Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३३
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शुभाशुभ रस की उपमा
घोसाडइनिंबुवमो असुभाण सुभाण खीरखंडुवमो। एगट्टाणो उ रसो अणंतगुणिया कमेणियरा ॥३३।। शब्दार्थ-घोसाइड-घोषातकी-कड़वी तू बड़ी, निबुवमो-नीम के रस की उपमा वाला, असुभाण-अशुभ प्रकृतियों का, मुभाण-शुभ प्रकृतियों का, खोरखंडुवमो-क्षीर, दूध, स्त्रांड के रस की उपमावाला, एगट्ठाणो-एक स्थानक, उ-और, रसो-रस, अणंतगुणिया-अनन्तगुणित, कमेण-क्रम से, इयरा-इतर, द्विस्थानक आदि ।
गाथार्थ-अशुभ प्रकृतियों का एकस्थानक रस भी घोषातकी और नीम के रस की उपमा वाला है और शुभ प्रकृतियों का क्षीर और खांड की उपमा वाला है और उस एकस्थानक रस से इतर-द्विस्थानक आदि रस क्रमशः अनन्तगुणित जानना चाहिए।
विशेषार्थ-गाथा में अशुभ और शुभ प्रकृतियों के रस की उपमेय पदार्थों के साथ तुलना की है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
अशुभ प्रकृतियों का एकस्थानक रस घोषातकी, कड़वी तू बड़ी और नीम के रस की उपमा वाला है और विपाक में अति कड़वा होता है तथा शुभ प्रकृतियों का एकस्थानक रस के जैसा प्रारम्भ का-शुरुआत का द्विस्थानक रस खीर और खांड के रस को उपमा वाला, मन के परम आह्लाद का हेतु और विपाक में मिष्ट होता है तथा उस एकस्थानक रस से इतर द्विस्थानकादि रस अनुक्रम से अनन्तगुण तीव्र समझना चाहिये-'अणंतगुणिया कमेणियरा'। वह इस प्रकार कि एकस्थानक रस से द्विस्थानक रस अनन्तगुणा तीव्र है और उस द्विस्थानक रस से त्रिस्थानक रस एवं त्रिस्थानक रस से चतु:स्थानक रस उत्तरोत्तर अनन्तगुण तीव्र समझना चाहिये। इसका कारण यह है कि जैसे एकस्थानक
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