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• सप्तम सर्ग*
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रखी। कुछ दिनोंके बाद रामचन्द्रने रावणपर आक्रमण कर उसका विनाश किया किन्तु जिन-भक्तिके प्रभावसे उन्होंने केदारका राज्य छीनना उचित न समझा। इससे केदार और कनक बड़ेही प्रसन्न हुए और वे न्याय-नीति पूर्वक प्रजाका पालन करने लगे।
कुछ दिनों बाद एक दिन वहां एक केवली गुरुका आगमन हुआ ! यह जानकर केदार और कनक दोनों जन उन्हें वन्दन करने गये । वन्दन करनेके बाद उन्होंने बड़ो श्रद्धा और भक्ति के साथ केवली गुरुका उपदेश सुना। अन्तमें कनकने पूछा,-"भगवन् ! वह शुक कौन था जिसने मुझे प्रतिमा बनवानेकी सलाह दी थो?" यह सुन गुरुने कहा,---"वह तेरा पूर्व जन्मका मित्र है। एक बार सौधर्म देवलोक में सौधर्मेन्द्रके सम्मुख नाटक हो रहा था। उस समय अमिततेज और अनन्ततेज नामक इन्द्रके दो मित्र भी वहीं बैठकर नाटक देख रहे थे। इसी तरह अन्यान्य देवता भी नाटक देख रहे थे। इन्हीं दर्शकोंमें इन्द्र को अंज नामक एक पटरानी थी ! नाटल देखते समय उन दोनों मित्र और अंजूको चार आंखें हुई और उनके मन में कामोद्दिपन हो आया। फलतः वे सब यहांसे उठकर सनीपकी वाटिकामें चले गये और यहीं कामक्रीड़ा करने लगे। किसी तरह यह बात इन्द्र को मालूम हो गया, अत: वे भी उसी वाटिकामें जा पहुँचे। वहां इन तीनोंको एकान्त सेवन करते देख वे क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने कहा,-"तुम लोगोंने यह बड़ा ही अनुचित कार्य किया हैं। तुम्हें इसका फल अवश्य भोगना होगा ! मैं तुम दोनों देवोंको शाप देता हूं कि तुम