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नहीं । उसने भी किसी अन्य के साथ ही शुभ-अशुभ पुण्य-पाप की प्रवृत्ति की ही होगी, तभी तो अद्दष्ट का निर्माण हुआ होगा न ? इस प्रकार तो सभी जीवों की सृष्टि ईश्वर की रचना के पूर्व ही मानने की आपत्ति आती है, और उस जन्म में अद्दष्ट निर्माण किया तो उस भव से पूर्व के दूसरे भव में वह क्या था ? वह भव किस अद्दष्ट के आधार पर समझें ? उसके पूर्व का जन्म फिर किस जन्म के अद्दष्ट के आधार पर समजें ? ऐसे करते करते तो अंडे और मुर्गी जैसी अनवस्था दोष की बात सिद्ध हो जाएगी, तो आप दोनों ओर से फँस जाओगे ।
चलो, ईश्वर जीवों के अद्दष्ट के आधार पर सृष्टि निर्माण करता है ऐसा आपका सादा पक्ष भी मान लेते हैं, तब भी सरलतापूर्वक बात गले उतरती नहीं हैं, क्यों कि यह पक्ष मानने, में एक बात तो सिद्ध हो ही जाती है कि ईश्वर ने मनस्वी की तरह स्वेच्छानुसार सृष्टि की रचना नहीं की । जीवों के जैसे भी शुभाशुभ अद्दष्ट कर्म थे उन्ही के अनुसार उन्हें फल देने के लिये सृष्टि का निर्माण किया है । इस प्रकार यदि मानते हैं तो ईश्वर की स्वतंत्रता मिट जाएगी और पुनः ईश्वर को परतंत्र पराधीन, अद्दष्टाधीन, कर्माधीन मानना पडेगा । तब तो फिर ईश्वर जिसके आधीन है वह अद्दष्ट या कर्म सत्ता ईश्वर की अपेक्षा भी बड़ी सत्ता होनी चाहिये । इसमें तो दोनों ओर से आपत्ति आपके सिर पर ही आती है । एक तो ईश्वर की अपेक्षा दूसरी महती सत्ता सिद्ध हो जाती है और दूसरी ओर ईश्वर दूसरी सत्ता के अर्थात् अद्दष्ट के आधीन हो जाता है । इसमें परतंत्रता स्वीकार करने की आपत्ति खड़ी हो जाती है । अब आप ही सिद्ध करो कि ईश्वर की स्वतंत्रता कैसे बचायी जाए ? यह सिद्ध करने जाओगे, तो अद्दष्ट कर्म की सत्ता आप लोग स्वीकार नहीं कर सकोगे और अद्दष्ट कर्म की सत्ता स्वीकार नहीं कर सकोगे तो आप यह कैसे कह सकोगे कि ईश्वर अद्दष्ट के आधार पर जीवों को फल देने के लिये सृष्टि की रचना करता है, जन्मादि देता है, यदि ऐसा कहोगे तो ईश्वर की स्वतंत्रता नहीं रहेगी, बल्कि परतंत्रता सिद्ध हो जाएगी । अब आपके असर्वज्ञता के शास्त्र में ऐसी आपत्ति खड़ी हो जाएगी तब बताओ आप क्या करोगे? तराजू के पलड़ो में मेंढको को दूसरे मेंढको से ही तोलने की क्रीडा का बीड़ा तो आपने उठाया है, परन्तु आप स्वयं ही उबका जाओगे, एक पलड़े में मेंढक रखने के प्रयास में दूसरे पलडे का मेंढक बाहर कूद पड़ेगा और इस प्रकार
आप कभी भी मेंढको से मेंढकों को तोल नहीं पाओगे । ऐसी मेंढको से मेढको को तोलने की क्रीडा आपके हाँ भी हुई है । एक सिद्धान्त बचाने जाते हो कि दूसरा
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