-ऊपर उठा लिया ।
ऊधौ (५७)—औधा, उलटा। उपाडे (३०)-उठा लिया।
ऊया (७४)-उनकी। उपाया (१६, २१, ४३, ५०, ५१)
ऊए (४४)-वे। उत्पन्न किये।
ऊखले (८३) ऊखल मे। उपायौ (४५)-उत्पन्न किया ।
ऊगा (११)--उत्पन्न हुए। उवारी (१०३)-रक्षा।
ऊग्रसेन (६०)-महा पापाचारी राजा उभे (८८)-उभय, दोनो।
कस के पिता उग्रसेन । उ7 (४४) वे।
ऊधा (६२)-उद्धव । उर (४३) हृदय, वक्षस्थल ।
| ऊचर (६१)-उच्चारण करते हैं । उरळी ( २७, ४७, ७६)-चौडा, विस्तृत ।
ऊडीस (८४)-भारत के एक प्रान्त उरा (११, ४६, ६०)-इस ओर ।
का नाम जहां भगवान बुद्ध का उरि (४३, ७६)-उर मे, वक्षस्थल
जन्म हुआ था, उडीसा। मे, हृदय मे।
| ऊयापिया (७८, ८७)-उन्मूलन कर उरी (६२) यहाँ, समीप,
दिये। उलस (४३)-प्रसन्न होता है, उलसित |
ऊयाप (६३) उन्मूलन किया। होता है।
ऊवरा (३८)-उद्धार हो जावे । उलाळण (६२)उल्लसित करने ऊवरिया (७४)-उद्धार कर दिये ।
वाला। ऊवव (४४)--उद्धव । उळाविज (१०३)-गाइये । सुमिरण | गन्हो (४७)-उष्ण ।
करिये। कंपनी (१०२)-उत्पन्न हुआ। उठाव (88)-भजन करे, सुमिरण | ऊपर (६७)-ऊपर । करे।
ऊपरा (३१, ३२, ६३) ऊपर । उवर (४८)-वच गया, बच जाता है | परा (३६, ४५) जार।
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[ १२ ]
ऊपरि (२०)-रक्षा, सहायता।
(३८, ४१, ४२, ४५) ऊपर। ऐ (6)-ये। ऊपायरण (८०) उत्पन्न करने वाला। ऊभ (१४) उभय, दोनो। ऐन (८८)--और। ऊभ (६१) उभय, दो।
ऐसहि (६०)-ऐसे ही। ऊभी (११, १२)-खडा। | ऐह (५)—यह । ऊलटा (८५)—उलट पडे, युद्धार्थ
यो आक्रमण किया। श्रो (३)-अरे, वह । ऊलट (५९)-उलटा, विलोम, विरुद्ध । | अोखा (३०)-ऊपा-वाणासुर की
___ कन्या जो अनिरुद्ध को व्याही ए (१५) है, यह, है।
गई थी। (३१, ५६) यह
अोछडी (७६)—छोटा, तुच्छ । एक (३७) एक।
पोछाह (६७) उत्सव, हपं । एकल-मल (२७)-ईश्वर का एक नाम ।
अोछरी (४०)-लघु, छोटा। एकलमल (४, ६८, ९४)—पारब्रह्म,
प्रोण (७, २५)-चरण, पैर । विष्णु, सर्व शक्तिवान, अकेला
| ओथि (३०)-वहा । ही कइयो से युद्ध करने वाला।
| पोथी (३०)-वहाँ। एकलमला (१०)-ईश्वर का एक नाम ।
प्रोपम (४६)-शोभा देता है। एकिरिण (३०, ४७)—एक ।
ओपि (५७)-शोभित होकर । एतलौ (४६)-इतना।
प्रोपियों ( ५४, ५६ )--शोभायमान एतोज (४६)-इतना ही।
हुआ। एतौ (४६)—इतना।
ओपै (५३)-शोभा देते हैं। एथि (१६)—यहा।
(६०)-शोभित होता है । एथीय (१३, १४, ६०)यहाँ ।
__(१०३,-शोभायमान होती है। एम (३७, ५३, ६०)—इस प्रकार । एरसा (८९)-ईर्ष्या ।
ओळखिय (२)-पहिचाना जाना । एह (३, ३५, ४१, ४२, ४४, ४५,
ओळखियो ( ३४)-पहिचान लिया, ४७, ६७, १०१, १०३) यह, ये।
समझ लिया । एही (८७) यही।
| ओळख (३५)-पहिचानता है।
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[ १३ ]
श्रोळगे (६०, ६१)-स्तुति करता है | कंसवाळा (68)कंस के ।
(करते हैं)। कंसार (१२)एक प्रकार का व्यंजनओळभा (५८)-उपालंभ ।
विशेप । ओलिखिौ (९७)--पहिचान लिया। कसाळ (६६) वाद्य-विशेष जो झाझ
से बडा होता है। श्री ( ३, १२, २६, ३४, ४२, ४५, कंसासुर (६०) देखो 'कंस'। ४६, ४६) यह ।
कसासुर (१०३)-देखो 'कस' । (३, ८६)-अरे।
कंसि (८२)—देखो 'कस' । प्रौडाह (९६)-उत्साह, हर्प । प्रीयीऐ (७४)—वहाँ।
| कछ (५२)-कच्छपावतार । औद्रके (५२)-भयभीत हुए। | कजि (५१, ८२)-लिये श्रीळग (५६) स्तुति, यशोगान ।। कट (४३)कटि, कमर । ओळगू (३)-स्तुति करूं, यग वर्णन
(E) नाग करू ।
कटक (६४, ७०, ८४, ८५, ६१)
मेना, दल, समूह । कइ (८३)-क्या। कटक (५४.५६)-असुर, राक्षस. राठ । कटकडा (१२) सना कटग (२२)—वावक, विघ्नकर्ता। कटके (९३)—फटक, दल । कंठीर (९४)-निह (नृसिंहावतार)। कटग (६३) सेना कंत (३६)—कात, पति । कठरण (२, ३५)---कठिन ।। कव (४)-स्कन्ध, कन्धा ।
कठियाणी (१५)—काठियावाड प्रान्त कंमण (१९)—कीन ।
मे उत्पन्न स्त्री अथवा काठी कस (३६, ६०, ६१, ६२, ६७, ७१,
जाति की स्त्री। ८३)-मयुराधीश उग्रसेन का पुत्र और श्रीकृष्ण का मामा कस,
| कठ (४१, ५०)-कहाँ। जिसे मारकर श्रीकृष्ण ने उनकी कडकड (९१) प्रहार क
कडकड (९१)—प्रहार की ध्वनि । कैद से अपने माता-पिता को ! कहिडिस (६६)-कडकडाहट की व्वनि छुड़ाया था।
करते हुए गुटगे।
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[ १४ ] कडियाँ (८६)-कटि, कमर। कपाळ (६१)-मस्तक से, शिर झुका
कर। कडी (८४)-कटि, कमर । कतियाणी ( २२ )-कल्प गोत्र मे | कपि (६५) वानर ।
उत्पन्न एक दुर्गा-कात्यायनी । कपिल (३, ६, २८, ८२)-साख्य कतीप्राणी (१८)--देखो 'कतियारणी'
शास्त्र के प्रणेता एक ऋषि कद (, ११ १६, ६४)-कव
जिन्होने राजा सगर के साठ । (६६)कभी।
पुत्रो को भस्म कर दिया था। कदरौ (८१)—कव का।
इन्हे विष्णु का पांचवा अवतार
भी मानते हैं। कदि (६४)---कव कदे (६६)-कभी
कपिलि (२४, ३६, ५४)-कपिल मुनि
कमति (88)-कमी। कदेई (१०३)-कभी भी। कनहिया (५८)--श्रीकृष्ण ।
कमध (५६)-कवध नामक असुर ।
कमण (२६, ३५, ५२, ७२, ६३)कना (४१) न ही।
कैसे, कौन । (८६)-अथवा, और। कमध (१६)-राठौड । कना (४८)-पास
कमध (३६, १००)-कमल, पकज । (६५)--या, अथवा। कमळा-कत (३६) लक्ष्मीपति, विष्णु
(७८)-कव, क्यो नही। कमळी (५४)-महादेव । कन्हईयै (८३) श्रीकृष्ण। कमाणी (६६)-प्रिय पुत्र, कमाने कन्ही (५५)-पास।
वाला बेटा, कमाऊ । कन्है (७३)-पास, निकट ।
कमाइण (५)-१. कमाने के लिये
२. मारने के लिये। कन्हैया (३३)-श्रीकृष्ण ।
कमाई (४७, ६७)-उपार्जन । कपटी (७०)-कपट (धोखा) करने कमाली (३६, ५६, ६९)--शिव, महा
देव।
वाला।
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[
१५
]
कमेर (५६) नल कूवर ।
| करा (१)—करू । कर (४१)—हाथ ।
(६८, ६६)-करे। करग (६३) हाथ ।
| कराने (५)-करवाता है। करणा (५०, ५२)-करुणा । करि (२७, ३८, ४५)—करके । करणाकर (१००)-करुणाकर, दया- (३४)–करिये ।
सागर । करिजे (३२) करिये। करणी (१०३)—करूं, करना। करिजो (6)—करिए। करता (२३)-कर्ता, रचने वाला। करिणाळा (१६)—वीर, तेजस्वी । करतौ (९६)—किया करता, करता करिया (४८)-करिए। हुआ।
करिस (१२, १७, ७२) करेगा। करत्ता (६४)—कर्ता, रचयिता
करिहो (३४)-करिए। करनाळि (६६)-१ एक प्रकार का
करीम (6)-कृपालु, महरवान । वडा ढोल जिसे चलती गाडी पर वजाया जाता था। २. एक
करीस (६६) करेगा। प्रकार का फूंक-वाद्य नारसिंह, | करै (३६, ४४, ४७)-करते है।
करौं (२३)—करू, करता हूँ। करमा (९५)-भक्त स्त्री का वाई जो करौ (५९)-करते हो, करता है ।
जगन्नाथपुरी मे रहती थी। । करौ (९६)कीजिये । * यहाँ पर निम्न आख्यान से अर्थ स्पष्ट हो सकेगा
नल कूवर कुवेर के पुत्र थे । एक बार अपने भाई मणिग्रीव के साथ ये कैलाश पर्वत के समीप उपवन मे जलक्रीडा कर रहे थे । अधिक शराव पी लेने के कारण अपनी स्त्रियो सहित ये नग्न हो गये और इनको अपनी नग्नता का भान तक न रहा । इधर महर्षि नारद प्रा निकले । इनकी औरतो ने तो तुरन्त वस्त्र पहिन लिए किन्तु ये दोनो निर्लज होकर नग्न ही खडे रहे । नारद जी ने इन्हे श्राप दिया कि तुम विना वस्त्र पहने ठू० की तरह खड़े हो जावो, वृक्ष बन जाओ।
भोपू ।
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[ १६ ] कलकी (५, ३०) कल्कि अवतार। | कसिस (६५)-कटिवद्ध करेगा। कलपत (३६,४७)-कल्पांत, प्रलय । कहडी (२)–कसी। कळस (२४, ३२, ३७, ९२) देवमूर्ति कहतौ (९३)—कहता रह ।
को जल चढाने का पात्र अयवा | कहर (५६, ६६,७०,७१, ७५, ८३)ऐसे पवित्र कलश का देवमूर्ति पर । भयकर । चढाया हुआ जल।
(८०)-कोप। कळह (५४, ६६, ८६)युद्ध। .. (८२)-आपत्ति । कळ्हा (१००) युद्धो।
कहा (३४, ३८)-कहता। कलार्य (८७)-पोचा।
कहि (३९)-कहकर । कलिंग (३१)-१. देश का नाम, २. / कहिक (6)-कहकर अथवा कुछ ।
दुप्टजन। कहिजे (३५, ३७, ४६, ५०)-कहा कलि (४४)-कलियुग।
जाता है, कहे जाते हैं, कहिये । कलिपंत (२, ४७)-कल्पान्त, प्रलय, कहिसी (३६)-कहेगे। नाग।
कही (८१)-कोि । कलिमाहि (४५) कलियुग मे काइ (३५, ४०, ६२, ६३, ६५, ६९)कलियाण (१०२)-कल्याण ।
क्या। कळिया (२१)-नाश किये। काइम (८६) कायम, दृढ, ईश्वर । कल्याण (३५)-उद्धार, मोक्ष। काक ना (७२)-कोई को, किसी को । कवण (३६)-कौन
| काकरा (६६)--ककड । कवियण (१००)-कविजन, काव्यकार। कागर (१३)-कगुरा। कविलास (२६)-कैलास । काधौ (९२)-कंधा। कविलास (२, ४३)-मोक्ष, कैलास । कानड (५)-श्रीकृष्ण । कविली (१६)--कपिला। कान (३४)-दूर। कवीयरा (8) कवि लोगो। कान्हइया (७५)--श्रीकृष्ण । कवेनर (११, ३८)-कवीत्त्वर, कान्हड (२७)-श्रीकृष्ण ।
महाकवि। कावड (१६)-चमार जाति के वे पुरुष कसंन (१६)--श्रीकृष्ण ।
जो रामदेव के अनन्य भक्त कनट (४६) कण्ड।
होते हैं। कमियो (७३)-बधन मे डाला। काहि (७९)-कुछ ।
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[ १७ ]
काई (२०)-कुछ ।
काळ (२०, ६८)-मृत्यु, मौत, यम । काइ (३२, ४६)-क्या। काळ-काळू (२७) यमराज का भी काइम (९, १०, ११, १७, २४, ६४, यमराज।
१०)-दृढ, स्थिर । कालरा (३१, ८६)—कोयला, नमकीन काइमा (११, ६६)-देखो, काइमि । भूमि जहाँ पर पपडी अधिक काइमि (९, ११, ८४)—वह जिसका उतरती हो तथा वोने पर कुछ
अस्तित्व बिना किसी दूसरे की भी पैदा नही होता है।
सहायता के बना रहे । कालिंग (८९)-असुर का नाम । काइमी (६८)-दृढ, अटल, ईश्वर । काळि (५३)-काल, मृत्यु । काई (३६)-१ कोई, २ कुछ ।
कालीग (३२)-असुर का नाम । काछिवा (८०)-कश्यपावतार । कालीगना (८७)-असुर का नाम । काज (५६)—लिए।
काळीगा (१३)-एक असुर का नाम काठी (७३)-दृढ, मजबूत ।
जिसे कल्कि अवतार ने मारा कादि (७५)-निकाल दे।
था, हिंदवानी नामक लताफल - काढी (९५)-निकाल ली।
जो तरवूज से मिलता जुलता कान्हईयो (६३, ७६) श्रीकृष्ण ।
होता है।
| काळी (१)—कृष्ण सर्प । कान्हड (१, ६०)-श्रीकृष्ण ।
काळी (२, ७०)-पागल, उन्मत, कान्हुआ (३३, ३६)-श्रीकृष्ण ।
कलुपित। कापडी (१३, ६५)-एक प्रकार के
काल्हे (७२)—पागल। सन्यामी याचक विशेप, भाटो
काल्ही (१००)-पागल । की एक शाखा।
कासिपि (८०, ६६)-कश्यप का, कापि (५६)-काटकर।
कश्यप के। कापिरिस (१३) कापुरुष, कायर ।
कासु (३६, ७६, ८८)-किससे, क्या, कापै (३०)-मिटा दिया, नाश किया। कमे। कामडा (७६) काम, कार्य।
कासु (४०)-क्या, किससे । कायम (८६)-ईश्वर।
कासू (७, २६, ७०, ७२, ८३, १०३)कारण (५२)-लिए, निमित्त ।
कैसे, क्या। कारण (५६)-लिए।
} काह (३६)—क्या।
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[
१८
]
काहरू (६६)-एक प्रकार का ढोल । किम-करि (१०)-किस प्रकार से ।
जो प्राय युद्ध के समय ही किमि (२०, २३, २४, २७, ७५, ७६, वजाया जाता है।
___ ८०,१००)-कैसे, किस प्रकार, काहला (८७)-भोला ।
विष्णु, किस। काहली (२०) उद्विग्न, उग्र रूपवाली किमेर (६१)-कुवेर । काहि (३६)-किस।
किरणाळ (१३) सूर्य । काहिक (३७)कुछ।
किरि (५०) मानो किंदरे (२८)-किन्नर।
किलंग (५, १०, १७, ३०, ६७, ८४, किहिक (६३)-कुछ।
८६,८७, ६१, ६६, १००)किरण (२७, ३६, १०१)-किस । कल्कि अवतार, एक असुर का किणही (४१)-किसी।
नाम है जिसे कल्कि अवतार किणि (५०, ८१)-किस ।
मारेगा , कितरा (१७, १८, ६३, १४, १००)- किलगना (८७)-असुर का नाम ।
कितने, कितने ही। किलगरा (६१)-किलंग नामक असुर, कितराई (२, ८०, ५६,७५, १००)
के। कितने ही।
किसन (६, ८, २६, ६२)--श्रीकृष्ण कितरा एक (१७)-कितने । किसन (१, ३, २७, ४३, ४७, ४८, क्तिरी (२१, ७६)-कितनी।
४६, ५३, ५६, ५७, ५८, ५६, कितर (७२)-कितने ।
६०, ६१, ६२, ६३, ६५, ६६, कितरी (७२)-कितना।
६६, ७०, ७१, ७२, ७३, ७७, किताई (८१)-कितने ही।
८०, ८१, ८२, ८३, ८६, ६६,
१०२) श्री कृष्ण, श्री राम, किता (९४)-कितने।
विषा। किताई (४४, ४७, ८५, ८६)-कितने | किसन-दीपन (४५)कृपण _पायन,
वेद-व्यास। किनरह (३६)–किन्नर। किना (६७)---अथवा।
| किसन दीपानिन (5) कृष्ण द्वैपायन किम (३६, ५०, ६६, ७१, १०३)
पारागर के पुत्र वेद-व्यास । कैसे।
किसनि (४६, ५१)-श्रीकृष्ण ।
ही।
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[
१६
]
किसन (१५)-चौहान वश की खीची । कीन्ही (३६)-की
शाखा का राजपूत । कीयो (४५)-कीया किसिन (५५)-श्रीकृष्ण, राम। | कीर (३६, ५५, ८१, १०३)--शुक, किसिन दीपायण (७७)--कृष्ण पायन तोता, व्याध । किस (८०)—कौन से।
कीरति (२१)—कीति किसी (११, ३२, ५०, ६६, ८४)- कीला (६२, ७६, ८३, ६१)- क्रीडा, कीन-सा, कसी।
__ लीला। किहक (88)-कुछ तो। कुआरी (३२)-अविवाहिता, कुमाकिहडी (८, १९)-किस
रिका। किहडो (४६) कैसा
कुंडलपी (१६)-कु डलिनी किहिक (१०) कुछ
कुण (९५)—कीन किहिकि (११)-कुछ
कुत (६६)-भाला कीच (६५)-कीचड़
कु ता (३२)-पाण्डवो की माता, कीदर (१३)-किन्नर
__ कुन्ती । कीच (६६, ८५)-पक, दलदल। कुम्भकरण (५७)-रावण का भाई, कीजै (३७, ३८)—करिए
एक दैत्य । कीट (७९)-कैटक नामक असुर जो कुणवा (६०) कुटुम्ब
कुण (४, ५, २६, ३७, ४१- ४६, ५६, कोकाको ६८, ६६, ७६, ७६, ८७, विप्णु ने मारा था।
१०१)-कौन, किस, । कीटग (२१, ५२)-देखः कीटक । कुणे (४०, ४१)-किस किसने । कीव (४, ३०, ५३)किए, किया। विज्या (६१) स का एक अनुचरा कीधा (२, ३, ६, १६, ९४)-किए
जिमकी पीठ कुवडी थी। कीधी (१०, ४८, ६२)-की कुमया (७०)-कमी, प्रभाव, कोप। कीयो (१३)-किया
कुरखेत (५)-कुरुक्षेत्र। कीधी (४, १२, १३, २८, २९, ३२. कुराण (१८)-कुरान । ५०, ६६)—किया, कियो, कर कुरिदि (३०)- कगाली, निर्वगता। दिया । ।
कुसटामिरिण (४३)-कौस्तुभमणी ।
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[
२०
]
कुहाडं (६६) कुल्हाडी। | केवी (१६)-मनु। कूत्रो (८६)-कूप ।
, केसव (१, ७४)-विष्णु, श्रीकृष्ण, कूकड़ा (५८)-कपडे की वाती, वस्त्र
केशव । __ वर्तिका । | केसवराड (१००)-केशवराज, ईश्वर । कूकूउवा ४८)-त्राहि-त्राहि, पुकार । विष्णु का एक नाम । कूखा (१०१)-कोस, कुक्षिा
| केसवा (९, १०, ३४) केशव, विष्णु कूटता (१३) मारने पर।
का एक नाम । कूटाडि से (१०)-असत्य करेगा, झूठा केहर (२६) नृसिंह ।
सिद्ध करेगा। केहिक (१००)-कुछ, करें। कूटिज (१६)-पीटे जायेंगे। 'के (४६, २०, ४१,४४, ६१)--किस, कूटिया (३६, १००)-नाश किये,
का। संहार किये, मरे। कैये (५१)-कितने। कूडा (१६)---असत्य भापी। कर (७५)-किसके। कूप (३५)-कूया।
को (२३)---कोई। कूवडी (३०)-कुब्जा नामक कस की | कोइ (४१)-कोई, निश्चित । दासी।
कोइला-गिरि (२१)—पर्वत विशेष । कूरम (३, ६)-कच्छप, सूर्यावतार, कोकि (२८)-विष्णु।
कच्छपावतार । कोट (२८)-मधु, कैटम।। के (११, १७, १८)-क्या, कई। कोटवाळ (१३)—पहरेदार, चौकीदार केई (३६, ३६, ४१, ५१, ६६, ६७, | कोड (E)-उत्साह, उमंग ।।
६६)-कितने ही, कई, कितनी। कोड (८७)-करोड़। केकाण (५२)-अश्व, घोडा।
कोडि (३१, २०, २६, ३६, ४४)केरिण (३०)-किस।
करोड, कोटि । केतो (४६)-कितना।
