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शाला.
श्रीजिनेन्द्रायनमक (न्यामत सिंह रचित जैन ग्रंथ माली-अंक ३)
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मूर्ति मंडन प्रकाश
(अर्थात् ) जैन भजन पुष्पांजली
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(प्रथम भाग-मूर्ति मंडन निर्णय )
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चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है ॥ श्री जिनराजकी तसबीरका कुछ ध्यान पैदा कर ॥ दिले पुर दर्द में बैरागका सामान पैदा कर ॥ १ ॥ जरा करके दरश जिनराजकी तू शान्त मूरतका ॥ तमन्ना जिसकी मुदत्तसे है वह निर्वाण पैदा कर ॥२॥ भटकता किस लिये फिरता है क्यों इतना परीशां है । अगर कुछ काम करना है तो बस औसान पैदा कर ॥३॥ छोड़दे सब गलत मसले मसायल ज्ञान पैदा कर॥ श्री अरिहंतकी बातों का तू ईमान पैदा कर ॥ ४॥ न समझा मैं को तूने गैर को समझा हुवाहै मैं ॥
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(२) समझके आपमें खुदको निराली शान पैदा कर ॥ ५॥ तू खाकी है न आबी है आशी है न वादी है ॥ तूं रूहे पाक है बेशक तूं इत्मीनान पैदा कर ॥ ६ ॥ न्यायमत रगवतो नफरत मिटाद एक दम दिलसे ।। हटा अज्ञान का परदा जरा विज्ञान पैदी कर ।। ७।
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नोट-मई सन् १९९६ में लाली फतेहंचन्द जैन रईस हिसार ने हिसार में
पूजा (वेदो प्रतिष्टा) करवाई थी--उस अवसर पर पडितमाणिकचन्द जी (न्याया चार्य मोरेना) पडित मक्खन लाल जीशास्त्री (वादीम केसरी न्याया लकार ) ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी बावा भागीरत दास जी त्यागी--पडित गोरीलाल जी शाली दहली-पधारे थेइस मौके पर समस्त प्राय्ये समाज-पहले इस्लाम सनातन धर्मी व ईसाई साहेवान को एक महीने पहले नोटिस दिया गया था कि तीन दिन तक मूर्ति पूजन व आवागवन व कर्ता खडन पर न्याय पूर्वक वाद विवाद किया जावेगा-सोही सव समाजों के परिडत व मोलवो व पादरी साहेवान आए थे और नियमानुसार वाद विवाद हुवा था और जैनमत की तरफ से सबके सन्तोषजनक उत्तर दिये गए थे-इस अवसर पर हर एक विषय का क़सीदा भी बनाकर सभा में सुनाया गया थायह कसीदा मूर्ति मडन के वाद विवाद के दिन सुनाया गया थासभा का इन्तज़ाम राय साहेव लाला फूलचन्द जी जैन एकज़ोफ्टव इंजीनियर नहर की निगरानी में हुवा था- .
चाल-कहां लेजाऊं दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है। जहांके काम बतलाने का सामां एक मूरत है। गरज मतलब बरारी की नहीं कोई और सूरत है।॥१॥ शकल सूरत शबीम्ह तसबीर फोटो अक्स कुछ कहलो॥ यह सारे नाम हैं उसके कि जिसका नाम मूरत है ॥ २॥
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( ३ ) किताबों में यही मूरत अगर हरकों की सूरत है || तो उक्लेदसमें यह लाइन की और नुक्तं की कहीं एबी-कहीं अ आ कहीं पर अल्फ वे सारे ॥ यह समझाने के जरिये हैं यह बतलाने की सूरत है ॥ ४ ॥ जरा चलकर मंदसे में हिन्द का देखलो नक़शा ॥
मूरत है ॥ ३ ॥
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कहीं शहरों का नुक्ता है कहीं दरियाकी मूरत है ॥ ५ ॥ नज़र जिसदम पड़े साधू सती गणिकाके फोटो पर || असर दिलपर वही होता है जैसी जिसकी मूरत है ॥ ६ ॥ जैन साइन्स में अस्थापना निक्षेप कहते हैं ।
इसी बुनियाद पर जिन मंदिरों में जिनकी मूरत है ॥ ७ ॥ देख लीजे गौर करके यह सूरत शान्त मूरत है ॥ यह इक बैरागता सम्बेगता शान्तिकी सूरत है ॥ ८ ॥ रहनुमा जग हितेषीकी हमें ताज़ीम लाज़िम है | अदब ताज़ीम करने की यही तो एक सूरत है ॥ ९ ॥ खिंचे नहीं दायरा हरगिज़ बिना नुक्ते की मूरतके ॥ ध्यान के दायरे के वास्ते भगवत की मूरत है ॥ १० ॥ शहनशाह जार्ज पंजम हिन्द में तशरीफ़ जब लाए । झुका दिया सर जहां मल्का महाराणी की मूरत है ॥ ११ ॥ अदब से जाके बोसा देते हैं मके मदीने में || वहां असवद की सूरत है यहां भगवत की मूरत है ॥ १२ ॥ आर्य मंदिरों में भी शंबीह दयानंद स्वामी की ॥ -
१ ईश्वर - २ फोटा तसवीर
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लगी है सरसे ऊपर यह अदव करनेकी सूरत है ।। १३ ॥ अमानत ऐसा फरमाते हैं अपना दिल जमाने को। खुदाकी यादका वहतर तरीका बुतकी मूरत है ॥ १४ ॥ चांदमारी में भी दीवार पर नुक्का लगाते हैं। निशाने की निगाह ठैरानेकी यह एक सूरत है ॥ १५ ॥ देखलो जाके गिरजामें रखी है स्लीव की मूरत ॥ यह सब ताजीम के रस्ते अदव करनेकी सूरत है ॥ १६ ॥ सभी ताजीम करते हैं हुसैन हजरतके लाशेको ।। ताजिया जिसको कहते हैं जनाजे की वह मूरत है।॥ १७ ॥ शाह फर्जी फील घोड़ा यह गो लकड़ी के टुकड़े हैं। मगर शतरंज को बाजी लगाने की तो सूरत है ॥ १८॥ सलामी फौज देती है झुका सर बोसा देते हैं। जहांपर तख्त शाही या ताज शाही की मूरत है ।। १९ ॥ सभी मंदिर शिवालय मसजिद ने बुजुर्गों की ! हैं क्यों ताजीम के काबिल वह इक मिट्टी की मूरत है ||२० लीडरोंके शहनशाहोंके राजोंके गवरनरके ।। हजारों बुत बने हैं दर असल मिट्टी की मूरत है ॥ २१॥ अदव करते हैं सव इनका कोई तोहीन कर देखे ॥ सजा पाए अदालतसे गो बुत मिट्टी की मूरत है ।। २२ ।। हजारों और भी मूरत नजर आती हैं दुनिया में ॥ सभी अच्छी बुरी मूरत हैं जैसी जिसकी सूरत है ।। २३ ॥ १ जनाजा-२ वे अदबी
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(५) जुदागाना असर दिलपर हरइक मूरत का होता है । भला फिर किस तरह कहते हो यह नाकाम मूरत हैं ॥ २४॥ खड़ाओं रामके चरणों की रखकर तख्तके ऊपर ।। भरतने क्यों झुकाया शीश वह लकड़ी की मूरत है ।। २५॥ करें सिजंदा अगर पत्थर समझ कर तबतो काफर हैं। कुफर क्यों आएगा समझें अगर रहबर की मूरत है ।। २६ ॥ इसे मानो न मानो यह तो साहिब आपकी मरजी ॥ न्यायमत कोई बतलादे कि क्यों नाकाम मूरत है ॥ २७ ॥
