Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ ( ३३ ) २९ ( चाल - भासावरी ) - काहे मिचावे शोर पपैया ॥ चेतन यूंही रह्यो भ्रम ठान ॥ टेक ॥ पर भावनको निजकर माने-निज परणति पर परणति जाने || छायो तिमर अज्ञान | चेतन० ॥ १ ॥ जैसे स्वान कांच के मांही-लख निज छाया करत लड़ाई || त्यों तू रह्यो दुख मान ॥ चेतन० ॥ २ ॥ ज्यों ज्योरी लख निश मंझधारा-माने ताही भुजंगमकारा || कांप रह्यो भय आन | चेतन० ॥ ३ ॥ मोह अविद्या के बश होके - निज सम्पति परमानन्द खोके ॥ हो रह्यो निपट अयान ॥ चेतनं० ॥ ४ ॥ न्यामत तज यह भूल अनारी - छांड़ो मोह महा दुखकारी ॥ होवे उदय हग भान | चेतन० ॥ ५ ॥ ३० ( चाल बहरे तबील ) कोई चातुर ऐसी सखी ना मिली ॥ अरे मूरख तु भटका फिरे है कहांतुझे अच्छे बुरे की खबर ही नहीं || सरसे पाओं तक तू बदी से भरा -- काम नेकी का आता नज़र ही नहीं ॥ १ ॥ सब बुरी रीतियां एक दम दूर कर ( 5 )

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43