Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 55
________________ संदेश चौदहवाँ [ ५१ सस्था प्रतिनिधि भेजे । जो राष्ट्र साम्राज्यवाद की पक्षपात न करूगा और न ऐसे कार्यो मे भाग नीति के विरुद्ध है उन सबको यह राष्ट्रसघ कायम लूंगा जो साम्प्रदायिक या जातीय भाव को बढाने करना चाहिये । रूस, चीन, भारत, मिश्र, आयर- वाले हो न ऐसे विचार किसी तरह प्रगट करूगा। लेड, अफगानिस्तान, स्विड्जरलेड, फारस आदि सभी धर्मों का आदर करूगा और सदा न्याय देश मिलकर इस राष्ट्रसघ की नीव डाले । ये और सत्य का पक्ष लूगा । राष्ट्र आपस मे स्थायी सन्धि करले । एक दूसरे भाष्य--शासन या न्याय के कार्य मे जो को पूरी मदद करे । राष्ट्रसंघ के सदस्य मानो मनुष्य अपने जातीय या साम्प्रदायिक स्वार्थ भाई भाई है इस तरह व्यवहार करे । इस राष्ट्र- को नहीं भूलता वह शुद्ध न्याय और निर्दोप सघ की नीतिको जो अपनाते जॉय उन्हे राष्ट्र- शासन नही कर सकता खास अवसर पर वह सघ मे मिलाते जाना चाहिये । इस प्रकार यह अवश्य धोखा दे जायगा । एक महान शक्ति हो जायगी । और धीरे धीरे दूसरी बात यह है राष्ट्र का यह ध्येय होना साम्राज्यवाद का नाम सिर्फ इतिहास के पन्नो मे चाहिये कि उसके भीतर के जातीयता प्रान्तीयता और लिखा रह जायगा । साम्प्रदायिकता के भेद नष्ट हो। विचार आचार राष्ट्रसघ के न्यायालय के न्यायाधीश वे लोग की स्वतन्त्रता रहे परन्तु उनके नामपर दलबन्दी ही बनाये जॉय जो राष्ट्रीयता के पक्षपात से परे न हो । सर्व साधारण प्रजा को अगर इसके लिये हो गये हो । जो न्याय और सत्य के पुजारी हो। वाध्य न किया जा सके तो कम से कम उन लोगो विश्वशान्ति जिनके जीवन का ध्येय हो। को तो बाध्य होना ही चाहिये जो शासक बनते राष्ट्रसघ की जब यह योजना सफल हो है और जो राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति से निपक्ष जाय तब राष्ट्रसघ द्वारा एक ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार करने के लिये बाध्य है। भाषा बनाई जाय जो सरल से सरल हो और इन शासको के भीतर हिन्दू मुसलमान, अधिक से अधिक निर्दोप हो इसी भाषा मे राष्ट्र- ब्राह्मण शूद्र, बगाली गुजराती आदि का कोई सघ का काम चले । इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय भेद न होना चाहिये । वे धर्म के विषय मे स्वतत्र लिपि की समस्या भी हल करलीजाय । विचारक और समभावी, जातिके विषय मे पूरे निरतिवाद प्रबन्ध की सविधा के लिये राष्टो राष्ट्रीय होना चाहिये । जो लोग इतना पक्षपात के अस्तित्व को स्वीकार करता है । वह उन्हे नष्ट नहीं छोड सकते उन्हे किसी भी सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता न उनमे सघर्ष चाहता है। मे न लिया जाय। आज कई लाग्व आदमी सरकारी नौकरी मे मन्देश पन्द्रहवाँ है । वे सब जातिपॉति के वधन से रहित पूर्ण शासन कार्य के प्रत्येक कर्मचारी को नि.पक्ष नि पक्ष और समभावी हो तो इन लाग्वा आठ होना चाहिये । नौकरी पर नियुक्त होने के पहिले मियो का एक राष्ट्रीय समाज ऐसा बन जावे जो उसे इस बात की शपथ लेनी होगी कि मै शासन राष्ट्र में फैली हुई सकुचितताओं को नष्ट करने कार्य मे किसी भी जाति सम्प्रदाय या व्यक्ति का मे पथ-प्रदर्शक हो । इनके सम्पर्क से और भी

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