Book Title: Nirukta Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 381
________________ ३५० निरक्त कोश १४०. परिभासा (परिभाषा) परिभाषणं परिभाषा। (स्थाटी प ३८२) किसी बात को नियमबद्ध कर कथन करना परिभाषा है । संक्षेप में समग्रता से कथन करना परिभाषा है । १४१. परिहार (परिहार) परिहरणं परिहारः । (पंटी प २८६) परिहरण छोड़ना परिहार है । १४२. पलिउंचणा (परिकुञ्चना) परिकुंचणं परिकुचना। (व्यभा १ टी प १५) ___ सर्वतः कुंचन/छिपाना परिकुंचना/माया है । १४३. पलोयणा (प्रलोकना) प्रलोकनं प्रलोकना। (ओटी प १३) प्रकृष्ट रूप से देखना प्रलोकना है। १४४. पसाय (प्रसाद) प्रसीदनं प्रसादः । (उचू पृ ३५) प्रसन्न होना प्रसाद/प्रसन्नता है। १४५. पसूइ (प्रसूति) प्रसवनं प्रसूतिः । (पंटी प ३४१) प्रसव करना/जन्म देना प्रसूति/जन्म है। १४६. पाय (पात) पतनं पातः। (निचू १ पृ ११) गिरना पात है। १४७. पिंड (पिण्ड) पिण्डनं पिण्डः। (प्रसाटी प १३७) पिंडित/एकत्रित करना पिंड है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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