Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 73
________________ PAN TOR s VAR MAYA [ ७१ ] . पीति के विना श्रद्धा कैसी ? भक्ति के विना विश्वास कैसा ? श्रद्धा मे स्नेह के मिश्रण के विना सम्बन्ध नही जुड़ सकता । परमात्मा मे क्या हमारी स्नेहमिश्रित श्रद्धा है ? परमात्मा के प्रति स्नेहयुक्त श्रद्धा से हमारा हृदय भरपूर है ? - परमात्मतत्त्व को केवल बुद्धि से समझने की बात छोड दो । बुद्धि से .. बुद्धि के बन्धनो से मुक्त होकर परमात्मा के प्रति स्नेहयुक्त बनो। स्नेह से ही सम्बन्ध बधता है।

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