Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 334
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 300/पाण्डुलिपि-विज्ञान सहायता ली गई है। ये सभी वर्ण्य वस्तु के अंश हैं। ये सभी ग्रंथ गत साहित्यिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, ज्योतिष आदि के उल्लेख हैं, अतः उनकी सहायता से इन शब्दों से काल-सन्दर्भ ढूंढा जा सका है। तात्पर्य यह है कि काल-निर्धारण एक समस्या है, जिसे अंतःसाक्ष्य के आधार पर अनेक विधियों से सुलझाने का प्रयत्न किया जा सकता है। पाण्डुलिपि-विज्ञानार्थी को इस दिशा में सहायक सिद्ध हो सकने के लिए विविध विषयगत काल-क्रमानुसार तालिकाएँ प्रस्तुत करनी चाहिये । वैज्ञानिक प्रविधि ___ काल-निर्धारण विषयक हमारा क्षेत्र ‘पांडुलिपि' का ही है, किन्तु जब पांडुलिपि भूमि-गर्भ में दबी मिले और सन्-संवत् या तिथि आदि के जानने का कोई साधन न हो तो कुछ अन्य वैज्ञानिक साधनों का उपयोग किया जा सकता है, किया जाता है जैसे-- मोहनजोदड़ों से मिलने वाली सामग्री । इसके काल-निर्धारण के लिए एक प्रणाली तो पहले से प्रचलित थी, पृथ्वी पर जमे पर्तों के आधार पर : "As the result of exacavations carried out at the statue of Ramses II, at Memphis in 1850, Horner ascertained that I feet 4 inches of mud accumulated since that monument had been erected, i.e. at the rate of 3} inches in the century." __ इसी प्रकार भूमि के मिट्टी के पर्तों के अनुसार जिस गहराई पर वस्तु मिली है, उसका प्रानुमानिक काल निर्धारित किया जा सकता है, प्रायः किया भी जाता रहा है। यदि उस भूमि पर वृक्ष उगे हुए हैं तो वृक्षों के तने काट कर देखने पर उसमें एक के ऊपर एक कितने ही पर्त दिखाई पड़ते हैं, उनके आधार पर उस वृक्ष का भी समय निर्धारित किया जा सकता है । भूमि और वृक्ष दोनों के परतों से उस वस्तु का काल प्राप्त हो सकता है । ये दोनों ही प्रणालियाँ वैज्ञानिक हैं। ज्योतिष की गणना की पद्धति भी वैज्ञानिक ही है। पर अभी हाल ही में संयुक्त राज्य के प्रो० एम० सी० लिब्बी ने रेडियोऐक्टिव कार्बन से काल-निर्धारण की वैज्ञानिक विधि का उद्घाटन किया। टाटा इंस्टीट्यूट ऑव फंडामेण्टल रिसर्च नामक बम्बई स्थित संस्थान ने 1951 से 'रेडियो-कार्बन काल-निर्धारण विभाग' स्थापित कर रखा है, इसकी प्रयोगशाला में 'कार्बन' रेडियोधर्मिता के आधार पर कालनिर्धारण की विशद पद्धति विकसित करली है। इससे वस्तुओं के काल-निर्धारण का कार्य मम्पन्न किया जाता है। इसके परिणामों में 100 वर्षों का ही हेर-फेर रहता है, अन्यथा बहुत ही ठीक काल ज्ञात हो जाता है। इस अध्याय में हमने काल-निर्धारण सम्बन्धी समस्याओं, कठिनाइयों और उनके समाधान के प्रयत्नों का संक्षेप में उल्लेख किया है-यह उल्लेख भी संकेतरूप में ही है, केवल दिशा-निर्देशन के लिए । वस्तुतः व्यक्तियों की प्रतिभा अपनी समस्याओं और कठिनाइयों के समाधान के लिए अपना रास्ता स्वयं निकालती है। कवि निर्धारण समस्या ___ कवि-निर्धारण की समस्या तो बहुत ही जटिल है। कितनी हो उलझनें उसमें पाती हैं, कितने ही सूत्र गुथे रहते हैं, वे सूत्र भी अनिश्चित प्रकृति वाले होते हैं । For Private and Personal Use Only

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