Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 23
________________ २२ ] मृत्यु और परलोक यात्रा का ही दृश्य रूप है। यह जीवात्मा अपनी वासना पूर्ति हेतु अनेक शरीर धारण करता है किन्तु यह कभी नष्ट नहीं होता, यह अमर है। भारतीय धर्म ने आत्मा को ही सब कुछ माना है । यही आत्मा शरीर को अपने निवास के लिए उपयोग करता है। शरीर का महत्त्व घर से अधिक नहीं है। यह आत्मा एक सूक्ष्म तत्त्व है जो विज्ञान की पकड़ से बाहर है । उसे अर्न्तदृष्टि से ही जाना जा सकता है। आत्मा को जानने का मार्ग ध्यान है, विज्ञान की प्रयोगशाला में उसे नहीं देखा जा सकता। इसका अनुभव समाधि में ही होता है। इस आत्मा का अपना अलग शरीर है जिसे "सूक्ष्म शरीर" कहते हैं । यह जीवात्मा के साथ छाया की भाँति संयुक्त रहता है । इसका दूसरा शरीर "भौतिक शरीर" है जो पंचतत्त्वों का बना है। यह शरीर भी इस आत्मा का अभिन्न अंग है । आत्मा की अभिव्यक्ति इसी शरीर से हुई है। इसके बिना आत्मा को नहीं जाना जा सकता। यह आत्मा अपनी वासना पूर्ति हेतु इसे धारण करता है व व्यर्थ हो जाने पर इसे छोड़ देता है तथा नया शरीर ग्रहण कर लेता है। आत्मा की उपस्थिति से ही शरीर की समस्त कोशिकाएँ जीवित रहती हैं । शरीर से आत्मा के निकल जाने पर वे मृत हो जाती हैं तथा इनके मृत हो जाने से यह शरीर भी मृत हो. जाता है। मृत शरीर में भी आत्मा का प्रवेश हो जाने पर वह जीवित हो उठता है। शरीर हर जन्म में बदल जाता है किन्तु जीवात्मा वही रहता है। यह जीवात्मा की क्रिया शक्ति का माध्यम मात्र है जिससे जीवात्मा क्रिया करता है। इसका महत्त्व

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