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(चाल वजारा) टुक हिरी हवा को छोड मियां मत देश विदेश फिरे मारा ॥ अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है । यह सारी चीजें मूरत हैं तो कुछ पीता खाता है । क्या तख्त पिलंग और ताज निशांक्या किले महल बनवाताहै। क्या बग्घी टमटम हाथी घोड़े जिनपर आता जाता है ।। सब खेल बना है मूरतका यह नजर तुझे जो आता है। अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है ॥१॥ यह हाथ पाओं सब मूरत हैं मूरतका अजब तमाशा है। मूरत ही खेल खिलोने हैं मूरतही खील पताशा है ।। क्या कांटा तोला रत्ती है क्या माशा है दो माशा है ।
क्या बालक बच्चा पीरोजवांक्या जिन्दा है क्या लाशाहै। सब खेल बनाहै मूरतका यह नजर तुझे जो आता है ॥
१ नमस्कार-२ नास्तिक-३ रस्ता बताने वाला
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अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है ।। २ ।।
क्या पानी मिट्टी आग हवा क्या वादल बिजली पाला है। क्या बारिश ओले नहर समन्दर क्या दरिया क्या नाला है। • क्या सूरज चन्दर तारा हैं क्या सूरजका गंजयाला हैं।
क्या नीला पीला लाल गुलाबी क्या धोला क्या काला है।। सब खेल बना है मूरतका यह नजर तुझे जो आता है ॥ अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है ॥३॥
क्या फूल हजारी फुलवारी क्या सुंदर केशर क्यारी है। क्या गैंदा मरवा मौलसरी क्या जुई चम्बेली प्यारी है। क्या लहा मलमलं बेल जरी क्या खद्दर धोती सारी है ।।
क्या खट्टा मीठा तेज कसैला क्या कड़वा क्या खारी है ।। सब खेल बना है मूरतका यह नजर तुझे जो आता है ॥ अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरत से घबराता है ॥ ४ ॥ क्या लालच गुस्सा नफरत है क्या दशा फरेव औरमक्कारी॥ क्या रहम मोहब्बत कुलफत कीना और तआस्सुब अय्यारी।। गो सब माहे की सूरत हैं है रूह सभी सेती नियारी ॥ पर न्यामत जैसी देखे मूरत वेसा अप्सर पड़े कारी ।। । सब खेल बना है मूरतको यह नज़र तुझे जो आता है। अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है ।।५।।
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चाल-कहां ले जाऊ दित दोनो जहां में इसकी मुशकिल है। दिल दुनिया कैसी कारगर हर शय की सूरत है।
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(७.) खयाले नेको बद होनेका बाइस एक मूरत है ॥ १॥ कहीं है यार की मूरत कहीं दुशमन की मूरत है। कहीं दूल्हा की मूरत है कहीं दुलहन की मूरत है ॥२॥ कहीं ज़ालिमकी मूरत है कहीं आदिलकी मूरत है ॥ कहीं शाहो गदा आलिम कहीं जाहिल की मूरत है ॥ ३॥ शहीदों की हजारों मूरतें दुनियामें कायम हैं। सती परहेज़ गारोंकी कहीं आविद की मूरत है ॥ ४ ॥ जुदागाना असर दिलपर हर इक मूरत का होता है ॥ भला फिर किसतरह कहतेहो यह नाकाम मूरत है ॥ ५॥ तार बी में डोट और बार दो आवाज कायम हैं॥ हैं सब बेजान पर मतलब रसानी की तो सरत है॥६॥ घड़ी की सूइयां टुकड़े हैं लोहेके बजाहिर गो।। मगर थाइमके बतलानेकी यह भी एक सूरत है ॥ ७॥ हरी झंडी लाल झंडी सिरफ कपड़ेकी धज्जी हैं । . मगर गाड़ी,रोकनेकी चलानेकी तो सूरत है ॥८॥ . ज़रा झंडीकी गलतीसे हज़ारों खेत रहते हैं। ट्रेनोंके बचाने और लड़ानेकी वह सूरत है ॥ ९ ॥ रंगी चिट्ठी फटा कारड वह गो कागज़के टुकड़े हैं। हंसाने और रुलानेकी तो काफी एक सूरत है ॥ १०॥ नोट और दर्शनी हुंडी किसीके हाथका पर्चा ॥ कहो नकदी दिलानेकी यह क्या आसान सूरत है॥ ११ ॥ यह गो बुनियादका पत्थर सिरफ पत्थर का टुकड़ा है ।।
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(८) मगर लाखों बरसकी यादगारी की तो सूरत है ।। १२ ।। | यूनियन जैकको लाखों झुकादेते हैं सर अपना ॥ है गो कपड़ेका टुकड़ा पर हकूमतकी तो सूरत है ॥ १३ ॥ वेद अंजील और कुर आन गो कागजके पर्चे हैं। मगर इक धर्मका रस्ता बतानेकी तो सूरत है ॥ १४ ॥ आबे जमजम आबे कोसर आबे गंगाको आखोंसे ॥ लगाते किस लिये हो वह भी इक माद्दे की सूरत है । १५॥ गरज़ जितने निशां दुनिया में अपना काम करते हैं। गो सब माहे की मूरत हैं मगर मतलबकी सूरत है।॥ १६॥ बिना मूरतके दुनिया में नहीं कोई काम चल सकता। न्यायमत ध्यान करनेकी भी कारण एक मूरत है ॥ १७॥
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चाल-कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में है। कौन कहता है कि बिलकुल बे असर तसबीर है। बल्के जादू जिसको कहते हैं यही तसबीर है ॥ १॥ राय पदमोत्तर को जिसने था दीवाना करदिया। देखलो वह द्रोपदीकी कागजी तसवीर है ॥२॥ सच कहो आखोंमें आजातेहैं आंसू या नहीं ।। सामने जिसदम हकीकतकी कोई तसवीर है ॥३॥ जोश आजाता है दूशासनपे क्यों हर एकको ।। द्रोपदीके चीरकी जब देखता तसवीर है ।। ४ ॥ | छोड़कर राजोंको संजुक्ताने स्वम्बरके विषे ॥
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हार गल डाला जहां चौहानकी तसवीर है ॥ ५ ॥ खिंच गई तलवार बस जयचन्द पि राज में ॥ खेत लाखोंका पड़ा बाइस यही तसवीर है ॥ ६ ॥ न्यायमत अच्छी बुरी तसवीर में तासीर है ॥ जो असर करती नहीं वह कौनसी तसवीर है ॥ ७ ॥
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चाल-कौन कहता है कि मैं तेरे सरीदारों में हू ।। सार दुनियामें अगर कुछ है तो है बैरागता॥ तेरी मूरतसे प्रभू होती अयां बैरागता ॥१॥ हमने देखी हैं हजारों मूरतें संसारमें ॥ पर तुम्हारी सी कहीं पाई नहीं बैरागता ॥२॥ नाकपर आकरके ठैरी है जो आखाँकी निगाह । साफ यह दर्शा रही है आपकी बैरागता ॥ ३ ॥ आतम अनुभव और निजानन्द रसं हो पट देखकर ॥ आप परका भेद दिखलाती तेरी बैरागता ॥ ४ ॥ मोक्षका मारग बताती बीतरागी भावसे ॥ ध्यानका नक्शा जमाती है तेरी बैरागता ॥ ५॥ शील संजम दान तप विज्ञान सब कुछ है यही ।। बस निजात होनेका ज़रिया है यही बैरागता ॥ ६ ॥ न्यायमत दिलमें न हो रगवत ननफरत गैर से ॥ गर असर कुछ हो तो हो पैदा तेरी बैरागता ॥७॥
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चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है। दरश जिनराजकी मूरतका पाए जिसका जी चाहे ॥ भाव बैरागका दिलमें जमाए जिसका जी चाहे ॥ १॥ विषयका रागका देखो नहीं कोई निशां इसमें । शुवा जो दिलमें हो आकर मिटाए जिसका जी चाहे ॥२॥ ज़रा दर्शनसे हो बैरागता पैदा तेरे दिलमें ।। अगर निश्चय नहीं हो आज़माए जिसका जी चाहे ॥३॥ किसीके कहने सुन्नेकी नहीं परवाः हमें न्यामत || कोई सौ बात गर झूटी बनाए जिसका जी चाहे ॥ ४ ॥
