Book Title: Pariksha Mukham Author(s): Manikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha View full book textPage 7
________________ सनातन जैन ग्रंथमालायां प्रतीत्यंतराग्यवधानेन विशेषवत्तया वा प्रतिभासनं वैशद्यं ॥ ४ हिंदी - जो प्रतिभास विना किसी दूसरे ज्ञानकी सहाय ताके 'स्वतंत्र' हो, तथा हरा पीला आदि विशेष वर्ण और सीधा टेढा आदि विशेष आकार लिये हो, उसे वैशद्य ( स्वच्छता) कहते हैं ॥४॥ ६ बंगला – जे प्रतिभास अपर कोनओ ज्ञानेर साहाय्यभिन्न हय, एवं हरितपीतादि वर्ण ओ सरलवकादि विशेष आकार विशिष्ट हय, ताहाके वैशद्य ( स्पष्टता, स्वच्छता ) बले ॥४॥ इंद्रियानिंद्रियनिमित्तं देशतः सांव्यवहारिकं ॥ ५ ॥ हिंदी --जो ज्ञान स्पर्शन रसना घ्राणादि इंद्रिय और मनकी सहायता से एकदेश विशद हो, उसे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं ||५|| बंगला -- ये स्पर्शन रसना घ्राण प्रभृति इंद्रिय ओ मनेर साहाय्ये एकदेशविशद हय ताहाके सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष बले ||५|| नाथलोको कारणं परिच्छेद्यत्वात्तमोवत् ||६|| हिंदी - ज्ञेय होनेके कारण जिसप्रकार अंधकारको ज्ञानके प्रति कारण नहिं माना जाता, उसीप्रकार ज्ञेय होनेसे पदार्थ और प्रकाश भी ज्ञानके कारण नहिं हो सकते । इसमें और भी समाधान देते हैं, ॥६॥ बंगला - ज्ञेय बलिया येरूप अंधकार के ज्ञानेर कारण बलिया स्वीकार करा जाय ना, सेरूप ज्ञेय बलिया पदार्थ एवं प्रकाशओ ज्ञानेर कारण हइते पारे ना। एविषये आरओ समाधान करिते छेन ॥ ६ ॥Page Navigation
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