Book Title: Mangal Mandir Kholo
Author(s): Devratnasagar
Publisher: Shrutgyan Prasaran Nidhi Trust

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Page 164
________________ ececece 1900000000 योग्य हो वह आवश्यक तो होगा ही न ? उत्तर : नहीं, कई बार यह भी होता है कि अमुक कार्य के लिये व्यय करना योग्य हो परन्तु आवश्यक न भी हो। उदाहणार्थ : धनवान व्यक्ति को अपनी पुत्री के विवाह के प्रसंग पर अतिथियों, निमंत्रितों के लिये प्रीति भोज रखना योग्य अवश्य हो और जिससे वह प्रीति भोज का आयोजन करे उसे अयोग्य नहीं कहा जायेगा। परन्तु एक 'डिश' सित्तर रुपयों की हो, एक दिन के भोजन में वह धनवान व्यक्ति एक लाख रूपये व्यय कर डाले तो वह तनिक भी 'आवश्यक' नहीं माना जायेगा । पुत्र अथवा पुत्री के विवाह में प्रीतिभोज रखना योग्य है, परन्तु एक प्रीतिभोज में लाख रूपये व्यय करना अनावश्यक है। ये कोई गप्प की बातें नहीं है । बम्बई के वालकेश्वर के करोड़पति सेठ सचमुच इस प्रकार विवाहों में घोर अपव्यय करते हैं। वे सजावट पर तीन-तीन लाख रूपये व्यय कर देते हैं। समस्त विवाहोत्सव का व्यय पच्चीस-तीस लाख रूपये होने की उत्तरदायित्व पूर्ण बातें सुनी है। यह मानने की 'भूल' मत करना : क्या ये सब उचित व्यय हैं ? नहीं, कदापि नहीं । ये तो धन का नितान्त अपव्यय है। यदि उन्हें व्यवस्थित धंधे पर लगाने में इतना धन व्यय किया जाये तो धनवानों के इतने व्यय में तो चार सौ पांच सौ स्वधर्मियों के परिवार जीवनभर के लिये स्थिर हो जायें। परन्तु वर्तमान धनवानों को ऐसी बातों में कोई रूचि नहीं है। परन्तु आप ध्यान में रखें कि आपकी सन्तान पानी के बदल फलों का रस पीती हो और आपके सुन्दर फ्लैट का मूल्य पचहत्तर लाख रूपये हो, जिससे सम्पूर्ण विश्व सुख झूमता होगा वह मानने की भूल कदापि नहीं करें। में स्वयं के लिये मितव्ययी और परोपकार के लिये उदार बनें : यदि आप अपने निरर्थक व्यय में मितव्ययी नहीं बनेंगे तो अन्य व्यक्तियों के लाभार्थ, परोपकारार्थ कहाँ से व्यय कर सकेंगे ? यदि आप दूसरों के उपकार के लिये कार्य करने की तमन्ना रखते हो तो वह सम्भावना तब ही होगी जब आप स्वयं के व्यवहार में उदार बनना छोड़कर संकोचशील बनेंगे। स्मरण रहे - 'जो व्यक्ति स्वयं के लिये अपव्ययी होगा वह परोपकार के कार्य में अनुदार, कृपण होगा और जो स्वयं के व्यवहार में मितव्ययी होगा वह परोपकार के कार्य में उदार होगा ।' स्वयं के जीवन व्यवहार में भी मनुष्य को अपने स्तर एवं अपनी योग्यता के अनुसार ही व्यय करना चाहिये। व्यर्थ के लिये ऋणी बनकर अपना वैभव एवं धामधूम दिखाने का कोई अर्थ नहीं है। ऐसा करने से भविष्य में वह ऋण और उसका ब्याज चुकाने में मुख्य व्यक्ति एवं उसके परिवार- -जन चिन्ता की आग में जलते रहेते हैं। ऋण चुकाने की चिन्ता में सज्जन की बलि : यह एक सत्य घटना है। एक गृहस्थ का पैंतीस वर्ष की बड़ी आयु में विवाह हो रहा था । be 159 100%

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