Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 66
________________ AMESEXGV D0GJGNO -2250822520Sa28222825 खत्यभक्त साहित्य - - - सत्यसन्देश [मासिक] सकता है / निरर्थक क्रियाकाडा का वहिप्कार किया गया है / हिन्दी में ही सप्तपदी, प्रदक्षिणा (भावर) हिन्दू, मुसलमान, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी मङ्गलाष्टक, मगलाचरण आदि के सुन्दर पद्य हैं। .. आदि सभी समाजों में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता विधि सरल और प्रभावक है। मूल्य एक आना। का सन्देश देनेवाला, शातिप्रद सामाजिक क्रातिका अधिक लेनेवालों को 4 // स सैकडा। विगुल बजानेवाला, मौलिक और गम्भीर लेख, न्यायप्रदीप-हिदी भाषा द्वारा न्यायशास्त्र का रसपूर्ण कविताए, कलापूर्ण कहानिया, सामयिक पूरा ज्ञान करादेनेवाला एकमात्र सरल प्रथ। जो लोग टिप्पणिया और समाचार आदि से भरपूर स्वतन्त्र सस्कृत विलकुल नहीं जानते वे भी इसके मासिक पत्र ।वार्षिक मूल्य 3) नमूना / ) द्वारा न्याय शास्त्र के ज्ञाता हो सकते हैं और सस्रत 1 धर्म-मीमांसा-मल्य चार आना / जाननेवालो को भी इसमे मौलिक और विचारणीय MAD धर्मों की उत्पत्ति, उनका वास्तविक स्वरूप सामग्री है / मूल्य 1) K. और समन्वय कर्तव्याकर्तव्य के निर्णय की कसौटी सर्व-धर्म-समभाव और सर्व-जाति-समभाव को जीवन सत्यसमाज और भावनागीन-भल्य ) // ही मे उतारने की सुन्दर योजना | पृष्ट सख्या 100 / / सत्यसमाज की नियमावलि, सर्व-धर्म-समभावा जैन-धर्म-मीमांसा-(प्रथम भाग) मूल्य एक भावना-गीताका सग्रह / पृष्ठ 32 / रुपया। सत्य संगीत-छप रहा है। धर्म की व्याख्या के साथ जैन-धर्म का सम्बन्ध, म सत्य, भ अहिंसा, म राम, म ऋण, मौलिक ऐतिहासिक विवेचन, महात्मा महावीर के म महावीर, म बुद्ध, म ईसा, म मुहम्मद, भारत जीवन की झाकी, अतिशया की आलोचना, सम्य- माता के विषय में अतिशयोक्ति-रहित सच्ची सर्वक्त्व की असाम्प्रदायिक गभीर और व्यापक व्याख्या, धर्म-समभात्रा प्रभावक कविताओ और दर्जनो भाव'जैन-धर्म-का मर्म' लेखमाला के तीन अध्याय का गीतो तथा भावनाओं का सग्रह / 6 सशोधित रूप | पृष्ठ 340. निरतिवाद- हाथ मे ही है / मुत्य छ आने | विवाह-पद्धति-एक सर्व-धर्म-समभावी विवाह) पद्धति / हरएक धर्मका आदमी इसका उपयोग कर सत्याश्रम वर्धा (सी. पी.) 09028:28:25.2GDRDasgesses KISTAgateageKIReDSearest DASE

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