Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 182
________________ फलोनो दृश्य ] श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. १५९ ३३ भणी सूत्र भंडं वदे, शिक्षकनुं जन केम । कया करम कीधां थकी, ए मति पामे एम ॥ ७५ ॥ पूर्वभवे प्राणी जनो, तेल अने घृत ठाम । मूकी खुल्ला जीवडा, मार्याना परिणाम ॥७६ ॥ ३४ को स्वामिन् ! स्त्रीजातमां, कोई नपुंसक थाय । स्त्री सुख पामे नहीं पछी, कया करम उभराय ॥७७॥ कीयां माया-कपटने, द्रव्य हयुं बहु दीन । पूर्व भवे परितापथी, नपुंसक थाय अदीन ॥ ७८ ॥ ३५ को स्वामी ! कोई कोढियो, जन शा करमे थाय । मुज मन चोखुं तो करो, सारी ए शंकाय ॥ ७९ ॥ पृथ्वीकाय तणो वली, कों छेद ने भेद । एज प्रतापे पामीयो, रोग तणो ए खेद ॥८॥ ३६ गौतम पूछे हे प्रभो !, एवा झाझा अंग । जूं लीख झाझा जीवडा, शाथी पडता रंग ॥८१॥ पूर्व भवे मध अहार तो, जे कीधां जन कोय ।। तेना ए परिणाम छे, जूं लीख जीवडा जोय ॥८२॥ ३७ को स्वामी ! ए शा थकी, तप जप करे सदाय । . पण बीजाने नवि गमे, शा कर्मे ए थाय ॥ ८३॥ पूर्व भवे कपटी थई, करी विश्वासु घात । ए परतापे अन्यने, लागे न प्रिय संघात ॥८४ ॥ ३८ को स्वामी ! तप जप नहीं, उदये आवे आज । कया करम कीयां हो, कहो भने महाराज ॥ ८५॥

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