कोडिया (३३)-कोटी, कोड़। केथि (१६)-कहाँ ।
कोड़े (१२)—कोटि, कोड । केम (७, ४६, ६६) कैने, किस प्रकार | कोप (३२, ६५)-गुस्सा। केरडा (६६)-करील का वृक्ष ? कोपियो (५२, ५४)-कोप किया। केवल-गियान (२६) कैवल्य ज्ञान । कोपै (५३, ४२, ६०)-कोप करता है।
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[ २१ ।
कोम (३६) कूर्मावतार। । खडखड (६१)-टकराने की ध्वनि, कोयड़ो (७२)-बच्चो का एक खास । ध्वनि विशेष ।
प्रकार का खेल जिसमे | खडग (३२)-तलवार । कपडे को गेंद के आकार | खडि (६०)-हाककर, हाका । मे वडी दक्षता से समेट | खडिमै (८५)-चलाएगा। लेते हैं। इस गेंद को खरगी (८७)-खना, खोदा ।
आकाश मे फेंकते हैं | खंपाय (१६)-नाश कर दिया। ' जिससे कपडा खुलकर | खपावरण (५)- नाश करने को, ध्वंस । गेंद रूप मिट जाता है
करने को। तव वच्चा हार जाता खमा (४२)-क्षमा ।
खर (६, ५६)-एक राक्षस जो रावण कोलाली (३९)-कुम्भकार, ब्रह्मा।
का भाई था। कोसल्या (६, ५५)- कौशल्या । खरा (१३, ७७, ८६)-ठीक, पक्का, कोसिलि (१०१)-कौशिल्या ।
दृढ । - कोहर (७५)-कूप ।
खरो (८५)-पक्का, दृढ, निश्चय । कोहिक (७७)—कोई एक । खरौ (५३, ६०, ६४)-पक्का, दृढ, को (५४)-का।
निश्चय। क्या (४५)-किसलिए, क्यो, कैसे। खल (१६, २१, ५६, ६६, ६७)-दुष्ट, क्य (७२)-कैसे ।
असुर, राक्षस, शत्रु। क्रम (५१, ७, ३७)-कर्म, काम।। खलक (८४)-ससार, दुनियाँ । किपा (९६, १०२)-कृपा । खलही (८२)-दुप्टो को। क्रिसन (३९)-श्रीकृष्ण।
खला (६२, ६३)- शत्रुओ, दुष्टो। क्रीत (५, ५०)- कीर्ति ।
खळिकियो (७६)-कलकल की ध्वनि क्रेत (३६) - केतुह ।
__ करता वहा, प्रवाह मे हुया । क्रोधियो (६२)-क्रुध हुआ, क्रोध खली (८७)--दुष्ट, असुर । किया।
खवाड़े (४२)-खिलाता है।
खवार (४२)-खिलाता है। खंड (१००)-टुकडा।
खेसां (१४)-१. भागते है २. लडते खंड-डंडूल (३०)
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[
२२
।
खम (८७, ७७)-भिडे, युद्ध किया, । खिणे (२८)—पटकना, डालना। भिडेगा, युद्ध करेगा।
खिमावत (४१)-क्षमावान खसी (१०, ८४) युद्ध कीजिए, खिमिया (१६, २३)-क्षमा भिडिये।
खिम्या (४७)-समा खांचि (७६)-खाच कर, आकर्षण | सिवि (६३)-कोप करता है, कोप करके।
करके। खाणि (४७)-प्रकार, तरह, खानि । खिस (७६)-भिडे, टक्कर ली, युद्ध ! साग (८७, ९१)-तलवार ।
किया। खाटियो (८२, ८३)---प्राप्त किया, खीच (६५)व्यंजन विशेष जो प्राय अपार्जन किया।
बाजरा को उखल मे कूट खाटी (५७)--प्राप्त की।
कर बनाया जाता है। खाट (७५)-प्रात करता है, प्रात्त | खीज (४१, ७२)-कोप करना।
खीजतो (७१)-कोप करना । खाड (३, ८७) खड्डा, गड्डा । । खुदाइ (२३)-खुदा, ईश्वर । खाण (३६)-खानि, जीवयोनि। खुरासाण (६४) यवन खाणि (४०, ४८)-खानि, प्रकार । खू दामलजी (११)- ईश्वर, वह प्रचड खाणे (५०)-खानि, प्रकार ।
योद्धा वादशाह जो बहुत खाधा (६७)---खा गये।
से प्राणियो के कप्ट अपने खावी (३)-खाई
ऊपर सहन करता है। खापर (६३)-दुष्ट ।
खूटविहो (१०)-समाप्त करोगे, समात
कर देंगे। खाफर (५, ३०, १००)-असुर,
| खूटा (१९)-समात हो गये, मर गये। ___ राक्षस, असुर का नाम, दुष्ट । खारी (१००)-कडुवा, कटु ।
खूब (९५)=बहुत, वढिया । खासा (११)वटिया, सुडौल।
खेचर (५७) आकाशगामी । खासी (१६) खास, विशेष, मुख्य,
खेचरा (८५)-आकाशगामी । प्रधान ।
खेत (१०,३२) युद्धस्थल, रणक्षेत्र । खिदि खिडि (२३)-देश-देश, खंड-खंड खेतपाळ (१३)-क्षेत्रपाल । खिरिगयो (५३)--नोच दिया, उचेड़ सेतपाळा (८५)-क्षेत्रपाल नामक दिया।
देवो।
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( २३ )
खेतल (६१) क्षेत्रपाल देव । | गम (३६, ३६)-पहुँच, ज्ञान । खेष (१४, ६०)-द्वेष, डाह । गमर (८७)-युद्ध खेवी (५५)द्वष, डाह । गमा (४०)-हु-गमां, चारो ओर। खेरिया (६२)-मार डाले। | गमाडा (८)-नाश कीजिए, मिटाइए खेळा (६१)-~साथी, मित्र । गमाया (२१)-नाग किये। खेलियो (६३)-खेला, क्रीडा की। गमायो ( ५४, ५५ )- नाश किया, खेलो (३२)-खेलो, युद्ध करो। | मिटा दिया। "संग (८६)-घोडा
गमियो (२)-नाग हुआ । चर (११)-कुशल क्षेत्र
गर्म (७८) - जाते हैं। खोटी (१००)-खराव, बुरी। गयरण (५१, ८६)- गगन, आकाश । खोडील (५)-बुरी आदतें, गर्व ।। गयासुर (४)-एक असुर का नाम । खोसण (५) छीनने को, छीनने वाली
गरना (२७, ३६, ७६)-वृद्ध
गरढेरा (६२)~वृद्ध गग (४४)-गगा नदी।
गरढरी (१६)-प्रति वृद्धी। गगा (२)-गा
गरढेरौ (४, ७) वृद्ध। . गंगेव (४४)-गागेय, भीष्म पितामह ।
गरढी (४७, ६८,६०)- वृद्ध, प्राचीन गजण (४५) नाश करने वाला।
गरव (५५)--गर्व, अभिमान । गजराज (६)-वडा हाथी।
गरुनी (२४)--गभीर गजरौ (७८) - भक्तराज, गजराज का
गळ्यिा (२१) निगल गई, मास-पिंड गटक (२०)-घूट
गह (५५)-गंभीर गडा (३८)-गाढा
गहन (6)- गभीर गणा (७६)-समझे गति (९५, २१, ३५, ४२)-हाल,
ग्रहिया (६०)-ग्रहण करने से। लीला, गतिका, मोक्ष ।
गाजण (१००)-पराजित करने को। गत्ती (६१)-गति, मोक्ष ।
गाजै (५८)-संहार करता है, नाश गदा (१७)-शस्त्र विशेष ।
करता है, पराजित करता है। गदापति (४३)--गदा नामक शम्य गान (१०३)-गुण-गान, नाम-स्मरण
___ को धारण करने वाला, विष्णु गामी (ग्रामी) (२७)-गमन करने गनाइति (१०१)-समधी
वाला।
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[
२४
]
गाइ (६, ३६, ४५)-गाय, गा। गिर (४७)--पर्वत, गिरि । गाइया (९०)-- गाएँ
गिरवर (६५)-गिरिवर, पर्वत । गाजिया (८७, ६६)- गर्जित हुए। गिळि (४८)---निकल गया। गाजियो (५५, ८०)-गर्जना की। गिळ्यिा (२०, १८, १००)---निगल गाढि (५०)---ठोस रूप से, सम्मिलित गई, ध्वस कर दिये, सहार गाय (६४)-गौ
कर दिया। गालियो (८३)-नष्ट कर दिया, मिटा |
गिळियौ (९४) निगल गया। दिया।
| गिल (४, ४७, ६६, ८७)---निगलता गावतरी (४४)-गायत्री
है, नाश करता है, निगल गावड (१०१) - गाये
जाते हैं। गावतरी (१३, २१)-गायत्री गीता (३२)- भगवद् गीता । गावा (३८)-वर्णन करें।
गुबार (१७)--गवार गाविड (८३)-गाएं
गुड़ाया (६३)--मार डाला, सहार गावित्री (३२)-गायत्री
किये। गायो (३२)-गाया
गुडिदा (९८)-१ सिर, २ वीर । गाहिया (६०)-ध्वस किए। गुडिस (६६)--लुढक जायेंगे। गाहैडि (३८)-गंभीर, गाभीर्य। गुर्ड (६६, ८७)-वीर गति प्राप्त होंगे गियो (५६, ७१)-गया, मिट गया, । गिर गये, लुढक गये । नाश हो गया।
गुण (६७)- कीर्ति । निरिण (४२, ७३)-समझ, समझकर गुणपति (6)-गणपति, गजानन । गिणियां (६३)-समझा गुणी (४७) - गुनवान, उत्कृष्ठ । गिरणीजे (४६ )-गिना जाता है, | गुद्र (६४)-मास-पिंड। गिनिए।
गुर (३८)---शिक्षक, ज्ञानदाता । गिनका (९५) वेश्या
गुरड (३६)~-विष्णु के वाहन का नाम गिनिका (७४)-एक वेश्या जिते भग-1 जो पक्षियो के राजा समझे . वान ने मोक्षपद दिया ।
जाते हैं, गरुड़। गिमि (६१)-मिटा दे, नाश करदे । गुरहर (६०)-~गुरुवर, श्रेष्ठ ।
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[ २५ ] गुरुड (४८)- गरुड ।
| गोपिया (३६)- गोपिकाएं। गुलाम (३७)-दाम ।
| गोपी (११)- श्रीकृष्ण के साथ वाल गेम (२, ८, २१, ६४, ७३)- पाप, क्रीडा करने वाली व्रज की कलक।
गोप जाति की स्त्रिएं, गोप गेमरा (२१)- गज, हाथी।
पनि । गेल (६४)- पीछे।
गोविंद (६३) - गोविंद । गोकल (९३)-गोकुल।
गोम (४६)-भूमि, पृथ्वी। गोखड (६७)- गवाक्ष, झरोखा ।
गोरजा (८८)-गौरी, पार्वती। गोठ (१६)- गोष्टी।
गोविन्द (७६, ५६, ६३, ६६)-ईश्वर, गोठि (५६)-गोष्ठी, प्रीति भोज ।
| विष्णु का एक नाम । गोडवाड (१७)-मारवाड राज्यान्तरंगत
गोविन्दा (३७, ६६) - श्रीकृष्ण । पाली जिले का एक बड़ा भाग गोविदि (७४)-गोविन्द के, कृष्ण के जहाँ पर पहिले गौडवंश के | गोविंदै (६१, ६३)-गोविंद, श्रीकृत्ण क्षत्रियो का राज्य था।
- श्री रामचद । गोडि '६२)-~ध्वस करके ।
गोविंदी (६०, ६८)-श्रीकृष्ण, गोविंद । गोडियो (१५) इन्द्रजाल का खेल | गोह (१००)-निषाद जाति का नायक करने वाला।
जो शृगवेरपुर रहता था और गो? (१००'-पास, निकट ।
श्री रामचद भगवान का मित्र गोतिम (६७)-गौतम ऋपि ।
था, गुह । गोतो (२)-चकर।
गोहि (६३)-गुह, निपाव । गोदड (१६, ३८)-एक प्रकार के गौरि (३६, ४४)-पार्वती ।
सन्यासी, एक महात्मा का | गौरिजा (३८)-गौरी, पार्वती। नाम जो निरंतर कथा ही पहन | गौरिज्या (३२, ६७)-गौरी, पार्वती, कर रहता था।
उमा । गोदाउरी (८१;- गोदावरी नामक | गौरी (२१)-गौर वर्ण की, पार्वती। नदी।
गौलिया (८३)-गोपाल, ग्वाला । गोपाल (४७)-श्रीकृष्ण, विष्णु का ग्यान (१५, ३८, ६६, १०२)-ज्ञान । एक नाम ।
| ग्यानरी (३६)-ज्ञान ।
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[
२६
]
ग्या '४६)—गये।
घण (११, ४५, ४६, ५०, ६६, ७५)ग्यानह (४४) ज्ञान ।
बहुत, अधिक। ग्रव (४५, ५०)-गर्व, गर्म । घणनामी (२४, ५१, ६८)-बहुत से ग्रभवाम (५०, ६६)-गर्भवास । ___ नामो वाला, ईश्वर । ग्वाल (३३)-गोपाल, रक्षक। | घणनाम (३६)- बहुत से नाम वाला। ग्रह (५७)-वे तारे जिनके उदय अस्त
घणनामी (७५)-वह जिसके अनेक काल आदि के विषय मे प्राचीन
नाम हो। ज्योतिपियो ने ज्ञान कर लिया
| घणा (३२, ७५, ८३, ८४, ६१)था। इनकी सख्या फलित
बहुत, अधिक । ज्योतिप मे नी मानी गई है।
घणी (३९)-चातुर्य । ग्रहि (७२)-पकडकर ।
घरणू (७०)-अधिक। ग्रहियो (२६)-पकडा, धारण किया ।
घणेरी (४०)—वहुत । ग्रहिसी (६४)-पकडोगे ।
घणं (५४, ५६) अधिक, बहुत । ग्रांम (EE)-ग्राम।
घणरिड (१०)-अधिकहठ, जिद्द । ग्रामी (१०१)-गामी, गमन करने | घणों (७०)-अधिक ।
बाला, चलने वाला। घणी (१, ४०, ७६, ५२, ४६, ५४, ग्रामहं (४१)--ग्राम ।
६८, ७२, ७६, ८०, ८१, ८२, ग्राह ना (88)-प्राह को।
८७, ८८, ६७, ६३)-बहुत, ग्रिह (५८)-घर ।
अधिक, वना, अत्यन्त । ग्रेह (४८)-- गृह, घर। . घन (२०)-बहुत, अधिक ।
घमसाण (१२)-युद्ध । घडग (३५)- रचना।
घाणी (३२)-कोल्हू । घडे (३४, ४२, ४३)--रचता है, घाउ (६६)-प्रहार । रचते हैं।
घाट (8)-रचना। घट (२३)-गरीर, मन, हृदय । घाणी (२०)--ध्वंस करने वाली । घटियो (५२)-घट गया, कम हो घाणीया ( )-कोल्हू । गया।
घात (२) अनिष्ट, दुर्दशा। पटै (४६)-कम, घटता है । | घाति (२२)--डालकर।
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[
२७
]
घाते (२)-डालना, देना। चडिस (१८)-चढेंगे। घाती (१०२)-डालिए । चत्र (५०)-~चार। घिणेरी (१५)~अधिक । चत्रवाह (२८)-चतुर्भुन । घिरियो (८२)- चिरा, मुडा, भाग्योदय | चत्रभुज (३६)-चतुर्भुज, विष्णु का हुआ।
एक नाम । घोसीयो (६२ - घसीटा।
चत्रभुजन (४५/-चतुमुज, विष्णु। धुरै १६६)-बजते हैं।
चरण (४३ -~-पाद, पाँव । घूमर (६२)-दल, समूह । चरणार विदै (८८)--चरणाविंद, कमल गोडी (११४-घोडा।
स्वल्पी चरण। च
चरिताळा (२६)-चरित्र करने वाला। चचळा (३१)-घोडो।
चलण (५४;-चरण, कदम । चचळ (३३)--घोडे पर ।
चलरिण (५७)-चरण, पैर । चदमा (३१)-चन्द्रमा ।
चलणी (१०३)-चाल, चलने का ।
ढंग। चन्द्रमा (५)-~चन्द्र, चाँद ।
चलणं ११००)-पावो मे, पैदल ।। चकचूर (६)-वस, नाश ।
चवे (११, १३, ३२}--कहता है, 'चकचूरि (४६)-नाग, व्वस ।
कहते हैं। चकर ,५७, १७१-चक्र, विष्णु का
" चापियो (५४,)-रखा, पैर रखा । एक अस्त्र ।
चाकर (३७)-सेवक, अनुचर । चक्रधर (४५)-चक्र को धारण करने
चाट (५८)--चाटता है। वाला, विष्णु।
चाड (९४)-पुकार। चक्र पाणी (८४-वह जिमके हाय | चागौराय (82
| चारणोराय (६१)-कस का एक मल्ल मे चक नामक शास्त्र हो,
। जिसको श्री कृष्णने मारा था, विष्णु।
चाण र । चक्र-सामि-४३)-विष्णु ।
चाप (६)-धनुष । चख (२४)-चक्षु, नेत्र।
चारण (३६) एक देव जाति । चडसौ १६४)-~चढाई करोगे। चारिणि (२६)-चारण कुलोत्पन्न चडिया (८६)-- चढाई की, चढे ।
देवी। चडियो (३७, ८४)-चढा ।। | चालण (८२)--चलाने को ।
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[
२६ ]
चाव (१०३)-उत्साह, उत्कंठा। चोखै (११)~श्रेष्ठ उत्तम । चावियो (५३)-चवाया, चर्वन किया। चोरी (२१)-चुराने वाली (चित्त को) चाही (३२)-इच्छा करो, चाहते हैं। चोरै (५८-चोरियो, चोरिये, तस्कर चित्ति (२१)-चित्त मे।
वृत्तिएँ। चिति नै ४९)- चित्त को।
चौ (१५)-का। चिदारणद (४६)-चिदानद ।
चौक (३२)-प्रांगण। चिरिताळा (६६)-चरित्र करने वाला।
चौकस (६०)-निश्चय ही, सतर्क । चीध (६२)--ध्वजा, झडा।
चौद ४७)-चौदह । चीना (१६)--आहार कर गई।
चौरी (११)-विवाह-मडप, विवाह चीणमण (३२)
मंडप की वदा । चीणि (८६)चीतारि (३,-स्मरण कर, स्मरण
च्यार (३६)-चार ।
च्यारि (४७)-चार। करके। चीतारै (६८) याद करते है।
छडकाड (६१)-पानी आदि छिडकने चीर (५९)-वस्त्र।
की क्रिया। चुहु-गमा (४०)—चारो ओर।
| छत (२४ -मकान के ऊपर का भाग । चुनाळि (५३)
छता (९७'-प्रकट। चूडली {११) हाथी दांत की बनी छती (१९)-है, होते हुए।
चूडियां जो सघवासी अपनी | छती (३८, ८२, १०२)—मौजूद,
भुजा पर धारण करती है। । वर्तमान, प्रसिद्ध, प्रकट । चूरिया (५६,-व्वस किए । छत्त (६२/-राजा, छत्रधारी। चूरी (३२)---ध्वस करिए।
| छयाळ (९८;---छत्र धारिन, राजा। चूल (३१)-चूल्हा ।
| छत्रासुर (१०३)-एक असुर का नाम । चेड (४५}-खुले ग्राम ।
छळिया (१६, २१)-छल लिये, धोखा चेतियौ (६३)-सतर्क हुआ, सावधान
दिया। हुआ।
छलियो (९५)- छल, घोखा दिया। चेली (३२)---शिष्य ।
छकियो (१७)-छल लिया । चोखिन {१२)- चलेगी। छा (१००, ३४,-हूँ।
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[ २६
]
छान (२५)-- गुप्त रूप से ।
छोति (४०)-छिलका । छात्र (६७)-राजा।
छौळ (१०२}-१ लहर, २. आनंद । छात्रा (६७)- छत्रपति, राजा । छौ (४८) - था। छाया (२१)- फैल गया, छा गया। छौगाळी ५ - छैला, सुन्दर और वना छिनि (३१)-गनिश्चर।
ठना, सजा-वजा और छीका (५८)-छींका, झूला।
युवा पुरुप, सुन्दर वेश छीका (८३)-कटोरीनुमा आकार का
विन्यास युक्त युवा पुरुष, रस्सियो का गू था हुआ
रगीला, वाका। जाल जो प्राय छत मे छव (१९)-प्रसिद्ध । लटकाया जाता है और जिस पर प्राय प्याद्य | जगम (४०/-चलने फिरने वाले ।
पदार्थ रखे जाते हैं । । जपस (२१)-जप करेंगे। लीया (५) - सीता।
जवक (४०-यव, घाम, तृण, चारा छूमरण (१०१)-चरण, पाव ।
जम (१००)-यमराज। छूब (३७)- सर्व, सव।
जइ (४८)-जो, अगर । छेहडा (६७)-गठ-बधन, गठबंधन के
जकानु (२)-जिनको वस्त्र का छोर । जख (२८)-~यक्ष छ (१००)-है।
जख (१३, ३६)यक्ष छै (३३) है।
जगंन (९२)-यज, मसार, जगत । छोकरा (८३)-छोकरा, वच्चा, लडका । जग (२२, ४३)-मसार, जगत । छोगाळ (१८)-जिसकी पगडी मे छोगा जगतनाथ (४६)-जगन्नाथ, ईश्वर ।
लगा हो। छोगा वाली | जगति (३४)-ससार
पगडी पहिने हुए। जगदाह (४६)-~-जगत का। छोगाला (९२)-प्रवतसवारी, श्रेष्ठ, जगदीश (३३, ५७)-जगदीश्वर सुन्दर।
जगदीस (३६,४४,४६, ६०, ६९)छोगालो (५८)-श्रेष्ठ, शौकीन, छैल ईश्वर । छवीली।
