Book Title: Namaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 337
________________ 281 विभाग] जिनसहस्रनामस्तोत्रम् नमस्तेऽन्तरिक्षाय वामाऽङ्गजाय, नमः सूरतस्थाय ते दिग्गजाय / नमो नाथ ! जीराउलीमण्डनाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 137 // नमो देशपूर्यादिनानाह्वयाय, नमो ध्येयनाम्ने महिम्नाऽव्ययाय / नमस्ते कृतारिष्टदुष्टक्षयाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 138 // नमो वर्द्धमानप्रभोः शासनाय, नमस्ते चतुर्वर्णसङ्घाय नित्यम् / नमो मन्त्रराजाय ते ध्येयपश्च !, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते / / 139 // नमो जैनसिद्धान्तदुग्धार्णवाय, नमोऽनेकतत्त्वार्थरत्नाश्रयाय / नमो ह्य (ह)द्यविद्येन्दिरासुन्दराय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 140 // नमो दर्शनज्ञानचारित्रशुद्धथै, नमो भव्यसर्वोपधा(पाप) शुद्धथै / नमो भावनिम्रन्थतथ्यक्रियायै, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 141 // नमः श्राद्धधर्माय दानोत्तमाय, नमस्ते चतुर्वर्गसिद्धिक्षमाय। . नमस्ते चतुःशालकल्पद्रुमाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 142 // वामा माताना पुत्र अंतरिक्ष पार्श्वनाथने नमस्कार थाओ। सुरतमा रहेला दिग्गज पार्श्वनाथने नमस्कार थाओ। श्री जीराउली मंडन पार्श्वनाथने नमस्कार थाओ // 137 // - देश, नगर वगेरेने अनुसरता अनेक नामोवाळा आपने नमस्कार थाओ। जेमनुं नाम ध्येय 15 छे अने महिमा वडे अव्यय एवा आपने नमस्कार थाओ। दुष्ट अरिष्टोनो क्षय करनारा आपने वारंवार नमस्कार थाओ // 138 // ___श्रीवर्द्धमान प्रभुना शासनने नमस्कार थाओ। श्रीचतुर्विध संघने सदा नमस्कार थाओ। पांच ध्येयवाळा मंत्रराज (नवकार) ने नमस्कार थाओ // 139 // / जैन सिद्धान्तरूपी क्षीरसमुद्रने नमस्कार थाओ। अनेक तत्त्वार्थरूप रत्नना आश्रयभूत ते 20 जैनसिद्धान्तरूप क्षीरसमुद्रने नमस्कार थाओ। मनोहर विद्यालक्ष्मीवडे शोभता ते जैनसिद्धान्तरूप क्षीरसमुद्रने नमस्कार थाओं // 140 // दर्शन ज्ञान अने चारित्रनी शुद्धिने नमस्कार थाओ। भव्य एवां सर्व साधनो वडे थती पापशुद्धिने नमस्कार थाओ। भावनिपँथनी तथ्य (यथार्थ) क्रियाने नमस्कार थाओ। (अथवा दर्शन ज्ञान चारित्रनी शुद्धिने करनारी अने भव्य अवां सर्व साधनोवडे पापशुद्धिने करनारी ओवी भावनिम्रन्थनी तथ्य क्रियाने नमस्कार 25 हो) // 141 // . . दानवडे उत्तम एवा श्राद्धधर्मने नमस्कार थाओ। चारे वर्गनी (पुरुषार्थनी) सिद्धि करवामां समर्थ 'एवा श्राद्धधर्मने नमस्कार थाओ। दानादि चार प्रकारना धर्मरूप शाखाओवाळा कल्पवृक्ष समान श्रावकधर्मने नमस्कार थाओ // 142 //

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