Book Title: Muni Ki Raksha
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ धन के पीछे आज सभी तो दौड़ रहे हैं। और इस दौड़ में एक दूसरे से आगे निकलने की फिक्र में हैं। और धन आये, और धन आये इसी उधेड़बुन में सुबह से शाम तक हम पागल से हुए जा रहे हैं। अव्वल तो धन इस तरह से आता ही नहीं, उल्टे गलत काम करने से, बेईमानी से, धोखे से. चोरी से धन आता ही नहीं । धन आता है पुण्य से। और पुण्य बनता है अच्छे कामो से और यदि मान भी लिया जाये कि धन आ जायेगा तो साथ में क्या लायेगा यह धन आकुलता, परेशानी हैवानियत । इन्सानियत नाम की कोई चीज नहीं रह जाती धनवान में। तो सोचो क्या रखा है इसमें । इसे पढ कर यदि अन्याय से, पाप से, धोखे से धन कमाने की इच्छा कम हो गई तो और कुछ मिले न मिले परन्तु मनुष्यता अवश्य मिलेगी । क्या रखा है इसमें ? 'रेखांकन: बने सिह दो भाई थे. बड़ा था अहिदेव और छोटे का नाम था महिदेव एक थी उनकी छोटी बहिन और थी उनकी मां । बस यह था परिवार बहुत गरीब थे बेचारे-दो समय भोजन भी कठिनता से मिलता था। परन्तु आपस में था अटूट प्रेम । एक दिन...

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28