Book Title: Pariksha Mukham
Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 87
________________ ७८ सनातनजैनग्रंथमालायां वादी द्वारा दिये दोषको हटा देता है तब तो वह प्रमाण वादीकेलिये साधन और प्रतिवादीके लिये दूषण है । तथा वादी पहले साधनाभासका प्रयोग कर और प्रतिवादी उसे दुष्ट बनादे एवं पीछे वादी उस दोषको न हटा सके तो वह साधनाभास वादीके लिये दूषण और प्रतिवादीकेलिये भूषण हो जाता है। यही स्वपक्षके साधन और परपक्षके दूषणकी व्यवस्था है ॥७३॥ ___बंगला-प्रथम वादी प्रमाणेर प्रयोग करिल, परे प्रतिवादी ऐ प्रमाणेर दोष देखाइल, ऐ समय यदि वादी प्रतिवादी कथित दोषेर निराकरण करिते पारेन तबेइ ऐ प्रमाण वादीर पक्षेर साधक एवं प्रतिवादीर दूषण हइबे । आर यदि वादी प्रथम साधनाभासेर प्रयोग करे, परे प्रतिवादी ऐ साधनाभासेर दोष देखाइया देय वादीओ यदि प्रतिवादिदर्शित दोषेर उद्धार ना करिते पारे तबे वादीर पक्षे ऐ साधनाभास दृषण एवं प्रतिवादीर पक्षे भूषण हइया याय । इहाइ स्वपक्षसाधन ओ परपक्षदूषणेर व्यवस्था ॥ ७३ ॥ संभवदन्यद्विचारणीयं ॥ ७४ ॥ हिंदी-इसप्रकार इसग्रंथमें प्रमाण प्रमाणाभासादिका लक्षण कह दिया गया इनसे अतिरिक्त नय और नयाभास आदिका स्वरूप है वह भी दूसरे २ ग्रंथोंसे विचारपूर्वक जान लेना चाहिये ॥ ७४ ॥ ___ वंगला-एइ प्रकारे एइ ग्रंथे प्रमाण ओ प्रमाणभासा

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