जगनाथजी (६३)-जगतस्वामी, विष्णु, छोडिया (९७)-छोड़ दिये।
श्रीकृष्ण । ।
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[ ३० ]
जगनाथराय (६३)-विष्णु, श्रीकृष्ण । | जवान (६०) जवान जग-पुड (१०)-पृथ्वीतल, जगतीतल | जम (३६)-यम जगि (१०२)-ससार मे। जमणा (६०)-यमुना नदी। जजमान (१५)-~-यजमान जमणा (१३) यमुना जटाय (६)-प्रसिद्ध भक्त, गिद्ध, जमदग्न (८१)-एक ऋषि जो परशु__ जटायु।
राम के पिता थे, जमदग्नि ' जड ग (७८)-जड, मूर्ख, अस । जमपास (३४)---यमपाश जडधार (१६)-महादेव । जमराव (२५)-यमराज जडाणो (४०)-घनीभूत हुआ। . जमल (१५)-साथ ? जडाउ (४७) = जटित
जमवाळा (९६)-यमराज के । जडाधार (४८)-जटाधर, महादेव । जमवारा (५१)-जीवन, जन्म, यमजडाघर (८८)-शिव, महादेव ।
यातना। जण (५२, ५६, ६६)- व्यक्ति, भक्त। जमै (१७)-रामदेव पीर के नाम पर जणरौ (६७)--जिसका
किया जाने वाला रात्रि जणम्य (३६)-जनेगी, उत्पन्न करेगी
जागरण। जणारी (६४)-जिनकी। जमी (१४)-रात्रि जागरण जिसमे जणियो (६३)-~-जन्म दिया, उत्पन्न
प्राय. रामदेव के ही भजन किया ।
गाये जाते हैं, राती-जोगो। जती (६१)-यति, परमपद के लिए | जयो (६, २२, ३६, २३, ३३, ४८)
यत्ल करने वाले, सन्यामी। - जय हो। जद (४८,७१, ६९)-जव । जयो (२७, ३४)-जय हो, जय ! जदरथ (६३)-महाभारत युद्ध मे जर (१००)-धन दीलत ।
दुर्योधन पक्षीय एक राजा । मुहा-जन जूनी जदवंस (७५)- यदुवश, श्रीकृष्ण। | जरणा (१००)-सहन शक्ति । जपीज (४०)-जापा जाता है। जरिया (४८, १००)-सहन किए, जप (२३) जपते हैं।
। हजम किए। जपो (३४)-जप करिए।
जरू (२८, ७०)- अवश्य, जरूर ही, नवने (२०) यवनो ने ।
हड़, मजबूत ।
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[
३१ ]
जळ (५२, ५६)-पानी, समुद्र ।।
का कपडा, जाजिम। जळ माणसिया (१६)-जलमानुस ! | जाड (२, ४, ३५, ३७)-जडता, जवन (५०, ६२, ६३, ६१)-असुर,
अग्यान जाड्य अज्ञानता। राक्षस यवन ।
जाडा (६६)-शक्तिशाली, बहुत वडा । जवना (88)- यवन ।
जाडि (५१)-जबडा । जवने (९८) यवनो।
जाणे (१६, ७६)-जानती है, जानता जस (३८,४४, ५१, ६५) यश, जैसी कीर्ति ।
| जाति (३९) हो जाना, हो सकना । जसहि (६०) यश।
जात्र (३७) यात्रा, पूजा, अर्चना । जसोदा (५८, ६२, ८३)-व्रज मे | जादवराव (१००)-यादवराज,श्रीकृष्ण ।
माता के रूप मे श्रीकृष्ण | जादवा (३६)—यादव, श्रीकृष्ण । का पालन पोषण करने | जाप (३४, २३)-जप, पठन पाठन । वाली नद गोपराज की जाव (५२)-जवाव, प्रत्युत्तर।
धर्मपत्नी, यशोदा। जामिणी (२२) जन्म देने वाली। जसौदा (५) यशोदा।
जामै (४३)-जन्म लेते हैं। जांणा (१०१)--जानता हूँ।
जाया (१९)- जन्म दिया। जारिग (३५)-जानकर ।
| जायो (३६, ४२, ५५, ८२, १००)जाणी (३२)-समझली, समझ लिया।
जन्म दिया, उत्पन्न किया,
पुत्र । जाणे (३९)-जानता है ।
जाळण (९२) जालने वाला, जलाने जानी (३१, ३७) वराती।
का। जामिरिण (१०१)-माता।
जास (२८, ३५, ५०, ६८)-जिसका, जांमी (२)-पिता, जन्म देने वाला।
जिसे जिससे । जाइयो (३६)-उत्पन्न किया।
जिका (५१)-जिन्हो। जाइन (३०)-जा करके।
जिके (२, १६, ८१) जो। जाइया (८१) जन्म दिया।
जिकै (६३)-जिस, जिसने । जाए (३३)-जा करके।
| जिको (२६, ४५, ५४)-वह, जो। जाजम (१३) छपा हुआ या रगा जिगन (४४) यज्ञ ।
हुआ दो सूती मोटा बिछाने | जिगि (५५)—यज्ञ ।
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[
३२ ]
जिण (७७)-जन, मनुष्य, भक्त। जुग (५२, १०२)--युग । जिणि (४४, ४८)-जिस । जुजिठळ (६३) युधिष्ठिर। जिणिसा (१००)-जिसमे ।। जुजिठिळ (६२) युधिष्ठिर । जितरी (४६)-जितना।
जुजिठिळि (३१) युधिष्ठिर । जिनक (२९)-गजा जनक । जुठा (७६)-चचल, उत्पात करने जिनिखि (७७, २१)-जनक ।
वाला, लीला करने वाला। जिनेता (४९)-जनयत, माता। जुड़िया (६५)-भिडे, युद्ध किया । जिम (३५, ५३)-जिस प्रकार से, जैसे। जुध (१६, ३६, १००) युद्ध । जिमि (२०)-जैसे।
जुधि (२०)-युद्ध मे। जिमा (१६, ६५, ६२, ६६)-जैसे, । जुरारी (३३)-ज्वरारि, तापो का जैसा।
नाश करने वाला, सदैव युवा जिसी (४८)—जैसी।
रहने वाला। जिसी (२५, ४१, ५२, ५७, ५६, ७८,
जुरासंघ (६२)- मगवापति वृहद्रथ के १०१, १०२) जैसा।
पुत्र का नाम । जिहांरा (१०३)-जिनके।। जीती (५४, ६३)-जीत गया, विजय |
जुहार (२८, १४, ७६)-अभिवादन। हो, जाओ। जुहारू (२५)- नमस्कार करता हूँ। जीप (७, ५२, ५६)-जीत सके, विजय
अभिवादन करता हूँ। प्राप्त कर सके, जुहार (३६, ४६)-अभिवादन करते
जीतता है। जीमिस (१२)-भोजन करेगा। पूजूमौ (८२, १०१, ४५)-पृथक । जीम (५८)-जीमता है। जूटा (१२, ६६, ८६, ८७)-भिडे, मिड जीवती (४५)- जीवित ।
__ गये, युद्ध किया, युद्ध मे लग जोव (४०)—प्राण, जीवन ।
गये। जीवडा (१०२)-जीवो, प्राणियो। जुटे (९८)-भिड गये । जीवाडिया (६९)-जीवित किए। जूढिया (३७)-जोधपुर राज्यान्तर्गत जीवाडी (६९)-जीवित की।
शेरगढ तहसील का एक लालस जुत्राण (१२)-जवान, युवा ।
गोत्र के चारणो की जागीर का जुग (७६)-जुवा।
गांव ।
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[ ३३ ]
जूनां (३७, १००)-प्राचीन । जोरवर (४६)-शक्तिशाली जेज (६४)-देरी, विलव । जोरावर (७६)-शक्तिशाली जेम (६, ३८)-जैसे, जिससे । जोवे (३१, ६४)-देखता हैं, देखती है जेरिया (६२)- ध्वस किए। ज्यानखी (८१)-जानकी, सीता । जेवा (२८) - जैसे।
ज्याग (६, ४३, ५५)- यज्ञ जेसली (१५)--एक भक्त का नाम जो | ज्यानखी (३६)-जानकी, वैदेही।
रावल मल्लिनाथ के दरवार मे था।
झगडे (१००)-लडाई जै (४२)---जिस 1
झडप (७६) झपट कर, छीनकर । जै (२१, ३६, ६३)-जो, यदि, अगर।
झडपै (५९) छीनता है, खोसता है। जैत (२०, ५२, ५६)-विजय, जीत।
झडिपिया (६१)-छीन लिए। . जै देव (३८. ६६)-प्रसिद्ध सस्कृत ग्रथ गीत-गोविंद के रचयिता
झलिम (७०)-धारण कर सकेगा, एक परम वैष्णव कवि ।।
उठा सकेगा। __जोइ (१३, ३७, १०३)-देखकर, झलू (६६)-- "क्षक, मददगार, उत्तरदेखिए जिस 1
दायित्व लेने वाला। जोइया (१६)-देखे
झाझ (३१, ७८) जोईयो (१८)-देख
झाझे (९४)-बहुत, अधिक । जोग (२२) योग
भाटिया (८७)-- मार दिया । जोगणी (८६) योगिनी, रणचडी।।
झरिडियो (६४)----नोच डाला। जोडे-पारण (१०२)-कर-वद्ध होता है
झाल (६८)-पकड कर। जोत (१५)---ज्योति
झाळ (८७) ज्वाला, आग की लपट
श्राग । जोति (२४, ३३, ३५, ३६, ४०)
ज्योति, ईश्वर (वेदान्त) | झालणहार (६)-धारण करने वाला, जोध (१२, ३१)--योद्धा, वीर ।
पक्डने वाला। जोनि (४३)योनि
झालि (१६, २६, ५८)-पकडकर । 'जोनी (८१) योनि
झालिम (८७)-पकडेगा । जोनीया (३६)-योनि, जन्म । झाली (७३)-पकडी जोमरण (८०)-जन्म मा | झाली (३१) चारण करते हो।
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[
३४
]
भिख (७८)-प्रकाशित हो। ठगाई (९७)-धूर्तता। झूझ (३२)---युद्ध
ठगारा (७६)-ठगने वाला, ठग, धूर्त। झूझना (७६)- युद्ध के, युद्ध का। ठगारी (१५)-ठग, धूर्त । झेडे (४५)-गिराता है, प्राप्त करता है । ठरिया (८१)-शीतल हुए।
ठरी (१९)-ठंढी पड गई। टको (७०)-पैसा
ठळा (६८)-ढेला। मुहा—वाल्ही टकौ-अत्यन्त | ठाभी (६०)-रोकिये। प्यारा।
ठाम (४६) स्थान। एला (१०३) टक्कर
ठाकराई (६७)-स्वामीत्व । टळ्यिा (६७)-मिट गये, दूर हो गए। ठार्ड (३६)--स्थान । टळ्यिौ (५६)--दूर हुआ, मिट गया। | ठाढी (४७)--शीतल । टळे (३५, ८०)=दूर हो, मिट जाता | ठावा (६५)-प्रसिद्ध, महान ।
ठावी (३२)-प्रसिद्ध । टलो (७८)-टक्कर, आघात ।
ठावी (६१)-महान, वडा । टल्ला (८८)-टक्कर, आघात ।
ठीक (९७, ६१)-अच्छा, भली प्रकार। टापौ (९६)-१ मारो, २. फेरा, व्यर्थ ठेल
। व्यथ । ठेलस (६५)-पीछे होयेंगे, पराजित
पीने आना जाना।
करगे। टाळण (६२)-मिटाने की, दूर करने ठेले (१)—धकेल दे, ढकेल दे । की।
| ठोडि (५०)-स्थान। टाळिही (३७)-दूर करिये । टाळीया (८१)-दूर किये, मिटा दिये। डंडवत (५९)-दण्डवत् । टाळे (EC)-दूर करता है, मिटाता है। डंडूळ (१००)-एक दैत्य का नाम । टीकाळ (५०)-तिलकधारी, श्रेष्ठ।। टेक (६०, ६५)-प्रण।
डरिया (१००)-डर गये। टोघड़े (९६)-गायो के वछडे । डस (८७)-चवाये, काटे ।
डहिकिया (८७)-ध्वनिमान हुये, वजे । ठकराणी (१५)-ठाकुर की धर्म पत्नी। डाग (६८)-- लाठी । ठग (७३)-ठगने वाला, धूर्त । डाण (९६)-दण्ड ।
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[
३५
]
डाक चडियौ (३७)--डावा डौल हुआ, | ढेरडा (८६)-डेर, राशि । डाकरण (१००)- डाकिनी। ढोलण (५)-तुरकाने वाला, ढोलने
वाला। डाकिण (८५)- डाकिनी। डाच (१८)-मुह, गाल।
ढोळिया (८३)-ढरका देना, गिरा
देना। डाचा (७०)-मुख ।
ढोळे (५८)-गिराता है। ढाडी (६७)-पितामह । डाभी (४१)-दर्भ।
तण (१८)-तनय, पुत्र । डाहुल (५)-१. एक दैत्य का नाम, मोकी
२.दत्य। डाळिया (१३)-असुर, राक्षस । तना (६६, ७६, ७५)-तुझको डिगता (२)-डावा-डौल होने वाले। तरण (३,६६,७६, ६६,४८)-तनय, अस्थिर, डिगने वाले ।
पुत्र की। डिगपाल (३६)-दिक्पाल ।
तणा (६, १३, १६, ३१, ४४, ६६)
का, के। डील (५, २५, ५०)-शरीर।
तणा (६८)-तनय, पुत्र । डूल (५३)-डोलायमान होता है,
तणा (९, १०, १६, ३६, ४५, ४८, डोलायमान हो गया।
६६, ६७, ६९, ७५, ७७, ७६, डूलो (३७)-डावा-डौल हो गया,
७४, ८०, ८१, ६१) के विभ्रम मे पड गया।
तणि (६७)-की डोकरा (२७, १०२)-वृद्ध ।
तणी (९२, ६४, ६३)-की डोकर (१०२)-वृद्ध, बुन ।
तणी (७, १६, २५, ३२, ३५, ३६, डोर (१००)-डोरी, गलफास ।
४२, ४७, ६४, ६९, ७०, ७७, डोह (५३)-विलोडित करके, मथन करके।
८२, ६०, ६८, १०१, १०२, डोहा (१७)-ग्रानन्द ।
__६६, १०३)-की
तणे (७७)—के ढळिकिम (८६)-लुढकेंगे। तणे (५१, ६, २०, २२, ४४, ६२, ढाह्यिा (६०)—मार डाले।
५६, ६३, ५२, ६५, ६७, ६८, ढील (६, ६२, ६६, १०२)--विलम्ब, ७१, ७६, ८०, ८८, ८२, ६६,
देरी।
१२, १००)-के
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[ ३६ ]
तणो (१६, ४३, ८२, ८५, ८६)- तरिया (२, १६, १००)-मोक्ष प्राप्त का
हुए, तैर गये, पार हो गये, तणां (२, १३, ६८)-का
उद्धार पा गये। तणी (६६, ७२, ८४, ८५, ८६, ८३, | तरुणारि (८७)-तलवार
७४, ८७, १, ४, ६, १३, १४, तळातळ (६५)-सात अब लोको मे। १६, २३, २८, ३०, ३१, ३२,
से एक अव लोक का नाम ३६, ३८, ३६, ४२, ४४, ६४, | तळिया ( )-भून डाले । ५२, ५८, ६२, ६३, ७८, ७६, | तवि (८, ४१)-कहकर
९७, १०१, १००, ६५)-का | तव (४४, ४६, ५३)-कहती है, तणौ (९१, ६४, ६६)-का
स्तवन करती है, स्तवन
करते हैं। तत (४३, ४५, २५)-- तत्व |
| तसलीम (३४)-तस्लीम, प्रणाम । तना (२२, ३४, ३६, ३७, ६७, ६८, ।
तही (८४)-के लिए? ___६७, ६६) तुझको
ता (६८)-उन तनाई (२६)-तुझको हो।
ताती (१७)-तार वाद्य का, तार । तना (७६, ७८)-तुझको
ताम (६६)-तव, उन । तनां (३६) तुझको
तामस (४२)-तमो गुण । तवै (५२) ---कहते हैं, कहने लगे, | ताडका (५५)-यक्ष सुकेनु की कन्या स्तवन करने लगे।
मतान्तर से सुंद नामक दैत्य तमारा (६१)-तुम्हारे
की कन्या । तथा मारीच तमासा (88)-तमाशा
सुवाहु की माता, एक प्रसिद्ध
राक्षसी। तनाम (५६)-खेल, तमाशा ।
| ताडिका (८१) दैत्य मारीच और तमो (५८)-तीन गुणो मे से एक |
सुवाहु की माता । तमोगुरग ।
तारिणया (८७)-खींचे। तरगस (१२)-तर्कश, तूणीर ।
ताम (८६)-तव। तरा (२२, ३८)-पार हो जायें। तारण-तरण (१७)-उद्धार करने तरिज (७५)- तैरा जा सके ।
वाला।
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[ ३७ ]
तारहा (२६) तेरा।
तिखराव (५९) तक्षकराज तारा (६७)-तव, तुझसे।
कालीदह के नाग के लिए तारा (४४)-वानर राज वालि की प्रयोग किया है।
स्त्री, अंगद की माता, वृह-तिण (५२, ५३, ६६)-उस । स्पती की दो स्त्रियो मे से | तिणि (३६, ४६, ८२)-उस । दूसरी।
तिणिना (१००)-उसको। तारिन (३०)-तार करके।
तिणी (६, ५)-की। तारिया (१८)-उद्धार किये, पार
तिणे (१४, ३१, ८७)—के, की। उतार दिए।
तिना (२६)-तुझको। तारी (५२)-उद्धार किया।
तिम (७०)-तमे। तारै (४६, ६८)-उद्धार करता है।
तिमि (२०)-तैसे। ताळो (७०)-ताला। तास (६३, ६६)-उसके, संकट, पीडा | तिल' (४६)-तिल, जिसका तेल ताह (३८)-उन ।
निकाला जाता है। ताहरा (१०३)--तव, उस समय। तिलोइ (३६)-तिल मात्र की। ताहरा (२०, २६, २८, ३६, ६८)- तिलोई (१०)-तिल मात्र । तेरे तेरा।
तिसर (५६)-त्रिशरासुर, एक दैत्य । ताहरी (२६, ३६, ४६)-तेरी। तीकम (8)-त्रिविक्रम, वामना वतार ताहरे (५०) तेरे।
का एक नाम, विष्णु का एक ताहरै (४२, ५०, ७७, ६०) तेरे ।
नाम। ताहरौ (१५, २५, २६, २७, ३७; |
| तु (४२, ४७)-तू । ६४) तेरा। तिहुँ (१५)-तीनो।
| तु ड (९१)-मस्तक, शिर । तिका (५१, ६८)-उन्हें, उनको।
तुंवर (२५, ५९) इकतारा, किन्नर । तिका (६६)—वह।
तु सा (१६, ५६, ८०) तुझमे । तिके (२, १०२)-वे।
तुंहार (७६) तेरे। तिक (५२, ७१, ७८, ६३)उस, वे। तुनां (५८, ७५,७६, ८८)-तुझको। तिको (४२)-वह।
| तुझ (१६, ३८)-तेरे, तेरी ।
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[ ३८
तुड ताण (६८)-अपने दल को अथवा | तुहारी (४, ५, ३२, ३४, ४२, ४८,
अपने भक्त को अपनी ओर ७५)--तेरी, तुम्हारी।
आकर्षण करने वाला, महत्व | तुहार (८३, ८१)--तेरे, तुम्हारे । प्रदान करने वाला। तड या तुहारो (६, २३, ३७, ७४,७५, ६8)तुड राजस्थानी में पार्टी या
तेरा, तुम्हारा। कुटुम्व-समूह का पर्याय है, तू (३४, ३८, ४६, ६८, ७२)-तू। अपने कुटुम्व-समूह या दल को | तूझ (३३, ३५, ३८, ६८) - तुझको, महत्ता प्रदान करने वाला तुझसे, तेरा, तेरे । तुडताण कहलाता हैं। यहां तठसौ (७०)-तुष्ठमान होंगे। भक्त-समूह को महत्ता देने | तूठा (७०)-तुष्ठमान हुए । वाला, ईश्वर।
तूठी (१७, ५६, ६६, ६५)-तुष्ठमान तुड़िताण (६, १७, ७५)-अपने कुल हुधा।
(तुड या तड) या दल का | तूनां (३७, ४८, ६८, १००) तेरी,
महत्व बढाने वाला, समर्थ । | तुझको। तुठी (२०)-तुष्ठ मान हुई। तूसा (३८)- तुझ से। तुठी (८८)-तुठमान हुआ। तूसे (२०)--तुष्ठमान हो। तणा (६६) के
ते (२१, ४८, ८४)-तू ने । तुना (४०, ४२) तुझको। तेजालू (११)-तेजस्वी, तेज वाला। तुन (३६) तुझको।
तेड (६०)- बुलाकर । तुरगम (४)-घोडा।
तेडस्य (६४) बुलाएगा, बुलवाएगा। तुरगम-कंध हयग्रीवावतार । तेडाव (१४)-वुलवाइए। तुरकरणी (१४) यवन स्त्री। तेडी (१४)-बुलावा । तुरत (७९)-तुरन्त, शीघ्र। तेती (४६)इतना, उतना। तुरी (११)-घोडा।
ते (१६, २३, ५३, ६६) तेरे, तूने । तुलछी (४१)--तुलसी।
तैईज (५८)-तूने ही। तुहाइलो (७५) तेरा।
तेही (१६, तूने ही। तुहारा (२०, ३४, ४३, ४४, ७५, ( तेहीज (६६)-तूने ही।
९७, ६६)-तेरा। | तै (६१, ८४, ८७, ६५)-- तूने ।
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[
३६
]
तोइ (४०) तो भी।
। विष (५)-नीधि । तोर्ड (३२)-सहार कर देता है। विणावत (८३)-तिनके के समान । तो (२)तेरा।
त्रिधार (१२)-तीन पैनी धारा का तोनां (६८, ७४) तुझको।
भाला विशेष। तो (३४)-तुझको।