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चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसको मुशकिल है ॥ भाव बैराग दीवे जो मूरत हो तो ऐसी हो॥ न रागी हो न देषी हो जो सूरत हो तो ऐसी हो ॥१॥ जिसे देखेसे पैदा दिलमें हो अनुभव निजातमका ॥ ख परका भेद पर्काशे जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥ २॥ - न बस्तर हो न शस्तर हो नहीं हो संगमें नारी ॥ न प्रिग्रह हो न बाहन हो जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥३॥ दिगम्बर रूप पद्मासन बिगत दूषन निराभूषन ॥ यही अरिहंतकी मूरत जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥ ४॥ नज़र आखोंकी नाशाकी अनी परसे गुज़रती हो । | सरासर शान्त सूरत हो जो मूरत हो तो ऐसी हो ॥.५ ॥
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(११) सरब जग जीव हितकारी छबी बैराग सुखकारी ।। न्यायमत जाए बलिहारी जो सूरत हो तो ऐसी हो ॥ ६ ॥
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(दोहा) पर्म हितेपी जगतके बीत राग भगवान ॥ सत वक्ता सर्वज्ञ नित नमत होत कल्याण ॥ १ ॥ कारज कोई जगतमें बिनं मूरत नहीं होय ॥ लघु दीरघ अच्छा बुरा इस बिन बने न कोय ॥२॥ जल वायू मिट्टी अगन तारे चन्द अरु भान ॥ पांचों इन्द्री और मन है सब मूरतिवान.॥ ३ ॥ परिणामों के बदलमें प्रतिमा कारण जान ॥ मूरति मंडनके विषे हैं लाखों पर्माण ॥ ४ ॥ जो नर हैं अज्ञान बश प्रतिमासे प्रतिकूल ।। पक्ष छोड़कर देखलें है यह उनकी भूल ॥ ५॥ स्यादवाद निक्षेप अरु नय प्रमाण दीय ॥ सतासतय निर्णय करो जो भ्रम तिमर नसाय ॥ ६ ॥ न्यामत सत्य विचार कर जग जीवन हित काज ।। लिख युक्ती दृष्टान्तदे मूरति मंडन आज ॥७॥
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(द्वितीय भाग-मूर्ति मंडन पत्र)
(नोट ) अप्रिल सन् १९२० ( वैसाख सम्बत् १९७७ ) में लाला पन्नालाल
वोहरा बजरंगगढ निवामी (रियासत गवालियर ) का एक पत्र
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लाला विहारीलाल गुना ज्ञावनी वाले की मार्फत हमारे पास थाया था उसमें चार प्रदन किये थे:
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(१)-प्रतिमा स्थापन क्यों प्रावश्यकीय है और इससे क्या लाभ है।
आर्य समाज कहती है कि निराकार ईश्वर की मूर्ति होही नहीं
सकती-इसका क्या उत्तर है । (२)-प्रतिमा पूजन केले होनी चाहिये ॥ (३)-हमारा स्थान और हमारा परिवार मादि किस किप्त प्रकार है।
सो पूर्ण रूप से बताया जावे। (४)-अगर शक्ती हो तो उत्तर करिता रूप पदों में दिया जावे।
इन चारों प्रश्नों का जो उत्तर २४ मई सन् १९२० को १३ पदों में दिये गये। थे-वहही उत्तर सर्व जन हितार्थ नीचे लिखे जाते हैं। प्रणमूं श्री जिनेन्द्रको बीतराग सुखकंद ।। हितकारी सर्वज्ञ नित सत चित पर्मानन्द ॥ १॥ पन्नालालजी बोहरे सहित अनेक समाज॥ • बजरंगगढ़में बसतहो मध्य गवालियर राज ॥ २॥ जय जिनेन्द्र तुमको लिखे न्यामत अग्गरवार ।। नगर हमारा जानियो हांसी और हिसार ॥ ३ ॥ पत्र आपका आइयो हस्त बिहारीलाल ॥ प्रश्न आपके बांच कर जान लियो सब हाल ॥ ४ ॥ धन्य आपकी चतुर्ता धन्य प्रेम सुविचार ।। प्रश्नाका उत्तर लिखू निज बुद्धा अनुसार ॥ ५॥ पहले माया नीवके दकिं कुछ भेद ।। इन दोके जाने बिना मिटे नहीं भ्रम खेद ॥६॥
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( १३ )
पक्षपातको छोड़कर करियो जरा बिचार || सत मारग निश्चय करो उतरो भवदधि पार ॥ ७ ॥
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जीन और प्रकृति का विवेचन ॥
चाल - कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है ॥ अजब दुनिया की हालत है अजब यह माजरा देखा || जिसे देखा उसे वहम गुमांमें सुन्तला देखा ॥ १ ॥ प्रकृती जीव में अनमेल सा झगड़ा पड़ा देखा || अनादी कालसे लेकिन है दोनों को मिला देखा ॥ २ ॥ दोनों का हमने वस निजाग जावजा देखा || कहीं इन्सां कहीं वां कहीं शाहो गदा देखा ॥ ३ ॥ यही है आत्मा जिसको अश्वमें रूह कहते हैं ॥ ज्ञान मय सत् चिदानन्द रूप लाखों नाम लेते हैं ॥ ४ ॥ कहीं माद्दा कहीं माया कहीं मैटर कहीं पुदगल || यह सारे नाम हैं उसके जिसे प्रकृती कहते हैं । ५ ॥ वशकले दूध पानी गो मिले आपसमें रहते हैं | मगर दर अस्ल यह दोनों जुदा हर इकसे रहते हैं ॥ ६ ॥ करम कहते हैं जिसको वह यही बदकार माया है ॥ इसने सारी दुनिया में अजब अंधेर छाया है ॥ ७ ॥ यही तो आतमाको भर्मके चक्कर में लाया है || हरीहर नर सुरासुर सबको दीवाना बनाया है ॥ ८ ॥
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(१४) पशु पक्षी चराचर सबको फंदेमें फंसाया है । निराला ढंग कर्मों का अजबनकशा दिखाया है ॥९॥ सदा स्वर्गों में भी हरगिज नहीं इस जीवको कल है ।। नरकमें हर तरफ हरदम मची दिनरात कलकल है ॥ १० ॥ मनुष गति में भी देखो जीवको नहीं चैन इकपल है । मौतका बज रहा डंका दमादम और चल चल है ॥ ११ ॥ कहां जाएं कहो न्यामत बड़ी दुनियामें. मुशकिल है।। सभी संसार ब्याकुल है न यहां कलहै न वहां कलहै ॥ १२ ॥
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ईश्वर का स्वरूप ॥
___ चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनों जहां में इसकी मुशकिल है ॥ सुखी वह हैं जिन्होंने इस करम के जाल को तोड़ा। जगत जंजालको छोड़ा सकल दुनिया से मुंह मोड़ा ॥ १॥ बने आतमसे परमातम शिवासुन्दर से नेह जोड़ा॥ बताया मोक्षका मारग कुमारगका भरम तोड़ा ॥ २ ॥ वही ईश्वर वही परमातमा हक्क गोड कुछ कहलो॥ हजारों नाम हैं उसके जो कुछ कहिये सो है थोड़ा.॥३॥ वह जीवन मुक्तहै सर्वज्ञ है और बीतरागी है । हितोपदेशी परोपकारी है सब बिषयोंका त्यागी है।॥ ४ ॥ न कपटी है न मानी है न क्रोधी है न लोभी है। न दुशमन है न हामी है न देषी है न रागी है॥५॥
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न्यामत जिसकी उस परमातमासे प्रीत लागी है। उसीके दिलमें समझो ज्ञानकी बस जोत जागी है ॥६॥
