Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 183
________________ श्रीमहावीर - गौतम-प्रवचन. [ शुभाशुभकर्म मद तपनो करी मानवी, कपटो कीधां होय । आवे नहीं लो ए थकी, तप जप उदये सोय ॥ ८६ ॥ ३९ बोल्युं न गमे अन्यने, ए शा करमे आज । कया करम स्वामी ! हो, मने कहो महाराज || ८७|| वाक्य कलानो तो कर्यो, अतिशय जे अहंकार । ए परतापे अन्यने, रुचे नहीं शुभकार ॥ ८८ ॥ ४० को स्वामी ! जीव शा थकी, पामे अशुभो वर्ण । कया करम कीधां थकी, सेवे एवो शर्ण ॥ ८९ ॥ रूपतणो मद मानवी, करीयुं वारंवार । शुभरूप तेथी नव मल्युं, कर्मतणोज प्रकार ॥ ९० ॥ ४१ आल अचानक आवतुं, खोडुं जन पर जाण । को स्वामी ! ए शा थकी, केम होय परमाण ॥ ९१ ॥ पूर्व भवे तो सेवियुं तेरमुं पापज स्थान । एज प्रतापे आवतुं, खोडं आल जन मान ॥ ९२ ॥ ४२ विण कीधे अपजश वधे, अति अपकीर्ति थाय । पूर्व भवे शा करम तो, कर्या होशे ज्यांय ॥ ९३ ॥ स्त्री भव जीव तो पामीने, अति करी ईर्षा आम । सासु नणंद जेठाणी सह, करी ईर्षा ने ठाम ॥ ९४ ॥ भ्रात वली भोजाई ने, देराणीनी साथ । लडती वारंवार तो, आवे बाथम - बाथ ४३ गौतम पूछे हे गुरो !, एक एक जन कोय । बेसे उठे नव गमे, बीजाने ते सोय ।। ९५ ।। ॥ ९६ ॥ १६०

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