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१८८ दो के बदले (चार मेहमानों सहित) कुल छह जनों का भोजन बनाना पड़ेगा । मेहमानों को चिन्ता थी कि सेठजी हमें गर्म खुरपों से कहीं दाग न दें।
फिक्कर का फाका करे, बोले वचन गंभीर ।
कबीर इस संसार में वही कहाय फकोर ॥
फकीर वही है, जो फिक्र (चिन्ता) का फाका करे (खा जाय-नाश कर दे)। मुनि वही है, जो मौन रहे-चिन्ता न करे-कष्टों को शान्ति से सहे । साधु वही है, जो चिन्ता का त्याग करके केवल आत्मकल्याण की साधना में लगा रहे-संन्यासी वही है, जो समस्त चिन्ताओं का न्यास (त्याग) कर दे-इन सभी परिभाषाओं में मूल तत्त्व है-निश्चिन्तता।
विश्वविख्यात विचारक डेल कारनेगी ने चिन्ता को कम करने के लिए इन चार प्रश्नों पर विचार करने की सलाह दी थी :
एक-समस्या का स्वरूप क्या है ? दो-समस्या का कारण क्या है ? तीन-समस्या से निपटने के संभाव्य साधन क्या-क्या है ? चार-उन साधनों में सर्वोत्तम साधन कौन-सा है ?
विचारपूर्वक समस्या का सर्वोत्तम साधन अपनाकर जो अपनी चिन्ताओं से पार हो जाते हैं, उन्हीं को मित्र अपनाते है और चिन्तातुरों से वे दूर रहते हैं।
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