Book Title: Padarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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192...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
5. काल अनुयोग – उत्पलशतपत्र आदि दृष्टान्तों से समय का प्ररूपण करना तथा काल के समस्त भेद-प्रभेदों की व्याख्या करना कालानयोग है।
6. वचन अनुयोग – एकवचन, द्विवचन या बहुवचन आदि की व्याख्या करना वचन अनुयोग है। ___7. भाव अनुयोग - जो वस्तु जिस रूप में अवस्थित है, उसका उसी रूप में प्ररूपण करना भाव अनुयोग है।
अनुयोग के पृथक्त्व और अपृथक्त्व ऐसे भी दो प्रकार उल्लिखित हैं।
संक्षेप में कहें तो आर्यवज्रस्वामी तक अनुयोग के एक भी विभाग नहीं थे। उस समय प्रत्येक सूत्र की चारों अनुयोगों के रूप में व्याख्या होती थी। क्रमश: काल के दुष्प्रभाव से स्मृति हास होने के कारण एवं शिष्यों को सरल पद्धति से समझाने हेतु अनुयोग के भेद-प्रभेद अस्तित्व में आए। अनुयोगाचार्य के लक्षण
अनुयोग की क्षमता से परिपूर्ण आचार्य छत्तीस गुणों से युक्त होने चाहिए। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार वे गुण निम्नलिखित हैं।119 1. देशयुत - मध्यदेश या साढ़े पच्चीस आर्य देशों में जन्में
हुए हों। 2. कुलयुत इक्ष्वाकुकुल आदि उत्तम कुलों में उत्पन्न
हुए हों। 3. जातियुत मातृपक्ष उत्तम हो। 4. रूपयुत
शरीर सौन्दर्यवान हो। 5. संहननयुत सुदृढ़ शरीर वाले हों। 6. धृतियुत
गहन अर्थों में निपुण हों। 7. अनाशंसी किसी तरह की आकांक्षा से रहित हों। 8. अविकत्थन अल्पभाषी हो। 9. अमायी
मायापूर्ण व्यवहार से रहित हों। 10. स्थिर परिपाटी - अनुयोग की वाचना देने में अभ्यस्त हों। 11. गृहीत वाक्य - जिनके वचन सभी के लिए आदेय (ग्राह्य) हों। 12. जित परिषद् - सभा में उपस्थित लोगों के मन को जीतने
वाले हों।