Book Title: Pandulipi Vigyan
Author(s): Satyendra
Publisher: Rajasthan Hindi Granth Academy

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Page 396
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट-एक ( प्रथम अध्याय के पृष्ठ 17 के लिए यह परिशिष्ट है ) कुछ और प्रसिद्ध पुस्तकालय क्रम संख्या समय स्थान/नाम विवरण 1. 2300 ई० पू० से पूर्व 2. 324 ई० पू० से पूर्व सीरिया में मिट्टी की इंटों पर लेख आधुनिक तैल्लमारडिख मिले हैं। इनकी लिपि क्यूनीफार्म रूप (Tellmardich) के की है। इन ईंटों के लेखों को पढ़ने के निकट] प्रयत्न किए जा रहे हैं। ऐडले में प्राचीन प्रयत्न किराया संस्कृति का केन्द्र था। वहीं यह पुस्तकालय था। तक्षशिला 'मिट्टी के सनम' में श्री कृष्ण चन्दर ने (सिकन्दर ने इसे बहुत लिखा है- "पंजा साहब से लौटकर समृद्ध और विशाल टेकनला आए, जहाँ पुराने जमाने की नगर पाया) सबसे पुरानी और ऐतिहासिक तक्ष शिला यूनीवर्सिटी के खण्डहर खोदे जा रहे थे। तक्षशिला के एस्कीथियेटर, तक्षशिला के होस्टल, तक्षशिला के नहाने के तालाब यूनिवर्सिटी के दूसरे प्रबन्ध देख कर अक्ल दंग रह जाती है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व इस पुरानी यूनिवर्सिटी में शिक्षा-दीक्षा की कितनी उत्तम और उच्च व्यवस्था थी ।" (धर्मयुग, 27 फरवरी, 1966, पृष्ठ 31)। यहीं पाणिनि जैसे वैयाकरण ने, जीनक जैसे वैद्य ने, और चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री ने यहीं शिक्षा पायी थी। ऐसे विश्वविद्यालय में ऐसा ही महान् पुस्तकालय रहा होगा। इसमें क्या संदेह किया जा सकता है ? इसके गंगू नामक स्तूप से खरोष्ठी लिपि में लिखा सोने का एक पत्तर जनरल कनिंघम को मिला था। इसमें एक For Private and Personal Use Only

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