Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 86
________________ SE ALAN [ ८६ ] Rad दनिया का सोचने का ढग दूसरा है। तुझे दूसरे ढंग से सोचना चाहिये। दुनिया का सोचने का ढग अशान्ति पैदा करता है। तू जानी है। तू भी ससारी अज्ञानी की तरह सोचता है। N इसीलिये तो ज्ञानी दुनिया का ज्यादा नहीं करते। करते है तो दुनिया की सुनते नहीं, दुनिया को सुनाते है। NC-A -tant 52424 [७५ TRAL 1M परmamamimalaya

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