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मूर्ति स्थापना करने की ज़रूरत ॥
चाल-कहां लेजाऊं दिल दोनों जहां में इसकी मुशफिल है ॥ मुनासिब है उसी भगवंतको मस्तक नमावें हम ।। उसीके ध्यानका फोटो जरा हिर्दयमें लावें हम ॥ १॥ बिना मूरत किसीका ध्यान दिलमें हो नहीं सकता ॥ तो उसकी शान्त मुद्राकी कोई मूरत बनावें हम ॥२॥ . किया है जिसने हित उपदेश दे उपकार दुनियाका ॥ बिनयसे क्यों न उसकी मूर्तिको सर झुकावें हम ॥३॥ करें सिजदा अगर पत्थर समझकर तबतो काफर हैं। अगर रहबर समझ करके करें सिजदा तो क्या डर है ॥ ४॥ मुसलमां जाके सिजदा करते हैं मकेमें ईश्वर को ॥ बनी है स्लीबकी मूरत जहां ईसाका मंदिर है ॥५॥ आर्य मंदिरों में भी शबीः दयानंद स्वामी की । रखी समझा बिनय करनेकी यह तदबीर बेहतर है ॥ ६॥ जुदागाना तरीके हैं बिनय करनेके दुनियामें ।। कहीं कनें कहीं फोटो कहीं भगवतकी मूरत है ॥ ७॥ || कहीं टोपी उतारे हैं कहीं जूता उतारे हैं।
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कहीं मस्तक पसारे सब अदच करने की सूरत है।॥ ८॥ कहीं पूजा कहीं घंटा कहीं फूलोंका अर्चन है ॥ कहीं अक्षत कहीं पर जल कहीं कुछ और सूरत है ॥ ९॥ इसी हेतु से उस भगवंतकी मूरत बनाते हैं । बिनय करके दरब अरिहंत चर्णों में चढ़ाते हैं ॥ १० ॥ देख बैराग मुद्राको भेद विज्ञान होता है । निजानन्द रसको पीकरके परम आनन्द पाते हैं ॥ ११ ॥ मगन हो न्यायमत ईश्वरका जब धनबाद गाते हैं । इधर आनन्द पाते हैं उधर घंटा बजाते हैं ॥१२॥
प्रयोश मूर्तिका निषेध ॥
चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसको मुशकिल है ॥ वह अज्ञानी है जो ईश्वरको भी रागी बताते हैं । सुलानेको जगानेको अगर घंटा बजाते हैं।॥ १ ॥ हैं गल्ती पर जो ईश्वरके लिये भोजन बनाते हैं। मान कर फिर उसे परशाद भोग अपना लगाते हैं ॥ २ ॥ हैं मूरख वह भी जो ईश्वरको फूलों में बताते हैं। उसे हर जा पवन जल आग पत्थरमें जिताते हैं ॥३॥ जो अज्ञानी की बातें मानकर चक्करमें आते हैं ।।। बिना हेतुके ईश्वरको सरब ब्यापी बताते हैं॥४॥
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(१७) निराकार और सरख ब्यापी जो ईश्वरको बताते हैं। उन्हींसे पूछिये कैसे उन्हें चंदन चढ़ाते हैं ॥ ५॥ दिखा हाउका डर न्यामत वह लोगोंको डराते हैं । चिदानन्द रूप ईश्वरको जो जग करता बताते हैं ॥ ६॥
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ईश्वरका शुद्ध लक्षण।
चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है । जैनमत ऐसा ईश्वरका नहीं लक्षण जिताता है ।। | ठीक जो उसका लक्षण है सुनो आगे बताता है ॥१॥ न वह घट घटमें जाता है मगर घट घटका ज्ञाता है । न करता है न हरता आप आपेमें समाता है ॥२॥ निरंजन निर्विकारी है निजानंद रस विहारी है ।। वह जीवन मुक्त है और सबका हित उपदेश दाता है ॥३॥ मारता है न मरता है न फिर अवतार धरता है। न्यायमत सारे झगड़ोंसे सरासर छूट जाता है ॥ ४॥
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जैनमतके अनुसार पूजा करनेका माशय और उसका भाव और विधि पूजा का प्राशय यही है कि भगवत के गुणों में राग और संसारी पदार्थों में घेराग भाव पैदा हो।
(सम्पूर्ण पूजा जयमाल मादि सहित अलग छपी है देखो पुस्तक अंक ४जिनेन्द्र पूजा मूल्य)
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( १८ )
चात-हाय के पिया मोहे देश बुखालो हिन्द में जी घबरावत है ॥
जिनेन्द्र पूजा ॥
अर्घस्थापना (दोहा) (१)
परम जोति परमातमा परम ज्ञान पवन ॥ बन्दूं परमानन्द मय घट घट अंतर लीन ॥ १ ॥ तुमने हित उपदेश किया जगत उपकार || सो तुम भक्ती और बिनय है सबको स्वीकार ॥ २ ॥ इष्ट वस्तु संसारकी जानी सभी असार ||
व्यर्थ जानके डारहं भगवत चरण मंझार ॥ ३ ॥
जलसे पूजा (२)
स्वामी तू हितंकारी दुख परहारी चर्णों में सीस नमावत हूं ॥ टेक ॥ मलीन बस्तुको उज्जल यह नीर करता है । ' पवित्र करनेका गो जल स्वभाव धरता है । ' हरी न कर्मों की कुछ कालिमा मगर मेरी || 'न आत्माका कोई काम इससे सरता है | सोही जान निरर्थक यह जल तेरे चर्णोंके आगे चढ़ावत हूँ | स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चर्णों में सीस नमावतहूं || चन्दन से - पूजा - (३)
तपत बुझाता है चन्दन बदनकी गरमी में || सभी लगाते हैं घिस घिस बदनपे गरमी में |
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मगर मिटी है न अबतक अनादि से मेरी॥
तपत कषायोंकी बिषियोंकी सर्दि गरमी में ॥ स्वामी जान निरर्थक चन्दन तेरे चोंके आगे चढ़ावतहूं। स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चों में सीस नमावतहूं।
अक्षत से पूजा (४) यह अक्षतोंका भरा थाल जगमगाता है। मुझे बनावेगा अक्षय खयाल आता है । मगर मिला है न अबतक तो अक्षय पद स्वामी ॥
यह झूटा नामको अक्षत यूंही कहता है । सोही जान मिरर्थक अक्षत तेरे चर्णों के आगे चढ़ावतहूं ॥ स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चर्गों में सीस नमावत हूं।
पुष्प से पूजा (५) यकीं था फूलों की कलियां सुगंधसे पूरित ॥ हरेंगी कामको यह बनके बानकी सूरत । मगर न आजतलक कामदेवको जीता।
बनी है कलियोंकी झूटी ही बानकी सूरत ।। सोही पुष्प निरर्थक जानके तेरे चर्णों के आगे चढ़ावत हैं। स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चर्गों में सीस नमावत हूं।
नैवेद्य से पूजा (६) नैवेद्य आदि पदारथमें प्राण था मेरा ॥ . . क्षुधाको दूर करेगी यह ध्यान था मेरा ।।
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(२०) अनादि कालसे अबतक मगर क्षुधा मेरी ।।
नहीं हरी है सो झूटा गुमान था मेरा ॥ सोही जान निरर्थक नेवज तेरे चर्णो के आगे चढ़ावत हूं। स्वामी तू हितकारी दुख पर हारी चों में सीस नमावत हूं।
दीप से पूजा (७) तिमरका जगमें यह दीपक बिनाश करता है । अंधेरी रातमें बेशक प्रकाश करता है ।। तिमर अज्ञानको लेकिन नहीं हरा मेरे ।
