Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 495
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे भिक्खू अप्पणो पाए तेल्लेण वा घरण वा णवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेत वा भिलिंगेंतं वा साइज्जइ ॥१८॥ जे भिक्खू अप्पणो पाए लोद्रेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा पउमचुण्णेण बा उल्लोलेज्ज वा उन्वटेज वा, उल्लोलंतं वा उव्वतं वा साइज्जइ ॥१९॥ जे भिक्खु अप्पणो पाए सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोतं वा साइज्जइ ॥२०॥ जे भिक्खू अप्पणो पाए फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुतं वा रएंतं वा साइज्जइ ॥२१॥ जे भिक्खू अप्पणो कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ ॥२२॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्य संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संवाहेंतं वा पलिमहतं वा साइज्जइ ॥२३॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्य तेल्लेण वा घएण वा गवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खंत बा भिलिंगेंतं साइज्जइ ॥२४॥ जे भिक्खू अप्पणो कायं लोद्रेण वा कक्केण बा चुण्णेण वा वण्णेण वा पउमचुण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा उल्लोलेंतं वा उन्वटेंतं वा साइज्जइ ॥२५॥ जे भिक्खु अप्पणो कायं सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज वा उच्छोलेंतं बा पधोतं वा साइज्जइ ॥२६॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्य फुमेज्ज वा रएज्ज वा फुत वा रएतं वा साइज्जइ ॥२७॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ ॥२८॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं संवाहेज्ज वा पलिमदेज्ज वा, संवाहेत वा पलिमदतं वा साइज्जइ ॥२९।। जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं तेल्लेण वा घएण वा नवणीएण वा वसाए वा मक्खेज्ज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेंतं वा साइज्जइ ॥३०॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण बा वण्णेण वा पउमचुण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा उल्लोलेंतं वा उन्वटेतं वा साइज्जइ ॥३१॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्न वा उच्छोलेंत वा पधोवेंतं वा साइज्जइ ॥३२॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि वणं फुमेज्ज वा रएज्ज वा, फुमतं वा, रएतं वा साइज्जइ ॥३३॥ जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा पिलगं वा अरइयं वा असियं वा भगंदलं वा, अन्नयरेण तिक्खेण सत्थजाएण आच्छिदेज्ज ग विच्छिदेज्ज वा, आच्छिदंतं वा विच्छिदंत वा साइज्जइ ॥३४॥ For Private and Personal Use Only

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