Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 114
________________ साधारण जीवों की परलोक यात्रा . [ ११३ - यहाँ से जब जीव आगे के लोक या स्वर्ग की ओर निकल जाता है तो उसका भुवर्लोक के कणों से बना शरीर छिलके की भाँति पड़ा रह जाता है जो धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। नए जन्म में वह इसी लोक से अपनी प्रकृति के अनुसार इनका पुनः संग्रह करके नया शरीर धारण करता है। इस समय श्राद्ध आदि कर्मों से उस जीवात्मा पर अनुकल प्रभाव पड़ता है। इसका सम्बन्ध "प्राणमय कोश" से है।। (द) मनोलोक ___ जो मनुष्य स्थूल शरीर में ही जीते हैं, जो पेट और प्रजनन को ही जीवन का सार मानते हैं, जिसकी कामनाएँ एवं वासनाएँ भौतिक वस्तुओं से सन्तुष्टि तक ही सीमित हैं वे मृत्यु के बाद काम लोक में निवास करते हैं किन्तु इनसे ऊपर उठकर जो मन के तल पर जीते हैं वे मृत्यु के बाद इस मनोलोक में निवास करते हैं। यद्यपि काम लोक भी मनोलोक का ही रूप है किन्तु यह इसका निकृष्ट तल है। मनोलोक सामान्य तल है तथा इसका उच्च तल ही स्वर्ग कहलाता है । ये तीनों मन के ही भाग हैं जिसमें जीव सूक्ष्म शरीर से रहता है। ___यह मनोलोक ही जीवात्मा का जन्म स्थान है। मन का अर्थ है विचार करने वाला ही मनुष्य है। आत्मा का जब मन के साथ संयोग होता है तभी उसकी “जीवात्मा" संज्ञा होती है तथा मन से मुक्त होने पर वह अपने शुद्ध चैतन्य स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। इसी को निर्वाण, मोक्ष आदि कहते हैं।

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