अंधेर मोह अभी मनमें वास करता है ।। सोही जान निरर्थक दीपक तेरे चोंके आगे चढ़ावत हूं। स्वामी तू हितकारी दुख पर हारी चों में सीस नमावत हूं।
धूप से पूजा (८) अगन जलाती है चंदन कपूर सुंदरको॥ हवनमें धूप सुगंधित करे है मंदिरको। मगर जलाए नहीं अबतलक करम मेरे ।।
करूंगा फैर मैं क्या धूपको वसुंधरको। सोही धूप निरर्थक जानके तेरे चर्गों के आगे चढ़ावत हूं। स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चों में सीस नमावंत हूं।
फलसे पूजा (९) अनेक फल हैं अवश्य यह तो देंगे फल मुझको॥ खयाल था कि श्रीफल करे सुफल मुझको।
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( २१ )
मगर मिला है न अब तक तो मोक्ष फल मुझको ॥ सो ऐसे नामके फल चाहिये न फल मुझको || सोही जान निरर्थक श्रीफल तेरे चर्णोंके आगे चढ़ावत हूं | स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चर्णों में सीस नमावत हूं ॥ अर्घ (१०)
आठों द्रव्योंको सुखकारी मैं समझता था | करेंगे कुछ मेरा उपकार मैं समझता था | मगर हुवा है न कल्याण मेरी आतमका ॥ सो सब असार हैं-गो सार मैं समझता था |
सोही जान निरर्थक अर्ध तुम्हारे चर्णोंके आगे चढ़ावत हूँ !! स्वामी तू हितकारी दुख पर हारी चर्णों में सीस नमावत हूं || आशीर्वाद (दोहा (११)
जल फल आदि बस्तुमें मम परणति नहीं जाय ॥ तज पर परणति न्यायमत निज परणति में आय ॥ १ ॥ बिन इच्छा शुभ भावसे जो पूजे जिनराय || पुन्य बढ़े संसार में पाप करम नश जाय ॥ २ ॥ न्यामत अर्चन को बिधी कही श्री भगवान || इस बिध जो पूजा करे हे स्वर्ग निर्वाण ॥ ३ ॥
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जीवकी शुद्ध दशा और मरिहंत पदकी प्राप्ति ॥
चाल - गुल मत काटे भरे बागवां गुलसे गुलको हंसनेदे || लावनी ॥
तीन अवस्था हैं चेतनकी यूँ भगवत फरमाते हैं |
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( २२ ) शुद्ध शुभाशुभ इनहोंका हाल तुम्हें बतलाते हैं ॥ १ ॥ अशुभ अवस्था राग द्वेषसे नाना पाप कमाते हैं ||: ' जग माया के फंदमें फंस दुर्गति में जाते हैं ॥ २ ॥ पूजा दानशील तप करके जो नर पुन्य लहाते हैं ॥ शुभ मारग से वही जा स्वर्गों में सुख पाते हैं ॥ ३ ॥ पाप पुन्य दोनोंको त्याग जो आतम ध्यान लगाते हैं | पर परणतिको त्याग निज परणतिमें लगजाते हैं ॥ ४ ॥ शुद्ध अवस्था नाम इसीका है भगवत जितलाते हैं || कर्म घातिया नाश कर अर्हत पदवी पाते हैं ॥ ५ ॥ अपने केवल ज्ञान आर्से में सब विश्व लखाते हैं | जग जीवनको दुखी लख धर्मं उपदेश सुनाते हैं ॥ ६ ॥ निश्चय और व्यवहार रूप से शिव मारग दर्शाते हैं । बीतराग सर्वज्ञ हितकर परमातम कहलाते हैं ॥ ७ ॥ फेर अघाती कर्म - काटकर सिद्ध परम पद पाते हैं ॥ सत्त चिदानंद रूप हो फिर जगमें नहीं आतें हैं || दे ॥ अर्हत हितकारी की मूरतको जो सीस निवाते हैं ॥ न्यामत वहही जगत सुख भोग मुकत पद पाते हैं ॥ ९ ॥
૧૮
पत्रकी अन्तिम प्रार्थना ॥
चाल - ( लावनी ) गुल मत काटे अरे बागवां गुलसे गुलको हंसनेदे ॥ पन्नालालजी पढ़ पत्रीको जिन पूजनमें ध्यान धरो ॥ - भर्म भावको छोड़कर निज आतम केल्याण करो ॥ १ ॥
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(.२३) और अगर कोई शंका हो मत मनमें अर्मान करो॥ सेठ विहारीलालको लिख भेजो मत कान करो ॥२॥ जैसी हमरी बुद्धी उत्तर दूंगा इत्मीनान करो. . जिन शासनके कहूं अनुकूल ठीक शंर्धान करो॥३॥ गर मेरे उत्तरको निर्बल बेयुक्ती अनुमान करो ॥ . तो विशेष ज्ञानीसे अपनी मुशकिलको आसान करो॥४॥ एक प्रश्न और लिखा कि अपने कुलका भेद बयान करो ॥ सोही सुनिये कहे न्यामत टुक हिर्दय ध्यान धरो॥५॥ .
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१२.
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न्यामत सिंह जनी अग्रवाल (कपी) सेक्रेटरी डिस्ट्रिक्ट वोर्ड हिसार (पजाब) || को वशायली और स्थान व परिवारका परिचय और तीसरे प्रश्नका उत्तर ।।
चाल-(लायनी ) गुल मत काटे मेरे वागवां गुलसे गुलको हसनेदे। अग्रवालहै जात हमारी और गर गोत हमारा है।। .. राखीवाले जानियो वंश और व्योंक हमारा है।।१॥ . हांसी नगर हिसार जिला सूबा पंजाब हमारा है।। दिल्ली यहांसे डेढ़सौ (१५६) मील यही बिस्तारा है ॥२॥ हरियाना है देश श्री कुरुक्षेत्र सुनाम पियारा है। जहां कृश्नापांडव कोरखने भारत युद्ध विचारा है ॥ ३॥ । अग्रवाल उतपत स्थान अग्रोहा ग्राम पियारा है ।। .. .. जो हिसारसे जानियो दूर कोस दस बारा है ॥ ४ ॥
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( २४ ) उग्रसेन राजाके कुलमें हम सबका विस्तारा है | दिल्ली प्रान्त में अग्रवालोंका वल अधिकारा है ।। ५ ॥ कृश्नलाल मह पिता व मंगलसैन सुपिता हमारा है || विद्यमान है पिता मेरू तुल्य हमें सहारा है ॥ ६ ॥ माता मोहनि देवी जाको नित्य प्रणाम हमारा है | चार बहन और शिखरचन्द जी भ्राता अनुजं पियारा है ||७|| वर्तमान में वास हमारा शहर हिसार मंझारा है ||
हांसी नगर में जनम भूमि घर वार हमारा है ॥ ८ ॥ पिता भाई सब मिलकर रहते सवविध आनंदकारा है || जिला बोर्ड अनुशासन में हम पद मंत्रिका धारा है ॥ ९ ॥ रघुबीर सिंह अरु सरूप सिंह छोटा राजकुमारा है | हैं यह तीनों पुत्र हमारे जैन धरम चित धारा है ॥ १० ॥ जयदेवी है नारी हमरी शील वृत चितधारा है । पुत्री तीन कला - केवली छोटी नाम सितारा है ॥ ११ ॥ धनकुमार जयदेव - पवन और चौथा विजय कुमारा है | पौत्र हमारे समझलो यह हमरा परिवारा है ॥ १२ ॥ शिखरचन्द के चार पुत्र त्रिय कन्या जन्म आधारा है || कमलश्री गिरनारी लीलावती नाम उच्चारा है ॥ १३ ॥ सुरेंद्रकुमार पर्काशचन्द कैलाशचन्द सुत प्यारा है | चौथा सुत सुलतान सिंह-लघु भाई का परिवारा है ॥ १४ ॥ न्यामत जैन धरम सुखकारी जो कुल धर्म हमारा है ॥ यह छोटा सा समझ लीजे कुल बंश हमारा है ॥ १५ ॥
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(२५)
लाला बिहारीलाल का परिचय जिनकी मारफत पन आया था ।