त्रिधारा (६६)-एक प्रकार का भाला। तोफान (८६)-असुर, उत्पात, उपद्रव ।
त्रिधार (३२)-तीन धार का । , तोफान (३२, ७३, ८५)--उत्पात,
त्रिविध (४२) तीन प्रकार । उपद्रव, तूफान ।
| त्रिसर (८२)-रावण का भाई, एक तोफो (५३)-उत्तम, वढिया, आश्चर्य
असुर जो खर-दूषण का कार्य।
के साथ दडका वन तोव (६१, ७६) देखो तोवा ।।
मे रहता था, त्रिशतोवह (३८, ३६, ४८, ५०, ५६, ६७)
रासुर । अनुचित कार्य को भविष्य मे | त्रिसळ (६४)-कोप के समय, लिलाट न करने की शपथ, दीनतापूर्ण
मे पड़ने वाले तीन पुकार।
सिलावट या वल। - तोरल (१५)-एक भक्त स्त्री का नाम | त्रिसिधि (१८)-समर्थ, शक्तिशाली ।
जो रावल मल्लिनाथ के सम-त्रिहलोक (९७)तीन लोक, त्रिलोक, कालीन थी।
श्रीन (४४)-तीन। तोसा (७)-तुझसे।
त्रीकम (८, १००)-त्रिविक्रम, वामनातोहा (६८) तुझसे।
वतार, विष्णु का तो (२०, १०१) तू।
एक नाम। तौवह (७, २६, ६२, ७६) है,
त्रीकमा (११, ३४, ६६)-त्रिविक्रम, तोवह ।
विष्णु का एक नाम, त्या (३)-उन, उन्होंने।
वामनावतार । अड त्रड (९१)-प्रहार की ध्वनि । श्रीकमा (४०, ६६, ७४, ७५, ८४, त्राहि (५२)-रक्षा, वचाओ।
६४, १०३)–त्रिविक्रम, निगडां (६६, ६१)-एक प्रकार का
विष्णु, वामनावतार ईश्वर। शस्त्र विशेप, तलवार त्रीकमी (९७)-त्रिविक्रम, वामनावविशेष।
तार विष्णु।
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[
४०
]
या
श्रुटा (१६)-नाश हो गये। । थारै (७३, ७४, १०३, ५१) तेरे वेभुमरण (३६, ४७)–त्रिभुवन । थारो (२, ३, ६. १०, १६, २३, २६, श्रेवइ (३७, १५) तीन ही।
३५, ७६, ६८, ६६, १००, त्रोटो (३८,४२)-अभाव, कमी, टोटा । १०१)-तेरा बोडिया (१३)-काटा डाला, तोडा। थावर (४०) स्थावर बोडियो (८३)-तोड वाला । थाविरे (३२)- स्थान पर । प्रोडीया (८)-तोड डाले, मार डाले। | थाहर (°०१)स्थान ।
थाहरीयो (४०)-ठहरा हुआ, स्थित । थमीयौ (६४)-रुका, रोका। थाहर (२६)-तेरा यत्रो (५५) हुआ
थिया (८६) - हुए थपावि (९२)-स्थापित करायेगा।
थिरि (४०)-स्थिर ययो (५८) हुआ
थी (१००)-मे थले (८६)-स्यल, रेगिस्तान ।
थुत्री (८४)-संपति, धन, माया। थाभी (१००) स्तभ
थुळ-थुळा (८४)-असुर, दुष्ट । थाहरा (१०१)-स्थानो
धूळ (७८, ६४, ७३)-असुर, दुष्ट, थापि ३७, ६६) स्थापित करके,
मूरख, स्थूल। स्थापन करिये।
थे (१०२)---आप थापिया (७८, ८७)- स्थापित करिये।
थे ही (१०३)-तू ने ही याप (३२, १००) स्थापित किया,
| थोक (४७, ३६, ३७, ४, ४०)रखे स्थापित किये।
प्रकार, पदार्थ, तरह । थायौ (१००)-रक्षा की | थोका (७)-पदार्यो, कार्यों । धारा (७, ३६, ३७, ४१, ५३, ५४, • ६६, ७५, ७७, ८०, ८१, ८५, दंड (१६)-डडा, प्रताप, भय ।
६७, १०२) तेरा, तेरे। दंन (७४)-१. दान, २. दिन । थारी (१०, ३६, ५३, ७७, ७८, ७६,
दइवारण (१४) ईश्वर ८०, ८१, ६५, ६७, ६८, ६६, । दई (४७)-देव, ईश्वर, दी। १०३) तेरी
| दईत (१५, ८३)-दैत्य
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[ ४१. ]
दईता (१८, १००, १०१)-दैत्यो, । दशरथ (१, २, ३, ६, ८, ५५, ५६, दत्य ।
६६, ७६, ८१)--सूर्यवंशी दईव (१०, ३६, ५५)-श्रीराम, विष्णु
राजा दशरय । ईश्वर।
दहकध (६,६०)-रावण, दशस्कघ, दईवाण (१८)- वीर ।
दशानन । दड दड (९१)-गिरने की ध्वनि, दहन (६६)--अग्नि, आग । गिरने की क्रिया।
दहसीस (५६) रावण। दडदर्ड (८७)- गिर पड़े, लुढक गये। दहि (७२)-भस्म कर । दडे (५६)- गेंद, वडी गैद । दहियो (९५)-नाश, ध्वस । दत (३, ६, २८)-दत्तात्रय ऋपि । दही (५६)- नाश करदी, जला दी। दधि (५०, ७७, ६२)-उदधि, समुद्र ।। दहे (६२, ६३)-भस्म कर दिये। दमाम (६६)-ढोल विशेप । | दहै (१०३)-ध्वंस होते हैं, नाश दमोदर (५)-दामोदर, श्रीकृष्ण ।
करता है। दरगहि (७)-दरवार ।
| दारण (५, ६८)-टैक्स । दरसरण (६७)-दर्शन, झांकी।
दाणव (५७)--असुर, दानव । दरमै (५१)-दिखाई देते हैं ।
दाणवे (९१ -दानव दरिसरण (४५)-दर्शन, दार्शनिक, सिद्धान्त, धर्म सम्वन्धी
दाम (६६)- दाम, रुपये-पैसे। ज्ञान ।
दाइ (२०, ५१)-पसन्द दरीयाऊ (७५)—समुद्र । | दाइम (६४)-१ सर्व शक्तिमान, २. दळ (५४, ८६)- सेना ।
अपनी इच्छानुसार करने वाला दळिदि (९५)-दारिद्रय, कगाली। दन्द्रि (१०३)--कंगाली। दाखवि (६६) दळ्यिा (२०, २१)-व्वस कर दिये, | दाखा (३०, २८)-दहते है, कहता हूँ
नाश कर दिये, संहार किए। दाखि (३७)-कहिए दळेवा (६)-ध्वस करने को। दाखीजे ( )-कहिए दळे (६३)-ध्वस किए। दाखीज (४३)-कहिए, कहा जाता है दव (६७)-कोपाग्नि । | दाखे (२२)-कहता है
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[
४२
]
दाखै (११, २५, ३३, ३७, ३८, ६१, । दीकरौ (८२, ६३)-पुत्र ६२, ७५, १००)-कहता है, | दीजै (३८)-दीजिए
कहती है, कहते हैं । । दीजो (१९)-दीजिए दाट ( ६ )-गाडना, वधन करना, दीठा (६७)-देखे काटना।
दीठो (३४)-देखा दाटिया (६८)-दवा डाले ।
दीठो (५१, ७६, ६७) देखा दाढा (२८)-दष्ट्रा
दीव (४)? दाढि (५०)-दष्ट्रा, दाढ।
दीघ (८१)~देदी, दी। दाण (८३)-कर, टैक्स ।
दीघौ (२८)-दिया दातार (३५, ३७)- देने वाला
दीनदयाळ (६०)-दीनो पर दया दात्रिडियाल (६४)-~सुअर
करने वाला। दालिद (११) दारिद्र
दीनादयाळ (३६)-दीनों पर दया दावे (७७) कारण
करने वाला। दास (३४, ३७)--गुलाम, अनुचर दाह (१८)-जलन
दीन्हा (१४, ८७)---दिया, दे दिए। दिखाळ (५८)-दिखाता है ।
दीन्ही (६२, ५६ दे दी। दिखाग (१०१) दिखाई
दीन्ही (११)-दिया दिणीअर (६१)- सूर्मा
दीय (३४)-दीजिए दिनि (१०२)दिनि मे, दिवस मे । दीवली (१०)-दीपक, प्रकाश । दियण (५५)-देने को
दीवारण (३६, १८)-वजीर, मत्री। दिये (३६, ५२ – देता, देकर।।
दीस (१०, ३१, ४८)-दिखाई देता है दिलि (१९)-दल, सेना। दीह (४, ३६, ४८, ५१, ५२, ७१, दिव (२८)-देता है।
८०,६४, ७२, १२, १०२)दिसडी (8)-दिसा, तरफ, ओर ।
दिवस, दिन, देवता । दिमी (१०३)---दिशा मे, तरफ ओर दुगम (७)-दुर्गम । दिस (१०१, ३१}--दिखाई देते हैं। दुज (३६)---द्विज, ब्राह्मण । दिसो (६)-तरफ, ओर।
दुजा (४८)-द्विजो, ब्राह्मणो । दीकरा (६६, ८३ -पुत्र, लडका। दुझाल (१७)-बीर ।
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[
४३ ]
दुडिदै (६८)—सूर्य ।
| देवाधिदेव (३७)-महान देव, ईश्वर, दुडिदि (४६)सूर्य ।
विष्णु । दुतर (७५, ३८)-दुस्तर, कठिन। देवाली (७०) अभाव, कमी। दुमेल (५०, ६४, १०१)-शत्रुता, | देस (१०२)-देंगे। वैमनस्य ।
देह (३५)—शरोर। 'दुरजोव (६२)-दुर्योधन । दै (३८)-दो, प्रदान करो। ->दुरवळ (३४)-दुर्बल, अशक्त । दैत (२०, ३०, १००)-दैत्य, असुर ।
दुवारिका (६६)द्वारका। दैता (६)-दैत्यो। दुसटिया (३०)-दुष्टो।
दोइ (३७)-दो। दुहते (५४)-दोहन करते समय, | दोख (६२)-दोष ।
दोहने पर। दोटि (८५)-वले की टक्कर ? दूना (८५)-दूहा कहना, दूना देना, दोटिया (६३)-मार डाले, जमीदोज प्रशसा करना।
कर दिये। दूपण (५६)-एक दैत्य ।
दोटोह (१०)-टक्कर, आघात । दूपर (६)-रावण का भाई दूपण । दोरा (७५)-कष्ट मे । दूजा (२०)-दूसरो।
दोरौ (१५, ७५)-कठिन, मुश्किल, दूज (२५)-दूसरो से ।
दुख मे, कष्ट मे। दे (३८)-प्रदान करो, दो।
द्यौ (३५)-दीजिए? देखे (४४)--देखते हैं।
द्रोण (६२)-द्रोणाचार्य । देजा (५५)-हिजो।
घ देव (३६, ४५)-देवता। देवकी (५८)- मथुरा के महाराज | धकहा (६१)-अगाडी से ।
उग्रमेन के छोटे भाई वसुदेव घख-पख (२१)-गरुड । की स्त्री तथा कृष्ण की | | घख-पख-ध्वज (७८)-गरुडध्वज । माता।
घडक्क (६६)-कंपायमान होते हैं । देवळे (७०)-देवालय, मदिर। | घडा (६६)-गरीरो। देवाइचि (१५)-एक भक्त स्त्री का परिणयांणी (१६)-स्वामी, मालिक । नाम।
वणीयाणी (२२)-स्वामिनी ।
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(
४४
)
धनख (६१)-धनुष ।
। धारा (१६)-धारु नामक चमार धनी (१०२)-बन्य, धनवान ।
जो मल्लिनाथ के घनुपधर (३६)-~धनुष को धारण
समकालीन थे। करने वाला।
घिखीयो (८०, ८२)-कोप किया, घर (८८)--भूमि, स्थान ।
बुध हुआ। घरण (४७)-पृथ्वी
घिरिणया (२१)--स्वामियो धरणि (४७)-भूमि, पृथ्वी। घिणी (६२, ६४) स्वामी घरणी (३८)—पृथ्वी
घिणी (७, १६, २०, ४८, ६१, ६६, धरणीधर (४७, ६३, १००)-घरणी| १००) स्वामी, मालिक ।
को धारण करने वाला, | घिणीया (१६)-स्वामियो, मालिको। विष्णु, शिव शेष, कच्छप | घिणीयाणी (२०)-स्वामिनी, मालिक। आदि
घिणीयाणी (२१)-स्वामिनी, मालकिन घरण (२१) अनशन विशेष घिरिरिण (८६)-धर, पृथ्वी । घरम (४१, ६८, १.१)-धर्म धीक (६१, ८७)-मुष्ठिका प्रहार । धरि (३८)-धारण करके। धुरिणसं (१२)-घुमाएगा घरिण (८६)-पृथ्वी
घुवै (८६)-वजे, ध्वनिमान हुए। घरियो (५५)-ग्रहण किया।
धू घर्ड (८५)-खुले प्राम, पूर्ण । घरिस (८९) धारण करेगी।
पूजि (९४) -- कपायमान हुई। धरै (४७, ५२)-धारन करता है. रख | घृत ( ४ )-~धूत
दिया। घूवका (६६, ८७)-गिरने की ध्वनि, धर्व (५८) जलावे, जलाये ।
गिरने की क्रिया । धाख (२६)-अभिलापा करते है। धूवकाई (६७)-प्रहार किया, गिरा घाडि (५०)--शरीर?
दिया। घातां (३९)-ध्यान करने पर, दौडने | धेन (६२)-धेनु, गाय । पर।
घेनां (१४)-गाये धानंतर (३)-धन्वंतरि वैद्य । धोख (८७)-नमस्कार करके । धानु (४५)-अनाज
घोमरिखा (१४)-धौम्य ऋषि । धारी (१०३)-धारण करने वाले। । घौड (३९)-दौड, पहुँच ।
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[
४५
]
करी, /नम (१२)
भ्रम (५, ७, १००, १०२)-धर्म | नग (४६) रत्न ध्रवसे (६५)-मारेंगे, महार करेंगे, | नदि (५०)-नदी पीटगे।
न दै (१०२)-नहीं देता है। घ्र (४२)-तृत करता है। नभ (६६)-याकाश घवी (१०२)-१ संतुष्ट करो २. नम (२०) नमस्कार करते हैं । भगायो।
| नमो (३४, ३५, ३६)-नमस्कार है। नास (८६)- द्राक्षा, दाख। नरदै (९८)-नरेन्द्र, राजा । घ्रापमै (८५)-तृप्त होंगे, पवारगे। नर (४१)-रत्न, मरिण। प्रिनि (४६)-१ धरणी २ वन्य । | नरकासुर (५, ६३, १००, १०१)नोख (४६)-१.द्रोह, २. प्रणाम ।
एक सुर का नाम ।
नरनाह (८२)नरनाय, राजा। नद (४, ५, ४७, ५८,५६, ६०, ५२, | नरमध (५३)-नृसिंहावतार । ६३, ८३)- गोकुल के गोपो मे | नरसिंघ (६, १८, ३६, ४०, ६४)
नमिहावतार । मुखिया, यशोदा के पति
नरसीव (२६)-नृसिंहावतार । का नाम, पुत्र, कृष्ण के
नरहर (३८, ३३, ३६, ४३)-नरपिता बमुदेव के सखा।
हरि, नृसिंहावतार, वारहठ नंदकुमार (१८)-श्रीकृष्ण
नरहर दास, विष्णु । नदरो (८३)---नद का
नरानाह (४६)-राजा, नरनाथ । नन (३६)-नही-नही।
नरा (४०)--नर, मनुष्य । न (४४, ४५, ४६) नहीं नरिदि (७६) नरेंद्र राजा । नइणि (४१) नयन, नेत्र ।
नरिंदु (२६)- नरेंद्र, राजा। नइणे (१५) नयन, नेत्र । नरिदि (४०)-नरेद्र, ईश्वर । नई (४८)-नही
नरेस (३६)---नरेश, राजा। न करण (४०)-नही करने वाला, नरेसर (३३)-नरेश्वर ।
नही करने योग्य । नव (६३)-नौ, नए। नखतंत (५)-नक्षत्रधारी, जिसका नवइ (२६)- नमस्कार करके भी अप्ठ नक्षत्र में जन्म हुआ
करते हैं। हो, भाग्यशाली। | नव कुळी (४८)-नौ कुल-राजस्थान
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[
४६
]
मे नागो के नौकुल माने | नागेंद्र (३६)- नागो (सों) का इन्द्र जाते हैं।
(स्वामी)। नवनाथ (१०)-नौ नाथ
नाज (68)- अनाज नवस (५७)-नौ सौ
नाडि (५०)- नाडी नवा (३३)-नौ
| नाथ (३४)--स्वामी नवि (५०)-नही
नाथरण-नाग (५)-नाग को नाथने नवे (१०२)-नया
वाला, श्रीकृष्ण। नह (२७, ३६, ४०, ४१, ४६, ४८, | नाद (६६)~-गर्व ५१, ६८, ६६, ७३)-नही।
नान्हिया (५८) ~छोटा, लघु । ना (१, ५, ३, ११, १७, २३, २६,
| नान्हीऔ (२७)-- छोटा, लघु । ३०, ३३, ३४, ४१, ४२, ४४,
नान्हो (४)- छोटा, लघु । ४७, ४८, ५१, ५५, ५६, ६०, । नान्हौ (७, ३७)-छोटा, लघु । ७५, ६४, ८३, ६६, १७, १००,
| नाभ (४३)-नाभि १०१, १०२, १०३)--को। नाभि-सुत (३६)- राजा नाभि के सुत, नाउ (७९)-नाम, यश ।
ऋपभदेव। नाऊ (७५)- नाम
नाम (१३)-- नमन करता है, नमाता नाखि (७, १०३)--डाल दे, डालकर।
है, झुकाता है । नास (२६)--डालता है
नार (६७)-स्त्री, नारी। नामडा (७६)-नाम
नारगी (२६)-नर्क ना (१०, ८२)-की
नारद ( १, २, १०, ४४, ६०, ६५, . नाउ (५४ ~१. नाव, २. नाम ।
७८, ८६ )-नारद ऋपि । नाकारा (१७)-- नही
नारसिंघ (५३, ६६) नृसिंहावतार। नाखि (५७)~ डालकर
नारसींग (७६)-नृसिंहावतार नाख (६६, ६८, ७७}--डालते हैं, नारसी (८०)-नृसिंहावतार
डालेंगे।
नारिसिंघ (६१)-नृसिंहावतार नाग (५६)-कालीदह का नाग | नारीयण ( ३६, ६६, ७४, ७७, ७८, नागा (६१)-नागो, सर्पो (६१)।
६७) नारायण।
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[
४७
]
(४१, ४३, १.
नासति आत होते हैं। १, नही
नावै (२०, ३५, ३६)-नही आती | निति (४१, ४३, १०३)-नित्य
है. नही प्राप्त हो, नही निघ (88)-निघि
प्राप्त होते हैं। निनाम ( ३६ )—जिसका कोई नाम नासति (४८)-१ नाग होता है,
न हो। २ जिसका अस्तित्व नही, | निपट (४१)-बहुत नास्ति ।
निपाइयो (९६)-उत्पन्न करेंगे, नाह (४६, ६३, ८२, ६२)नाथ,
निप्पन्न करेंगे। स्वामी, इसे नर-नाह | निपाया (२०, २१, ५० )-उत्पन्न लिखना ठीक है।
किए। नाहरू (७६)-नाहर, सिंह। निवळा (४८)-निर्वलो, अशक्त । निकलक ( ८७, ३, १०, ३३, ३६, | निवळी (७०)—निर्वल, कमजोर ।
४४)-निप्कलक, पवित्र । नि* (५६. ५४. ७७. निया निकलकी (५)-पवित्र
निमध (८१)—वाँध, घाट । निका (४८)-श्रेष्ठ, उत्तम, पवित्र।।
निमस्कार (२७)—नमस्कार निकीयो (४७)-नही किया
निर्मिघयौ ( )-रचा, बनाया। निको (४१, ४८, ४६)-नही कोई, निमिणि (१)
निमिरिण (८१) नमस्कार, नमन । श्रेष्ठ।
निमिष (५४)-निमिप, जरा, किंचित । निगरव (५७)- गर्व रहित विगुरा (११)-कृतघ्नो, गुरु का उप
का उप- निमो (२३, १६, २०, २१, २४,३३, कार न मानने वाले।
३७, ४२, ४६, ५८, ७३, निगुरो (४६)-निर्गुण
८१, ८४, ६७, ६६, १००,
१०१)-नमस्कार । निचिंता (१६)-निश्चित निजरि (५३)-नजर, दृष्ठि ।
नियावा (३०)-१ न्याय २ न्यायनिजार (५, १०, १२, फा० निज़ार)
कारी। नज्जार, दर्शन, दीदार। नियारि (१६)--निगाह। निजारसाह (९८)-निजारसाह निरकार (३६, ६८, १००)-जिसका निजारी (३३)-अविनाशी
कोई श्राकार न हो, ब्रह्मा निजि (३६, ४४)-निज, स्वयं । । विष्णु, प्राकाश।
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[ ४६
नु (१०३)-नु
पटाडि (२२)-पटककर, पछाडकर । नुहै (३८)-नवीन ?
पछाडिया (१५)-पराजित किए, मार । (१, ५३)-को
डाले। नूर (३३, ३७, ६१, ८६) काति, पछार्ड (३०, ५२)—मारता है, मार आमा, दीप्ति, सुन्दरता ।
दिए। नेतळ दे (१५)
| पछि (९१)—पश्चिम । नेम (५६, १३}-घर, भुवन । पछै (५२)-पश्चात्, वाद मे। नेह (३५)स्नेह
पटराणी (१०१)—पद महिपी । नै (२, १७, ४४, ५२, ५३ -को, } पठाया (५०)-भेजे
और। | पडमादा (६६)-प्रति शब्द, प्रति नैर्ड (७०)-निक्ट
ध्वनि । नण (३६)-नयन, नत्र । पडिमै (६६)–वीरगति को प्राप्त होगे नो (५६)-को
पढि (३६)-पढकर । न्याउ (१३)-न्याय?
