Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 155
________________ का दिन था। पत्नी प्रतिक्रमण करने के लिये जा रही थी। इतने में वह भाई मदिरा के नशे में चूर होकर आया। पत्नी ने ही द्वार खोला। पति की दर्दशा देखकर उससे रहा नहीं गया। वह बोली "आज बड़ी चतुर्दशी के दिन का भी भान नहीं रहा। आज तो पिये बिना आना था।" पति को क्रोध आ गया। उसने पत्नी की भुजा पकड़ी और उसे खींच कर वह शयनागार में ले गया भीतर से ताला लगा दिया। कहने लगा, ले नित्य मुझे उपदेश देती है, मदिरा - पान नहीं करने का आज मैं तुझे ही मदिरा पिलाता हूँ।" पत्नी ने कहा "यह क्या कर रहे हो ? आज मेरे चतुर्दशी का चौविहार उपवास है और आपको यह क्या सुझा है ?" पति बोला - "बैठ जा चुपचाप। आज तुझे नहीं छोडूंगा।" कहते हुए पति ने बल पूर्वक मदिरा की बातले पत्नी के मुँह से लगा दी और उसे मदिरा पीला दी। अपने उपवास का भंग और वह भी चतुर्दशी के दिन मदिरा पीकर। इस आघात को पत्नी सह नहीं सकती। उसने रात्रि में ही आत्म-हत्या कर ली और मृत्यु का आलिङ्गन किया। मदिरा का पाप कितना भयानक है। इसका इससे अधिक दु:खद दृष्टांत अन्य क्या हो सकता है ? यद्यपि उस महिला द्वारा उठाया गया आत्म-हत्या का कदम सचमुच अनुचित था। मरने से कोई किसी आपत्ति का निराकरण थोड़ी ही होता है ? परन्तु उस आद्यात को सहन नहीं कर सकने के कारण ही उसने यह कदम उठाया। अन्यथा, मानव-भव को इस प्रकार अकाल नष्ट करने को शास्त्रकार कदापि उचित नहीं मानते। बात है मदिरा के व्यसन की भयंकरता की। जिसे अपना जीवन समृद्ध करना हो, सद्गुणों की सुगन्ध से युक्त बनाना हो और शान्ति तथा स्वस्थता से परिपूर्ण करना हो, उसे मदिरा जैसे दैत्य को जीवन में से निष्कासित करना ही चाहिये। 2. मांसाहार :- मांसाहार भी अत्यन्त भयानक पाप है। पंचेन्द्रिय जीवों की (गाय, भैंस, बैल, बकरी, भेड़, मुर्गा आदि प्रणियों की) हत्या करने से ही मांसाहार होता है। अम: ऐसे जीवों का संहारक तथा उनके संहार से उत्पन्न मांस का आहार करने वाला व्यक्ति नरकगामी होता है। मांसाहारी व्यक्ति में क्रूरता, हिंसा आदि दुर्गुण उत्पन्न होते हैं। मांसाहार व्यक्ति तामसी-क्रोधी प्रकृति का होता है। मांसाहार से स्वास्थ्य आदि की भी हानि होती है। मांसाहार करना अर्थात् जीवों का संहार करके उनके लिये कब्रिस्तान रूपी अपना पेट बनाना। 'मांसाहार बलवान होता है और माँस में विटामिन अधिक होते हैं।' इस मान्यता को वर्तमान डॉक्टरों ने असत्य सिद्ध कर दिया है। इस प्रकार अनेक दृष्टि से मांसाहार वर्जित है। 3. शिकार :- शिकार भी अत्यन्त हिंसा स्वरूप होने से त्याज्य है। अन्य जीवों की हत्या करने में वीरता नहीं है। मानव होकर अन्य प्राणियों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। आज शिकार का पाप विशेष देखने में नहीं आता। अत: उसके बदले जिसमें पशु-पक्षी आदि की क्रूर हिंसा होती हो, उस प्रकार के जीव-हिंसा-जनक अथवा जीव-हिंसा को प्रोत्साहन देने वालें धंधो आदि को 'शिकार' में सम्मिलित कर सकते हैं। 160686RCSC 150900909/09

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