Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 378
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इरियापथत्त 351 इरियापथसण्ठपनसङ्खात इरियापथत्त नपुं., भाव., गमनादि चार शारीरिक क्रियाओं इरियापथमद पु., तत्पु. स., "मेरी गमनादि क्रियाएं भव्य या के होने की स्थिति - त्ता प. वि., ए. व. - प्रासादिक हैं, दूसरों की नहीं, इस प्रकार के विचार से चतुत्थज्झानसेय्या पन तथागतसेय्याति वच्चति, तास इध उत्पन्न घमण्ड - दो प्र. वि., ए. व. - इरियापथमदो, सीहसेय्या आगता, अयहि तेजस्सदइरियापथत्ता उत्तमसेय्या विभ. 395; 'अवसेसानं इरियापथो अपासादिको, मयहं पन नाम, स. नि. अट्ठ. 3.71. पासादिको ति मज्जनवसेन उप्पन्नो मानो इरियापथमदो इरियापथदिब्बब्रह्मअरियविहार प., शरीर की गमनादि नाम, विभ. अट्ठ. 442. क्रियाओं की दिव्य एवं उत्तम स्थिति - रेसु सप्त. वि., ब.. इरियापथरूप नपुं, तत्पु. स., ईर्यापथों (गमन आदि शारीरिक व. - अविसेसेन इरियापथदिब्बब्रह्मअरियविहारेस..., पटि. गतिविधियों) का स्वरूप - पानि वि. वि., ब. व. - म. अट्ठ. 2.117; खु. पा. अट्ठ. 90. अप्पनाजवनं सब्ब, महग्गतमनुत्तरं इरियापथरूपानि, जनेतीति इरियापथनियम पु., तत्पु. स., चार शारीरिक क्रियाओं पर समीरितं, ना. रू. प. 321. नियन्त्रण – मं द्वि. वि., ए. व. - इरियापथनियम अकत्वा इरियापथवाचक त्रि., ईर्यापथ का सूचक, गमन आदि चार यथासुखं अञ्जतरुञतरइरियापथबाधनविनोदनं करोन्तो, शारीरिक क्रियाओं का अर्थ कहने वाला - को पु., प्र. वि., खु. पा. अट्ठ. 202. ए. व. - एतिसद्दो यत्थ चे इरियापथवाचको, तत्थ आगमनं इरियापथनिस्सित त्रि, तत्पु. स., ईर्यापथों पर आश्रित, येव जोतेति न गमनं, सद्द. 2.319. शरीर की चार क्रियाओं पर आधारित - तं नपुं., प्र. वि., इरियापथविकोपन नपुं.. तत्पु. स., ईर्यापथ की क्रियाशीलता ए. व. - इरियापथियं पसादनियन्ति परेसं पसादावह ___ में अवरोध, ईर्यापथ की सक्रियता का अन्त – नं प्र. वि., आकप्पसम्पत्तिनिमित्तं इरियापथनिस्सितं सम्पजऑथेरगा. ए. व. - न मे इदं भूतपुब्ब, इरियापथविकोपनं, अप. 2.9. अट्ठ. 2.179. इरियापथविहार पु., [बौ. सं., ईर्यापथविहार], चार उत्तर इरियापथपब्ब नपुं, तत्पु. स., ईर्यापथों वाला खण्ड, कायगता विहारों (जीवनस्थितियों) में से एक, उत्तम शारीरिक चेष्टाओं स्मृति के कर्मस्थानों के रूप में निर्दिष्ट चौदह पर्वो में से युक्त जीवनवृत्ति – रो प्र. वि., ए. व. - इमिना पदेन द्वितीय -- बं प्र. वि., ए. व. - आनापानपब्बं इरियापथपब्बं, मेतं आसेवन्तस्स भिक्खुनो इरियापथविहारो कथितो, अ. चतुसम्पजज्ञपब्ब, पटिक्कूलमनसिकारपब्ब, नि. अट्ठ. 1.55; सद्धाय विहरतीतिआदीस सद्धादिसमनिस्स धातुमनसिकारपब्ब, नवसिवथिकपब्बानीति इमेसं चुद्दसन्नं इरियापथविहारो दट्टब्बो, पटि. म. अट्ठ. 2.128; - रेन तृ. पब्बानं वसेन कायगतासतिकम्मट्ठानं निद्दिष्टु, विसुद्धि. वि., ए. व. - दिब्ब ब्रह्मअरियआनेजविहारेहि 1.231; यस्मा इरियापथपब्बं चतुसम्पजअपब्ब समुप्पादितसुखविसेसेन इरियापथविहारेन सरीरदुक्खं धातुमनसिकारपब्बन्ति इमानि तीणि विपस्सनावसेन वृत्तानि, विच्छिन्दित्वा हरामि अत्तभावं पवत्तेमि, चरिया. अट्ठ. 20; तदे.. इरियापथविहारेन इतिवृत्तप्पकारझानसमङ्गी हुत्वा अत्तभावस्स इरियापथपरिवत्तन नपुं, तत्पु. स., ईर्यापथों (गमनादि ... अभिनिफादेति, विसुद्धि. 1.140-141; पारा. अट्ठ.1.1083; क्रियाओं) में परिवर्तन - चतुइरियापथपरिवत्तने इरियापथविहारेन विहरति इरीयति वत्तति, उदा. अट्ठ. सात्थकतादिपच्चवेक्षणवसेन सम्पज्जअञ्च सोधेति, खु. 182. पा. अट्ठ. 192. इरियापथसङ्घात त्रि., ईर्यापथ नाम वाली, (ठगविद्या), तीन इरियापथबाधन नपुं., तत्पु. स., ईर्यापथों के प्रयोग में प्रकार की ठगी में से एक - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. -- उपस्थित बाधा या कष्ट - नं द्वि. वि., ए. व. - एक अकुहकोति तीणि कुहनवत्थूनि – “पच्चयपटिसेवनसवातं इरियापथबाधनं अपरेन इरियापथेन विच्छिन्दित्वा, खु. पा. कुहनवत्थु, इरियापथसङ्घातं कुहनवत्थु सामन्तजप्पनसङ्खातं अट्ठ. 90. कुहनवत्थु, महानि. 163; पापिच्छस्सेव पन सतो इरियापथभजनक त्रि., ईर्यापथों का भजन करने वाला, सम्भावनाधिप्पायेन कतेन इरियापथेन विम्हापनं इरियापथसङ्घातं ईर्यापथों के अभ्यास में बाधा खड़ी करने वाला - केन पु., कुहनवत्थूति वेदितब्ब, महानि. अट्ठ. 268.. तृ. वि., ए. व. - आबाधिकोति इरियापथभञ्जनकेन इरियापथसण्ठपनसङ्खात त्रि., ब. स., गमन आदि ईर्यापथों विसभागाबाधेन आबाधिको, अ. नि. अट्ट, 3.59. के सम्यक रूप से (कलात्मक रूप से) प्रयोग या प्रदर्शन For Private and Personal Use Only

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