पण (७१)-प्रण, प्रतिज्ञा । न्यारी (३५, ४१)--पृथक । परिणजे (६७)-कहा जाता है ।
पणीज (४६ -कहा जाता है, कहिये । पंगरण (३६, ४३, ६१, ८४)-वस्त्र, पर्ण (३२, ४३, ८८, ६२, ६७)--- कपडे ।
कहता है। पंचाळी (५, ६२, ७२, ८४, ६८)- । पतरे (१९,- खप्पर मे।
द्रौपदी।
पताळ (२४)- अव लोक । पंजाहर ()-१ योद्धा, २ यवन ।
पतिगह (३१)-पतग, सूर्य । पंड (१८)-गरीर
पतिसाह (४२, ४७, ७४) बादशाह, पख (१०२)- पक्ष
पादगाह, स्वायी, पति । पखाळ (२४) - प्रक्षालन करते हैं, प्रक्षालन करता है ।
पतिसाहना (४५) - बादशाह के । पग (४७, ६७)-पैर, चरण ।
पतीगह (३७) - पातक, पाप । पच्छिमी (२२)-- पश्चिमी ।
पतीत (७१)-नीच, अधोगति प्राप्त । पछारण (२)-पहिचान लेते हैं । पथळ (85)-अधिक, बहुत ।
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[
५१
]
पलाणि (60)-घोडे पर जोणकर । | पहुवी (३२)-पृथ्वी । पला (१०, १०३ )—वस्त्र, छोर, | पाडव (६६, ६६)-पाडु, पुत्र, अर्जुन अांचल ।
भीमादि । पळिया (२१)-पालन पोपण किया। पांति (५, ६४)-विभाग, हिस्सा। फ्वग (६५, ६०)-घोडा। पातिग (३६)-पातक, पाप । पवन (३७)-वायु ।
पाई (६७)-प्राप्त की। पवाडा (१६)-महान कार्य, प्रवाडा पाउ (२४, ५४, ७७, १०१)-~पाद, पवार्ड (८१)-प्रवाडा।
चरण । पविगि (८४)-घोडा।
पाछा (६२) वापिस । पसाउ (७४)-प्रसाद कृपा । पाज (६, ५७, ६६)-सेतु, पुल । पसारं (६६)-फैला दिए । पाजा (९२)-सेतु, मर्यादा । पहचि (३८,४६, ५०)-शक्ति, पहुंच | पाट (६, ३३)---सिंहासन । पहची (७७)-पहुँच, शक्ति । पाटि (८८,-सिंहासन । पहप (६५)-पुप्प, फूल। पाडळ (५, ६२)-पाटल वृक्ष, पाढर पहर (३४)-प्रहर।
या पाटल का वृक्ष जिसके पहलाद (६८, ९४, प्रहलाद ।
पत्ते वेल के समान होते हैं। पहवि (६७)---पृथ्वी।
पाडि (५९)-गिराकर, मारकर । पहार (३६, ७४ म० प्रहार)-मिटाना | पाडीया (६१)-गिरा दिए । प्रहार, ध्वस।
पाढां (२८)-पहाडो से ? पळाविज (१०३) - पालन किया जाय, | पातिक पहार (३६, स० प्रहार)__ पाला जाय, पालन कर सकें।
पातक या पापो का नाश पहिराडमी (११)-पहिनायोगे ।
करने वाला। पहिलई (८१)-प्रथम ।
पातिग (२२, ३३, ७०, ७३, ७४, पहिलाद (५३, ६८, ६६, २८, ६, २, ७८, ७६, ८८, ८९)-पाप,
२४, ५३, ६६, ७०, ७२, पातक।
६६, ८०)-भक्त प्रह्लाद। पातिगनां (१००)-पावक । पहिळादा (३३)-प्रलाद । पातिगि ।७१, ७६, १०१)-पातक, पहिल (७४, ६०}-प्रथम ।
पाप ।
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[
५३ ]
पिरणीज (३२)-विवाह करिए। पोरीय (१०)-पीरदान लालस । पिरिण (३२)-विवाह किया। पीर (७५) -पीरदान लालस । पिरिणि (३७)-विवाह कर । पीरौ (७८)-पीरदान लालस । पिरिणियो (६७)--विवाह किया, पीलिरा (९०)-मार डाले ।
पारिण-ग्रहण किया। पीलिस (६६)-पीलेंगे , पिलारिणयों (११)-वारजामा कस कर, पुड (८६)-पत, तह ।
तैयार किया। पुणे (११, ५३, ६०)-- कहता है । पीपळ (९)-पीपल वृक्ष । पुतरी (२०)-पुत्री पींपळे (३१)-पीपळ
पुत्रेई (६७)-पुत्र की। पीतर (१३)---पितृ-गण।
पुन (३७) - पुण्य, फिर? पीधा (१६)-पी लिया।
पुन (१०२)-पुण्य पीर (३, १०, ११, ७३, ७७, ८५, | पुनि (५४)-पुण्य, पुण्य कार्य । ८६, ६०, ६६)-पीरदान | पुरख (२७)-पुरुष
लालस ।
पुराण (३७)-मनुप्यो, देवताओं
दानवो श्रादि की वे कथायें जो पीरजादा (८६)---किसी पोर का
परम्परा से चली आ रही हो। वशज।
पुराणा (१०२)-प्राचीन, पुराना । पीरदान (४४, ५६, ६०, ६५, ६६)
पुरातम (४, ४६, ४६ सं० पुरातन)पीरदान लालस ।
विष्णु का नामान्तर, प्राचीन, पीरदान (६, ४५, ५७)- कवि पीर- पुराना।
दान लालस। पुरिसोत्तमा (७५)-पुरुषोत्तम । पीरदास (१, ३, ३७, ६६, ७०, ७१, | पुरुषोत्तम (४६)-ईश्वर, पुरुपो मे
उत्तम। ७२, ७४, ६३)-कवि पीर
पुलदर (१, २५)- इन्द्र दान लालस।
पुलिंदर (२, ५५)-पुरदर, इन्द्र । पीराणा (३१)—पीर, वृद्ध ।
पूँजळदे (१५)--एक स्त्री का नाम । पीराह (१०)-पीर, महात्मा, सिद्ध । पूछाडिस (११)-पूटवायेंगे । पीरि (८८)-पीरदान लालस। पूठि (४१)-पीछे पीरिया (९५)-भक्त कवि पीरदान । पूत (३६)-पुत्र, लडका ।
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[
५४
]
पूतना (५८, ८३)-अघासुर तथा । पौरिसि (५२)-पौरुष
वकासुर की वहन, एक । प्रगट्टे (५३)-प्रकट हुए। राक्षसी जिसे कस ने
प्रघट (६०)-प्रकट श्रीकृष्ण का वध करने
| प्रघळ (९, १४, १५, ३८, २०, २२, को गोकुल मे भेजा था।
२५, ३१, ४७, ५३, ५५, ६२, पूरि (३७)—पूर्ण करिए।
६५, ६७, ७०, ७१, ७२, ८४, पूरिया (६२)-पूर्ण किये।
८६, ६२)-पुष्कल, अपार, पूरिज (२)-पूर्ण कीजिये ।
काफी, बहुत, प्रसीम। पूरौ (३२)—पूर्ण करना, भरना । पेल (८८)-देखकर
प्रघळा (१५, १६, १०२)—पुष्कल, पेखि (५५) देखकर
बहुत, अपार, प्रवल, समर्थ । पेखियो (२)-देखा
प्रघळि (८७)-बहुत पेखियो (६०)-देखा
प्रणमंति (३६)-प्रणाम करते हैं । पेखीयो (८२)-देखा
प्रतिपाळ (१०२)-रक्षा पेट (४)-मृजन गक्ति, पेट ।
प्रथमी (३०)-पृथ्वी पेड़ (१२)-जड
प्रथळ (३ स० पृथु-पथु+रा० प्र० ल
बहुत, अधिक, चारो ओर पैकंवरा (२५)-ईश्वर दूत, अवतार फैला हुआ, विस्तृत, प्रयु, पृथु पैठिन (२१)-प्रतिष्ठा करेगी। पैठो (९४)-प्रविष्ठ हुआ।
प्रथिमि (१)-प्रथम, पहले । पहलाद (४४, १०३)-प्रह्लाद
प्रथिमी (१, १२)-प्रथम पोखिया (९२)-पोषण किये ।
प्रवोव (४४)-शिक्षा पोखीया (५७)-पोपण किया, भोजन प्रभ (१४, २४, ३२, ४१, ४७, ६३, खिलाया ।
७५)-प्रभु, ईश्वर । पोढेरा (७)-बहुन, ज्ञानवृद्ध ।
प्रभु (३३)-प्रभू, ईश्वर । पोरस (६८)-पौरुप
प्रभूत (४६)-उद्गत, निकला हुआ, पोहचाडिया (६३)-पहुँचा दिये।
उत्पन्न, विशाल, महान, पोरने (३०)-पौरुष
अधिष्ठाता। - पोरिम (३८, ५५)-पौत्प, शक्ति। । प्रभूरो (८३)--श्रीकृष्ण
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[
५५ ]
प्रम (७, २५, ६७, १०१)-परम, | प्राखियो (८९) स्वागत करेंगे। महान, ईश्वर ।
प्राजी (८९)-सेवक, दाम । प्रमाण (५१)-समान
प्रामी (६)-प्राप्त की। प्रमेसं (३०)-परमेश्वर
प्रामै (४३)—प्राप्त करता है। प्रमेसर (४, ७, ८, १०२)-परमेश्वर |
प्रास (५, ६, ३७, ५०, ६६)-पाश, प्रम्म (३६)- परम, ईश्वर ।
वंधन । प्रयाग (५१) तीर्थराज प्रयाग
| प्राहणा (८१)—महमान, प्राधुरण । प्रवाडा (५, ८४ )-महान और
प्राहणौ (७७, ८८)-महमान । _ चमत्कार पूर्ण कार्य ।
प्राहुणा (८४)-महमान । प्रवाडा (१७, ६३)-महान कार्य ।
प्रिथमादि (२८)-पृथ्व्यादि । प्रविति (८३)-पवित्र प्रवीत (२)-पवित्र
प्रीतवर (६७)-पीताम्बर । प्रवीति (३०, ३१)-पवित्र
प्रीतवर (४३)-पिताम्वर । प्रवेस (३५)-प्रवेश
| प्रीतम (३५)—प्रियतम, प्यारा वल्लमा प्रसासुरा (१०३)-दैत्य
प्रीता (९३)—प्रीति। प्राखि (१३)
प्रेज (६७)-प्रजा। प्राघण (१००)—वेढ प्राखणौ अथवा |
प्रोळि (५३)-तोरणद्वार ।
फ पाखणौ यह मुहावरा है जिसका अर्थ स्वागत करना
फट्ट (५३)--फट गया है। और व्यग मे, मारना और
फत (२१)-विजय । पीटना भी होता है।
फर्व (६२)-शोभा देते हैं। प्रामस (६५) प्राप्त करेंगे।
फरस (६)-परशुराम । प्रामिजै (४०)-प्राप्त किये गए।
फरसराम (६६)-परशुराम ।
फरसराम (३, ३६)-परशुराम । प्रामिस (८५, १०२)-प्राप्त करेगी या करेंगे।
फरसा (५५)-परशुराम । प्रामीयो (६६) प्राप्त किया। फरसि (५५)–परशु। प्राखड (६३)-पाखण्ड ।
फरसिराम (२९)-परशुराम । प्राखिडिया (११)-१ अश्वारोही फरहर (६२) हवा मे इधर उधर
२. सम्मान करने वाले। ध्वजा के होने की क्रिया ।
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फळी (८६)-फलीभूत हुई बजरि (८०)-वज्र, वन जैसा । नोट-फळणी क्रिया का भूत- वजाडी ( २ )-बजाई, ध्वनिमान की
कालिक प्रयोग है। वडाळी (२)~वडा, महान । फाविति (४३)~सुशोभित हो रहे है। वडेरी (१९)-वडी फावियो (३)-सुशोभित हुआ। वरणण (८७) - ध्वनि विशेष । फाविम (६६)-गोभित होगे। वताडौ (८)-बताइए फुलारिणया (८६)-फूल दल हुई। वभीखरण (४४, १००, ८१, ८५, फुलिंदर (६६)पुरदर, इन्द्र ।
६५)-रावण का भाई, फेरा (१७, १८)-दफा, वार ।
विभीषण। फेसि (११)-फोडना, तोडना । वरघू (६६, ८६)-~-वाद्य विशेप । फोर्ड (४७)-फोडता है।
वरदान (३८)---किसी कार्य का लाभ फौतरा (८२)-मौत के
के लिए प्रसन्नता से ही
अथवा देव विशेष या बडे वछासुर (४)~वत्सासुर नाम का एक
का प्रसन्न होकर कोई दैत्य जिसको कृष्ण ने
अभिलपित वस्तु या सिद्धि वाल्यावस्था मे ही मार
देना। डाला था।
वळ (४७, ६८)--शक्ति, गति, फिर । वंधव (५७) -- भाई।
वळच (६३)--बलीवर्द, बैल यहाँ वंम (३५, ४०, ४२, ७३)-ब्रह्मा ।
अंतरकथा का पता नही वभेमर (४)- ब्रह्मा ।
चलता, नाथा तो नाग था वक (११, ४४ -~-वकती है, कहती है । वळभद्र (५७, ६०) बलिभद्र, वखाणं (१, ६) वर्णन करते हैं, यश- 1 श्रीकृष्ण के बडे भाई बलराम गान करते हैं।
वळवत (७०) बलवान, शक्तिशाली वगस से (६४) - प्रदान करेगा। बलाक्रम (६, ३८)--शौर्य, वीरता, वगासुर (४, ५९)~बकासुर नामक
शक्ति, सामर्थ्य । दैत्य जिसे कृष्ण ने मारा था। वलि (३३, ३६, ६५) राजा बलि । वघ वाणी ( ३८ )-जिसका सिंह । वलिभद्र (७, १८, ६५, ६६, १०१)वाहन है।
श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम. ,
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[ ५७ ]
बळिराउ (६६)-राजा बलि । वामणी ( )-ब्राह्मणी बलिराम (५७, ८२ )-बलराम | वाह (५)-भुजा, हाथ ।
श्रीकृष्ण का वडा भाई। वाहां (४१)-बाहु बळिराम (८५)-वलदेव, वलभद्र।। | बाई (९७)-वदन वळिहारी (१०१)-वलैया
वाकळा (५८)-उवाला हुआ, अक्षत बळे (७८)-बल गये, भस्म हो गये।
अन्न। वसदे (२)-वसुदेव
वाज (१०१) वसदेव (५८)-वसुदेव
वाणासुर (५)-राजा बलि के सौ पुत्रो वसास (५०)-विश्वास
मे से सवसे वडा पुत्र वह (१३, ३८, ४६, ४४, ६२, ६६,
जो महान वीर, गुणी ८५, ८६)-बहुत
और सहस्रवाहु था। वहत (१४, ४७, ५२, ५३, ५८, ६५, | वाथा (६१) बाहुपाश । __८६, ८५)-बहुत
वाधा (९७)-बंधन मे । वहनामी (१४, ५६, ६०, ६३, ६७, | वावि (९६) -विशेष
१००, ६५, १०१)-जिसके | वाप (२५)-पिता
बहुत से नाम हो, ईश्वर । (१०१)—यहां बाप शब्द पाश्चवहनामी (६१, ६५, ४८, ७६, ६४)
र्ययुक्त धन्यवाद शब्द के देखें, वहनामी।
अर्थ मे है। बहमामि (३६) बहुत-सो का स्वामी
| वापडा (२०)-वपुरा वहादरि (८६)—वहादुर, वीर, वीरता
बामण (३०)-ब्राह्मण, (यहा सुदामा वाझणिया (११)-बध्यारो, वाझो ।
के लिए आया है। वाणासुर (६३)-राजा बलि के ज्येष्ठ | वायर (५२)-स्त्री, ( यहा मोहनी पुत्र का नाम जो वडा वीर,
अवतार के लिए प्रयोग गुणी और सहस्रबाहु था।
किया गया है) वाध (५७)---रची, रचकर, वनाकर ।
वारट (१७) चारणो की उपाधि । बाघौ (३२)-धारण करना वारा (३३)—वारह वामण (१६, ३६) ब्राह्मण, वामना- | वारिस १०२)द्वादशी वतार ।
वाळ (२०, ४७)—वालक
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[ ५८ ]
चालमोक (३८, ६७, १०३) वाल्मीकि बुध (३०, १८, ३६)-बुद्धावतार, ऋषि ।
गौतम बुद्ध । वाळि (५६) वालि नाम का वानर । बुधा (७)-बुद्धअवतार, बुद्ध भगवान । वाहिरौ (४६, ७०)-रहित, विना । । बुधि (३९) बुद्धावतार । बाहुडियो (९)-चिल्लाया, पुकार की | बुरो (४८)- बुरा विदे (१८)-बदन करते हैं । बुसट (६०)-दुष्ट विज्ञानु (४५)-विज्ञान
बुस (८०)-वैसे विण (३८)-रहित
वूझ (४४)-पूछता है। विन्हइ (१४, ५२, ६६)-दोनो ही। । बूडिस (२०)-डूब जायेंगे। वियो ४८)-द्वितीय, दूसरा। वे (५७) दोनो विरताव (३७)-प्रवेश कर बेकार मा (४०)-१ वेकार, २ असीम, बिरद (३१)-विरुद्ध
वेडा (७५)-नौका विरदाळ (७)-विरुदवारी । वेडी (१०२)-बंधन विरसाळा (१६) श्रेष्ठ
वेढि (१००)-युद्ध विरिद (११, ६१)-विरुद, यश, वेल (५५, ५६, ६९)-वश, मदद, कीर्ति ।
लता ? सहायता। विसन (७७)---विष्णु
वेलि (८६)-वेलि, लता। विहिन (१०१)-बहिन
वेलिया (९६) व्यक्ति, मित्र, साथी । वीज (३२)-द्वितीया, तिथि। | वेली (३१, ८३, ५३)-मित्र, दोस्त, बी०ळा (८३)-विट्ठल, श्रीकृष्ण ।
सहयोगी, सखा, मददगार । वीनवै (३७)---विनय करता है या । वेवइ (१४, ४१)-दोनो हो ।
__ करते हैं या करता हूँ। वर (११, १४)-स्त्री, महिला, पत्नी बोया (८७)-दूसरा, दूसरी। वैरा (५९)-स्त्रिएं वीहा (७५)-डरता हूँ।
वोटियो (६३)-काट डाले बुगासुर (१०३)—वकासुर नाम का वोढियो (८२)--नाश किया, डुवो दिया असुर ।
वोढे (७५)--डुवावे वुड (८०)-बडा
वोया (५८)-१. प्रारम्भ किये। ---- बुद्ध (३४)-बुद्ध भगवान ।
२. स्थापित किये।
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[
५६
]
३ डुवा दिये। ब्रह्माणी (१)-ब्रह्मा की स्त्री, ब्रह्मा ४ नाश किये।
की शक्ति । व्याधि (८१)-ज्याध नामक असुर। | ब्रह्म (२८) - ब्रह्मा अम (८५)-ब्रह्मा
निख (९५)-वृक्ष ( यहां नल कुवर वहम (७४) ब्रह्मा
नामक दो कुवेर के पुत्रो से ब्रहमा (६६)-ब्रह्मा, विधि, विधाता। तात्पर्य है। ब्रह्म (१, ३, ७, ३४, ३७, ६७, ६८)- विद (२)-विरुद
एक मात्र नित्य चेतन सत्ता | विदि (२३, ५३)-विरुद जो ससार का कारण रूप है,
ब्रह्मा। ब्रह्म-यान (७८, ४५)–ब्रह्म का बोध
भजण (४४, ४६) नाश करने वाला,
मिटाने वाला । अदत सिद्धान्त का वोघ, तत्वज्ञान ।
भगत (१००, १०१)-भक्त ब्रह्म (६१, ७१)—ब्रह्म
भगत-बछळ (२, ३, २६, ३४}-भक्त ब्रह्मगुण (४२)-सत्+गुण
वत्सल । ब्रह्मा (१०१)-विधि, विधाता।
भगता (९६, १०२, १०३)-भक्तो ब्रह्मा (६३, १, १०, ६६, ७१, ७२,
भगति (३४, ६६)-भक्ति ५३, ६०, ६४,७६ ८२, ८८)
भगतिणि (१०१)—भक्त-सी विधि, विधाता, ब्रह्म के तीन सुगुण | भड (६६, ६८, ६१) योद्धा, भट । रूपो मे से सृष्टि की रचना करने | भडाभड (५) योद्धाश्रो मे भी योद्धा, वाला, सृष्टिकर्ता।
महाभट्ट । हिन्दू त्रिदेवो मे से एक इनकी | भडि (५५)-भट, योद्धा । उत्पत्ति के सम्बन्ध मे मनुस्मृति मे / भडे (९७)योद्धाश्रो उल्लेख है कि स्वयभू भगवान ने भणियों (६३)-कहा जल की सृष्टि करके उसमे जो | भणीज (५१)-कहे जाते हैं । वीर्य स्खलित किया था उससे एक भणे (६०, ६७)—वर्णन करता है, ज्योतिर्मय पिंड की उत्पत्ति हुई
कहते हैं, कहता है। उसीसे ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ। । भत (२१, ४३) -भांति, प्रकार ।
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भद्र कुंअरि (६३) केकयराज की । भाजि (३७, ३६) नाश करके, टूट भद्राकुमारी कन्या जो कि
कर, नष्ट होकर । कृष्ण को व्याही गई थी। माजियो (५५)-तोड़ डाला। भमतो (७५)-भ्रमण करता हुआ। भाजिही (१०२)-पहार करोगे, ध्वंस भरत (९२, ६८)-राम भ्राता भरत,
करोगे। भरथ (६, २१, ३६, ५५, ५६, ५७,
भाज (३४, ४२) नाग करता है,
तोडता है। ६५, ७२, ८१, ६४)-राम भ्राता
भाड (९०)-विदुषक, निंदा करने भरत, कैकयी पुत्र भरत।
वाला। भरथ रा (६५)-भरत का। भामणा (८०)-बलैया भरथु (२९)-भरत
मामिणी (१०१)-भामिनी, पत्नी । भरहरा (७७)-१. नरो मे श्रेष्ठ, / भामी (६१, ७२, १०१)-वलैया, २. नृसिंह ।
न्यौछावर। भला (५.१, ८३)-ठीक, उत्तम,
भाइ (२०)-पसद सज्जन।
भाइयो (२)-भाई, भ्राता । भली (५६)–उत्तम, श्रेष्ठ, ठीक ।।
भाईया (१०२)-१ भाई वधु, (सवोधन)
२ दीनवधु। भले (९७) यहाँ पर यह शब्द केवल भाखा (३८)-कहे।
सम्बोधनार्थ प्रयोग किया | भाखि (४२)-कहकर गया है।
| भाखीज (४३) कहिए, कहा जाता भलेरा (१२) श्रोष्ठतर
भाखी (७३)-कही भलेरी (२) वढिया, श्रष्ठतर ।
भागिवत (३८) श्रीमद्भागवद् भळे (et)-और, फिर ।
भागी (२०)- पसद आने वाली । भळे ()-भला, उत्तम, ठीक ।
भामणा (३६)-वलया, न्योछावर भलो (४८, ६०,६१)-ठीक, वढिया,
भारथ (८६, १००)---युद्ध । श्रेष्ठ उत्तम, भला, सनन ।
भारथी (१७)-दशनामी सन्यासियो भवस (३५)-भविष्य
की एक शाखा या इस भहरी (२२)-भरपूर
शाखा का व्यक्ति, भाजण (७६)-मिटाने वाला।
भारती।
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[ ६१ ]
भाराथ (१५)--भारत, युद्ध । भीपम (६२)-भीप्म पितामह । सारी (४७)- सब
भुडा (१७)—खराव, नीच । भाळि (५६) देखकर
भु जन ( )-भलन, स्मरण । भालीअल (४४) ललाट
भुजाडी (५)--शक्तिशाली, समर्थ । भिडि (१५)-भिडकर, युद्ध कर। | भुजाली (१९)-भुजाओ वाली । भिडियो (६३)-भिडा, टक्कर ली, भुजाली (१)-समर्थ, शक्तिशाली ।
युद्ध किया। भुजिया (८३)-भजन किया । भिरिण (७४)- कह
भुजैतौ (५) तेरे को भजे । भिणीज ( )-मरण किया जाय । | भुणीज (४०) कहा जाता है । भिणे (८)-कहो, भए ।
भुयण (१५, ४८, ४९)-भुवन, लोक भिळणो (२)-परिवृत होना। भुयणा (६१)-भुवन, लोक । भिले (३४)-श्रेप्ट, वाह वाह ।। भुवणा (१०२)-लोको भिळे (१८)-१ फिर, पुन २ मिले, | भूक (१८}-- १. भूख, २ पुकार । इकट्ठा हो।
भू गळ (६६)-फूक वाघ विशेष । मिळे (८५, ६, २०)--मिल गये, मूंडी (८९)-खराव, बुरा ।
शामिल हुए, फिर, और । भू (२२)-भू भीजै (४१)-प्रसन्न हो जाय । भूक (६१)- ध्वस, नाग । भीड (५२, ५४)-कट, कष्ट । भूचरा (८५)-भूमि पर विचरन करने । भीडिया (८०)-भीडा, कुचला ।
वाले। भीम (३४, ६२, ६७)-पादु पुत्र भीम, भूत (८५)
विदर्भ का राजा भीष्मक भूवरजी (६७-विष्णु का एक नाम
जो रक्मरिण का पिता या । सूधरा (५१)-भूवर, विष्णु । भीम रै (९६)--राजा भीष्म के जो
भूधग (३४)-श्रीकृष्ण, विष्णु भू को रुक्मरिण का पिता था।
धारण करने वाला। भीर (२१, ५५,७७, ६०)-सहायता भूप (३५)-राजा, स्वामी। मदद।
भेख (३५, ५५)-भेप, वेग । भील (५६)--एक जाति ।
भेटण (७२)-स्पर्ग करने को। भीपम (६५)-भीष्म पितामह । | भेदु (३६)-भेद, रहस्य ।
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भेर (६६) - भेरी नामक वाद्य । भेळा (११, ६६) - शामिल, एक साथ । भेळिस (१०) - विजय करेगा ?
भैचक (१०२) – भयकर, महान, वडा भोमि (२१) - भूमि
[ ६२ ]
मछिरियो ( ८२ ) - कोप किया
भौ (५८, १९, ६९ ) - भय, डर, आतंक मजीरा ( १७ ) – वाद्य विशेष
भागी (९४
भ्रम ( ३७ ) - सदेह
खिस (७५) - खायेगा, काटेगा । भ्रतार ( ३६ ) - पति, स्वामी । भ्रम (३५) - अज्ञान
भ्राति (३१) - भ्रम भ्राजा ( २ ) - सुशोभित हुए । ििग (६२) – भृगु नामक एक ऋषि जिनकी कथा पुराणो मे विस्तार पूर्वक मिलती
है |
म
मजार (१०) - अदर, मे । मंड (३५) - रचना, मूर्ति । मंडारण (५१, १०१, ६८ ) रचना मडाणी (१२) - रची गई । मंग ( ११ ) - कहती है ।
मच्छ ६) -मत्स्यावतार
मछ (३, २४, ३६, ३६ ) - मत्स्यावतार महकु द (६२) - मुचुकु द मछरियो ( ५७ ) - कोप किया ।
मँथरा (५५) - राजा दशरथ की रानी कैकयी की दासी 1
मणे (४३) – कहते हैं, भजते हैं । मति (२३, ३६, ३७ ) - बुद्धि, ज्ञान । मति सारै ( १ ) - बुद्धि के अनुसार । मती ( ६ ) - मत, नही
मतौ (८२) - विचार, निश्चय । मथाण (६८ ) - मंथन मथियो ( ८० ) - मथन किया, विलो - डित किया ।
मयीयौ ( ५२ ) - मंथन किया, विलोडित किया ।
मथुरा ( ६१ ) – पुराणानुसार सात प्रमुख पुरियो मे एक पुरी जो व्रज मे 'यमुना के दक्षिण तट पर है |
मदमती (१९) मदोन्मत मस्त ।
J
मव (४५, ५२, ७६ ) - मध्घ, मघुनामक असुर ।
मंद (२१) - खास कर
मकर (१६) - नाम है |
म (१, २, ४८, ६) न, मत नही मवकीट ( ७२ ) - मधु और कैटभ
J
नामक दो दैत्य जो परस्पर
मकराइ (४३) – मकराकृत मचीरणा (58, 25 ) -
भाई थे ।
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[
६३
।
मधकीटक (१००)-मघकीट महत (६१) श्रेष्ठ, वडा । मधवन (२४)-इन्द्र
महमद (३१)-मुहम्मद । मधसूदन (५७)-विष्णु, श्रीराम । | महमहरा (३३)-महान वडा। मधु (४)-विष्णु द्वारा मारे जाने वाले | महमहण (१, ४६, ७४, ८२,८३,८४ एक दैत्य का नाम ।
८६, ६१, ६६, १०२मनछा (४७)-इच्छा
महामहारराव, महामहत, मनडी (११)-मन, अल्या ।
महामहाने, ईश्वर, महान मना (४८)-मुझको
वडा। मनि (४६)----मन
महमाइ (३८)-महामाता, देवी । मन्हहारि (६१)-मनुहार महमाई (२२)-महामातृका । मयण (५७, ७६)-मदन, कामदेव । महमाय (६६)-महामाया, दुर्गा । मया (३७)-दया, रहम ।
महमाया (१९)- महामाता। मये (६१)
महर (२०, ५८)—दया, कृपा, यशोदा मरट (६६) गर्व, अभिमान ।
व नद के लिए प्रयोग वाला मरडकै (८७)- मुरड गये।
पादरसूचक शब्द, श्रीकृष्ण के मरोड (१९)-मरोडकर
लिए आदर सूचक शब्द। मल (६८)-मल्ल
महरि (६३)-वृज मे प्रतिष्ठित स्त्रियो मळ-माटी (५७)-नाश, ध्वस ।
के लिए प्रयोग किया जाने मला (१०३) -
वाला आदर सूचक शब्द । मळ्यिा (२१, ६०)--मर्दन किया, नाग | महल (६८)
किया, प्रात हुआ। महा (३२, ७९)-महान् । मलीनाथ (१५,-राठीडराव सलखा महाजप (४३)—वडा जप ।
का प्रथम पुत्र जो महेव महाप्रभ (४८)-महा प्रभू ।
( मालानी) का स्वामी था | महाभड (७७) योद्धा । मवि (४५)- मे
महामाइ (२०)-महामाता। मवे (४५)-मे?