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(दोहा) | मित्र विहारीलालका अव कुछ वर्ण हाल । पत्र जिन्होंकी मारफत भेजा पन्नालाल ॥ १ ॥ गुना सहोरा जानियो उनका शुभ अस्थान ॥ राज ग्वालियरका जहां देश सुराजिस्थान ।। २ ।। कुंजलालके जानियो चार पुत्र सुखकार ।। सदा लीन जिनधर्म में और जात परवार॥ ३॥ लखमीचन्द अरु हुकमचन्द अरु तीजा शिवलाल ॥ सबसे छोटा जानियो चतुर बिहारीलाल ॥ ४॥
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भी सम्मेद शिखर जी पर लाला बिहारीलाल से मिलनेका कारण और उनको हिसार में हैराने का कारगा । नोट-सम्बत् १६७४ विकरम माघ के महीने में हमने सम के साथ श्री
सम्मेदाचल परवत की यात्रा करी छोर वहां पर लाला बिहारीलाल हुकमचन्द व लखमीचन्द तीनों भाइयो से हमारा मिलना हुवा और उनकी इच्छानुसार उनके कारोबार का इन्तजाम हिसार में किया गया सो वह हिसार में माकर कारोबार करने लगे।
घाल-गुल मन काटे अरे वागगं गुलसे गुलको हसने है ।। पुन्य उदयसे श्री सम्मेदाचाल बन्दन हम किया विचार॥ ।
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(२६) हिसार सेती बना संघ चले सँग लेकर परिवार ॥१॥ उन्निससौ चुहत्तर विक्रम माघ महीना शुभदिन वार ।। करी बंदना हरप धर मुखसे नोले जय जयकार ॥२॥ लाला मंगलसैन अरु लाला फकीरचंद अरु गुलशनराय ॥ शेरसिंह जी जैनीलाल मिले सब हर्प वढाय ।।३।। लाला शिवदियालसिंह जी अस्कूलों के डी आई। हम सब मिलकर करी यात्रा परवतकी मन लाई ॥४॥ . इस अवसर पर हुकमचन्द लखमिचन्द और बिहारीलाल ॥ मिले-सभोंने करी भगवनकी पूजा हो खुशहाल ॥५॥ धरम ध्यानमें लीन देखकर आपसमें अति प्रेम हुवा ।। इन तीनोंको हिसारमें लानेका इकरार किया ॥६॥ तीनों भाई शुभ महूर्तमें आए चलकर नगर हिसार ।। धन सम्पति दे यहीं पर थाप दिया उनका व्यापार ।। ७ ॥ मित्र विहारीलाल चतुर थे और जिनशासन के अनुसार ॥ | निश दिन हमरे संगमें करते थे नित तत्व विचार ॥ ८ ॥ ।। सज्जन और धर्मी जनका मिलना जगमें सुखकारी है । धर्म ध्यान तत्वोंकी चर्चा न्यामत आनन्दकारी है ।। ९ ॥
२२ पत्रकी समाप्ति।
दोहा॥
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नाम विहारीलालके पन्नालाल परवार !!
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( २७ ) शंक निवारण कारणे पत्र लिखे दो चार ॥ १ ॥ मित्र बिहारीलालजी हमसे किया बिचार || सो हम यह उत्तर लिखा निज बुद्धि अनुसार ॥ २ ॥ सत्तर सात उन्नीस सौ (१९७७) जानो बिक्रम साल ॥ न्यामत सिंह पत्री लिखी हस्त बिहारीलाल ॥ ३ ॥ आद अन्त जिनराजका धर्म सदा सुखकार || धर्म बिना इस जीवका कोई नहीं हितकार ॥ ४ ॥
(तृतीय भाग इतिहासिक व सर्वोपयोगी भजन)
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चाल - कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में हू ॥
कौन कहता है अरे चेतन तू होशियारों में है | तू निपट नादान मूरख और नाकारों में है ॥ १ ॥ करता है पेचीदगी लोटन कबूतर की तरह || साफ जाहिर है कि तू अय्यार मक्कारों में है ॥ २ ॥ है दयाका रहमका नामो निशां तुझमें नहीं || तू दिलाजारों में है जालिम सितमगारों में है ॥ ३ ॥ न्हाके डाले खाक अपने तनपे हाथी जिसतरह ! इस तरह तू भी दीवाना ना समझदारों में है ॥ ४॥ जिस तरह रेशनका कीड़ा अपने तारों में फंसे ॥ देखले तूभी फंसा खुद कर्म के तारों में है ॥ ५ ॥
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(२८) दिल लगाने की नहीं दुनिया कोई चीज है। फिर जरा बतला तो तू किसके तलबगारों में है ।।६ ॥. तू न आबी है न खाकी आतशी बादी नहीं ॥ , किसलिये फिर, तू कहो इनके खरीदारों में हूं। ७ ॥ चन्द दानों के लिए है कैद बन्दर की तरह ॥ . मोह का परदा हटा नाहक गिरिफतारों में है ॥८॥ अपनी नादानी से जो चलता है उल्टी चाल तू ॥ पा सजा रोता है क्यों जब तू सजावारों में है ॥ ९॥ कर मिलान अपना ज़रा जिनराज की तसवीर से। है वही नकशा तेरा जो कुछ कि अवतारों में है ।। १० ।। | भूल से है मुन्तला दुनियां के आजारों में तू ॥ तू न बीमारों में है और ना खतावारों में है ॥ ११ ॥ तूही करता तूही हरता भोगता कर्मों का तू ॥ अपने हाथों से बना तू आप बीमारों में है ।। १२ ।। है बिलाशक न्यायमत तू ज्ञानमय आनन्दमय ।। अपनी गल्ती से बना नाहक गुन्हेगारों में है ॥१३॥
चाल-सभा में मेरा तूही तो करेगा निस्तारा॥
. (चाल अलीबख्श रिवाड़ी वाले की) | दुनियां में तेरा धर्म ही करेगा निस्तारा ॥ टेक | द्रुपद सती का चीर बढ़ाया-श्रीपाल का कुष्ट हटाया।
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अग्नि शीतल नीर बनाया-सिया को आन उभारा ||तेरा०||१|| शूली टूट भया सिंघासन गए मुकत श्रीसेठ सुदर्शन ॥ ली मारीच जो सम्यकदर्शन- तिर्थंकर पद धारा । तेरा ॥२॥ धर्म सदा जगमें सुखकारी - दुखहारी कलमल परहारी || न्यामत धर्म जगत हितकारी- पाप बिमोचन हारी || तेरा ० ||३||
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चाल -- ( राग आसावरी ) काहे मिचावे शोर पपैय्या ॥
काहे रहो शुध भूल चेतन || काहे रहो शुध भूल || टेक ॥ आंव हेत तैं बाग़ लगायो फल चाखनको जी ललचायो ॥ वो दिये पेड़ बंबूल | चेतन० ॥ १ ॥
झूटे देव गुरू नित माने पर परणति निज परणति जाने ॥ समकित से प्रतिकूल | चेतन० ॥ २ ॥
निशदिन भोग बिषयमें राचा काम क्रोध माया मध माचा || बोवत कांटे शूल | चेतन० ॥ ३ ॥
चेतनको तैं जड़वत जाना और जड़को चेतन कर माना ॥ ऐसी समझ सर धूल | चेतन० ॥ ४ ॥
शुभको त्याग अशुभ चित दीना - न्यामत सौदा ऐसा कौना || व्याज रहा ना मूल ॥ चेतन० ॥ ५ ॥
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( चाल क़वाली ) - सर रखदिया हमने दरे जानान समझ कर ॥
अब लेलिया शर्ण तेरा हितकारी समझकर - दुखहारी समझकर ।। हितकारी समझकर तुझे अविकारी समझकर सुखकारीसमझकर १ अबतक तो कषायों में है दिल अपना लगाया-विषयों में फंसाया || अबतज दिये सारे महा दुखकारी समझकर - अधकारी समझकर २विषियोंका भोग करते तो उम्रे गुज़र गई- सदियें गुज़र गई ॥ अबतजदिये मैंने सभी जल खारी समझकर बीमारी समझकर३ नादानी से हिंसा को कभी पाप न समझा-संताप न समझा ॥ न्यामत इसे अब छोड़दे दुखकारी समझकर भयकारीसमझकर ४
