Book Title: Muni Ki Raksha
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 25
________________ क्या बात है? माँ क्यो रो रही हो? कुद नहीं कुछ नहीं मेरे प्यारे बच्चों | मेरी आंखों के तारों बेटा । मझे नहीं चाहिए यह रत्न ! मुझे गरीबी मे ही रहने दो। इससे तो गरीबी ही अच्छी थी यह तो हमे इन्सान भी बने नहीं रहने देता । बेटा-मेराएक कहना मानो। इस पत्थर को जो हमें हैवान बनाये दे रहा है समुद्र में फेंक दो। 30 जैसी आज्ञा माता जी। समुद्र के किनारे खड़े है अहि देत. महिदेव उनकी बहन और उनकी माँ-"रत्नसमुद्र में फेंक दिटा... मेरे प्यारे बच्चो | आज हम बहुत प्रसन्न है। यह बात कितनी बडी है कि आज हम मनुष्य तो है । जब तक यह रत्न हमार पास रहा। इसजे हमें हैवान बनाये रखा। हम अपनी इसी गरीबी में खुश है। अगर दुनिया में गरीबी नहीं होती तो शायद मनुष्यता मरही गई होती। क्या रखा है इस धन में ?

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