महि (४३)-मे। मसतक (१०१)--मस्तक, शिर । महि (४७, ८१)-भूमि, पृथ्वी । महण (१८)-महार्णव, सागर। महियार (५)-ग्वालिन ।
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[
६४ ]
महिरिवारण (२८)-महरवान, महा- | माडहै (१४)-विवाह-मडप ।
र्णव । माडही (६०, ६६)-विवाह-मडप । महिराण (१०१)-महार्णव, समुद्र । माडिया (६८)-रचे । महिरामण (१००)-पाताल मे रहने मांडीयौ (५८)-~-रचा, बनाया।
वाले दो भाई अहिरावण माडे (२१) रचे । और महिरावण । कोई / माडे (८१)-रचकर । कोई इन्हें रावण का मित्र | माडी (१०)-रची, रचिए। वतलाते है और कोई भिन्न | मारिण (९०)-उपभोग करके, रसामत रखते हैं। ये घोर गर- स्वादन करके । कर्मी थे।
मारणी (८६)-उपभोग करेंगे। महिरिवाण (३८)-महरवान, कृपालु । मारणे (२, ३०)-रखता है, उपभोग महोबार (५६)-गोप स्त्रिएं, ग्वा
किया । । लिनिए । मानियो (२३)-माना। महेस (३५)-महादेव।
माहि (३५, ३७, ३८, ४०, ४६, ५२, महेसरि (२१)---माहेश्वरी, देवी ।
८१, ६३, ६५)--मे।
माही (१६, ३५, ६०)-मे। महेसुर (४४)- ।
माहै (५२) मे । मा (१)-मे।
माग (१०१)- मांगता है, याचना माँ (२)-मे।
करता है। मा (१०, ११, १२, १७, २०, २१,
माछ (५६) मत्स्यावतार लेने वाला ३०, ३१, ३२, ३७,. ४०, ४१, विष्णु। ४२, ४३, ४५, ४६, ४७, ४८,
माछर (७६)--मच्छर। ४६, ५५, ५६, ५६, ६०, ६८, |
माटी (५८)---मृनिका, मिट्टी। ७०, ७१, ८२, ८३, ८७, १०,
| माडा (६६)जवरदस्त, वलात् । ६५, ६७)-मे।
मारणीया (८३)-उपभोग किया। मांकळी (७०)-वहुत, अधिक ।
मारणे (१९)-उपभोग करती है। माना (३४)- मांगता हूँ।
मात (६९) माडण (१००)-रचने को। | माथ (२१, ६६, १०३)-ऊपर ।
-
-
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[
६५ ]
मादळा (६६, ८६)-वाद्य विशेष । माहेस (६७)-महेश, शिव । माधव (७)-लक्ष्मीपति, विष्णु।
मिडिया (४३)-अकित माधा (४२, ६२)-माधव, श्रीकृष्ण ।
मिगिज (९०)--कहिए? मानियौ (१६)-माना, मान लिया । | मिणीजे (४५)-कहिये, कहा जाता माप नै (४६)
मामी (१०१)-माता का भाई। मिनि (२०, २१)-मन मे, मानली? . माया (३७) लक्ष्मी, धन-दौलत, मिलक (३२)
अविद्या, अज्ञान । । मिळरण (३२)-मिलना मारीछ (६)-मारीच, एक राक्षस का | मिळिया (३३)-मिलकर
नाम जिसने सोने का मिळ्यिौ । १५ –मिला हरिण वनकर रामचद्र
मिळिस (९)-मिलेगा को धोखा दिया था।
मीठौ (९७)-मीठा, मवुर । मार (३०)-मार दिया।
मीत (१०१)-मित्र माल्हिो (८)-मस्त चाल से चला |
| मीर (८६, ६०) - धार्मिक प्राचार्य, माल्हिस (१२)-गर्वपूर्ण नद चाल मे
सैयद जाति की उपाधि, चलेगा।
प्रधान नेता। मावड (८३)-माताएं
मीरां (२५)–भक्त मीराबाई । माव (५६)-समाते हैं।
मीराह (१०)-मीर, प्रधान । माह (१०३)
| मीरा (९०)-समर्थ, गक्तिगाली। माहरे (३१, ४३, ७३)-नेरे
मीसण (१६) चारणो का एक गोत्र । माहरोइ (११)-मेरा ही
मु ठहुँ (४८)-मूर्ख माहरी (११, २६, ७०, ७६)—मेरा | मुठा (७६) माहव (१, २ ४८, ६०, ७४)- | मुना (७४) - मुझ को । माधव, श्रीकृष्ण।
मुसा (८५)-यहूदी लोगो के एक माहवा (११, ४८, ६०, ७८, ६६,
. पैगम्बर जिनको जुदा का नूर ९७)-माघव, श्रीकृष्ण, विष्णु ।। दिखाई पड़ा था। माहवी (६२)-माधव, श्रीकृष्ण। मुसे (१७)माहि (३५, ८३)-मे
| मुहडौ (५१, ८३)- मुख, मुह ।
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[
६६ ]
मुंहमद (१०१)-महम्मद | मुर-भुवरण (३५, १०२)-तीन लोक मुघौडी (६६)—मृता, मरी हुई। मुरलोक (६)-तीन लोक मुकद (७५, ७६, ८३, ६०)-मुकुंद, मुरह (६३)-तीन
मुक्ति देने वाला, विष्णु। । मुरारि (६१)-मुर नामक दैत्य को मुकंदहु (५३)- मुक्ति देने वाला, ईश्वर मारने वाला, विष्णु, श्रीकृष्ण मुकुद (८२)-मुक्तदाता, विष्णु का मुरारी (६०)-श्रीकृष्ण, मुर नामक एक नाम।
दैत्य का सहारक । मुकन (५८)—मुक्ति देने वाला, विष्णु मुरिखि (३६)-~मूर्ख, अज्ञ । मुखी (२१)-मुख्य
मुरिडि (६६)-मरोड़कर मुगति (३५)-मुक्ति
मुलाणा (१६, ३१)-मुल्ला मुगिति (७६)-मुक्ति, मोक्ष । मुल्लाणा (६५)-बहुत बड़ा विद्वान, मुजरो (२५)
मुल्ला, शिक्षक । मुझ (३८)-मुझको
मुसा (३१)मुझना (३६)-देखें, मुझ । मुसिला (११)—मुसलमान मुड़िस (६६)-मोडे जायेंगे । मुहमद (१०)-जिसकी अत्यधिक मु. (८७)-मुड़ गये
प्रशसा या कीति हो, इस्लाम मुणे (६०) कहता है।
धर्म के प्रवर्तक, अरब के एक मुथुर (८३)-मथुरा नगरी ।
प्रसिद्ध पैगम्वर । मुद (६३)-प्रसन्ने, हर्पित । मुहमदा (८५)-मुहम्मद मुदै (१५)-मुख्ये, प्रधान । मुहम्मद (६५)-इस्लाम धर्म के मुना (२४)-मुनियो
प्रवर्तक अरव के प्रसिद्ध मुना (१००)-मुझको
पैगम्बर। मुनाई (२०)-प्रसन्न की, मनाई। मंगळ (८९)-मुगल, मुसलमान । मुर (३६, ४८, ६०, ६१, १०२)- मू छिस (८५)-काटेंगे, मिटा देंगे, तीन
नष्ट कर देंगे। मुरई (६६)
मूना (१००)-मुझको मुरघर (१०३)- मारवाड
मू मरणां (६१)मुर-भुयरणा (१६)-तीन लोक, त्रिभुवन मूस (८६)
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[ ६७ ] मूसरण (३७)---मुझको शरण? | मैवार (५२) मूसा (६५)--एक पैगम्बर जिसे यहूदी मो (७०)-मेरे ।
___ लोग अपने धर्म का प्रवर्तक | मोकळा (१६, ३१, ६६)-वहुत, काफी, ___ मानते हैं।
अपार, अधिक । मूसा (९०)
मोकको (८५)--बहुत। मूका (६८)-छोडेंगे
मोख (४६, ७५)-मुक्ति, मोक्ष । मूनां (७३)-मुनियो को।
मोखीया (५७)-- मुक्त कर दिए । मूरति (१००)
मोटा (३७)-महान, वडा । मूळ (४६) कारण, जड ।
मोटी (३८, १००)-महान, वडी । मेक (७७)-एक । मेखल (४३)~ करधनी।
मोटे (१६)-वडा, महान । मेघ (५७, ८५, ६१)-मेघनाद, चमार
मोटौ (३८, ६६)-वडा, महान । मेष (२१ मार जाति को मोड़ (३२)-मौर। उत्पन्न) स्त्री।
मोड़ (१६, ३२) नाश करती है, मेघड़ी (११, ८४, ८६, ६६)-चमार
रचता है। जाति की कन्या या स्त्री मोढरी (१६)-महान, बहुत । चमारिन ।
मोना (७०)-मुझको। मेध-रिखी मेघां (३२, ८४, ६०, ६०)-चमार,
मोहण (७४)-मोहन, श्रीकृष्ण ।
मोहणा (८४)-मोहन । चमार जाति की कन्या ।
माँहि (५३)-मे। मेछा (१०)-म्लेच्छ, यवन ।
मौज (८१)-दान । मेपन (४६) मेर (६१, १०१)-सुमेरु । मौजा (५१) आनद । मेळ (१०१)-मित्रता, स्नेह । मोड (६६)-मौर। मेळिया (६२)---मिला दिए । मौरी (२१)—मेरी। मेले (१)—रखे।
मौहरि (५५, ८६)-पूर्व, पहिले, अगाडी मेळी (८५)-मिलाप, मेला।
सम्मुख, पहिले । मेह (५१)--मेघ, वां। | मौहै (५२)-मोहित किए मेहणौ (८८)
| म्हारौ (१३, ५३)—मेरा।
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[
६८ ]
| रमावे (३०)-क्रीडा करता है। या (४१, ६१)-इन, इस प्रकार, ऐसे।| रम (४२, ७१)-खेलते हैं, रमण यार (७१)-मित्र, दोस्त ।
करता है, क्रीडा यैर (५१)-इन ।
करता है।
| रवराया (१६, २०)-पुकारने पर रजण (४६)—प्रसन्न करने वाला,
दया करने वाली। प्रसन्नता कारक । रसण (३५)—रसना रइ रिण (६७)-भूमि, पृथ्वी । रसा (५१)-पृथ्वी रख-पाळ (४७)-रक्षक ।
रसातळि (५२)-रमातल मे । रखै (१)-ऐसा न हो।
रहक्क (६६)-गाया जाता है, लय मे रखै (६६)-देखे ।
होता है। रगत (३१, ७६) रक्त, खून ।
रहमाण (६, २४, ३७, ८४, ८६, रगत-वंवाळि (१९)- रक्त पान करने
१०,६१)-दयालु, वाली, महान प्रचड ।
कृपालु, रहीम, ईश्वर रजोगुण (४२)-तीन गुणो मे से जो
का एक नाम । समस्त पदार्थों में पाये | रहमाण (८६)-ईश्वर जाते हैं दूसरा गुण, | रहिचीया (६०)-सहार किये, मार रजम् ।
डाले। रटक (८४)-टक्कर, मुकाविला, | रहिमाण (१८)-ईश्वर, रहमान । सामना ।
रहीज (४५)-रहिए, रहा जाता है । रडवड (६१)-इधर उधर गिरना।
रहै (४५) रडवर्ड (६६)-इवर उधर पडे पैरो रा (६६) के से ठुकराया जाये।
राक (२६, ३६, ४४, ३५)-रक, रत (६६)-रक्त, खून ।
___ गरीव । रतरी (२१)
राकना (७२)--रक, गरीव । रत्ती (११)-प्रेम
राम (६, ७, ५५, ६८, ६१, ६६)रन (५६)-अरण्य, वन ।
ईश्वर, श्रीराम । रमाया (२१) खेलाया
राम राजा (१२)--श्रीरामचन्द्र ।
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[ ६६ ] रामइ ग्रौ (१५)-रामदेव पीर . राधा-रमण (३३)-राधा के साथ
रमण करने वाला, रामरण (५६, ६३, १००)-रावरण, |
श्रीकृष्ण । दशानन । रांमदे (१५)
| राधा-वर (१)-श्रीकृष्ण । रामा (६३)-लक्ष्मी
| राम (३, ८, ९,२८, ३६, ५३, ५७, रा (२०, ४४, ५१, ५८, ६६, ६३,
६६, ७१, ७८, ८१)-श्रीराम १०१, ३२, ३६, ४१, ८१,
रामावतार, परशुराम ।
रामचंद (२६, ३५, ५६, ८१, ८७, राईया (१०२)-राजा
६२) रामचंद्र, दशरथ पुत्र,
श्रीराम । राईया (७७)-रहने वाला।
रामचंदर (५५) श्रीरामचंद्र । राउ (३३)-राजा
रामचदि (८२)-रामचद्र भगवान । राउत (१५)-राजपुत्र, राजपूत, राज
रामचन्द्र (६७, ६३) उत, योद्धा ।
रामण (४, ८२)-रावण, दशानन । राकस (२, ६)-राक्षस
रामति (७१, ७७)-क्रीडा, खेल, राकसा (८४)-राक्षसो
लीला। राखस (६५ -राक्षस
रारि (३)-नेत्र, नयन । राखसां (१८, १०३)-राक्षसो रावण (५७) राखै (४३, १००)-रखता है, रखते | रासि (६०)
रासौ (१६)-रासा राखौ । ३५)- रखिये
| राह (३६, ५२, ५४)-राहु राघव (६, २६, ६३, ८१, ९२)
रिख (२६, ३६)- ऋषि - श्रीरामचन्द्र, श्रीकृष्ण। रिख-राया (६)—ऋषि, महपि। राघवा (५५, ७२)-राघव, श्रीराम- |
(विश्वामित्र) चन्द्र। | रिखव (३) ऋषभदेव राज (३७, १०१)-राज्य, आप। रिखवदेव (६, १८)-ऋपभदेव, भागराजाई (६७)-राजापन, राजात्व ।
वत के अनुसार राजा राजि (१०१)--श्रीमान् ।
नाभि के पुत्र जो विष्णु रातो (५३)-रक्त, लाल ।
के अवतार माने जाते हैं। राधा (४)
जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर।
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[
७
]
रिखव (२४, २८, ७१)-ऋषभदेव | रिमि-रांह (१४)--शत्रुयो को राह पर रिखा (८७)-ऋषि
लाने वाला। रिखियो (१३) चमार जाति के के रिप (३६)-पि
व्यक्ति जो रामदेव पीर | रिषभ (३८)-ऋपभदेव, जो विष्णु के अनन्य भक्त होते हैं।
के २४ अवतारो मे गिने यह शब्द ऋषि का
जाते हैं तथा जैनों के अपभ्रश है।
आदि तीर्थ कर भी यही रिखी (२६)-ऋपि
माने जाते हैं। रिसर (१३)-ऋपीश्वर
रिपभदेव (५४)-पमदेव रिजकि (१०१)-रिज्क, रोजी
रिपि (१४, ४४)-अपि रिजिक (१०)-नित्य का भोजन, रीछ (१०१)—यह शब्द जामवत के रोजी जीविका, रिज्क ।।
| लिए प्रयोग हुया है । रिजियो (६९)-प्रसन्न हुआ।
| रीछडी (६३)—ऋक्षराज जामवत की रिण छोड (४, ७२)-युद्ध भूमि को
कन्या जिसके साथ कृष्ण
का विवाह हुआ था। छोडने के कारण
रीजियो (२८)- प्रसन्न हुआ। श्रीकृष्ण का एक
रीजी (१४)-प्रसन्न हो। नाम, ईश्वर । रिणि'खेत (८७)
रीझ (७२)—दान, पुरस्कार ।
री (१६, ५४, ५५, ६०, ६३, ६६, रिणिताळ (६६)-युद्धस्थल, युद्ध ।
१०२)-की रिगिसी (१५)
रीछ (६५)—ऋच्छ रिदै (३६)- हृदय
रीछडी (८९)-जामवंत की पुत्री रिदै (४३, ४५)- हृदय मे।
रीज (४१, ४४) - प्रसन्न होकर, दान रिध-सिव (५)-ऋद्धि-सिद्धि ।
रीज (१६, २६, ३६, ४१, ४३, ५१)रिपि (५६)-रिपु, शत्रु ।
प्रसन्न होता है । रिमा (१४)-शत्रुओ रिमि (२१)-शत्रु
रीझ (७२)-वख्शीग
रोझवा (३३)-प्रसन्न करें रिमियो (७६)-खेला, क्रीडा की। रीझाइ (६५)-प्रसन्न होकर
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[
७१ ]
रीझवा (७)-प्रसन्न करें, हर्षित करें | रुघवीर (४)-श्रीरामचंद्र भगवान । रीझ (९५)-प्रसन्न होता है रुद्र (७)-एक प्रकार के गण देवता रीता (६३)-रिक्त, खाली।
जिनकी रचना सृष्टि के रोधी (२६, ५३)-प्रसन्न हुआ
आरम्भ मे ब्रह्मा की रीवा (८८)
भौहो से हुई थी। वे रीस (५६, १०३)-कोप
संख्या में ग्यारह माने रुकमणी (१०१)-श्रीकृष्ण की पट- |
जाते हैं । शंभू । ___ महिपी रुक्मरिण ।
रुखेसर (३८)-ऋपीश्वर रुक्मणी (७७)-रुक्मिणी
रूख (११)-वृक्ष रुख (१०१)
रूड (६६)-नगाडे, ढोल आदि बजते रुखम (६६)-रुक्माग - रुखमणी (११, ८३, ६६, ६३, १०३)- रूप (३४)-शकल, सूरत । रुक्मणि
रूपक (३८)-काव्य, कविता । रुखमागद (४४, ६९)-एक भक्तराज रूपा दे (१५)-रावल मल्लिनाथ की __ का नाम, रुक्मागद
__
पट्ट-महिपी । रुघनन्दरण (६) श्रीरामचन्द्र रूसेसर (२१)—ऋषीश्वर, महर्षि । रुघनंदण (५५) श्रीरामचन्द्र भगवान | रैवत (१४)-घोडा रुघनाथ (६, ३६, ४२, ५२, ५५, ५६)- रेवत (६०, ६१) घोडा __ रघुनाथ, श्रीरामचन्द्र भगवान ।
रेखी (१७)-रामदेव पीर के अनन्य रुघनाथु (२६)-श्रीराम
भक्त चमार जाति की स्त्री। रुघपति (५५)-रचुपति, श्रीराम भगवान ।
रेण (८१, ६४)–धूलि, भूमि, पृथ्वी । रुघराई ( )-रघुराज, श्रीराम ।
रेणका (८१)-परशुराम की माता रुघराउ (५५)-रघुराज, श्रीराम
का नाम । भगवान ।
| रेणा (५५)-राजा पुसेन जिन की रुघराजा (१०१, ५५)–श्रीराम
कन्या, जमदग्नि ऋपी की भगवान।
पत्नी, परशुराम की माता रुधराम (६६)-रघुनाथ, श्रीरामचद्र
रेणुका। भगवान । } रेणाधर (५२)—समुद्र, सागर ।
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[
७२ ]
रेणी (३२)रेसइ (६) पराजित किया। लक्षण (६२)-राम भ्राता रेसण (१००)—पराजित करने वाला, | लखरण (९७) लक्षण
पराजित करने की। लखमण (५७)-लक्ष्मण रेसीया (२६)-पराजित किये। लखमण (६, ३६, ३६.५६,७१,८१)रेस (७०)-मिटाता है, नष्ट करता
राम भ्राता लक्ष्मण । है, पराजित करता है। लखमणा (६३)-भद्रदेश के राजा
वृहत्सेन की पुत्री जो कृष्ण के ₹ (१७, ३५, ३६, ३६, ४१, ४६, साथ व्याही गई थी।
४७, ५४, ५५, ५६, ६४, ८६, | लखमी (६४) लक्ष्मी
८७, ६०, ६५) के लखिग्री (२३)-समझा जाना रैण (२१, ५२)-भूमि, पृथ्वी। लच्छिवर (४२) लक्ष्मीपति, विष्णु। रेवती-रमरण (५७ सं० रेवती रमण) लछिवर (२६,४३, ७२)-लक्ष्मीपति, रेवत राजा की पुत्री
विष्णु। रेवती जो वलराम की
| लछी-प्राण (७) लक्ष्मीवल्लभ, विष्णु।. धर्म पली थी। उसके साथ रमण करने वाला | लवरणसुर (५७)-प्रसिद्ध मधुनामक
असुर का पुत्र जो मथुरा श्रीवलराम ।
में रहता था और जिसको रो (२२, ५६, ६५, ६६)का
शत्रुधन ने श्रीराम की रोट (१७)-वडी रोटी।
आज्ञा से मारा था। रोटियो (८२)-काट डाला, नाश
लसकर (९२)-सेना किया। रोपण (४६)- उठाने लगाने या खडा
लहड़ा (४५) लघु, छोटा । करने की क्रिया ।
लहरिणयौ ६९)-लाभ रोम (४३)-लोक
लहाँ (४४)-लेता हूँ। रोळ (२)--ध्वस, नाश। लहै (३६, ३६, ४१, ४६) लेता है।। रो (३४, ४१, ४६, ४८, ५२, ६८, | लाइक (३४) योग्य
७४, १२) का लाइकि (१) योग्य
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________________
[ ७३
]
लाखीक (१२) लाख रुपयो के मूल्य | लीवो (३२)-लिया।
का, लाखो गुणो को धारण लुटार्ड (६१)-लुटवाते है, लुटवा करने वाला।
दिए। लागे (४५) लेगता है।
लुणियो (६३) लु चन किया। लाछ (७२)-लक्ष्मी
लूका (६४)-जैनो का एक । लाछवर (६३)-लक्ष्मीपति, विष्णु।
लेखता (६५)-समझने पर। लाछि (७५, ८१, ६७, १००)-लक्ष्मी
लेख (१०३)-हिसाव ।
लेखौ (१००)---गिनती हिसाव । लाछिवर (३२, ५७, ७६, ६२, ८६,
लोचन (७७)-नेत्र। ६१, १०२) लक्ष्मीपति,
लोढा (६६)-मसालादि पीसने का । विष्णु। लाजा (६२)-लना।
पत्थर विशेष । लाडौ (९७)-दूल्हा ।
लोधियो (६२)
लोपस (६२)-उल्लघन करेगा। लावा (५३, ६२, ६७)-मिले, प्राप्त
लोही (१३)-रक्त, खून । लाम (२९)-प्राप्त हो। ल्यां (४४)-लेता हूँ। लालचद (३७)--जति का नाम है। ल्यै (४४)-लेते हैं।
यह जुढिया ग्राम मे रहता था जुढिया ग्राम मे जतियो | वतप (८२)का उपासरा भी है। वदण (४६) नमन करने को, वदन
नमन । लिखमी (३६, ४२, ४८, ५६, ६२,
वस (१२, १०२)-कुल, गोत्र । ६२, ६६)-लक्ष्मी।
वइण (३८)-वचन, शब्द । लिखमी (४६)- लक्ष्मीपति ।
वखत (७८)-समय । लिगन (८१)
वखाण (३५, ३७)—यश, कीर्ति । लिगी (६८)- -
वखाणा (४)-वर्णन करता हूँ। लिये (४४)-लेते हैं।
वखारिण (५१)- वर्णन करके । लिवारि (९५)
वखाणु (२७)-यश, कीति, वर्णन । लिवार (७)
वखारण (५, १३, १५, ३६)-वर्णन लिवारी (७५)
करते है, वर्णन करता है, लीधा (२)-लिए।
प्रशसा करते हैं।
व
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________________
।
७४ ]
वखारिणयौ (१३)-वर्णन किया । | वणाव (७२)-रचना, वनावट। . वखवाणी (२३)-देवी। वणावा (३८) रचे, वनाये । वडी (३४)-वडा, महान । वरणाव (४२) रचता है। वछां (७)-वछडा, पशु । | वरणावी (३१)—वनाइए। वछासुर (५६)-कंस का अनुचर एक वदत (३६)-कहते हैं।
राक्षस जिमे श्रीकृष्ण ने | वदै (२३)-कहते हैं। वाल्यावस्था मे ही मारा | वचंती (४७)-विशेष
था, वत्सासुर। वधती (४७)-विशेष वजाडी (५९)-वजाई, ध्वनित की। वाया (१३, ६३)-स्वागत किया । वड (६८, ७०)-वडा, महान । ववाय (६७)- स्वागत किया। वडवर्ड (८५)-वडे, महान । वधायी (२६, ३२) स्वागत किया वडवडौ (९१)—महान, अत्यत वडा। वघियौ (६४, ८८) वढा, वृद्धि, प्राप्त वडवा (२४)
हुआ। वडा (३३, ३७, १६)-महान, वडा। वनमाळी (१)-तुलसी, कुंद, मदार वडाया (७३)—बडाई, महानता, यश
पर जाता और कमल इन वडाळ (३६)-बडा, महान .