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( चाल वहरेतवील ) - कोई चातुर ऐसी सखी ना मिलो ॥
(बृद्ध बिवाह निषेध )
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अरे बूढ़े कहाँ तेरी अक्ल गईअबतो शादीकी तेरी उमरही नहीं ॥ काहे छोटीसी अबलाको बिधवा करे
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तेरे दिलमें दयाका असरही नहीं ॥ १ ॥ तेरी गरदन हिले मुख राल चले
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( ३१ )
तेरी सीधी तो होती कमरही नहीं ॥ कफनको लिये सरपे मौत खड़ी
देख क्या तुझको आती नजरही नहीं ॥ २ ॥
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मत भोग विलासकी आस करेमत भारतका पापी तू नाश करे || तूतो मरकर के दुरगतमें बास करेऐसी शादीका अच्छा समरही नहीं ॥ ३ ॥
भोग करते गए साठ साल तुझेहाए अब भी तो आता सबर ही नहीं || तेरा थर थर तो कांपे है सारा बदनदांत कोई भी आता नज़र ही नहीं ॥ ४ ॥ मत बूढ़ों की बच्चों की शादी करो - मत हिन्द की तुम बरबादी करो || कहे न्यामत बुढ़ापे में बचपन में तोभूलशादी का करना ज़िकर ही नहीं ॥ ५ ॥
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नोट- श्री प्रकलक जी और उनके छोटे भाई दुकलंक जी दोनों विद्या पढने के लिए चीन देश में गए थे- कुछ दिनों के बाद उन दोनों को जैनी मालूम करके राजा ने उनको करल करने का हुक्म देदिया—यह दोनों वहां से जान बचाकर भागे मगर पीछे से फौजने उनपर हमला किया-मव इस मुसीबत के समय में एक ऐसा अवसर भागया कि इन दोनों में से एक बच सकता था कि छोटे भाई की निसबत बडे भाई अकलक जी स्यादवाद रूप न्यायशास्त्र के विद्वान थे भौर
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(३२ ) जैन धर्म का प्रचार बखूबी कर सकते थे इस लिए धर्म की प्रभावना बढाने के लिए छोटा भाई बड़े भाई को बचाने और खुद
मरने के लिए तय्यार होगया और अपने भाई से इस तरह ' कहने लगा।
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चाल-कहां लेजाऊं दिल दोनों जहां में इसको मुशकिल है। जब आई चीनकी सैना कत्ल करनेको दोनोंको ॥ कहा दुकलंकने भाईसे तब यूं इल्तिजा करके । १॥ न कीजे भाई अब कुछ ग़म जरा भी मेरे मरनेका ॥ चले जावें यहांसे आप अपनी जां बचा करके ॥ २॥. अमर है आतमा दुकलंकको मरनेका डर क्या है । धरमकी रोशनी फैलादे तू भारत में जाकरके ॥ ३॥ मुझे मरने में राहत है मैं सच्चे दिलसे कहता हूं। श्री अकलंक भाईके चरण में सर झुका करके ॥ ४॥ बड़ा मिथ्यातका हिंसाका है परचार भारतमें ॥ हटादे भाई तू जिन धर्मकी अजमत दिखा करके ॥ ५॥ महोब्बत छोड़दे मेरी कि दुनिया चन्द रोजा है। धरमका काम कर जाकर मुसीबत भी उठा करके ।। ६॥ तमन्ना ज़िन्दगी की है नहीं स्वर्गों में जानकी॥ है ख्वाहिश हिन्दको धर्मी बनादे तू जगा करके ॥७॥ न्यायमत सबके दिलसे दूर होवे भाव हिंसाका ॥ दयामय धर्मका परकाश हो हिंसा हटा करके ॥ ८॥
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( चाल - भासावरी ) - काहे मिचावे शोर पपैया ॥
चेतन यूंही रह्यो भ्रम ठान ॥ टेक ॥
पर भावनको निजकर माने-निज परणति पर परणति जाने || छायो तिमर अज्ञान | चेतन० ॥ १ ॥
जैसे स्वान कांच के मांही-लख निज छाया करत लड़ाई || त्यों तू रह्यो दुख मान ॥ चेतन० ॥ २ ॥
ज्यों ज्योरी लख निश मंझधारा-माने ताही भुजंगमकारा || कांप रह्यो भय आन | चेतन० ॥ ३ ॥
मोह अविद्या के बश होके - निज सम्पति परमानन्द खोके ॥ हो रह्यो निपट अयान ॥ चेतनं० ॥ ४ ॥
न्यामत तज यह भूल अनारी - छांड़ो मोह महा दुखकारी ॥ होवे उदय हग भान | चेतन० ॥ ५ ॥
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( चाल बहरे तबील ) कोई चातुर ऐसी सखी ना मिली ॥ अरे मूरख तु भटका फिरे है कहांतुझे अच्छे बुरे की खबर ही नहीं || सरसे पाओं तक तू बदी से भरा -- काम नेकी का आता नज़र ही नहीं ॥ १ ॥ सब बुरी रीतियां एक दम दूर कर
( 5 )
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( ३४ )
चौधरी और पंचों की पर्वा न कर ॥ यह गरीबों पे हरगिज़ न करते नज़रइनके दिल में दया का असर ही नहीं ॥ २ ॥ व्यर्थ व्यय इस जमाने में अच्छा नहींप्यारे धन का लुटाना भी अच्छा नहीं || बनके कंगाल रहना भी अच्छा नहींऐसी बातों का अच्छा समर ही नहीं ॥ ३ ॥ ताश चौसर मिचाना भी अच्छा नहींखेल में दिन गुमाना भी अच्छा नहींखाली बैठके खाना भी अच्छा नहीं-
बिना उद्यमके होगा गुज़रही नहीं ॥ ४ ॥ धर्म रीति से कुछ धन कमाया करो - ध्यान विद्या में भी कुछ लगाया करो || दर्द दुखियोंका कुछतो वटाया करो -
न्यायमत क्या किसीका फिकरही नहीं ॥ ५ ॥
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चाल - कहां लेजाऊं दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है ॥ जैनमत होगया मुर्दा कोई अकसीर पैदाकरं ।। . उमास्वामी से और अकलंकसे तू बीर पैदाकर ॥ १ ॥ न्यायके फिल्सफा के शास्तर दुनियाको दिखलाकर ॥ जैनमतकी सदाक़त की ज़रा तासीर पैदाकर ॥२॥
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(३५) जो है ख्वाहिश रहे जिन्दा जनमत इस जमाने में | तो चकवावैन चंदरगुप्त से रणबीर पैदाकर ॥ ३ ॥ हटाना है तुझे गर जुल्मको हिंसाको दुनियासे ।। तो तू गोतम से कुन्दाचार्यसे महावीर पैदाकर ॥ ४ ॥ अगर है धर्मका कुछ जोश दिलम जैनमत वालो ।। तो न्यामत जैन कालिज की कोई तदवीर पैदाकर ॥ ५ ॥
३२ चाल-कहां लेजाऊ दिल दाना जा में इनकी मुशकिल है ॥ करमकी रेखम भी मेख बुधिजन मार सकते हैं । करम क्या है इन्हें पुरुपार्थसे संघार सकते हैं ॥ १ ॥ करम संचित बुरे गर हैं तो भाई इनका क्या डर है ।। बुरे एमालनामे को भी हम सूधार सकते हैं ।। २ ।। करमसे तो बड़ा वलवान है पुरुषार्थ दुनिया में । उदय भी गर करमका हो उसे भी टार सकते हैं ॥ ३ ॥ ज्ञान समयक्तसे चारित्रसे तप और संजमसे ॥ पाप दरियामें डवको भी हम उद्धार सकते हैं ॥ ४ ॥ करमका डर जमा रक्खा है हाऊकी तरह यूंही ॥ इन्हें तो ध्यानके इक तीरसे भी मार सकते हैं ॥५॥ | करें उद्यम तो सारी मुशकिलें आसान होजावें ॥ हां गर हिम्मत हारदें तो विलाशक हार सकते हैं ॥ ६ ॥ काल लब्धि होनहार आलशी पुरुषों की बातें हैं।
