Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
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उद्देशक २० : सूत्र ४९-५१
न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर चार मास दस रात की प्रस्थापना होती है।
४९. सदसरायचाउम्मासियं परिहारट्ठाणं सदशरात्रचातुर्मासिकं परिहारस्थानं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा मासिकं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा __ परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अहावरा पक्खिया आरोवणा आदी अथापरा पाक्षिकी आरोपणा मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीणमतिरित्तं, तेण परं पंचूणा पंच अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं पंचोनाः मासा॥
पंचमासाः।
४९. सपंचरात्र-चातुर्मासिक परिहारस्थान में
प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित पाक्षिकी आरोपणा दी जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर पांच रात कम पांच मास की प्रस्थापना होती है।
५०. पंचूणपंचमासियं परिहारट्ठाणं पंचोनपाञ्चमासिकं परिहारस्थानं
पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा द्वैमासिकं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् अहावरा वीसतिरातिया आरोवणा अथापरा विंशतिरात्रिकी आरोपणा आदी मज्झेवसाणे सअटुं सहे आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् सकारणं अहीणमतिरित्तं, तेण परं अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परम् अद्धछट्ठा मासा॥
अर्धषष्ठाः मासाः।
५०. पंचरात्रन्यून-पाञ्चमासिक परिहारस्थान
में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य द्वैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित बीसरात्रिकी आरोपणा दी जाए। न्यूनअधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर साढ़े पांच मास की प्रस्थापना होती है।
५१. अद्धछट्ठमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अर्धषष्ठमासिकं परिहारस्थानं
अणगारे अंतरा मासियं परिहारद्वाणं प्रस्थापितः अनगारः अन्तरा मासिकं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा परिहारस्थानं प्रतिसेव्य आलोचयेत् पक्खिया आरोवणा आदी अथापरा पाक्षिकी आरोपणा मज्ञवसाणे सअटुं सहेउं सकारणं आदिमध्यावसाने सार्थं सहेतु सकारणम् अहीणमतिरित्तं, तेण परं छम्मासा॥ अहीनातिरिक्तम्, तस्मात् परं षण्मासाः।
५१. अर्द्धषष्ठमासिक (साढ़े पांच मास के)
परिहारस्थान में प्रस्थापित अनगार यदि प्रायश्चित्त के मध्य मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना कर आलोचना करता है, उसे उस काल के आदि, मध्य अथवा अवसान में अर्थसहित, हेतुसहित, कारणसहित पाक्षिकी आरोपणा दी जाए। न्यून-अधिक आरोपणा न दी जाए। जिसे संयुक्त करने पर छह मास की प्रस्थापना होती है।
ग्रन्थ-परिमाण
अक्षर-परिमाण : ७६०२१ अनुष्टुप् श्लोक परिमाण : २३७५, अक्षर : २१