Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ३ इस प्रकार का सम्बन्ध होने से हेतुभूत जो कर्म उसको वैक्रिय-वैक्रियबंधननामकर्म कहते हैं । इसी प्रत्येक बंधननामकर्म के लिए समझ लेना चाहिए।
२. पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों का पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण तैजस पुद्गलों के साथ जो बंधन होता है उसे वैक्रिय-तैजसबंधन कहते हैं।
३. पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण वैक्रिय पुद्गलों का पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण कार्मण पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है वह वैक्रियकार्मणबंधन कहलाता है।
४. पहले ग्रहण किये हुए आहारक पुद्गलों का और ग्रहण किये जा रहे आहारक पुद्गलों का जो सम्बन्ध होता है उसको आहारकआहारकबंधन कहते हैं।
५. पूर्व में ग्रहण किये हुए और ग्रहण किये जा रहे आहारक पुद्गलों के साथ पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण तैजसपुद्गलों का सम्बन्ध होता है, वह आहारक-तैजसबंधन कहलाता है।
६. पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण आहारक पुद्गलों का पूर्व में ग्रहण किये हुए और ग्रहण किये जा रहे कार्मणपुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध . होता है, उसे आहारक-कार्मणबंधन कहते हैं ।
७. पूर्वग्रहीत औदारिक पुद्गलों का ग्रहण किये जा रहे औदारिक पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह औदारिक-औदारिकबंधन है।
८. पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का पूर्व में ग्रहण किये हुए और ग्रहण किये जा रहे तैजसपुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है उसे औदारिकतैजसबंधन कहते हैं। ____. पूर्वग्रहीत और गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का पहले ग्रहण किये हुए और ग्रहण किये जा रहे कार्मण पुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध
पुद्गला पूर्वग्रहीत औदालिमणबंधन कहते दगलों के साथ
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