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(३६) हम इस पुरुपार्थ से किसमतकी रेखा टार सकते हैं ।। ७॥ अगर हिम्मत करो और इम्तिहांमें पास होजावो । तो कर्मों के पुराने सारे पर्चे फाड़ सकते हैं ।। ८॥ करम सागरको करना पार न्यामत गर्चे मुशकिल है । मगर जिनधर्म के चप्पू से नैय्या तार सकते हैं ॥९॥
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श्री विश्नुकुमार जी मुनिराजने हस्तनापुरके वनमें सातसौ मुनियों को मागमें जलने से बचाया और इस उपसर्ग निवारण को यादगारमें जो भाजतक सलूनो त्योहार मनाया जाता है इसका हाल इस भजनमें दिखलाया गया है।
चाल-कहां लेजाऊं दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है। फलकपर जिस घड़ी टूटा सितारा वनमें मिथलाके ॥ हिला नक्षत्र शर्वण एकदम गरर्दू हिलाने को ॥ १ ॥ लखा मुनिराजने बेसाख्ता निकला जुबांसे हा॥ तो छुल्लकजीनेकी अर्दास सब कारण बतानेको॥२॥ मुनी बोले जुलम दुनियामें ऐसा होने वाला है। कयामत होरही है बस समझ तय्यार आनेको ।। ३ ।। हस्तनापुरके बनमें सातसौ साधू जो आए हैं । कमर बांधी है बलराजाने अग्नीमें जलानेको ॥ ४॥ श्री विश्नुकुमर मुनिराजको है विक्रिया ऋद्धी ॥ वही सामर्थ हैं इस वक्त ऋषियोंके बचानेको ।। ५ ।। . सुना यह माजरा जिसदम श्री महाराज छुल्लकने ।
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(३७) उसीदम बनमें जा पहोंचे हकीकत सब सुनानेको ॥ ६॥ ऋषी बिश्नुकुमर जीको सुनाया हाल जा सारा ।। ऋषी घबरागए सुनकर हवे तय्यार जानेको।।७।। तपोबलसे मुनीने जाके धारा रूप बामनका ॥ गए बलके दवारे बलको छल काबूमें लानेको ॥८॥ राज सब लेलिया बलका जब अपने बिक्रियाबलसे ॥ गए जल्दीसे बनमें आप ऋषियोंके बचानेको ॥ ९॥ अगन चारों तरफसे लगचुकी थी वक्त नाजुक था। ऋषी सब ध्यान में थे लीन कर्मों के जलानेको ॥१०॥ हस्तनापुर में मातम छारहा था सारे व्याकुलथे। दियाथा त्याग सबनेगममें पानी और खानेको॥११॥ श्री विश्नु कुमर ने बस उसी दम तप की शक्ती से ॥ नीर बरसा दिया बन में लगी आतिश बुझाने को ॥ १२ ॥ बचाकर सब मुनों को और धरम पभोवना करके। ऋषी पहुंचे गुरु के पास फिर से योग पाने को ॥ १३ ॥ शहर वालों ने भी ऋषियों को दे आहार व्रत खोला ।। सलूनो आज तक कायम है याद इसकी दिलाने को ॥ १४॥ न्यायमत एक वह भी वक्त था सागी मुनि भी तो ।। सदा तय्यार थे आरों की विप्ता के मिटाने को ।। १५॥
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अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का रण में जाने को तय्यारहानो और उसकी माता सुभद्रा का अभिमन्यु को जानेसे रोकना-अभिमन्यु का न मानना औररणमें चला
जाना॥
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( ३८ )
(माता व पुत्र के सवाल व जवाब ) चाल --कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है ॥ सुनी जिस वक्त अभिमन्यु ने रण मेरी तो इक दम से ॥ ज़िरह बक्कर पहन के होगया तय्यार जाने को ॥ १ ॥ कहा माता ने अभिमन्यु जरा तू ठैरे तो बेटा || हुवा है यह तो बतलादे कहाँ तय्यार जाने को ॥ २ || गरण में पिता जब क्यों न की तुने खबर मुझको ॥ तो उस वक्त भी माता जी था तय्यार जाने को ॥ ३ गए हैं सबके सब रणमें रहा है घरमें इक तूही ॥ भला तू भी हुवा है किस लिए तय्यार जाने को ॥ ४ ॥ लगाती किसलिये धब्बा तू मेरी बीरताई में || फिर क्या है मेरी माता हर इक आता है जानेको ॥ ५ ॥ न तेरी उम्र लड़ने की नं रण देखा कभी तूने ।। अरे नादान कैसे होगया तय्यार जानेको ॥ ६ ॥ बतातो कौन सिखलाता है लड़ाना शेर बच्चोंको ॥ क्षत्री हर घड़ी रहते हैं यूं तय्यार जानेको ॥ ७ ॥ न्यायमत सीस अभिमन्यु झुका माता के वर्णों में ॥ उसी दम चलदिया घरसे वह था तय्यार जानेको ॥ ८ ३५
भगवान महावीर स्वामी को वस्तुनि ॥
चाल - आपको चाहने वालों को भी पहिचान नहीं ॥
जय महाबीर है हिन्सा को हटाया तूने ॥. दयामय धर्म की अजमत को दिखाया तूने ॥ १ ॥
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(३९) जगसे मिथ्यातका अंधेर हटाया तूने ।। ज्ञानका दुनियामें परकाश कराया तूने ॥२॥ तू न रागी है न देषी नहीं क्रोधी मानी ॥ सारी दुनियाको हितोपदेश सुनाया तूने ॥ ३ ॥ जग अनादि है नहीं कोई भी करता हरता । द्रव्य गुण सारे अनादि हैं बताया तूने ॥ ४॥ न्यायमत सीस झुकाता है तेरे चर्गों में ॥ धन्य है मोक्षके रस्ते में लगाया तूने ॥ ५॥
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शुभम्
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इति मूर्ति मंडन प्रकाश (जैन भजन पुष्पांजली) समाप्तम् ॥
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________________ - - - - - - - - - नोटिस - निम्न लिखित भाषा छद बद्ध चरित्र प्राचीन जैन पडितोंने रचेथे जिनको मय संशोधन करके मोटे काग़ज़ पर मोटे अक्षरों में सर्व साधारणके हितार्थ छपवाया है सब भाइयोंको पढ़कर धर्म लाभ उठामा चाहिये-यह दोनो जैन शाल ली पुरुषोंके लिये बड़े उपयोगी हैं, इनको कविता प्राचीन है और सुन्दर हैं। दोनो शाल जैन मंदिरों में पढ़ने योझ है: - (१)भविसदत्त चरित्र:-यह जैन शाल श्रीमान पंडिन बनवारी लालजी जैनने सम्बत् 1666 में कविता रूप चौपाई मादि भाषा में बनाया था जिर्सफो कई प्रतियों द्वारा मिलान करके शुद्धता पूर्वक छपवाया है और कठिन शब्दोंका अर्थ भी प्रत्येक सुफे के नीचे लिखा गया है इसमें महाराज भविसदत्त और सती कमलभी व तिलकासुन्दरी का पवित्र चरित्र भले प्रकार दर्शाया गया है / सजिल्द मूल्य 2) (2) धन कुमार चरित्र:-यह जैन शाल श्रीमान पंडित खुशहाल चन्द जी जैन ने कविता रूप चौपाई मादि भाषा में रचा था इसको भी भले || प्रकार सशोधन करके छपवाया है इसमें श्रीमान् धनकुमार जी का जीवन चरित्र मच्छी तरह दिखाया गया है। सजिल्द मूल्य 1) (3) नमोकार मंत्रः-फूलदार यढ़िया मोटा काग़ज़ मू०) पुस्तक मिलनेका पता:बा० न्यामतसिंह जैनी सेक्रेटरी डिस्टिरिक्ट बोर्ड हिसार। मु. हिसार (जिला खास हिसार) (पंजाब) -