पांचो की बनी हुई माला वडि (५१)—वट वृक्ष पर
को धारण करने वाला, वडिमि (१५, ८०)-वडप्न, महानता
श्रीकृष्ण, विष्णु, नारायण।
वप (२५)-गरीर वडियो (६५)-काटा गया, कट गया वढेरा (३७, १०१)—पूर्वज, पुरखा,
| वप ( २१, २४, ७२, ६५ )-वपु, वडा महान ।
शरीर। वडेरी (२३)-वडी, महान ।
वपु (५१)-शरीर वडेरो (२१)-वडी, महानत ।
वमीपण (३, ६६)-रावण का भाई । वडो (२३)-महान, वडा ।
वयण (१)-वचन, वाणी। वडी (४५, ५२, ५३)–वडा महान, वरण (२१)—वर्णन करता है । दोर्घकाय ।
वरत (१०२)-पुण्य प्राप्ति के उद्देश्य वरणराय (५१)-बनराजि, वन, जंगल
से किया जाने वाला किसी वणायी (२७)-रचा
पुण्य तिथि का उपवास ।
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[ ७५. ]
वरतावीजै (१२)
वसिजो (२२)वरताहि (८५)
वसियो (५६ ७३, ६५)-बस गया, वरत (६०)
मिवास किया। वरन (२७)-वर्ण, रग। वसुधा (७२)—पृथ्वी वर-लाछ (५) लक्ष्मीवर, विष्णु। | वसुह (४५, ५८, ८७)-पृथ्वी, वरिणि (५८)-वरुणदेव की स्त्री।
वसुधा, ससार । , वरीयाम (३६)--श्रेष्ठ । वस (४०, ७९)-निवास करता है । वर (७६)-स्वीकार करते हैं, वरण | वह-तान (११)करते हैं।
वहनामी (१०१)-ईश्वर वकरण (६४) लोटना क्रिया । वहत (८६)-बहुत वळि (४१, ४६, ५२, ६३ )—पुन , | वहवाहर (६६)—बाहर जाकर, पीछा । फिर, शक्तिशाली, वालि ।
करके। वलिणि (११)-लौटना क्रिया का वहि (१००)
भाव। वहियो (६३)वळ्यिा (२१)-लौट गया। वहिलो (६०, ६०, १०२ )--शीघ्र, वलिराम (२६)-बलराम
जल्दी। वली (१७)-फिर, और । वहित (१३, ६६)-चलेंगे, वहेगे। वळे (४, १३, १४, ३४, ५६, ६२, वहे (६०)
६४, ६५, ६८, ७३, ७८, वहै (५५, ५६, ८३)-चलकर, चले । १०० )-पुनः, फिर, / वाझणी (३१)—वध्या और।
वारिण (३४)वसता (५०)-वस्तुएं, पदार्थ । वाद (२) नमस्कार करते हैं । वसदे (५७)-वसुदेव
वामरा ( ३, ५, ८, ९५)- वामनावसदेव ( ६, ३६, ६२, ७६, ८२, वतार, ब्राह्मण ।
६६)--श्रीकृष्ण के पिता वामण (२८)-वामनावतार । वसुदेव ।
वामणो (५३) वामनावतार । वसदै (१०१)-वसुदेव
वामन (२४)-वामनावतार। वसार (७४)
| वामे (68)चायी।
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[
७६ ]
वासली (५६)-मुरली। | वामण (३६)~वामनावतार । वासलै (८३)-वशी, मुरली। वामरणा (८०) वामनावतार । वाउल ८९)-आधी, तूफान । वायक (५०)-वाक्य । वाक (८०)-मुख ।
वाराह (५, ८, ३६, ३६, ५१, ५२, वाखाण (४४, ४७)-वर्णन ।
५६, ६४, ६४, ६६, ६८ वाघ (३६)-व्याघ्र ।
६९)-विष्णु का एक वाचा :५४)-वचन।
अवतार । वाचि (५०)-वाचा, वाणी । वारि (५१)-पानी, जल । वाचे (३७)- पढते है।
वारिवा (१९)-~वाछ (५८)-बछडा।
वारी (१००)वाचा (७१)-बछडे ।
वाला (४३)-~वाला। वाज (३७, ६६)- अश्व, घोडा । वाला (८५)–के। वाजसी (६६)-वजेंगे।
वाकि (७७)-वानरराज वाली। वाजिया (१७, ६६)—वजे, ध्वनित | वाळ्यिा (७६ -
वाळ (६३)- के। वाट (३१, ६४)-प्रतीक्षा, इन्तजार। वाली (१०३)-का। वाटियो (५६)-काट डाला। वारहा (७, ६२)--वल्लभ, प्यारे, वारणासुरा (१०३)
प्यारा।
वाल्हो (१७)-वल्लभ, प्यारा । वाणार (३८)वाणि (३६, ४०}---वचन, शब्द ।
वाल्ही (५, २६, ७०, ७४, ६७,१००)
वल्लभ, प्यारा। वारण (५०)-वाणी।
वास (२३, ५०, ६६)-निवास, वात (१०१)वार्ता।
निवास करने का स्थान, वाता (३६)
निवास करने की क्रिया । वातिट (७९)-बातें, वात, रहस्य, वासतै (८७)-लिए, नियित्त ।
भेद, गूढ अर्य, अभिप्राय। वास दे (७२)-अग्नि, आग । वादत (५४)-~-प्रतिस्पर्धा करते समय । वासी (४५)-वास, निवास । वाप (७५)---पितर।
वाह (५, २४, २८, ४८, ६७ )वापार (४८)-व्यापार-वाणिज्य ।
वन्य धन्य ।
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[ ७७ ] वाहर (९५)-रक्षा? | विढण (५८)-लडने को। वाहरू (२८, ७९)-रक्षक । विढिस (६६) युद्ध करेंगे, भिडेंगे। वाहला (८७) - नाला। विढे (५२, ६६) युद्ध किया, युद्ध वाहि (१०३)
करके। वाहिरी (७०)-रहित, विना।। विण (४८, ६३)-विना रहित । वाहिळिया ११३)- नाले । विणयो (३५)वाह (४२) --प्रहार करिए। विरिण (३६, ४६, ५०)–विना, वाहै (६६)- प्रहार करते हैं।
रहित । विंद (३६)-स्वामी, पति ।
| विणियो (१४, ४७)-वन गया, वना विदया (३६)- नमस्कार किया, एक
विरिणयों (१४, ५०, ६३)-वना, वन गोपी का नाम भी विधा था।
गया। विंदावन (२४)-वृन्दावन ।
विणे (६) हुआ। विमापी (७०)-व्यापी, वह जो | विद्रवाँ (६६) - विदर्म देश जहां का व्याप्त हो।
राजा रुक्नरिण का पिता विकाइ (३६)-विक जाते हैं।
भीम कथा । विक्ष (७८, ६६ १००)-विषय।
विधत (२१)विगताळी (५८)-अद्भत चरित्र |
विधांसह (६)--विध्वस किया। वाला।
विधाँसण (५, ५६)-विव्वस करने को। विगन्यान (४६)-विज्ञान ।। | विधांसी (२)--विघ्वस किए । विगति (७९)-वृतान्त ।
विनाइक (३४)- गजानन । विघन (८१)-विघ्न ।
विनाइकि (१) - गजानन । विच (४२)-मध्य ,
विभाडी (८१)-मार डाली । विचाळे (५८, ७१)-बीच मे।
| विभाडे (५२)- मार डाला, महार विचि (४३, ४५, ४८)-मध्य मे।
किया।
विभीपण (५७)-विभीषण । विजराज ( ६६, १०३ )-वृजराज, |
} विभूति (७६)--दिव्य या अलौकिक श्रीकृष्ण।
शक्ति। विडग (८६)-वोडा ।
विमल (३८, ४६, ६६, ७८, ८६)विडगा (३१)-घोटो।
पवित्र, निर्मल, उज्ज्वल ।
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________________
[
७८
]
विमेख (१०, २३)-विवेक, ज्ञान । विवाण (५६) - वायुयान । विमोह (४५)-मोह, अज्ञान, भ्रम, भाति | विषभ (३६, ५४)-ऋषभवतार । वियाइये (८२)
विमन (६, ७, ५४)-विष्णु । विग्च (२०)-ब्रह्मा।
| विसभ (२६)-विश्वभर, ईश्वर । विरखा (५६)-वर्षा ।
विसभर (५२, ५५, ६४, ७३)विरता (५१)-~जो अनुरुक्त न हो, ईश्वर, विश्वंभर । जिसका मन हट गया हो,
विसथार (२५, ५१)-विस्तार । विरत ।
विसन (१४, २४, २६, ३७, ४७, ४८, विरक्ता (६४)--विरक्त ?
५६, ५७, ५८, ५६, ६०, विरदाळ (१३) विरुदधारी, यशस्वी।
६३, ६५, ६६, ६८, ७४, विराजियो (१५)-वैठ गया।
७६, ८०, ८१, ८२, ८३, विराज (४१, १०३)-वैठते हैं, शोभा ।
६३, ६७)-विष्णु, श्रीदेते हैं।
कृष्ण। विरिद (१८)-विश्द्ध ।
विसन ही (१६)-विष्णु। विरिघ (१७)-वृद्ध ।
विसनो (७३)--? विरी (७८)-विना, रहित ।
विसराम (४२)-विश्राम । विरुदा (१८)-~-विरुदो।
विसव (२३, २७, ४२, ४५, ४६, विलव (२१)-देरी।
७५)-विश्व, ससार । विळकळे (६२)-व्याकुल हुए, विलापन विसवामिति (५५)-विश्वामित्र । किया।
विसवावीस (५०)-पूर्ण। विलगी (४२)-लगी हुई।
विसारियो (६६)--विस्मरण किया । विलागी (५४)-लग गया।
विसारै (३५, ६८)-विस्मरण करता विलास (३७)-सुख-भोग । विले (३८, ३६, ४१, ७६)-पुन , . विसाळू (२७)-विशाल । फिर ? और
विसिन (५२)-विष्णु। विळे (३०, ५५, ६२, ६६, ७०, ८४) फिर, और।
विसिनि (१३, ४३)-विष्णु। विलो (२८)-विलोडित किए। विस्तार (२३)-फैलाव । विली (५२)~-मथन करके, विलो- विनत (४२)-पुलस्त्य ऋपि के पौत्र ड़ित करके।
अथवा वशज रावरण।
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[
७६
]
विहद (३८)-अपार। | वेगी (६०)-शीघ्र । विहळ (७२) तभवत वीठल के लिए वेचिया (३६)प्रयोग हो।
वेढ (१२)---लडाई, युद्ध । विहला (४४, ५९)-विह्वल, व्याकुल | वेढडी (८४)—युद्ध । विहण ( )-रहित । वेढ-प्राघौ (३२)-युद्ध करिए। विहूँणौ (५)-विना, रहित । वेदव्यास (१, ३८)विहूणी (२०)-रहित । । वेदू (३६)वीद (१४)-दुलहा ।
वेधी (५५)-शसा, सशय । वीठळ (५६)-विट्ठल, विष्णु । वेळा (४६, ५३) - समय । वीठला ( ३७, ४४, १०२)-विष्णू वेस (२३, ३६)
का एक नाम, दक्षिण भारत वेसास (४८)-विश्वास ।
की एक विष्णु मूर्ति । वेसासि (५२)-विश्वास करके । वीठ्ठल (१, ५४, ५६)-दक्षिण भारत | वैकु ठ-वणाणी (७२)—वैकुठ को
की विष्णु की एक मूर्ति का 1 रचने वाला।
नाम, विष्णु, विट्ठल, श्रीराम। वैकु ठवास (३६)-विष्णु । वीण (२५) तार वाद्य विशेष । । वैजती-माल (४३)-विष्णु के धारण बीनवू (३४)-विनय करता हूँ।
करने की एक प्रकार की वीमाह (६, ६६)—विवाह ।
माला जो पांच रगो की वीर (११, २६, ६८)-भाई।
होती है और घुटनो तक वीरज (५१)-वीर्य
लटकती है। वीर-हाक (६६)-जोश पूर्ण आवाज |
वैरण (३८, ६०, ६२)-वचन । वीराघि (२७)—वीरो का अविपति, |
वैराट (२४, २८, ३७, ५१)—वड़ा, महावीर।
विस्तृत, लवा-चौडा, फैला वीह (२५)-भय, डर।
हुआ। वुसुतरी १२१)—वस्तु
वैहिलो (५२)-विह्वल, घबराया वेखूना (१००)
हुआ। वेगि (६२)-शीघ्र ।
वोटिया (८६)-काट डाले।
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[
८० ]
वोम (६०)-व्योम, आकाश ।
सम्बन्ध है । इस सम्बन्ध व्याधि (९३)-एक दानव का नाम,
मे पाच व्यक्तियो के नाम व्याघ।
मिलते है। व्यास (४४, १०३)-वेद-व्यास । सखघर (६८)-विष्णु, ईश्वर । व्रकदत (६३) - बकासुर से अर्थ लिया | मखवर (४२) गया है।
संख-सामि (४३) --शंख को धारण व्रख (५९)-वृक्ष
करने वाला, विष्णु। बनह (४१)-रग, वर्ण । । सखासुर (५६, ५७)-एक दैत्य जो व्रपा (७०) - विप्र
ब्रह्मा के पास से वेद वहमि (७९) ब्रह्मा।
चुराकर ले गया था। विख (३७)-वृक्ष।
और समुद्र के भीतर विदि (१६)---विरुद। ।
छिप गया था। विदि (७८)
सगट (८१)- सकट विप (४३)-विप्र, ब्राह्मण । संगठ ८३)--समूह विसपति (३६)-वृहस्पति
सगठासुर (४, १००)-गकटासुर स
नामक दैत्य जिसको कस सकर (८८)--शकर, विष्णु ।
कृष्ण को मारने के लिए संकरखरण ( )-विष्णु का एक नाम
भेजा था। मख (४२)-शरुर, कुवेर की नौ । सघार (६२)-तहार किए।
निधियो से एक अथवा एक | संघारं (२९)-सहार किए। असुर का नाम ? अथवाविष्णु | सघार (१२, ६८)-मधार करके ।
के चार मुख्य मे से एक । | सघारण (२४)-नहार करने को। नखचूड (६०)-~-एक दैत्य का नाम | संघारे (५७, ८१)-- संहार किये।
जिसको कस ने कृष्ण को | मघार (६२, ६६)-सहार किए । मारने के लिए भेजा था | संघारौ (३०)—सहार कीजिये । और कृष्ण ने उसको मार | संताप (४२) डाला था परन्तु यहां पर सवाहिया (५६)-सम्हाले पौराणिक पाख्यानो से } सवाही (३४)-धारण करिये ।
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[ ८१ ]
संभ (७३) शिव, गम्।
सगलाइ (४, सं० सकल Xअपि)संभारे (४५)-स्मरण कर ।
सवही। मभार (३६, १८)-स्मरण करता है। मगळाई (१५)-सब समरियो (६४) स्मरण किया । । सगरण (६१, ६६, ७८)-सघन, मेघ, समर (१०३) स्मरण करते है।
घन । । संमिल (३६)
सघार (३५)- महार नंवाहे (५७)- वारण करके ।
नचेळा (६१) संवाह (४२)--धारण करता है । सजिया (९५) मसार (१००)
मनान (४७)-जान सहित, प्रात्म सक (४३)- शक्र, इन्द्र ।
ज्ञान सहित । सकटासुर (५८)--एक दैत्य जिसको सझा (६०)-दण्ड
कंस ने श्रीकृष्ण को | सतगुर (३४)-मदगुरु, श्रेष्ठ गुरु । मारने के लिए भेजा था । सतभामा (३)--श्रीकृष्ण की पाठ और वह स्त्रय श्रीकृष्ण
पटरानियो मे से एक द्वारा मारा गला।
सत्यभामा । सकतिहर (२१)-शक्ति घर, देवी। | सतरी (२१)-सत्य की मकाज (५४)-लिए
सति (४६, ७३)-सत्य, है । सको (३६)~सव
सत्रघण (५७)--शत्रुधन सखरा (२, १६, ६५) अप्ठ, उत्तम | सत्रघरण (६, २६, ३६, ६५, ६८, सखरी (८७)-वडिया।
६२)-शत्रुघन सखरो (६८)-श्रेष्ठ ।
सत्रघन (७२)- शत्रुधन सखरी (३, १०, १३, ५८)-श्रेष्ठ, । सथिरि (१५)-स्थिर उत्तम ।
सदांम (EE)-सुदामा सगर-राऊ (८२)-अयोध्या के प्रसिद्ध सदामौ (७८)-एक ब्राह्मण का नाम प्रजा रजक एक राजा का
जो कृष्ण का सखा था, नाम ।
सुदामा। सगळा (६८)--सव
| सदोमति (१९)
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[
२
]
सधर (५६, ६२)-वीर, शक्तिशाली, | समति (३४)-दे दृढ, मजबूत ।
समपी (५५)-देदी सघोर (३६)-वीर, योद्धा। समपीज (१)-दीजिए सनकादिखा (५२)-सनकादिक । समपै (६८, ७३, ७९)-देता है। सनेह (३५) स्नेह
समपो (२३, ३८, ४४, ७२)-दे सपरस (४)-स्पर्श
दीजिये। सपूत (३६). -सपुत्र
समरंति (३७)-स्मरण करते हैं। सप्त (२१)सात
समरइ (८८)-स्मरण करते हैं । सप्राणा (६५)--शक्तिशाली, वलवान। | समरा (६१)-स्मरण करे । संबंध (३५)-एक साथ बंधना, जुडना। समरासुर (१००)-एक असुर का नाम सवखौ (१०) सहज, सरल ।
समरि (४१)-स्मरण कर । सवरी (५६)-शवरी, भीलिनी।
समरी (३४)- स्मरण करिए । सवळा (४१, ५३, ८०)-बलवान,
समस (१५)शक्तिशाली ।
समाप (१००)-दीजिए सवळा (११, ६७)-सवल, गक्तिशाली।
समापरण (५, ६)—देने को। सवळी (२३)-बलवान, शक्तिशाली।
समापि (५५)--दीजिए, देकर । सवळी (५०, ६८, ६६, ७०)-महान,
समापे (७४)-दीजिए ___ सवल, बडा, शक्तिशाली,
समाप (२, ६२, ६३, ७१, ७२)सबाई (१६)
देना, देता है, दे दी। सवोज (४४)
समापौ (७, ४३, ७५)-दीजिए समंद (४४) समुद्र, सागर ।
समास (६६)समंद (४५, ८६, ६६)-समुद्र समिदित (७४)समदु (२६)-समुद्र
समीपि (४४)-पाच प्रकार की समध (८१)सम्बन्ध
मुक्तियो मे से एक प्रकार की समंपी (५५)-दीजिए
मुक्ति जिसमे मुक्तिजीव भगवान समति (२३, ७४) सुमति, सुवुद्धि।
के समीप पहुँच जाता है, समपण (४४, ९५)-देने को, देने के | सामीप्य । लिए।
ममै (७३)-समय
सगक्त।
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[ ८३ ]
समी (५, ७९)-ही, समय पर। सरीखा (७८)-समान, सदृश । सर (५३)-तालाव?
सरीखा (३, १७, ३०, ३८, ८१, सरखं (२७) समान
१००)-समान, तुल्य । सरग (१४, २७, ३२, १०१)-स्वर्ग | सरीखी (२१, ६४)-समान सरगा (१०१) स्वर्ग
सरीखें (८८)-समान, सदृश । सरगुण (७)-सगुण
सरीखो (५८)-समान सरजीत (५)-जीवित
सरीखौ (३४, ४४)—समान, सदृश । सरणाईया (८६) - वाद्य विशेष सरीरह (४१)-शरीर सरण (२१)-शरण मे ।
सरूप (३५)-पाच प्रकार की मुक्तियो सरणौ (१०३)- शरण
मे से एक जिसमे उपासक सरव (२२)-शर्व, महादेव ।
अपने उपास्यदेव के रूप मे रहता सरव (३४, ३६)-सर्व, सव' ।
है और अन्त मे उसी उपास्य सरव (४०, ४२, ४४, ५०, ७४)
देव का रूप प्राप्त कर लेता है, शिव, विष्णु, सब ।
सारूप्य। सरव (४०)-सव
सर (४७)सरस (४७)
सलाम (३७)-प्रणाम सरसति (१) सरस्वती
सलामा (६१)-प्रणाम सरसि (४३)-समान, तुल्थ । | सलाह (१८)-राय, लाभ सहित । सरसो (४७)- रसपूर्ण, पूर्ण, पूरा। | सव (४१)—सव सरि (५०)-जैसी, समान ।
सवरी ( ६, ५६, ७८)-शवर जाति सरिखा (१००)-समानो, सदृशो।
की श्रमण नामक एक सरिखा (१६, ८५, २३)-समान | भील तपस्विनी, भीलिनी। सरिखी (३, २२)-समान, तुल्य । सवली (४१)-सीधा, सरल । सरि-ळाईया (५०)-सृजन किए, सृष्टि । सवाडी (८२)-विशेष, अधिक
का उत्पन्न किया जाना। सरिस (२, २६, ७२)—समान, रिस
सवाही (४०)पूर्ण?
