Book Title: Namaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Research Foundation

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Page 464
________________ हूं तो क्रोध कषाय नो भरीयो, तुं तो उपशम रस नो दरीयो; हूं तो अज्ञाने आवरीयो, तुं तो केवल कमला वरीयो । सुणो ॥२॥ हूं तो विषया रसनो आशी, तें तो विषया कीधी निराशी; हूं तो कर्म ने भारे भरीयो, तें तो प्रभुजी भार उतार्यो । सुणो ॥३॥ __हूं तो मोह तणे वश पडीयो, तुं तो सघला मोहने नडीयो; हूं तो भव समुद्र मां खुतो, तुं तो शिवमंदिरमा पहोतो सुणो ॥४॥ मारे जन्म मरण नो जारो, तें तो तोड्यो तेहनो दोरो; मारो पासो न मेले राग, तमे प्रभुजी थया वीतराग । सुणो ।।५।। . मने माया ए मुक्यो पाशी, तुं तो निरबंधन अविनाशी; हं तो समकित थी अधूरो, तुं तो सकल पदारथे पूरो । सुणो ॥६॥ म्हारे छो तुंहि प्रभु एक, तारे मुज सरीखा अनेक; हूं तो मन थी न मुकुं मान, तुं तो.मान रहित भगवान । सुणो ॥७॥ ___मारुं कीधुं कशुं नवि थाय तुं तो रंक ने करे राय; . .. एक करो मुज महेरबानी, मारो मुजरो लेनो मानी । सुणो ॥८॥ एक वार जो नजरे निरखो तो करो मुजने तुम सरीखो जो सेवक तुम सरीखो थाशे, तो गण तमारा गाशे । सणो ॥९॥ भवो भव तुम चरणों नी सेवा, हुं तो मांगु छु देवाधिदेवा; सामुं जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी । सुणो ॥१०॥ इस प्रकार इस स्तवन में जो भाव भरे हैं वे ही आत्म भान की प्रतीति हमें करवाते हैं । जैसे जैसे आत्मानुभूति और स्वदोष- दुर्गुण के दर्शन होते जाते हैं वैसे वैसे स्वयं को स्वयं का ज्ञान होता जाता है । परमात्मा की पूर्णता-सर्वज्ञतावीतरागता आदि अनंत गुणों के दर्शन होते जाएंगे - यही दर्शन की सही-यथार्थ प्रक्रिया है । अध्यात्म योगी देवचन्द्रजी-महाराज स्वरचित महावीर स्वामी भगवान के स्तवन में इस बात की पुष्टि करते हुए फरमाते हैं कि - स्वामी गुण ओळखी स्वामी ने जे भजे, दरिशण शुद्धता तेह पामे ... । पूज्य भाव पूर्वक की पूजा : जैसी दर्शन की प्रक्रिया है वैसी ही बल्कि उससे भी विशुद्ध और बढ़कर अधिक भाववाही प्रभुपूजा है । परमात्मा के प्रति सम्पूर्ण रुप से अहोभाव . - 447

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