Book Title: Parmarth Vachanika Pravachan
Author(s): Hukamchand Bharilla, Rakesh Jain, Gambhirchand Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 62
________________ सम्यग्दृष्टि द्वारा मोक्षपद्धति की साधना अब सम्यग्दृष्टि ज्ञाता किसप्रकार मोक्षमार्ग साधता है, वह कहते “सम्यग्दृष्टि कौन है सो सुनो :- संशय, विमोह, विभ्रम - यह तीन भाव जिसमें नहीं, सो सम्यग्दृष्टि। संशय, विमोह, विभ्रम क्या 'है? उसका स्वरूप दृष्टान्त द्वारा दिखलाते हैं। सो सुनो :- जैसे चार पुरुष किसी स्थान में खड़े थे। उन चारों के पास आकर किसी और पुरुष ने एक सीप का टुकड़ा दिखाया और प्रत्येक से प्रश्न किया कि यह क्या है? - सीप है या चाँदी है? प्रथम ही संशयवान पुरुष बोला - 'कुछ सुध (समझ) नहीं पड़ती कि यह सीप है या चाँदी है? मेरी दृष्टि में इसका निर्धारण नहीं होता।' दूसरा विमोहवान पुरुष बोला- 'मुझे यह कुछ समझ नहीं है कि तुम सीप किससे कहते हो और चाँदी किससे कहते हो? मेरी दृष्टि में कुछ नहीं आता, इसलिए हम नहीं जानते कि तुम क्या कहते हो?' अथवा चुप हो रहता है, बोलता नहीं गहलरूप से। तीसरा विभ्रमवान पुरुष बोला कि- 'यह तो प्रत्यक्षप्रमाण चाँदी है, इसे सीप कौन कहेगा? मेरी दृष्टि में तो चाँदी सूझती है, इसलिये सर्वथा प्रकार यह चाँदी है' - इसप्रकार तीनों पुरुषों ने तो उस सीप का स्वरूप जाना नहीं, इसलिए तीनों ही मिथ्यावादी हैं। - अब चौथा पुरुष बोला- यह तो प्रत्यक्षप्रमाण सीप का टुकड़ा है, इसमें क्या धोखा? सीप...सीप...सीप, इसको जो कोई पुरुष

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