ससमाथ (६, ७, १५, १६, २०, २७, सरिसि (५५, ७७, ८५, ६१)-समान
६८, ६५)-समर्थ, शक्ति सरिसी (५२)-समान
गाली, शिव।
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[
८४ ]
ससिपाल (९८)-शिशुपाल । सहै (४५) ससिमाथ (३४)--शशि शेखर, शिव । सहो (७३)-सव ससिहर (२१, १०१)-चन्द्रमा, सां (१००, ८, १००)-से महादेव, शशिधर ।
सा (५,११, १३, १६, २६, ३२, सहज (७१)-आसान
३३, ३५, ३७, ४०, ४२, सहरि (२२)
४५, ४७, ५१, ५४, ६३, सहल (५७, ६१, ६६)-आसान
६६, ६७, ७५, ७६, ७७, सहल्या (१०३)
८१, ८४, ८५, ८६, ८७, सहस-नांमी (२७)-कई नाम बाला, ६१, ६५, १)-से।
ईश्वर। साक (३६)-शका, भय । सहसवाह (५५)---सहस्रार्जुन साकडी (७६)-सकरा सहसाबाहु (१८)-सहस्रार्जुन साकीया (५२)-भयभीत हुए सहसवाहु (१८)-सहस्रार्जुन साकीयो (६४)-शकित हुआ, भयसहि (४, ७, १२, २०, २१, ३४, । भीत हुआ।
३७, ३८, ४१, ४४, ४५, साँच (६८)-सत्य ४७, ४८, ५२, ६२, ६४, । साढिया (३१)-मादा ऊट, ऊटनियो ६६, ६७, ६८, ७६, ७८, साधतौ (५४)-जोडता हुआ ८१, ८२, ८३, ८७, ८५, । साधी (८७)८६, १४, १५, १६, १००, । सापडियो (६०)-पृथक किया
१०२)-ठीक, सव। साबहै (५६)-धारण करता है सहिजे (६३)—सहज
साभळि (१०२)—सुन ली, सुन ले सहिति (८२)-सहित
सांभळ्यिाह ()-सुनिए, सुनना सहिदेव (८०)-सव देव साभळी (६६)-सुनिए सहियो (४०)-सहा, सहन किया। साभिलिस (१५) सुनेगा सहिस (६१)
सामट (४७)---समेटता है सहिस (६६) सहन करेंगे | सामठा (६२, ८५)-बहुत, अपार, · सही (५३, ८५, ८६, ६०)-सत्य
अधिक। "ठीक, पक्की। | सामळ (७, ३६)-श्रीकृष्ण। ,
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[
६५
]
सांमळा (५५)-श्यामल, श्रीकृष्ण । | साधुपा (९८)- सज्जन, पुरुपो। सांमहा (६५)-सम्मुख, सामने । साप (८३)-सर्प, काली नाग। सांमही (२८)-सम्मुख ।
सापियो (७४)-श्राप दिया । सांमि (१६)- स्वामी, श्रीकृष्ण । सामलौ (८२)-श्यामल, श्रीकृष्ण । सांमी (88)-स्वामी।
सामि (४४)- स्वामी। सांम्हेई (२२)
सायर (४३)-सागर, समुद्र । सांम्ही (३७)-सम्मुख, सामने । सारंगपाणी (८६)सासही (२०)
सारगवर (३३)-विष्णु । सा (२)-समान ?
सारखा (१५)--समान । साई (१८)-स्वामी।
सारद (१)- शारदा, सरस्वती । ‘साच (३२)-सत्य।
सारदा (७४)-शारदा, सरस्वती। साचरी (८०) सत्य ।
सारा (४४)- सव। साचा (२२)-सत्य ।
साराहियो (८८) सराहना की। साचि (५०)-सत्य ।
सारिखाँ (५७)-- समान, सदृश । साज (१००)साजा (६२)-पूर्ण।
सारिख (७४)-समान । साझरण (१००)—सजा देने के लिए,
सारीख (३६, ५७)-समान । मारने के लिए।
सारीखै (६३)-समान, सदृश । साथरौ (१२)-ढेर।
सारीखौ (४२, ७५)-समान । नोट-यह गन्द सस्तर का अपभ्रश है सारूप (४४)-पाच प्रकार की मुक्तियों जिसका अर्थ शय्या अथवा घास
मे एक प्रकार की मुक्ति, फूस फैलाकर बनाया हुआ
सारूप्य । विस्तर परन्तु मुहावरा के अर्थ सारौ (१००)--अधिकार, हुकम । मे ढेर है।
साल (७६, ९८)-गल्य । साय (५७)-साथ मे।
सालले (८६)-गायन किया । साथ (३३)-साथ मे।
साळा (88)-स्त्री का भाई । साद (२८, ४८)-पुकार । सालुलै (१६)-वजती है। साध (३५, ४४, ५६) साघु, सज्जन । ' साल (६६)-स्त्री का भाई ।
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[८६ ]
सालोक (४४)-पाच प्रकार की सिको (४६)-सव
मुक्तियो मे से एक जिसमे सिखि (७७)-शिष्य मुक्ता भगवान के साथ / सिंगला (२, ४६, ६०, ७८, ४७, ७६, एक ही लोक मे वास
१०१)-सकल, सब, करता है सालोक्य । सावतरी (४४) सावित्री
सिगळा (१३, ५१, ७५)-सकल, सव सावतरी (१३, २०, ३६) वेदमाता
सिगळाई (१६, ६६, १०२)~-सकल,
सव। गायत्री, सावित्री।
सिगळो (६७)--सव सावित्री (३२, ६७)--१. सरस्वती,
सिगि (१०)-सव, समग्न । २ सूर्य की प्रश्नि नामक
सिघाळा (88)वडा, महान योद्धा। पत्नी से उत्पन्न ब्रह्मा की
सिघारिस (६६)-संसार करेगा । पत्नी ३ वेदमाता गायत्री।
सिरिणगारिज (१६)-शृङ्गारयुक्त सास (२७)--श्वास
कीजिये। सास (३४,४६, ५०, ६६)-श्वास, सिद्धदायक (३४)---सिद्धि को दन प्राण ।
वाला। सास-सासि (९६, ३४)~ श्वास-प्रति- सिध (६)-सफल श्वास ।
सिनकादिक (४४)-सनकादिक । साहनिजार (१०१, १२ -एक महात्मा सिनिकादिखि (६१/-शनकादिक का नाम ।
- ऋषि । शाहिवा (१००)-स्वामी, ईश्वर। सिर (५३)-ऊपर, पर। साहुलि (8) प्रार्थना, आर्तनाद । सिरताज (३५, ६८)-श्रेष्ठ साहु (३०)-प्रकार
सिरि (१६, ५०)-शिर, ऊपर पर । साही (३२)-विवाह, लग्न । सिरिज (१०)-रचना करता है । सिंघ (७०)-सिंह
सिरै (३२, ४७)-श्रेष्ठ, ऊपर, पर। सिंघार (५, ६३)~-सहार सिरो (४६)-ढग, प्रथा । सिनेह (४५/- स्नेह
सिव (६८)-शिव, महादेव । सिंभू (६०)-~शमू, शिव।
सिवि (७६, ८८)-शिव, राजाशिवि। सिंही (४४, ४८)-सही, अवश्य । सिवि संकर (७६)-शिवशकर।
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[
८७
सिसपाळ (६३)-चेदि देश का एक | सुघारौ (३३)
प्रसिद्ध राजा जिसको सुन्न (२३)-शुन्य श्रीकृष्ण ने मारा था,
| सुपकना (२६)—सूर्पकर्णा शिशुपाल ।
सुपनसा (६)-रावण की वहिन सिहाई (२२) सहायक
शूर्पणखा । सिहि (१०, २१, ३९)-सव, सर्व, सुप्रसन्न (७४)-- प्रसन्न खुश । पक्की ।
सुभर (१०२)-पूर्ण भरा हुआ। सीत (३६, ४४,५५}-सीता, जानकी सुभराज ( ६, १६, २२, १०१ ;सीता (११, ३२, ५६, ५७, ६३)---
अभिवादन सूचक शब्द राम पत्नी जानकी।
जिसका प्रयोग प्राय.याचक सौळ (२५, ६८)--शील
जातिएं करती हैं। सीलवंत (३६)-गीलवान
सुभिप्राण (१२)--श्रेष्ट सीस (३६)----
सुभियाण (७४) - श्रेष्ठ सीह (६८)--नृसिंहावतार
सुमत्ति (३४)--श्रेष्ठ मति । सुकर (२१, ६५)--शुक्र
सुर-जेठ (४, ३६, १०२, २५, २६, सुकवि (३६)-श्रेष्ठ कवि ।
४६)-ब्रह्मा। सुकीरति (१००)-सुकीति
सुरज्या (६७, ८५)—सूर्या, नवोढा, सुखदेव (३८, १०३)-शुकदेव
नवविवाहिता, सूर्य की पत्नी। सुगरीव (e)-वानरो का राजा, श्री
सुरताण (१८)-सुल्तान रामचन्द्र भगवान का मित्र,
सुरा (३४'-देवतायो सुग्रीव ।
सुरेसुर (४६)-सुर+असुर । सुग्रीव (५६, ६५ ७१, ६३)-वालि | सुविहारण (८)-सुविभात, सवेरा, वानर का छोटा भाई ।
सुप्रभात । सुघर (२३)--श्रेष्ठ घर ।
सुहामणा ( ४४ )—सुहाना, सुन्दर, सुचंग (५०)-श्रेष्ठ
मनोहर। सुजस {७६)-सुयश, कीर्ति । सुहिता (६८, ६०, ६७, १०१)-सुभद्रा सुरणाइ (४५)-सुनाकर
सुहिद्रा (११, ७७)-सुभद्रा सुरिणजो (४१)-सुनिए | सू (२, ६, ३५, ५३) से
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८८
।
मू डाळी (३४)--श्री गजानन । मेस (६०)-शेपनाग । सूका (६८)
सेहरा (६६)मूनो (४८ --शून्य, खाली। सैरण (६२)—सजन । मूझ (४४)-दिखाई देता है, देखता है | संरणला (१९)-संणी नामक वेधा मूप-कना (१६)-वडे-बडे कानो वाला
चारण की पुत्री जो देवी नूप (१३) - सूर्पनखा
का अवतार मानी जाती सूपनखा (५६)-शूर्पपणखा
है। पीरदान लालस की सुर (३६, ६८)-सूर्य, वीर, वहादुर ।
आराध्यदेवी थी। मूरज्या (३२)--सूर्या, सूर्य की पत्नी | चैदहे (३७, शरीर सहित । मूरिजि (४७)—सूर्य
सैतान (३२)--शैतान, असुर । मूरिति-पाय (४४)-पवित्र शक्ल का | मैनीछर (२१)–शनिश्चर । पाक-सूरत।
। सोढी (१५)-पंवर वश की गोढा का मे (३, १६)-वे, सव।
राजपूत । मेख ( ८६, ६९)-इस्लाम धर्म के | सोम (३९)-चन्द्रमा ।
आचार्य, पैगम्बर मुहम्मद के | मोरम ( १० स० सुरभि )-सुगध, वगजो की उपावि, यवनो के
महक । मुस्य चार वर्गों में से प्रथम सोरी (७५)--सुखी, आराम मे ।
सोळ (६३)-सोलह । नेम (२५, ३६, ६२-गय्या सोवन (३१)नेत (३२, ३६, ६४, ६६)-श्वेत सोहागण (१५,- सववा, शोभाग्यमेल (११, ६२)-ट्वेत रग का
वती। घोडा, वि० वि० कहते हैं कि | सोहिया (८०)-सुशोभित हुए । जव कल्कि अवतार होगा वह / सौरी (३१)
श्वेत घोडे पर नवारी करेगा? | श्रव (२७)-सर्व, सव । मनिल (८४)-बैत
थव ()-सर्व, सव। नारसी (!)
श्रिया (६७)-श्री, लक्ष्मी। मेव (३४)-नेवा
श्रीय (४८)-श्री रोप (१६)ोपनाग।
| श्रीरंग (७५)~-विष्णु का एक नाम ।
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कान ।
[ ८६ ] श्रेव (२५, ६८)- सेवा । । हम (६४, ६८, ८१, ८४)-अव । सेवा (७१)- सेवा।
हर (२०)-महादेव.। . श्रेव (६८)-श्रये, श्रेष्ठतर । हरख (५५) हर्प, आनद । श्रवा (२८)-सेवा।
हरणकुम (३)-हिरण्याकाशिपु । नग (२९)
हरणाख ( ५२ )-हिरण्याक्ष नामक लगलोक (२६, २६)--म्वर्ग लोग ।
दैत्य जो हिरण्यकागिप बब (३५, ४१)-सर्व ।
का भाई था। स्रमण (४१, ५६, ७७ )--श्रवण, | हरता (२३)-नाश ध्वंस, हरण ।
हरनाथ (३३) व (४२)-सेवा।
| हरि (८, ३६)--विष्णु, श्रीकृष्ण । वता (८०)-मेवा करते थे। हरिखिया (६७) हर्षित हुए
हरिचद (३३, ८५)-हरिश्चन्द्र • हदै (१७)-के।
हरिणख ६४)-हिरण्याक्ष हंस (५, ३६, ६८)-हंसावतार, विष्णु हरिणाकस (५३, ६८, ६४)-हिरण्य__ का एक अवतार।
कगिपु। . । हठाळ (६)-हठ करने वाला। हरिणाख (२८, ८०, ६४)-हिरण्याक्ष हणमंत (६, १३, ६५, ६७, ८४)- हरीचद (१०, ३१) हरिश्चद्र राजा ।
हनुमान। हरीयाळ (१०१) - हरीभरी । हणमति (५७) हनुमान । | हरे (५६)-हरण करके, हरण करता हणमत (७) हनुमान। हरिणयौ (६३)-मारा, सहार किया। हळ (६६)-प्राचीन काल का एक हणीयौ (६१)-मारा, संहार किया ।
प्रकार का मन्त्र विशेष हणे (८८)-मार करके, महार करके
जिमकी प्राकृति कृपि किए हय (३८)
• जाने वाले हल से मिलतीहथवाह (६६)-शस्त्र प्रहार, प्रेहारें । जुलती थी। हव' (३६)-अब ।
हळूहळा (8)-हल्लागुल्ला ?" मल (५७)-पाक्रमण । | हला (65)-याक्रमरा हमा (५१)-म।
। लाया (es)-~चलाये
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[ ६० ] हलावी (३१)-चलाइए
होगळाज (१९) एक देवी का नाम हलाहला (१०३)
जिसका स्थान बलुचिस्तान हव (८१, ८६, १०२, १०३)-प्रव हस (४५, ८०)- हसता है, हसते है । हीगलाज (७४)-दुर्गा देवी या देवी हस्तरण (३१)-हस्तिनी
की एक मूर्ति या भेद हारिण (११)-हानि
जो सिंध और विलुचिस्तान हाक (६७)-दहाड
के बीच की पहाडियो में हाटड़ा (६१)-दुकान
स्थित है। हाटड (६७)-हाट, दुकान, वाजार, हीसु (८७)-शस्त्र विशेष स्थान ।
हीसुए (६६)-एक प्रकार का प्राचीन हाड (३, ५१) हड्डियां, अस्थि ।
शस्त्र विशेष जो हंसिया से हाथे (८२)
___मिलता-जुलता होता है। हालि (८२)-चलकर
होमडी (११) हृदय, मन । हालिम (१०३)
हीगोळ (२१)-हिंगलाज के लिए हाल (१००)--
प्रयोग किया जाता है। हास (५०) हास्य
हीड (५८)-पलना मे झोका खाता ।। हिरिणयौ (५३)-मारा, सहार किया। है या पालना मे झूलता हिंदुप्राणी (१४)-हिन्दुस्त्री, हिंदुत्व हिज (६५)-ही, निश्चय
हीव (६८)हिति (५४)-हित, स्नेह
हीमाळ (६३)-हिमालय पर्वत हिम (८, २६, ५५, १६, ६२, ६५, / हीयाली (७८) प्रेम, हार्दिक स्नेह ।
९६, ३७, ६३) हमको, | हीये (४०, ६८) हृदय प्रव।
हु (३८) - होकर हिम (७, १०, ३२, ३७, ३८,७०,
हुँता (२३, ४१, ४७, ७५)-से ७५) हमको, अव ।
हुँता (१०१)से हिया (८१)-हृदय
हुँति (७, ४७, ५४, ६२, २३)-थी, हिव (७२)-प्रव हिवे (६६)-प्रव
हुँतौ (३६)-धा
य
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[११
]
हुँतो (४८)-था
| हेकांरा (६६)-एक के। हुइस (११) होगी
हेकोइ (७४)---एक ही। हुयै (४४, ४७) होकर
हेठि (८७)--नीचे, नोचा। हुयो (३४)
हेठी (७६)-नीचे। हुलराव (२९, ४२)-पालने में झोका | हेत (३५, ५३) स्नेह, हित ।
देने की क्रिया, मुलाना। हेम (१७) व्यक्ति विशेष का नाम । हुलायो (२८)
| हेम (४७)-हिम, वर्फ। हुलाही (२६/
हेम-पुतरी (२१)-हिमाचल की पुत्री हुवे (१०२)-होते हैं।
| हेमरी (२०)-हिमालय की। हुसेन (६७)-मुसलमानों के तृतीय
हे, (८४)-अब "का नाम जो मजीद के
हेल (१०)-क्रीडा, खेल। हुक्म से कावला नामक
हेला (१०२)--पुकार। स्थान पर मारे गये थे, मुहर्रम इन्ही की यादगार
हेली (५५)-सहेली में मनाया जाता है, हुसैन ।
हेवरी (८२)-- हुसेनियाँ (३०)
हैग्नीव (३, ५, १८, २४, ३६, ३६, हूँ (२३, ३४, ५३, ६६, ७०, १००)- ७१, ६८) हयग्रीव, विष्णु
के २४ अवतारो मे मे एक हूंत (५) से
अवतार मधु और कैटम हूँत (२६, ४७) मे
नामक दो दैत्य जव वेदों को हूँता (३४, ४७)-से
उठाकर ले गये तव वेदो के हति (३५)--से
उद्धार के लिए विष्णु ने यह हू (४५, १०२)-मैं
अवतार लिया था। हूइस (१०)-हो जायगा। हैग्रीवा (६६)हूर (७)
हैमर (५१) हयवर । हेककार (१०)-एकीकरण । है, (६१)--अब हेक (११, १७, ३६, ४४, ४८, ५४, हो (३२) है ।
६१, ६६, ८५, ६०, ६३)-ऐक । होडा (६८)-प्रतिस्पर्द्धा । हेकला (५२)-अकेला।
होमवला (१०३) हेकली (४७, ५१)-प्रकेला । होवे (१००)-होते है।
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पूर्ति-(शब्द-कोश)
(शब्द-कोश मे जिन शब्दो के अर्थ छपने छूट गये है, उनको अर्थ सहित पुन नीचे दिया जा रहा है।)
मूरति (१००) मूत्ति । मंजार (६०)-मे, भीतर।
मेघ-रिखी (८६)-मेघ ऋषि । मंदै (२१)-वास्तव मे, मुर्द ।
मेप (४६) जाप, भाप । मडाणी (९४)-उत्पन्न हुई।
मेहणो (८६)-कलंक । मये (६१)-साथ
दैमार (१२)-मारदे । मला (१०३)—प्राप मला, स्वयं, । स्वतन्त्र ।
रत री (२१) रक्त की। ।
रहै (४५)---रहता है। महल (१८)-१. प्रासाद, २ स्त्री।
रामदे (१५)–एक लोक देवता। मात (६६) मात्र, केवल
राधा (४)-राधिका । माप (४९)-नाप, परिमाण ।
रामचन्द्र (६७, ६३)--श्रीराम माह (१०३)-मे, भीतर।
रावण (५७)--एक दैत्य का नाम । मिरिणजे (१०) कहा जाता है । रावा (८८)-राजामो के। .. मिलक (३१)-मलिक, सरदार । रासि (६०)--रास मुंठा (७६)-मूढ
रिणि-खेत (८७)-रणक्षेत्र। मुंसे (१७)- मूसा, पैगम्वर'।
रिणिसी (१५)-रणसी नामक एक मुजरो (२५)---नमस्कार।
भक्त । मुरई (६६)-नाश करे।
रुख (१०१)-ओर, तर्फे।
रेली (३२)-१.वरसाया, २. बरसामुसा (३१)-मूसा, पैगम्वर ।
कर प्रानदित किया। मूमणां (६१)-मोमिन ।
ल मूंस (८६)-मूसा
| लिगन (८१)-नग्न, विवाह । मूसा (८५, १०)-मूसा - । लिगी (6)-किंचित भी।
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[
६३
]
.
लिवारि (६५) लेने दे। | विसनो (७३)--विष्णु लिवार (७) लेने देता है . ... वेखूना (१००)-निर्दोपो के । लिवारौ (७५)-लेने दो , चिया (३६)-वेचने मे, वेच दिये। लोधियों (६२)-हैरान किया।
| वेदव्यास (१, ३८)वेदूं (३९) वेद
वेस (२३, ३६)–भैप, रूप । वरतावीने (१२)-प्रदान कीजिये, विदि (७८)-वृद। . . . .
प्रचार कीजिये। ... वरताहि (८५)-फैला दे।
सखवर (४२)-शखबर । । वरत (६०)-प्रसार की जाती है। संताप (४२)-दुख । ' वसारै (७४)-भुला दे।
समिलका (३६)-रानी। वसिजे (२२)-वस जाना, रह जाना।
ससार (१००)-जगत ।
सचेळा (६१)-प्रसन्न, राजी। वह (११)-बहुत । वहि (60) जाकर ।
सजिया (६५) तैयार हुआ। ,
सदोमति (१९)—सदमति देने वाली। वहियो (६३)-'चला
सवाई (१६)-सभी। वहे (६०)-चलता है। " सबोज (४४)-बोध युक्त । वाणि (२४)--वाणी
समस (१५)-एक भक्त का नाम । वाणासुरा (१०३) वाणासुर को। समास (१६)-निरंतर । वाणार (३८)-एक भक्त का नाम । समिदिम (७४)-समदृष्टि से । वाता (३६)-वातें ", ' सरस (४७)-अच्छा । वारिवा (१६)-वारने के लिये।
| सर (४७)-बनाता है।
सवाही (४०)-सभी प्रकार । वारौ (१००)-वारा .. . सहरि (२२)-शहर मे। वाळिया (७९)-लौटा लाये। सहल्या (१०३)-साथ चले।। वाहि दिया (१०३)–फेक दिया। सहिस (६१)--शेष नाग । विणयो (३५)-वना
। सहै (४५) धारण करता है । विवत (२१)-विधाता
साधी (८७)- जोड दी। . विरत्ता (६४)-विरक्त.
साम्हेई (२२), सामने ही।
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________________ [ 64 ] सासही (२०)-सहन होता है। हलाहला (१०३)-हल्ला / सा (२)-समान / हाथे (62) हाथ से। साज (१००)-रक्षा। हालिम (१०३)-~चलकर। सारग-पाणी (८९)-विष्णु / हालो (१००)-चले / सीस (३६)–सिर / हिमे ( )-प्रव सुधारौ (३३)सुधार दीजिये। हीव (१८)-मार होविया (८२)-मार दिया। सुका (६८)-सूख गये। हुयो (34) हो गया। सेलारसी (१५)-एक भक्त का नाम / हुलायो (२८)-गाया, वर्णन किया / ' सेहरा (६६)-मुकुट। हुलाही (२६)-प्रवतं होता है, सोवन (३१)—सुवर्ण / चलता है। सौरी (३१)-गाय। हुसेनियो (30) यवनो का। स्रग (२९)-स्वर्ग। हूर (७)-अप्सरा। हैवरी (८२)-घुडसवार / हथ (38) हाथ से। हैग्रीवा (66) हयग्रीव अवतार ।हरनाथ (३३)—महादेव / होमवला (१०३)-आपत्ति / -