Book Title: Navsadbhava Padartha Nirnay
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 202
________________ (३०० ) 'दैराः थकी जीव ऊज़लो होय ॥ जीव ज. जलो हुनो तेहिज निरजरा । निरजरा जीव छै तिण में शंका न कोय ।। दिरजरा में जीवन श्रद्धे मिथ्याती -कर्मा ने तोडे ते निश्चयही जीव । कर्म टूटा थकी ऊजलो हुश्रो जीव !! ऊंजेला जीवनै निरजरा कही जिनेश्वर । जीवरा गुण उज्वल है अंतही अतीव । निरजरा ॥१०॥ समस्त कर्म थकी मुंकावै । ते कर्म रहिल आतम छै मोख ॥ इण संसार दुःख थी छुटकारा पाम्यो। सेतो शीतली, भूत थया निदोंख ॥ मोचनै जीव न अद्धे मित्थ्याती ॥ ११ ॥ कर्म थकी मुकामाते मोक्ष । ते मुक्ति ने कहिजे सिद्ध भगवान ।। कलि मोत्तनें परम पद निवाण कहिजे । ते नि यही निरमल जीव कै.शुद्धमान || मोक्ष ॥१२॥ पुण्य.पापबंध यह तीतूं जीव । त्यांन जीव अजीव श्रद्ध छै. दोनहीं। यहवी ऊंधी श्रद्धारा छै मृढः मित्थ्याती। त्यां साधूरो भेष ले. श्रातम विगोई !! पुराय पापनें !॥ १३ ॥ श्राश्रव संबर लिरजरा मोक्ष । यह नियमांही निश्चय जीव '. व्याही ।। त्यांन जीव अजीव दोन श्रद्धै छै ।

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